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भारतीय समाज
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भारतीय संस्कृति का अनोखा स्वरुप
- 28 Nov 2020
- 13 min read
- सामान्य अध्ययन-I
स्वभाव की गंभीरता , मन की समता , संस्कृति के अंतिम पाठों में से एक है और यह समस्त विश्व को वश में करने वाली शक्ति में पूर्ण विश्वास से उत्पन्न होती है।
अगर भारत के संदर्भ में बात की जाए तो भारत एक विविध संस्कृति वाला देश है, एक तथ्य कि यहाँ यह बात इसके लोगों, संस्कृति और मौसम में भी प्रमुखता से दिखाई देती है। हिमालय की अनश्वर बर्फ से लेकर दक्षिण के दूर दराज में खेतों तक, पश्चिम के रेगिस्तान से पूर्व के नम डेल्टा तक, सूखी गर्मी से लेकर पहाड़ियों की तराई के मध्य पठार की ठंडक तक, भारतीय जीवनशैलियाँ इसके भूगोल की भव्यता स्पष्ट रूप से दर्शाती है। एक भारतीय के परिधान, योजना और आदतें इसके उद्भव के स्थान के अनुसार अलग-अलग होते हैं।
भारती संस्कृति अपनी विशाल भौगोलिक स्थिति के समान अलग-अलग है। यहाँ के लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग तरह के कपडे़ पहनते हैं, भिन्न-भिन्न धर्मों का पालन करते हैं, अलग-अलग भोजन करते हैं किंतु उनका स्वभाव एक जैसा होता है। चाहे कोई खुशी का अवसर हो या कोई दुख का क्षण, लोग पूरे दिल से इसमें भाग लेते हैं, एक साथ खुशी या दर्द का अनुभव करते हैं। एक त्यौहार या एक आयोजन किसी घर या परिवार के लिये समिति नहीं है। पूरा समुदाय या आस-पड़ोस एक अवसर पर खुशियाँ मनाने में शामिल होता है, इसी प्रकार एक भारतीय विवाह मेल-जोल का आयोजन है, जिसमें न केवल वर और वधु बल्कि दो परिवारों का भी संगम होता है। चाहे उनकी संस्कृति या फिर धर्म का मामला क्यों न हो। इसी प्रकार दुख में भी पड़ोसी और मित्र उस दर्द को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारतीय संस्कृति के बारे में पं. मदनमोहन मालवीय का कहना है कि ‘‘भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता और उसकी महत्ता तो संपूर्ण मानव के साथ तादात्म्य संबंध स्थापित करने अर्थात् ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की पवित्र भावना में निहत है।
भारत का इतिहास और संस्कृति गतिशील है और यह मानव सभ्यता की शुरूआत तक जाती है। यह सिंधु घाटी की रहस्यमयी संस्कृति से शुरू होती है और भारत के दक्षिणी इलाकों में किसान समुदाय तक जाती है। भारत के इतिहास में भारत के आस-पास स्थित अनेक संस्कृतियों से लोगों का निंरतर समेकन होता रहा है। उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार लोहे, तांबे और अन्य धातुओं के उपयेाग काफी शुरूआती समय में भी भारतीय उप-महाद्वीप में प्रचलित ये, जो दुनिया के इस हिस्से द्वारा की गई प्रगति का संकेत है। चौथी सहस्राब्दि बी.सी. के अंत तक भारत एक अत्यंत विकसित सभ्यता के क्षेत्र के रूप में उभर चुका था।
संस्कृति के शब्दिक अर्थ की बात की जाए तो संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है। अत: संस्कृति का साधारण अर्थ होता है- संस्कार, सुधार, परिवार, शुद्धि, सजावट आदि। वर्तमान समय में सभ्यता और संस्कृति को एक-दूसरे का पयार्य माना जाने लगा है लेकिन वास्तव में संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग होती है। सभ्यता में मनुष्य के राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय व दृश्य कला रूपों का प्रदर्शन होता है जो जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जबकि संस्कृति में कला, विज्ञान, संगीत, नृत्य और मानव जीवन की उच्चतम उपलब्धियाँ सम्मिलित है।
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। यह माना जाता है कि भारतीय संस्कृति यूनान, रोम, मिस्र, सुमेर और चीन की संस्कृतियों के समान ही प्राचीन है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के ढालती भी आई है।
‘‘यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमां, सब गिर गए जहाँ से अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशाँ हमारा,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा।’’
ज्ब से मसव का जीवन अस्तित्व में है तब से वह निरंतर उन मूल्यों की तरफ अग्रसर है, जिनकों प्राप्त कर लेने पर उसका जीवन व्यवस्थित होने के साथ-साथ ‘आत्मिक सौंदर्य’ से भी परिचित हो सके। उसकी यह प्रवृत्ति वास्वत में संस्कृति की ओर ही इशारा करती है। भारतीय संस्कृति समस्त मानव जाति का कल्याण चाहती है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन गौरवशाली मान्यताओं एवं परंपराओं के साथ ही नवीनता का समावेश भी दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं का महासंगम है, जिसमें सनातन संस्कृति से लेकर आदिवासी, तिब्बत, मंगोल, द्रविड़, हड़प्पाई और यूरोपीय धाराएँ समाहित हैं। ये धाराएँ भारतीय संस्कृति को इंद्रधनुषीय संस्कृति या गंगा-जमुनी तहज़ीब में परिवर्तित करती है।
अगर भारतीय संस्कृति के समन्वित रूप पर विचार करें तो इसमें विभिन्न विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। भारतीय संस्कृति में अध्यात्म एवं भौतिकता’ में समन्वय नजर आता है। भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल में मनुष्य के चार पुरूषार्थों धर्म, अर्ध, काम, मोटर्स एवं चार आश्रमों- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास का उल्लेख है, जो आध्यात्मिकता एवं भौतिक पक्ष में समन्वय लाने का प्रयास है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति ने अनेक जातियों के श्रेष्ठ विचारों को अपने में समेट लिया है। भारतीय संस्कृति में यहां के मूल निवासियों के समन्वय की प्रक्रिया के साथ ही बाहर से आने वाले शक, हूण, यूनानी एवं कुषाण भी यहां की संस्कृति में घुल-मिल गए हैं। अरबों, तुर्कों और मुगलों के माध्यम से यहाँ इस्लामी संस्कृति का आगमन हुआ। इसके बावजूद भारतीय संस्कृति ने अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखा और नवागत संस्कृतियों की अच्छी बातों को उदारतापूर्वक ग्रहण किया। आज हम भाषा, खानपान, पहनावे, कला, संगीत आदि हर तरह से गंगा-जमुनी तहजीब या यूँ कहें कि वैश्विक संस्कृति के नमूने हैं। कौन कहेगा कि सलवार-सूट ईरानी पहनावा है या हलवा, कबाब, पराठे, ‘शुद्ध भारतीय व्यंजन नहीं हैं।
इस बिंदु पर विचार करना जरूरी है कि हड़प्पाकालीन सभ्यता की पंरपराएँ एवं प्रथाएँ आज भी भारतीय संस्कृति में देखने को मिल जाती है, यथा-मातृदेवी की उपासना, पशुपतिनाथ की उपासना, यांग-आसन की परंपरा इत्यादि। इसके अलावा भारतीय संस्कृति में ‘प्रकृति मानव सहसंबंध’ पर बल दिया गया है। हमारी संस्कृति मानव, प्रकृति और पर्यावरण के अटूट एवं साहचर्य संबंधों को लेकर चलती है। भारतीय उपनिषदों में ‘ईशावास्यइंद सर्वम्’ अर्थात् जगत् के कण-कण में ईश्वर की व्याप्तता को स्वीकार किया गया है।
यहाँ के विभिन्न विचारकों एवं महापुरूशों ने भारतीय संस्कृति को समन्वित रूप प्रदान करने वाले विचार प्रस्तुत किये हैं। फिर चाहे बुद्ध, तुलसीदास हो या गांधी जी, इन सभी को भारतीय संस्कृति के नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है तथा ये सभी चरित्र भारतीय संस्कृति को समन्वित स्वरूप देते हैं। भारत की विभिन्न कलाओं, जैसे- मूर्तिकला, नृत्यकला, चित्रकला, लोकसंस्कृति इत्यादि में भारतीय संस्कृति के समन्वित स्वरूप को देखा जा सकता है। विभिन्न धर्म, पंथों एवं वर्गों के लोगों का नेतृत्व इन कलाओं में दृष्टिगोचर होता है, जैसे- मध्यकाल में इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला और आधुनिक काल में विक्टोरियन शैली। भारतीय संस्कृति का समन्वित रूप केवल भौगोलिक-राजनीतिक सीमाओं में ही नहीं है बल्कि उसके बाहर भी है। भारत के अंदर बौद्ध, जैन, हिंदू, सिख, मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों के लोग एवं उनके पूज्य-स्थल हैं, जो ‘शांतिपूर्ण’ सहअस्तित्व को दर्शाते हैं।
विदित हो कि संस्कृति का स्वरूप ‘साहित्य’ में सबसे अधिक समर्थयपूर्ण तरीके से अभिव्यंजित होता है। संस्कृति साहित्य कर प्राण है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में संस्कृति के प्रभाव को देखा जा सकता है। यहाँ की संस्कृति के आधारभूत मूल्य दया, करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता, लचीलापन, क्षमाशीलता इत्यादि को भारतीय साहित्य में समुचित तरीके से अभिव्यक्ति दी गयी है। भारतीय संस्कृति का यह समन्वित रूप संस्कृति भाषा के माध्यम से रामायण, महाभारत, गीता, कालिदास-भवभूति-भास के काव्यों और नाटकों, के माध्यम से बार-बार व्यक्त हुआ है। तमिल का संगम साहित्य, तेलुगु का अवधान साहित्य, हिंदी का भक्ति साहित्य, मराठी को पोवाड़ा, बंगला का मंगल नीति आदि भारतीय उद्यान के अनमोल फूल हैं।
इनकी संयुक्त माला निश्चय ही ‘समेकित भारतीय संस्कृति’ का प्रतिनिधित्व करती है। तुलसीदास मध्यकाल में भारतीय संस्कृति के समन्वय के सबसे बड़े कवि के रूप में नजर आते हैं।
‘‘स्वपच सबर खस जमन जड़, पाँवर कोल किरात रामु कहत पावन परम, होत भुवन विख्यात।।’’
भारतीयों ने गणित व खगोल विज्ञान पर प्रामाणिक व आधारभूत खोज की। शून्य का आविष्कार, पाई का शुद्धतम मान, सौरमंडल पर सटीक विवरण आदि का आधार भारत में ही तैयार हुआ। तात्कालिक कुछ नकारात्मक घटनाओं व प्रभावों ने जो धुंध हमारी सांस्कृतिक जीवन-शैली पर आरोपित की है, उसे सावधानी पूर्वक हटाना होगा। आज आवश्यकता है कि हम अतीत की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजें और सवारें तथा उसकी मजबूत आधारशिला पर खडे़ होकर नए मूल्यों व नई संस्कृति को निर्मित एवं विकसित करें।
संस्कृति क्या है, अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); संस्कृति क्या है संस्कृति का अर्थ (sanskriti kise kahate hai), संस्कृति की परिभाषा (sanskriti ki paribhasha), (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); संस्कृति की विशेषताएं (sanskriti ki visheshta), संस्कृति के प्रमुख आयाम , संस्कृति और समाज , 6 टिप्पणियां:.
Kya ap muja mapdand Kii paribhasa ,vishyta bta sekta ho agr ha to phir plz muja abi bta do muja jarurt ha
Bhartiya sahitya
Sanskriti ka arth
Sanskrti ki prabhavo ki vivechna kijiye
Bahut achhi jankari mili , very nice post
rth-paribhasha-visheshtaye.html#comment-editor
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संस्कृत भाषा पर निबंध Essay On Sanskrit Language In Hindi
संस्कृत भाषा पर निबंध Essay On Sanskrit Language In Hindi : विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक तथा दक्षिण एशियाई भाषाओं की जगत जननी संस्कृत (संस्कृतम्) को माना जाता हैं.
ये महज भारतीय भूभाग तक सिमित न होकर इस पूरे उपमहाद्वीप की भाषा हुआ करती थी. हिन्द आर्य वर्ग की इस भाषा को देव वाणी और सुर भारती उपनामों से भी जाना जाता हैं.
भारत के इतिहास संस्कृति धर्म ( हिन्दू , बौद्ध , जैन ) आदि में संस्कृत का बड़ा महत्व हैं. हिन्दूधर्म के अधिकाँश वेद सहित ग्रंथ इसी भाषा में रचे गये हैं.
आज निबंध भाषण स्पीच अनुच्छेद पैराग्राफ में हम संस्कृत इसका जीवन में महत्व Importance In Our Life संस्कृत दिवस डे पर निबंध बता रहे हैं.
Hello Friends Here IS Short Essay On Importance Of Sanskrit Language. Few Lines Like 5,10 Short Essay For School Kids On Importance Of Tongue Of Sanskrit That’ Also Mother Tounge Of Indian Modern Languages.
Essay On Importance Of Sanskrit Language In Sanskrit संस्कृत भाषाया महत्त्वम् निबंध
संस्कृतभाषा अस्माकं देशस्य प्राचीनतमा भाषा अस्ति. प्राचीनकाले सर्वे भारतीयाः संस्कृतभाषायाः व्यवहारं कुर्वन्ति स्म. कालान्तरे विविधा: प्रांतीया: भाषा: प्रचलिता: अभवन.
किन्तु संस्कृतस्य महत्वम अद्यापि अक्षुण्ण वर्तते. सर्वे प्राचीनग्रन्था: चत्वारो वेदाश्च संस्कृतभाषायामेव सन्ति. संस्कृतभाषा भारतराष्ट्रस्य एकताया आधार: अस्ति. संस्कृतं सर्वत्र देशे समानरूपेण आद्रियते.
संस्कृतभाषाया: यत स्वरूपं अद्य प्राप्यते तदेव अद्यत: सहस्त्रवर्षपूर्वमेव आसीत्. संस्कृतभाषाया: स्वरूपं पूर्णरूपेण वैज्ञानिकम अस्ति. अस्य व्याकरण पुर्णतः तर्कसम्मतं च. आचार्य दण्डीना सम्यगेवोक्तं
“भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती”
संस्कृत भाषा हमारे देश की सबसे प्राचीन भाषा हैं. आदिकाल में सभी भारतीय संस्कृत भाषा में ही समस्त क्रियाकलाप करते थे. धीरे धीरे विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का जन्म होता गया.
मगर संस्कृत भाषा का महत्व आज भी उतना ही हैं. हमारे प्राचीन ग्रंथ जिनमें चारों वेद संस्कृत भाषा में ही लिखे गये हैं. संस्कृत भारत को एकता के सूत्र में बांधती हैं. सम्पूर्ण देश भर में संस्कृत भाषा का आदर सम्मान किया जाता हैं.
आज हमें संस्कृत का जो स्वरूप मिलता है वह हजारों वर्षों के उपरान्त बना हैं संस्कृत पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक भाषा हैं जो व्याकरण की दृष्टि से तर्क सम्मत भी हैं. इसके बारे में आचार्य दण्डी ने कहा हैं.
“सर्व भाषाओंमें संस्कृतका अपना महत्व है, संस्कृत सबसे मधुर और दिव्य है | उसमें भी संस्कृतके काव्य अत्यधिक मधुर हैं”
Essay On Importance Of Sanskrit Language In Hindi
जिस समय विश्व के अन्य देशों में लोग सांकेतिक भाषा से काम चला रहे थे उस समय भारत में संस्कृत भाषा द्वारा ब्रह्म ज्ञान का प्रसार किया जा रहा था. इसके प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विशाल था. इसका स्पष्ट वर्णन पतंजलि के महाभाष्य में मिलता है.
धीरे धीरे देशकाल एवं वातावरण के प्रभाव के कारण संस्कृत भाषा प्राकृत अपभ्रंश एवं आधुनिक बोलियों जैसे खड़ी बोली का रूप धारण करती हुई भी अपने निज स्वरूप से विचलित नहीं हुई, किन्तु स्थिति यहाँ तक पहुंची कि इसे कतिपय लोगों द्वारा मातृ भाषा के रूप में सम्बोधित किया जाने लगा.
प्राचीन काल में कंठस्थीकरण पर बल था तथा सूत्र प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा था. संस्कृत अव्याकृत थी अर्थात प्रकृति प्रत्यय आदि के विभाग रहित होने के कारण इसका उपदेश प्रतिपद पाठ विधि से किया जाता था. अर्थात एक एक करके शब्द पढ़े जाते थे. गौ, अश्व, हस्ती आदि.
इस विधि से शिक्षण में अधिक समय लगता था. इस कठिनाई के निवारण हेतु उसके प्रत्येक शब्द को विभक्त कर अध्ययन की सुगमता के लिए वैज्ञानिक विधि का निर्माण किया गया
और उसमें प्रकृति प्रत्यय आदि की कल्पना की गई. इसी प्रकार प्राचीन व्याकरण ग्रंथों हमें निगमन विधि का रूप भी दृष्टिगत होता हैं. शास्त्रार्थ तर्क वितर्क प्रश्नोत्तर द्वारा भी शिक्षण को रोचक बनाया जाता था.
धीरे धीरे शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आया. ब्रिटिश काल से अब तक संस्कृत शिक्षण के क्षेत्र में पाठ्यवस्तु विधि, प्रत्यक्ष विधि विश्लेषणात्मक विधि, व्याख्या विधि एवं व्याकरण विधि का प्रचलन रहा. हम कई वर्षों से पाठ योजना के निर्माण हेतु हरबर्ट की पंचपदी का अनुकरण करते आए हैं.
संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व की विभिन्न भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है, अतः संस्कृत को रोचक बनाने के प्रयास किये जाने चाहिए, ताकि यह अपने अस्तित्व को पुनः प्राप्त कर सके.
संस्कृत भाषा या संस्कृत दिवस 2023 का महत्व ( Sanskrit Language Day , Sanskrit Diwas Date in hindi)
नेपाल तथा भारत के दस लाख से अधिक लोग आज भी संस्कृत को बोलते एवं समझते हैं. हिन्दू धर्म के समस्त तरह के पूजा पाठ एवं यज्ञ हवन आदि के मंत्र व जाप इसी भाषा में पढ़े जाते हैं.
संस्कृत के महत्व के बारे में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने कहा था, “ संस्कृत पूरे भारत को भाषाई एकता के सूत्र में बांध सकने वाली इकलौती भाषा हो सकती है” इन्होंने संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव भी दिया था.
विगत कई दशकों से डी डी न्यूज द्वारा संस्कृत आधारित एक कार्यक्रम भी प्रसारित किया जाता हैं. देश के कई राज्यों में तृतीय भाषा के रूप में इसका अध्यापन कार्य करवाया जाता हैं.
कई संस्कृत महाविद्यालय एवं शिक्षण संस्थान भी हमारे देश में हैं. देश के एक राज्य उत्तराखंड में संस्कृत को राज्य की द्वितीय राज भाषा के रूप में भी मान्यता प्राप्त हैं.
आपकों जानकारी हो कि हमारे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित 22 भाषाओं में संस्कृत भी हैं.
संस्कृत दिवस कब मनाया जाता है (Sanskrit Day Date 20223)
अन्य भाषाओं के दिवस की भांति संस्कृत दिवस मनाया जाता हैं. हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक़ हर साल सावन महीने की पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस मनाया जाता हैं.
वर्ष 1969 से भारत में हर साल संस्कृत दिवस मनाया जाता रहा है, आपको जानकारी होगी इस दिन हिन्दुओं द्वारा भाई बहिन का पवित्र पर्व राखी भी मनाया जाता हैं. दोनों भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए उत्सव वर्ष 2023 में 22 अगस्त के दिन मनाएं जाएगे.
संस्कृत भाषा का महत्व (Sanskrit Language Importance in hindi)
हमारी जड़ो से जुडी एक ही भाषा है वह है संस्कृत जो बेहद मधुर सरल एवं सुंदर भाषा भी हैं. हमारे समाज व संस्कृति के निर्माण में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं.
जब हम दस हजार साल पुरानी भारतीय सभ्यता की बात करते है संस्कृत उसका प्रमाण हैं. हमारे अतीत के ज्ञान चाहे वह धर्म ग्रंथों आयुर्वेद चाणक्य की अर्थशास्त्र या चिकित्सा खगोल नक्षत्र विद्या का स्त्रोत संस्कृत ही है. इस भाषा की सहायता के बिना हम अपने अमृत रुपी उस कैवल्य ज्ञान को कभी नहीं पा सकते हैं.
आधुनिक युग मे संस्कृत की महत्ता (Importance of Sanskrit Language in modern world)
संस्कृत विश्व की सब भाषाओं की जननी है. इसके बाद भी यह अपने ही घर भारत में उपेक्षित हो रही है. संस्कृत के कई पक्षधर ही इसे देव वाणी बनाकर सामान्य जन से दूर कर देते है.
वास्तविकता यह है कि यह जन वाणी रही है और आज भी बड़ी सरलता से यह जनवाणी बन सकती थी. सामान्य व्यक्ति को प्रेरणा देने और उसे संस्कारित करने की तो इस भाषा की विलक्षण क्षमता है.
देश जब स्वतंत्र हुआ तो उस समय देश के नेतृत्व में संस्कृत के प्रति अनुराग था. इसलिए सरकारी संस्थानों के ध्येय वाक्य संस्कृत में ही चुने गये.
बाद में सेकुलरवाद ने संस्कृत को प्रष्ठभूमि में धकेल दिया. यहाँ संस्कृत के कुछ ध्येय वाक्य दिए जा रहे है. जो बताते है कि संस्कृत भारत का मन और मस्तिष्क है.
विभिन्न संस्थाओं के संस्कृत ध्येय वाक्य (Sanskrit logos of various institutions)
- भारत सरकार- सत्यमेव जयते
- लोकसभा- धर्मचक्र प्रवर्तनाय
- उच्चतम न्यायालय- यतो धर्मस्ततो जयः
- दूरदर्शन- सत्यं शिवम सुनदरम
- भारतीय जीवन बीमा निगम- योगक्षेमं वहाम्यहम
- आल इंडिया रेडियों- सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय
- भारतीय सांख्यिकी संस्थान- भित्रेष्वेक्स्य दर्शनम्
- भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी- हव्याभि भर्ग सवितुर्वरेण्यं
- भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी- योगः कर्मसु कौशलं
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई- सिद्धिभर्वति कर्मजा
- भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद- विद्या विन्योगाद्विकास
- भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान खडगपुर- योगः कर्मसु कौशलम
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई- ज्ञानं परमं ध्येयम
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग- ज्ञान विज्ञानं विमुक्तये
- आंध्र विश्वविद्यालय- तेजस्विनावधितमस्तु
- दिल्ली विश्वविद्यालय- निष्ठां धृति: सत्यम
- केरल विश्वविद्यालय- कर्मणि व्यजयते प्रज्ञा
- राजस्थान विश्वविद्यालय- धर्मों विश्वस्यजगत: प्रतिष्ठा
- हिंदी अकादमी- अहम् राष्ट्री संगमनी वसूनाम
- श्रम मंत्रालय- श्रम मेव जयते
- गुजरात रा. विधि विश्वविद्यालय- आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः
- राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम- शुभास्ते पंथान: सन्तु
- बिरला प्रौद्योगिकी विज्ञान संस्थान, पिलानी- ज्ञानं परमबलम
भारतीय सेना में संस्कृत के लोगो (आदर्श वाक्य) (Sanskrit logo in the Indian Army)
- थल सेना- सेवा अस्माकं धर्मः
- वायु सेना- नभः स्पर्शः दीप्तम
- जल सेना- शं नो वरुणः
- सेना ई एम ई कोर- कर्मः हि धर्मः
- सेना राजपूताना रायफल- वीर भोग्या वसुंधरा
- सेना मेडिकल कोर- सर्वे सन्तु निरामयाः
- सेना ग्रेनेडियर रेजीमेंट- सर्वदा शक्तिशालिम
- सेना राजपूत बटालियन- सर्वत्र विजये
- सेना डोगरा रेजीमेंट- कर्तव्यम अन्वात्मा
- सेना गढ़वाल रायफल- युद्धाय कृत निश्चय
- सेना कुमायु रेजीमेंट- पराक्रमों विजयते
- सेना कश्मीर लाइट इफैन्ट्री- बलिदानं वीर लक्ष्यं
- भारतीय तट रक्षक- वयम रक्षामः
अन्य देशों में भी संस्कृत के प्रति गहरा सम्मान है, तनिक देखिये (Importance of Sanskrit language in the world)
- नेपाल सरकार- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरीयसी
- कोलम्बों विश्वविद्यालय (श्रीलंका)- बुद्धि: सर्वत्र भ्राजते
- पेरादेनिया विश्वविद्यालय (श्रीलंका)- सर्वस्य लोचनशास्त्रम्
- इंडोनेशिया थल सेना- ज्लेष्वेव जयामहेस्नेह
- राष्ट्रीय पुलिस इंडोनेशिया- राष्ट्र सेवकोतम
- मोराटुवा विश्वविद्यालय (श्रीलंका) विद्यैव सर्वधनम
जब हम आज के युग में संस्कृत भाषा के महत्व की बात करते हैं तो इसे समझने के लिए हमें विभिन्न पहलुओं की ओर देखना होगा. हमें यह समझना होगा कि हमारे जीवन में संस्कृत का महत्व कितना हैं.
शायद आप जानते होंगे संस्कृत के प्रसार प्रचार में भारतीयों से अधिक योगदान विदेशी लेखकों एवं यात्रियों का रहा हैं. अंग्रेज विद्वान् सर विलियम जॉन , सर चार्ल्स विल्किंस, मैक्स मुलर आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं.
सर विलियम जेम्स ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में कलकत्ता में जज थे. उन्होंने संस्कृत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
उन्होंने कलकत्ता में एशियाई सोसायटी की स्थापना की तथा संस्कृत के आदिकवि कालिदास जी के दो ग्रन्थ अभिज्नना शकुंतला’ एवं ‘रितु संहार’ का अंग्रेजी अनुवाद भी किया था.
उन्होंने गीता गोविंदा तथा मनुस्मृति को भी अंग्रेजी में अनुवादित किया था, सर विल्किंस ने भी श्रीमद् भागवत गीता को अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया था.
भारत में मौजूद संस्कृत यूनिवर्सिटी ( List of sanskrit university in India)
अब हम आपकों भारत में संचालित संस्कृत महाविद्यालयों एवं विश्व विद्यालयों की सूची बता रहे हैं, जहाँ आधुनिक समय के मुताबिक़ संस्कृत के पाठ्यक्रम का शिक्षण करवाया जाता हैं.
मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष, खगोल विज्ञानं चिकित्सा स्वास्थ्य योग तथा धर्म के गहरे ज्ञान को भारतीय स्वरूप में तभी पाया जा सकता है जब हम संस्कृत जानते हो तथा अपने प्राचीन ग्रंथों का स्व अध्ययन कर पाए हो.
1. | सम्पूर्ण आनंद संस्कृत यूनिवर्सिटी | 1791 | वाराणसी |
2. | सद्विद्या पाठशाला | 1876 | मैसूर |
3. | कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत यूनिवर्सिटी | 1961 | दरभंगा |
4. | राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ | 1962 | तिरुपति |
5. | श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ | 1962 | नई दिल्ली |
6. | राष्ट्रीय संस्कृत संसथान | 1970 | नई दिल्ली |
7. | श्री जगन्नाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी | 1981 | पूरी, उड़ीसा |
8. | नेपाल संस्कृत यूनिवर्सिटी | 1986 | नेपाल |
9. | श्री शंकराचार्य यूनिवर्सिटी ऑफ़ संस्कृत | 1993 | कलादी, केरल |
10. | कविकुलागुरु कालिदास संस्कृत यूनिवर्सिटी | 1997 | रामटेक |
11. | जगद्गुरु रामानंदचार्य राजस्थान संस्कृत यूनिवर्सिटी | 2001 | जयपुर |
12. | श्री सोमनाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी | 2005 | सोमनाथ, गुजरात |
13. | महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय | 2008 | उज्जैन |
14. | कर्नाटक संस्कृत यूनिवर्सिटी | 2011 | बैंग्लोर |
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भारतीय संस्कृति पर निबंध
भारतीय संस्कृति पर निबंध-indian culture in hindi essay.
भारत विविधताओं का देश है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर धर्म, जाति, विभिन्न संस्कृति और अलग -अलग विचारधाराओं के लोगों का समावेश है। लेकिन इन् सबके बावजूत भारत के सभी देशवासी मिलजुलकर रहना पसंद करते है। अनेकता में ही एकता का निवास होता है। भारत का राष्ट्र -गान “ जन -गन-मन अधिनायक जय है ” जो की रबिन्द्र नाथ टैगोर जी ने लिखा है देश की संस्कृति और उनके मूल्यों को उजागर करता है। हमे कई परिस्थितियां और चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन किसी में इतनी हिम्मत न हुयी की भारत की बुनियाद को हिला सके।
भारत में हर संस्कृति के लोग रहते है और सब तरीके के लोगों के अलग अलग त्यौहार यहाँ मनाये जाते है। भारत में 29 राज्य और सात यूनियन टेरिटरीज है। सभी राज्यों में अलग भाषाएं बोलने वाले लोग निवास करते है। सभी राज्यों के अलग अलग लज़्ज़तदार पकवान है और सभी इन्हे मज़े से खाते है। सभी राज्यों का अपना एक विचित्र, अद्भुत और खूबसूरत इतिहास और रहस्यमय संस्कृति है, जो बाकी देशों से बिलकुल अलग है। सभी राज्यों के अपने रीति-रिवाज़ और अपनी परम्पराये है। भारतीय संस्कृति में बड़े बच्चो को नैतिक मूल्यों और शिष्टाचार के पाठ पढ़ाते है। भाईचारा, सम्मान, आदर, इंसानियत सब भारतीय संस्कृति के मूल्य है। भारत में रहने वाले सभी लोग अपने धर्म, रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं की रक्षा करते है। भारतीय संस्कृति में मनुष्य की सोच और उसके गुणों को प्राथमिकता दी जाती है। यहाँ लोग विनम्रता पूर्वक वार्तालाप करने और अतिथि देवो भव की परंपरा को श्रद्धा के साथ निभाते है।
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पौराणिक संस्कृति है। भारत में कई महाराजाओं ने राज किया और सबने अपनी संस्कृति, परम्पराये और रीति-रिवाज़ों का गहन छाप छोड़ा, सिंधु घाटी की सभ्यतायें इसका विशेष उदाहरण है। भारत संस्कृति की जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में कई तरह की भाषण, वाद -विवाद और निबंध लेखन जैसी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। ताकि विद्यार्थिओं को भारतीय संस्कृति की गहराई का अध्ययन करे और इस संस्कृति को जानने में रूचि ले। भारतीय संस्कृति की गहराई का अध्ययन करने के लिए विश्व के कोने -कोने से वैज्ञानिक आते है। भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी है, 22 आधिकारिक भाषा और 400 से ज़्यादा अन्य भाषाएँ बोली जाती है। भारत में हिंदू रीति -रिवाज़ों की मान्यता है। लेकिन यहाँ सिख, इस्लाम, जैन और बौद्ध धर्मों की भी मान्यता और उचित स्थान दिया जाता है। भारत में हर भारतीय आज़ाद है और वह किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। भारत में सभी त्योहारों को मनाया जाता है जैसे की होली , दीपावली , दशेरा , दुर्गापूजा , ईद इत्यादि। सभी भारतीय एक दूसरे के धर्म, संस्कारों और त्योहारों का सम्मान करते है। हर आदमी कोई भी त्यौहार निरपेक्ष रूप से मन सकता है बिलकुल बेझिजक।
भारतीय संस्कृति अपने मशहूर साहित्य, दर्शन, कला और शास्त्रीय संगीत के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है।
सभ्यता और संस्कृति में फर्क है। लेकिन यह फिर भी एक दूसरे से जुड़े हुए है। हम भारतियों का रहन -सहन, पहनावे का अंदाज़ यानी ड्रेसिंग स्टाइल एक दूसरे से विभिन्न है। लेकिन फिर भी इन् विविधताओं के पश्चात भी हम एक है। एक माला में जैसे विभिन्न प्रकार के फूल होते है। सबकी सुगंध अलग होती है लेकिन सब एक साथ विरजमान रहते है। उसी प्रकार भारत में सभी राज्यों की विविधताओं के होते हुए भी सब एकता में विश्वास रखते है। भारतीय इतिहास अपने धार्मिक ग्रंथो के लिए लोकप्रिय है। विदेशो से लोग इनके बारे में जानकारी प्राप्त करते है और हमारे संस्कृति से प्रभावित होकर इसका गहन अधययन करते है। विभिन्न राज्यों के त्यौहार के दौरान अलग -अलग मिठाइयां बनती है। कहीं कोलकाता में रसगुल्ले तो दक्षिण में इडली सांभर, पंजाब में मक्के की रोटी और सरसो डा साग, कहीं सेवइयां इत्यादि अनगिनत विभिन्न भांति के लज़्ज़तदार पकवान बनते है। हर राज्य के लोग बड़े चाव से उपभोग करते है।
बाइबिल हो या कुरान या महाभारत या रामायण सब धर्मो का सम्मान भारतीय संस्कृति बखूभी करती है और सारे भारतीय भी तहे दिल से इसका सम्मान करते है। भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से पुरे दुनिया भर में अलग है। यहाँ के लोग मिल जुलकर “ सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा गाते है .” जो हमारे देश की संस्कृति को उजागर करता है।
अभी वक़्त के साथ -साथ भारतीय संस्कृति में कुछ नविन बदलाव आये है। लोगो की जीवन में संस्कृति और सभ्यता में नयापन मूल्यों का समावेश हुआ है। हम अपने बड़े-बुजुर्गों से भारतीय संस्कृति और इतिहास की कई कहानियां सुनते है और प्रभावित होते है। हम भारतीय हाथ जोड़कर नमस्कार करते है और बड़ो के पैर स्पर्श करके उनका सम्मान करते है। यह हमे बाकी देशों से अलग बनाता है। हमे अपने भारतीय संस्कृति पर गर्व है। हम सभी भारतियों का कर्त्तव्य है की हम उसकी नीव बनाये रखे और अपने नैतिक और मानवीय मूल्यों को कभी न भूले। एक सच्चे राष्ट्रभक्त की तरह अपने देश और अपने परिवार की रक्षा करें और अपनी संस्कृति को आपने आने वाले युवा वर्ग तक और बच्चों तक इसे पहुंचाए।
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Hindi Essay on “Sanskriti aur Sabhyata”, “संस्कृति और सभ्यता”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.
संस्कृति और सभ्यता
Sanskriti aur Sabhyata
‘सम्’ उपसर्ग के साथ संस्कृत की ‘कृ’ धातु के पश्चात् ‘क्तिनु’ प्रत्यय लगाकर जो शब्द बनता है, उसे ‘संस्कृति’ (सम्+कृ+क्तिन्) कहा जाता है।
‘संस्कृति’ का अर्थ है-‘संस्कार करने वाला’ अथवा वस्तु को संस्कृत रूप देने की क्रिया या भावना।
इस मानक परिभाषा के अलावा भिन्न-भिन्न व्यक्तियों एवं विद्वानों ने संस्कृति की परिभाषाएँ अलग-अलग प्रकार से दी हैं, जैसे-
- श्री राजगोपालाचार्य कहते हैं-“किसी भी जाति अथवा राष्ट्र के शिष्ट पुरुषों में विचार वाणी एवं क्रिया का जो रूप व्याप्त है-उसी का नाम संस्कृति है।
- स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती लिखते हैं-“मनुष्य के लौकिक-पारलौकिक उत्थान के लिए जो आचार-विचार तथा व्यवहार-प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं-संस्कृति उसी को कहते हैं।”
- छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं-“जीवन के अन्तः और बाह्य विकास-क्रम में जो मूल्य और जीवन पद्धति बनती चलती है, वही देश-विदेश या जाति विशेष की संस्कृति है।”
- स्वामी करपात्री जी कल्याण पत्रिका के ‘हिन्दू संस्कृति अंक’ में लिखते हैं-
लौकिक, पारलौकिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अभ्युदय के उपयुक्त देहेन्द्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार आदि की भूषण भूत सम्यक्, चेष्टाएँ एवं हलचलें ही संस्कृति है।”
- डॉ. नगेन्द्र के अनुसार-संस्कृति जीवन की उन सूक्ष्मतर तत्त्वों की संस्कृति का नाम है, जिससे मानव चेतना का संस्कार होता है।”
- डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीजी कहते हैं-
“जीवन की विविध साधनाओं की सर्वोत्तम परिणति संस्कृति है।“
- राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार मानव के युगों से संचित श्रेष्ठ संस्कार, ऋषि-मुनियों के उच्च विचार तथा धीरवीर पुरुषों के व्यवहार ही भारतीय संस्कृति की पहचान तथा संस्कृति के शृंगार हैं।”
डॉ. श्रीधर ने ‘ संस्कृति ‘ की व्याख्या करते हुए कहा है –
“जाति, राष्ट्र आदि संघों के चरित की जो सम्पूर्णता है, उसकी भाषा शास्त्रात्मक अभिव्यक्ति ही ‘संस्कृति’ शब्द द्वारा होती है।”
समाजशास्त्र में पाश्चात्य विद्वान् हॉबल ने संस्कृति के बारे में कहा है-
“संस्कृति सीखे हुए व्यवहारों का योग है जो किसी समाज के सदस्यों की विशेषता है, जो कि प्राणी शास्त्रीय विरासत का परिणाम नहीं है।’
क्रोबर एवं क्लूखौन नामक प्रसिद्ध समाज शास्त्रियों ने संस्कृति की परिभाषाओं का संकलन करके बताया है कि इस शब्द की 108 परिभाषाएँ हैं। संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। ‘संस्कृत’ और ‘संस्कृति’ दोनों शब्द ‘संस्कार’ से बने हैं। ‘संस्कार’ का अर्थ है-शुद्धि की क्रिया’ अर्थात् संस्कृति का सम्बन्ध उन सभी कृत्यों, विचारों एवं व्यवहार से है जो व्यक्ति का परिष्कार करें, उसे शुद्ध बनाएँ।
टॉयलर के मुताबिक-
“संस्कृति वह सम्पूर्ण जटिलता है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य उन क्षमताओं एवं आदतों का समावेश होता है, जिन्हें मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।”
रॉबर्ट बीरस्टीड लिखते हैं-
“संस्कृति वह सम्पूर्ण जटिलता है जिसमें वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं जिन पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं।’
बोगार्ड्स कहते हैं –
कि संस्कृति किसी समूह के कार्य करने व सोचने की समस्त विधियाँ है।”
समाजशास्त्र के अनुसार संस्कृति की निम्न विषेषताएँ हुआ करती हैं –
1. संस्कृति मानव निर्मित होती है। यह केवल मनुष्य समाज में ही पाईक्षमताओं के अभाव के कारण संस्कृति का निर्माण नहीं हो पाता।
2. जिस प्रकार मनुष्य को अपने माता-पिता से वंशानुक्रम में शरीर रचना प्राप्त होती है, उस प्रकार संस्कृति से प्राप्त नहीं होती। मनुष्य जन्म से संस्कृति को लेकर नहीं आता बल्कि वह जिस समाज में पैदा होता है, उस समाज की संस्कृति को समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे सीखता है।
3. संस्कृति सीखने की चीज है। नई पीढ़ी के लोग पुरानी पीढ़ी के लोगों से संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करते हैं। संस्कृति सीखने की प्रक्रिया द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित की जाती है।
4. प्रत्येक समाज की जरूरतें अलग-अलग होती हैं। उन जरूरतों की पूर्ति के लिए साधन भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इस कारण हर समाज एक विशिष्ट संस्कृति को जन्म देता है।
5. संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष की देन नहीं बल्कि सारे समाज की देन होती है। संस्कृति का विकास समाज के विकास के साथ ही होता है। समाज के अभाव में संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। कोई भी संस्कृति 5, 10 या 100 लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करती बल्कि समाज के अधिकांश लोगों का प्रतिनिधित्व करती है।
6. एक समूह के लोग अपनी संस्कृति को आदर्श मानते हैं, और वे उसके अनुसार अपने व्यवहारों एवं विचारों को ढालते हैं।
7. संस्कृति मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। मानव अपनी शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्कृति का निर्माण किया करता है।
8. संस्कृति में समय, स्थान, समाज एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने की क्षमता होती है। परिवर्तनशीलता संस्कृति का गुण है। विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार संस्कृति अपने आपको बदलती रहती है।
9. एक मनुष्य का पालन-पोषण किसी सांस्कृतिक पर्यावरण में ही होता है। जन्म के बाद बच्चा अपनी संस्कृति को सीखकर उसे आत्मसात् करता है। संस्कृति में प्रचलित रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन, कला, विज्ञान, प्रथाओं एवं व्यवहारों की छाप व्यक्ति के व्यक्तित्व पर होती है।
10. संस्कृति अधि-वैयक्तिक होती है अर्थात् संस्कृति का निर्माण किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं होता। मनुष्य अपनी संस्कृति के केवल एक भाग का ही उपयोग कर पाता है, पूरे भाग का नहीं।
11. संस्कृति अधि-सावयवी होती है अर्थात् संस्कृति मानव को वंशानुक्रम से नहीं मिलती। यह समाज से सीखने की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त की जाती है।
सभ्यता और संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। समाज की भौतिक समृद्धि का परिचायक तत्त्व सभ्यता है।
सभ्यता सामाजिक व्यवहार की एक व्यवस्था है जबकि संस्कृति मानव के चित्त की उदात्त एवं परिष्कृत कृतियों की धर्म, दर्शन के रूप में अभिव्यक्ति है।
मानव के चित्त की वृत्तियों का आर्थिक एवं सामाजिक संगठन के रूप में जब विकास होता है तो वह सभ्यता कहलाती है। संस्कृति संस्कार से बनती है और सभ्यता नागरिकता का रूप है।
संस्कृति समाज की आत्मा है और सभ्यता शरीर है। संस्कृति का सम्बन्ध मानव के अन्र्तगत से है और सभ्यता का सम्बन्ध बाह्य जगत से है। आत्म-विस्तार का ही नाम संस्कृति है और भौतिक विकास का नाम सभ्यता है।
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर कहते हैं-“संस्कृति हमें राह बताती है तो सभ्यता उस राह पर हमको चलाती है। संस्कृति न हो तो मनुष्य और पशु के विचारों में कोई भेद न रहे। सभ्यता न हो तो मनुष्य और पशु का रहन-सहन एक-सा हो जाए।
डॉ. देवराज सभ्यता और संस्कृति के सम्बन्ध में लिखते हैं –
‘‘सभ्यता और संस्कृति, दोनों मनुष्य की सृजनात्मक क्रिया के कार्य का परिणाम हैं। जब यह क्रिया उपयोगी लक्ष्य की ओर गतिमान होती है, तब सभ्यता का जन्म होता है और जब वह मूल्य-चेतना को प्रबुद्ध करने की ओर अग्रसर होती है, तब संस्कृति का उदय होता है।”
आज भारतवासी अपने देश की प्राचीन एवं गौरवपूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति को भूल गए हैं इसलिए देश के अन्दर ऊँच-नीच एवं जाति-पाँति का भेदभाव, साम्प्रदायिकता की ताकतें, भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद जैसी विघटनकारी प्रवृत्तियाँ जन्म ले रही हैं। हमारे देश की महिमावान संस्कृति ने विश्व को सभ्यता, प्रेम, ज्ञान एवं सदाचार का पाठ पढ़ाया है। यदि हम अपने देश की महान् सांस्कृतिक विरासत के मूल्यों को धारण करें तथा सभ्य एवं सुसंस्कृत बनने का प्रयत्न करें तो एक खुशहाल एवं संतुष्ट जीवन अवश्य बिता सकते हैं।
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भारतीय संस्कृति पर निबंध हिंदी में
भारतीय संस्कृति पर निबंध हिंदी में /essay on indian culture in hindi
भारत की संस्कृति समाज में लोगों के विचारों, विश्वासों, रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवहार को इंगित करती है; यह बताता है कि लोग समुदाय में कैसे रहते हैं।
इस लेख में भारतीय संस्कृति पर निबंध, हमने निबंधों को अलग-अलग शब्द सीमाओं में उपलब्ध कराया था, जिनका उपयोग आप अपनी आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं:
भारतीय संस्कृति पर निबंध 100 शब्द: भारतीय संस्कृति पर निबंध 150 शब्द: 200 शब्द भारतीय संस्कृति पर: भारतीय संस्कृति पर निबंध २५० शब्द: भारतीय संस्कृति निबंध 300 शब्द: 400 शब्द भारतीय संस्कृति पर:
Table of Contents
भारतीय संस्कृति पर निबंध 100 शब्दों में :
भारत अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध देश है, यह विभिन्न संस्कृति और परंपरा की भूमि है और यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं का देश है।
भारतीय संस्कृति के आवश्यक घटक अच्छे शिष्टाचार, शिष्टता, सभ्य संचार, मूल्य, विश्वास, मूल्य आदि हैं।
सभी की जीवनशैली आधुनिक होने के बाद भी भारतीय लोगों ने अपनी परंपराओं और मूल्यों को नहीं बदला है।
विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के लोगों के बीच एकजुटता के धन ने भारत को एक अनूठा देश बना दिया है।
यहां के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हुए भारत में शांति से रहते हैं।
भारतीय संस्कृति पर निबंध 150 शब्दों में :
भारत की संस्कृति विश्व में लगभग ५,००० वर्ष पुरानी है, इसे विश्व की प्रथम एवं सर्वोच्च संस्कृति माना जाता है।
भारत के बारे में एक आम कहावत है कि “अनेकता में एकता” का अर्थ है कि भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहां कई धर्मों के लोग अपनी विभिन्न संस्कृतियों के साथ शांति से रहते हैं।
विभिन्न धर्मों के लोग अपनी भाषा, भोजन परंपराओं, अनुष्ठानों आदि में भिन्न होते हैं, हालांकि जीवन एकता में है।
भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी है, हालाँकि भारत में इसके विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में लगभग 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं और 400 अन्य भाषाएँ प्रतिदिन बोली जाती हैं।
इतिहास के अनुसार, भारत को हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म जैसे धर्मों के जन्मस्थान के रूप में मान्यता दी गई है।
भारत की विशाल आबादी हिंदू धर्म से संबंधित है, हिंदू धर्म के अन्य रूप शैववाद, शक्तिवाद, वैष्णववाद आदि हैं।
भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर में अपार लोकप्रियता हासिल की है और इसे दुनिया की सबसे पुरानी और बहुत ही रोचक संस्कृति माना जाता है।
यहां रहने वाले लोग विभिन्न धर्मों, परंपराओं, खाद्य पदार्थों, कपड़ों आदि के हैं।
यहां रहने वाले विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के लोग सामाजिक रूप से अन्योन्याश्रित हैं कि क्यों धर्मों की विविधता में मजबूत बंधन मौजूद हैं।
लोग अलग-अलग परिवारों में पैदा होते हैं, जाति, उपजाति और धार्मिक समुदाय एक समूह में शांति और संयम से रहते हैं।
यहां के लोगों के सामाजिक बंधन लंबे समय तक चलने वाले हैं; हर किसी को अपने पदानुक्रम और एक दूसरे के प्रति सम्मान, सम्मान और अधिकारों की भावना के बारे में अच्छी भावना है।
भारत में लोग अपनी संस्कृति के प्रति अत्यधिक समर्पित हैं और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने के लिए अच्छे शिष्टाचार जानते हैं।
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों की अपनी संस्कृति और परंपरा है, उनका अपना त्योहार और मेला है, और वे अपने रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं।
लोग विभिन्न प्रकार की खाद्य संस्कृति का पालन करते हैं जैसे कि पीटा चावल, ब्रेड ओले, केले के चिप्स, पोहा, आलू पापड़, मुरमुरे, उपमा, डोसा, इडली, चीनी, आदि।
अन्य धर्मों के लोग कुछ अलग भोजन करते हैं जैसे सेवइयां, बिरयानी, जैसे तंदूरी, मेथी आदि।
भारतीय संस्कृति पर निबंध 200 शब्द
भारत संस्कृतियों का एक समृद्ध देश है जहां लोग अपनी शिक्षा में रहते हैं, और हम अपनी भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं।
संस्कृति ही सब कुछ है, अन्य विचारों के साथ, रीति-रिवाज, व्यवहार करने का तरीका, कला, हस्तशिल्प, धर्म, भोजन की आदतें, मेले, त्योहार, संगीत और नृत्य संस्कृति का हिस्सा हैं।
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला विशाल देश है जहां विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक अनूठी संस्कृति के साथ रहते हैं।
देश के कुछ प्रमुख धर्म हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और पारसी धर्म हैं।
भारत एक ऐसा देश है जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं।
यहां के लोग आमतौर पर वेशभूषा, सामाजिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों और खाने की आदतों में किस्मों का उपयोग करते हैं।
वे अपने-अपने धर्मों के अनुसार विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं और उनका पालन करते हैं।
हम अपने त्योहारों को उनके अपने अनुष्ठानों के अनुसार मनाते हैं, उपवास रखते हैं, गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं, अनुष्ठान गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं, स्वादिष्ट भोजन करते हैं, रंगीन कपड़े पहनते हैं और बहुत सारी गतिविधियाँ करते हैं।
हम गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती जैसे विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों को मिलाकर कुछ राष्ट्रीय त्योहार भी मनाते हैं।
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग धर्मों के लोग अपने त्योहारों को बड़े उत्साह और उत्सुकता से मनाते हैं।
गौतम बुद्ध (बुद्ध पूर्णिमा), भगवान महावीर जन्मदिन (महावीर जयंती), गुरु नानक जयंती (गुरुपर्व), आदि जैसे कुछ कार्यक्रम कई धर्मों के लोगों द्वारा संयुक्त रूप से मनाए जाते हैं।
भारत अपने विभिन्न सांस्कृतिक नृत्यों जैसे शास्त्रीय (भारत नाट्यम, कथक, कथकली, कुचिपुड़ी) और लोकगीतों के लिए प्रसिद्ध देश है।
पंजाबियों ने भांगड़ा का आनंद लिया, गुगराती ने गरबा का आनंद लिया, राजस्थानियों ने घूमर का आनंद लिया, और असमियों ने बिहू का आनंद लिया, जबकि महाराष्ट्रीयन ने लावणी का आनंद लिया।
भारतीय संस्कृति निबंध 300 शब्द:
भारत समृद्ध संस्कृति और विरासत का देश है जहां लोगों में मानवता, सहिष्णुता, एकता, धर्मनिरपेक्षता, मजबूत सामाजिक बंधन और अन्य अच्छे गुण हैं।
भारतीय हमेशा अपने सौम्य और सौम्य व्यवहार के लिए प्रसिद्ध हैं और उनके सिद्धांतों और आदर्शों को बदले बिना उनकी देखभाल और शांत स्वभाव के लिए उनकी हमेशा प्रशंसा की जाती है।
भारत महान किंवदंतियों का देश है जहां महान लोग पैदा हुए थे और अभी भी प्रेरक व्यक्तित्व हमें प्रेरित करते हैं।
भारत एक ऐसी भूमि है जहां महात्मा गांधी का जन्म हुआ और उन्होंने अहिंसा की उच्च संस्कृति दी।
उन्होंने हमें बताया कि इस धरती पर हर व्यक्ति प्यार, सम्मान, देखभाल और सम्मान का भूखा है; यदि तू उन सब को दे दे, तो निश्चय ही वे तेरे पीछे हो लेंगे।
गांधीजी हमेशा अहिंसा में विश्वास करते थे और तथ्य यह है कि वे एक दिन भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता दिलाने में सफल रहे।
उन्होंने भारतीयों से कहा कि वे अपनी एकता और सौम्यता की शक्ति दिखाएं और फिर बदलाव देखें।
भारत अलग-अलग पुरुषों और महिलाओं, जातियों और धर्मों का देश नहीं है, बल्कि यह एकता का देश है जहां सभी वर्ग और पंथ के लोग एक साथ रहते हैं।
यहां के लोग आधुनिक हैं और आधुनिक युग के अनुसार सभी परिवर्तनों का पालन करते हैं, लेकिन वे अभी भी अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों के संपर्क में हैं।
यह एक आध्यात्मिक देश है जहां लोग अध्यात्म में विश्वास करते हैं।
यहां के लोग योग, ध्यान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में विश्वास करते हैं।
निष्कर्ष: भारत की सामाजिक व्यवस्था महान है जहां लोग अभी भी दादा-दादी, चाचा, चाची, चाचा, ताऊ, चचेरे भाई, बहनों आदि के साथ एक बड़े संयुक्त परिवार में रहते हैं। इसलिए, यहां लोग अपनी संस्कृति और परंपरा के बारे में पैदा होते हैं। में जानें
भारतीय संस्कृति पर निबंध 400 शब्दों में :
भारत में संस्कृति सब कुछ है जैसे विरासत में मिले विचार, लोगों के जीने का तरीका, विश्वास, मूल्य, मूल्य, आदतें, देखभाल, नम्रता, ज्ञान, आदि।
भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जहां लोग आज भी मानवता की अपनी प्राचीन संस्कृति का पालन करते हैं।
संस्कृति वह तरीका है जिससे हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, हम चीजों के प्रति कितनी नरम प्रतिक्रिया करते हैं, मूल्यों, नैतिकता, सिद्धांतों और विश्वासों की हमारी समझ।
पुरानी पीढ़ियों के लोग अपनी संस्कृतियों और मान्यताओं को अपनी अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित करते हैं।
इसलिए यहां का हर बच्चा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, क्योंकि वह पहले से ही माता-पिता और दादा-दादी की संस्कृति के बारे में जानता था।
यहां हम नृत्य, फैशन, कलात्मकता, संगीत, व्यवहार, सामाजिक मानदंड, भोजन, वास्तुकला, ड्रेसिंग सेंस आदि सभी चीजों में संस्कृति देख सकते हैं।
भारत विभिन्न मान्यताओं और प्रथाओं के साथ एक विशाल पिघलने वाला बर्तन है जिसने यहां विभिन्न संस्कृतियों को जन्म दिया है।
यहां विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति करीब पांच हजार साल पुरानी है और ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई है।
सभी हिंदू शास्त्र पवित्र संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं; यह भी माना जाता है कि जैन धर्म की उत्पत्ति प्राचीन है और सिंधु घाटी में मौजूद है।
बौद्ध धर्म एक और धर्म है जिसकी उत्पत्ति भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के बाद देश में हुई थी।
ईसाई धर्म बाद में फ्रांसीसी और ब्रिटिश लोगों द्वारा यहां लाया गया जिन्होंने लगभग दो शताब्दियों तक लंबे समय तक शासन किया।
इस तरह प्राचीन काल में विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति हुई या किसी तरह इस देश में लाया गया।
हालांकि, यहां हर धर्म के लोग अपने रीति-रिवाजों और मान्यताओं को प्रभावित किए बिना शांति से रहते हैं।
युगों की विविधता आई और चली गई, लेकिन कोई भी इतना शक्तिशाली नहीं था कि हमारी वास्तविक संस्कृति के प्रभाव को बदल सके।
युवा पीढ़ी की संस्कृति अभी भी गर्भनाल के माध्यम से पुरानी पीढ़ियों से जुड़ी हुई है।
हमारी जातीय संस्कृति हमेशा हमें सिखाती है कि कैसे अच्छा व्यवहार करें, बड़ों का सम्मान करें, असहाय लोगों की देखभाल करें और फिर भी जरूरतमंद और गरीब लोगों की मदद करें।
व्रत रखना, पूजा करना, गंगाजल अर्पित करना, सूर्य नमस्कार करना, परिवार में बड़ों के चरण स्पर्श करना, प्रतिदिन योग और ध्यान करना, भूखे और विकलांगों को भोजन और पानी देना हमारी धार्मिक संस्कृति है।
इसके अलावा, पढ़ें 1. भारत पर निबंध 2. राष्ट्रीय एकता 3. मूल्य शिक्षा 4. सोशल मीडिया निबंध
हमारे राष्ट्र की एक उच्च संस्कृति है कि हमें हमेशा अपने मेहमानों का भगवान की तरह स्वागत करना चाहिए, बहुत खुशी के साथ, यही कारण है कि भारत “अतिथि देवो भव” जैसी सामान्य कहावत के लिए प्रसिद्ध है।
हमारी उच्च संस्कृति की जड़ें मानवता और आध्यात्मिक अभ्यास हैं।
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स्वच्छता का महत्व Essay In Hindi
Essay on History of computers/Evolution of Computers
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Hindi Essay on “Bharat ki Sanskritik Ekta”, “भारत की सांस्कृतिक एकता” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
भारत की सांस्कृतिक एकता
Bharat ki Sanskritik Ekta
किसी भी देश की स्मृद्धि एवं विकास के लिए उसकी सांस्कृतिक एकता आवश्यक होती है। सांस्कृतिक एकता ही वह आधार है जिस पर उस देश में रहने वाली विभिन्न जातियाँ और सम्प्रदाय एक राष्ट्र के रूप में एकताबद्ध रहते हैं । यह एकता ही राष्ट्र प्रेम, अखण्डता और राष्ट्र के विकास के लिए चेतना जगाती है।
भारत एक विशाल देश है जो अनेक प्रकार के भौगोलिक भू-खण्डों में बंटा हुआ है जिसमें अनेक जातियाँ रहती हैं जो विभिन्न धर्मों में विश्वास रखती हैं। उनके अलग अलग सामाजिक रीतिरिवाज हैं। अलग-अलग भाषाएँ, वेश-भूषा तथा खान-पान है। इन सब भिन्नताओं के होते हुए भी भारत सदैव से एक भावात्मक एकता में आबद्ध है। इस एकता का मुख्य कारण है भिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता। अनेकता में एकता यही तो है भारत की विशेषता ।
संस्कृति ही मनुष्य को परस्पर भावनात्मक स्तर पर जोड़ती है । भौगोलिक सीमाएँ इसमें बाधक नहीं बनती। महात्मा बुद्ध और महावीर के विचारों ने देश की एकता की जड़ों को और अधिक गहरा और मज़बूत बनाया है ।
परस्पर विरोधी बातों में एकता कराने से बढ़कर दुष्कर कार्य कोई नहीं है परन्तु फिर भी हमारे सन्तों,महात्माओं ऋषि मनियों ने ऐसे दुष्कर कार्य को अपना बुद्धिमता से सरल कर दिखाया है । चैतन्य महाप्रभ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द यद्यपि बंगाल में पैदा हुए परन्तु सारा देश उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सका । रामानन्द दक्षिण में पैदा हुए परन्तु उनका प्रभाव उत्तर तक फैला । अनेक तीज-त्यौहार थोड़े बहुत अन्तर से सारे देश में मनाए जाते हैं । सामाजिक आस्थाएँ और विश्वास भी भिन्न रहते हुए सारे देश में एक जैसी ही हैं ।
भारत की इस सांस्कृतिक एकता का मूल कारण है उसका दार्शनिक दृष्टिकोण और धार्मिक भावना । भारतीय दर्शन में अनेकता में एकता का समावेश है । दार्शनिक दृष्टिकोण ही धार्मिक एकता का मुख्य आधार है । देश में अनेक धार्मिक विचारधाराएँ जन्मीं और पनपी किन्तु सभी के मूल में एक ही धार्मिक भावना काम करती है । हिन्दू भगवान महावीर और बुद्ध को अवतार मानते हैं तो बौद्ध और जैन धर्म को मानने वाले भी रामकृष्ण को इसी श्रद्धा भाव से देखते हैं । सिख गुरुओं ने अपने धर्म ग्रन्थों में राम नाम की महिमा का वर्णन बहुत ही सुन्दर एवं गौरवपूर्ण ढंग से किया है । सब धर्मों में सब से बड़ी विशेषता यह है कि वे सभी एक ही ईश्वर में विश्वास रखते हैं चाहे वह राम हो, वाहेगुरू हो, अल्लाह हो या फिर God और पूजा करते समय सभी यह भी मानते हैं कि उसी के प्रकाश से यह सारा संसार प्रकाशित हो रहा है । मन्दिरों में पूजा के लिए दीपक जलाया जाता है । मजार पर भी दीपक जलाया जाता है, गुरुद्वारों में पूजा के समय उसी प्रभु की जोत जलाई जाती है जबकि गिरिजाघरों में मोमबत्ती जलाकर उसी पर ब्रह्म की पूजा की जाती है । ओइम् , एक ओंकार, अल्लाह, आमीन आदि एक ही परमात्मा की ओर इशारा करते हैं।
खान पान, वेश-भूषा, सामाजिक रीति-रिवाज, आदि सभी में एक रूपता दिखाई देती है । यहां तक कि सभी एक दूसरे के धर्म स्थानों पर पूजा अर्चना करने जाते है। मन्दिर केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं, सभी वर्ग के सभी जाति एवं सभी धर्म के मानने वालों के लिए ही खुले हैं। इसी प्रकार गुरुद्वारे केवल सिखों के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले हैं ।
इस सांस्कृतिक एकता के लिए मुसलमान सूफी कवियों का भी विशेष योगदान है। अनेक सूफी कवियों जिनमें सबसे प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसा है ने हिन्दू कथाओं को आधार बनाकर अपने काव्य ग्रन्थों की रचना की है जिसमें भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त रसखान, शेख, आलम, नज़ीर आदि अनेक मुसलमान कवियों ने कृष्ण भक्ति के सरस काव्य की रचना की है । रसखान ने यहाँ तक कह दिया कि यदि अगले जन्म में मनुष्य जन्म मिले तो मैं ब्रजभूमि में ही जन्म लूँ और गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच में ही रहूँ । अनेक हिन्दू कवियों ने उर्दू में श्रेष्ठ काव्य की रचना की है। हिन्दू अनेक फकीरों को मानते हैं तथा मजारों की पूजा करते हैं । सामाजिक रीति रिवाज में भी समानता दिखाई पड़ती है ।
यद्यपि भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप में एकताबद्ध रहा है, ऐसा नहीं है कि यहाँ झगड़े नहीं हुए है । झगड़े हुए अवश्य हैं परन्तु फिर भी इससे भारत की सांस्कृतिक एकता पर आँच नहीं आई और न कभी देश के विघटन का प्रश्न ही उठा । लेकिन आज देश की एकता को भयंकर खतरा पैदा हो गया है । भाषा, प्रान्त, नदी के पानी के प्रश्न, क्षेत्रीय सीमाएँ आदि अनेक प्रश्न-राष्ट्र की एकता और अखण्डता को खतरा पैदा कर रहे हैं । असम, पंजाब, काश्मीर आदि क्षेत्रों में विघटनकारी शक्तियों ने आतंक फैला रखा है और इन प्रदेशों की उन्नति और विकास में बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं । इन सबसे देश की सुरक्षा और अखण्डता को भयंकर खतरा पैदा हो गया है । विदेशी शक्तियां देश की इस स्थिति का लाभ उठाने की ताक में बैठी हैं।
आज देश की सांस्कृतिक एकता को सबसे बड़ा खतरा स्वार्थी राजनीति से है जिसके कारण देश विघटन के कगार पर आ खड़ा हुआ है । सत्ता लोलुपता तथा राजनीति में बने रहने की स्वार्थपरता की भावना आज जातीय, भाषायी,धार्मिक, प्रान्तीय आदि विद्वेषों की आग फैला रहे हैं । विघटनकारी तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं तथा अपराधिक तत्वों को प्रोत्साहित कर रहे हैं जिससे देश की अखण्डता और स्वतन्त्रता को खतरा पैदा हो गया है ।
आज देश की एकता का प्रश्न जितना महत्वपूर्ण बन गया है उतना भारतीय इतिहास में कभी नहीं था । यदि देश की सांस्कृतिक एकता छिन्न-भिन्न होती है तो देश फिर कभी भी गुलाम बन सकता है । इसलिए देश की सांस्कृतिक एकता का प्रश्न देश की सुरक्षा, अखण्डता और आज़ादी की रक्षा का प्रश्न बन गया है । इसलिए इस देश में रहने वाले चाहे वे हिन्दू, मुसलमान,पारसी, सिख या ईसाई है, चाहे उनके मन्दिर, गुरुद्वारे या गिरिजाघर अलग अलग हैं परन्तु भारत रूपी मन्दिर सब के लिए एक है, वह सबका है । सभी धर्मों के लोग एक ईश्वर की सन्तान के रूप में भारत रूपी मन्दिर में इबादत करें, पूजा अर्चना करें क्योंकि आज देश की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना, उसे और मजबूत करना सभी देशवासियों का परम कर्तव्य होना चाहिए ।
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भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति (Bhartiya sanskriti aur paschatya sanskriti in hindi)
B hartiya Sanskriti aur Paschatya Sanskriti
अकसर हम लोग जब संस्कृति की बात करते है तो भारतीय संस्कृति एवं पाश्चात्य संस्कृति इन दो शब्दों का ज्यादातर प्रयोग करते है | कई लोग तो ये भी कहते है कि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण भारतीय सभ्यता में उपभोक्ता संस्कृति का प्रचार – प्रसार हुआ है | अब जब पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति की बात आ ही गई तो सबसे पहले यह जान लेना जरुरी है की संस्कृति किसे कहते है |
संस्कृति किसी समाज की आत्मा होती है | इसमें उन सभी संस्कारों तथा उपलब्धियों का बोध होता है जिसके सहारे सामूहिक अथवा सामाजिक जीवन व्यवस्था, लक्ष्यों एवं आदर्शों का निर्माण किया जाता है |
भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति की विशेषताएं (B hartiya sanskriti aur paschatya sanskriti Ki Visheshataye in hindi )
संस्कृति का कोई मूर्त या साकार स्वरूप नहीं हुआ करता, ये तो मात्र एक अमूर्त भावना होती है जो अपने अमूर्त स्वरुप वाली डोर में न केवल किसी विशेष भू – भाग के निवासियों, बल्कि उससे भी आगे बढ़ सारी मानवता को बाधे रखने की अद्भुत क्षमता अपने में समाएं रहती है | संस्कृति मानवीय साधना का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप है |
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों के में “ मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाएं ही संस्कृति है |”
अंग्रेजी विद्वान् एवं समालोचक के शब्दों में “विश्व के सर्वोत्कृष्ट विचारों एवं कथनों का ज्ञान ही संस्कृति है |”
हर संस्कृति की अपनी – अपनी विशेषता एवं लक्षण होते है जो अकसर टकराव के रूप में दिखाई देता है जैसे की आज भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति की विशेषताओं के बीच टकराव की स्थिति दिखाई पड़ती है | भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति के मध्य किन – किन चीजों से यह स्थिति पैदा होती है उनकी चर्चा आज हम इस लेख में करेंगे |
पश्चिमी सभ्यता बनाम भारतीय सभ्यता
भारतीय संस्कृति का विकास प्रकृति के क्रोड में हुआ है जो की ऋषि – कृषि संस्कृति होने के कारण सर्वाधिक प्रमुख एवं पहली विशेषता कही जाती है | जबकि पाश्चात्य संस्कृति ईंट – पत्थरों के मकान को सर्वस्व मानती है |
भारतीय संस्कृति ऊध्वर्गामी एवं आंग्ल विधायिका है | पाश्चात्य संस्कृति यूरोपीय पानी मिट्टी को सर्वस्व मानती है |
भारतीय संस्कृति वस्तुतः कृषि और ऋषि परम्परा पर आधारित होने के कारण इसका विकास वनों को काटकर अन्न उपजाने वाले किसानों एवं वन प्रदेश के एकांत स्थलों पर साधनारत तपस्वियों द्वारा हुआ है | जबकि पाश्चात्य संस्कृति का विकास उन तत्वों को लेकर हुआ है जिन्हें भारतीय मनीषा सभ्यता के रूप में स्वीकार करती है |
प्राचीर इतिहास में झाककर देखें तो मिलता है कि आर्य प्रवासी जब पहले पहल इस देश में आए तो उन्होंने यहाँ की भूमि को वेस्तीर्ण वन – उपवनों की भूमि के रूप में पाया | इस भूमि की निषिद्ध वनों के हरित पल्लवित वृक्षों ने उन्हें तब प्रचंड गर्मी में शरण दी और तूफानी आँधियों से रक्षा करके अपने आचंल में आश्रय दिया जब वे इस भूमि को निवास योग्य बनाने का प्रयत्न कर रहें थे |
इस भूमि में पशुओं के लिए उन्हें चारागाह मिले | यज्ञ की अग्नि के लिए यथेष्ठ समिधाएँ मिली | कुटीर बनाने के लिय उन्हें यथेष्ठ लकड़ियाँ मिली और जब उन्हें इतनी सारी सुविधाएं मिली तो वे सुखपूर्वक रहने लगे और अपने बुद्धि कौशल द्वारा उन्होंने खेतों, गांवों, नगरों आदि का और अधिक विकास किया |
इस तरह हमारे भारत की सभ्यता का उद्भव जंगलों में हुआ और विशेष वातावरण में विकसित होकर विशिष्टता युक्त भारतीय संस्कृति हो गई | प्रकृति जिसकी माता बनी और उसी के क्रोड में उसका पालन पोषण हुआ |
कुछ विचारकों ने तो ये कहने से भी खुद को रोक न पाए कि वन्य जीवन में बुद्धि कुठित हो जाती है और जीवन का धरातल नीचे गिर जाता है | जबकि इतिहास साक्षी है कि तत्कालीन वन जीवन ने मनुष्य की मन:स्थिति को एक विशेष दिशा में प्रेरित किया | प्रकृति के सहचर्य ने उसे सिखा दिया कि स्वत्वों की रक्षा के लिए एक भयभीत कृपण की भातिं किले बंदी की आवश्यकता नही है |
इस प्रकार स्वार्थपरता के प्रति उदासीनता एवं स्वतंत्रता में भारतीय मनीषा का निर्माण हुआ | प्रकृति ने तो उन्हें यह भी सिखा दिया की मनुष्य का ध्येय स्वत्व वृद्धि नहीं है बल्कि स्वानुभव और समीपस्थ चेतन – अचेतन वस्तुओं के साथ विस्तृत और विकसित होना है | उसने सिखा कि सत्य की प्राप्ति का सच्चा रास्ता विश्व की सम्पूर्ण विभूतियों में स्वात्म अनुभूति करना ही है |
फलत: विश्व के कण कण के प्रति आत्मीयता का अनुभव भारतीय संस्कृति का मूलाधार बना | विश्व बंधुत्व, वसुधैव कुटुम्बकम् सिद्धांत उसी का सर्वव्यापी रूप है | अनुभूति विश्व चेतना की देन है |
ज्ञान द्वारा, प्रेम द्वारा, सेवा द्वारा सब प्राणियों में संभव रखना और इस प्रकार सर्वव्यापी रूप को अनुभव करना ही भारतीय अथवा मानव संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ तत्व है और यही सारांश रूप भारतीय संस्कृति की विशेषता है जिसको लक्ष्य करके कवि इक़बाल ने कहा है –
“कुछ बात है कि ऐसी हस्ती मिटती नहीं हमारी”
स्वामी विवेकानंद ने ठीक ही कहा है कि भारतीय (हिन्दू) संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर आधारित है |
प्राचीन यूनान की सभ्यता की उपज है यूरोप की सभ्यता या पाश्चात्य संस्कृति जिसका विकास नगर – दीवारों की किलाबंदियों से हुआ | सम्पूर्ण आधुनिक सभ्यता ने ही ईटों और पत्थरों के पालने में जन्म लिया और इसी जड़ वातावरण में विकास पाया है |
आधुनिक सभ्यता अर्थात तथाकथित पाश्चात्य सभ्यता पूर्णत: स्टूल एवं जड़वादी कहा जाता है क्योकि मनुष्यों के मन पर इन दीवारों की गहरी छाप पड़ गयी है | यह प्रभाव अपने आत्मसात आदर्शों को भी दीवारों में बंद करने की प्रवृति को उकसाता है – अपने को हम प्रकृति से भिन्न देखने के अभ्यस्त हो चले है ? भारत की ऋषि – कृषि संस्कृति से पाश्चात्य सभ्यता की यह बहुत महत्वपूर्ण विलगता है |
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में “यह प्रवृति हमे स्वनिर्मित प्राचीरों के बाहर की प्रत्येक वस्तु को संदिग्ध दृष्टि से देखने को विवश कर देती है और हमारे अंत:करण तक प्रवेश करने के लिए सच्चाई को भी विकट युद्ध करना पड़ता है |”
स्पष्टत: भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति के मध्य साधन – साध्य दोनों ही दृष्टियों से व्यापक अंतर है | एक प्रकृति से साहचर्य की पक्षधर है तो वही द्वितीय स्वनिर्मित दीवारों के मध्य बनाए गए छिद्रों से होकर प्रकृति को देखकर संतुष्ट कर लेती है |
भारतीय संस्कृति का स्वरुप विश्वव्यापी एवं आध्यात्मिकतागामी है जबकि पाश्चात्य संस्कृति जड़वादी एवं आत्मक्रेंदित है | पाश्चात्य संस्कृति व्यक्तिवादी है , जबकि भारतीय संस्कृति विश्व के साथ व्यक्ति के संबंधो को महत्त्व देती है | भारतीय संस्कृति मानवतावादी है जबकि पाश्चात्य संस्कृति स्वकेंद्रित है और व्यक्ति के छोटे छोटे कटघरों में बांटकर देखती है |
पाश्चात्य संस्कृति भौतिक के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई देती है | अत: वह मूलतः अर्थवादी है तथा उसकी मूल प्रवृति भोगवादी है | यह मुख्यतः भौतिक उन्नति के प्रति समर्पित प्रतीत होती है क्योकि उसका आध्यात्मिक पक्ष भी पदार्थ के सूक्ष्मतम रूप से आगे नहीं बढ़ पाता है | दृष्टव्य है ईसाई धर्म का दार्शनिक पक्ष मनुष्य के बंधुत्व पर जाकर रुक जाता है |
भारतीय संस्कृति त्यागवादी है | उसका आध्यात्मिक पक्ष चेतना के उच्चतम प्रदेशों तक जाता है | वह सादा जीवन और उच्च विचारों की संस्कृति है | वह विश्व के कण कण के प्रति आत्मीयता की अनुभूति करती है और विश्व बंधुत्व का प्रतिपादन करती है | उसमे बाह्य-प्रदर्शन का महत्व बहुत कम है | भारतीय संस्कृति कृषि – ऋषि की संस्कृति है |
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2 thoughts on “ भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति (Bhartiya sanskriti aur paschatya sanskriti in hindi) ”
Very good essay.
Very good writing skill you have.
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- History of sanskrit literature
संस्कृत भाषा का महत्व | Importance of Sanskrit language
Importance of Sanskrit language | संस्कृत भाषा का महत्व
संस्कृत भाषा देववाणी कहलाती है। यह न केवल भारत की ही महत्त्व पूर्ण भाषा है। अपितु विश्व की प्राचीनतम व श्रेष्ठतम भाषा मानी जाती है।
कुछ समय पहले कुछ पाश्चात्य विद्वानों द्व्रारा मिश्र देश के साहित्य को प्राचीनतम माना जाता था परन्तु अब सभी विद्वान् एक मत से संस्कृत के प्रथम ग्रंथ वेद ( ऋग्वेद ) को सबसे प्राचीन मानते है।
हिंदू धर्म से संबंधित लगभग सभी धार्मिक ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। बौद्ध धर्म विशेषकर महायान तथा जैन धर्म के भी कई महत्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। आज भी यज्ञ और पूजा मे संस्कृत मंत्रों का ही प्रयोग किया जाता है।
संस्कृत में मानव जीवन के लिए उपयोगी चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का विवेचन बड़े ही विस्तार से किया गया है। अत: संस्कृत केवल धर्म प्रधान ही है ऐसा नहीं है।
भौतिकवाद दर्शन से सम्बंधित विषयों पर भी प्राचीन ग्रंथकारों का ध्यान गया था। कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक विख्यात ग्रंथ है जिसनमें राजनीतिशास्त्र विषयक सारी जानकारी मिलती है। वात्स्यायन द्वारा रचित काम-शास्त्र में गृहस्थ जीवन के लिए क्या करना चाहिए अच्छे ढंग से बताया गया है।
प्राचीन भारतीय जीवन में धर्म को ही अधिक महत्व देने के कारण संस्कृत धार्मिक दृष्टि से भी विशेष गौरव रखता है। साथ ही भारतीय धर्म और दर्शन का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने के लिए वेद का अध्ययन तथा ज्ञान बहुत ज़रूरी है।
वेद वह मूल स्रोत्र है जहां से विभिन प्रकार की धार्मिक धाराएँ निकल कर मानव हदय को सदा संतुष्ट करती आई हैं, केवल भारतवासियों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य देशों तथा पुरे विश्व के लिए भी मार्गदर्शक के रूप में है।
वेदों के प्रभाव का ही फल है कि पश्चिमी विद्वानों ने तुलनात्मक पुराणशास्त्र जैसे नवीन शास्त्र को ढंढ़ निकाला। इस शास्त्र से पता चलता है कि प्राचीन काल में देवताओं के संबंध में लोगों के क्या-क्या विचार थे और किन-किन उपासनाओं के प्रकारों से वे उनकी कृपा प्राप्त करने में सफल होते थे।
विशुद्ध कलात्मक दृष्टि से भी संस्कृत साहित्य का अपना विशेष महत्व है। इस साहित्य में कालिदास जैसे कमनीय कविता लिखने वाले कवि हुए। भवभूति जैसे महान् नाटककार हुए।
बाणभट्ट जैसे गद्य लेखक हुए जिसने अपने सरस काव्य से त्रिलोकसुंदरी कादम्बरी की कमनीय कथा सुना-सुनाकर श्रोताओं को अपना भक्त बनाया, जयदेव जैसे गीतिकाव्य के लेखक विद्यमान थे जिन्होंने अपनी कोमलकांतपदावली के द्वारा सहदयों के चित्त में मध वर्षा की,
श्री हर्ष जैसे पंडित हुए जिन्होंने काव्य और दर्शन का अपूर्व संमिश्रण किया। इस प्रकार इस समृद्ध साहित्य का महत्व अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है।
प्राचीनता, अविच्छिन्नता, व्यापकता, धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्य तथा कलात्मक दृष्टि से ही नहीं अपितु धर्म व दर्शन के विचारात्मक अध्ययन की दष्टि से भी संस्कृत भाषा का अपना निजी महत्त्व है।
संस्कृत भाषा एक विश्वव्यापी भाषा है, पुनरपि भारत सरकार इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रही, सरकार की ओर से संस्कृत भाषा को अधिक से अधिक प्रोत्साहन मिलना चाहिए। विद्यालयों में भी अनिवार्य रूप से अध्ययन अध्यापन होना चाहिए।
प्रत्येक भारतीय को भी अपनी भारती ( संस्कृत भाषा ) का अध्ययन अवश्य करना चाहिए और यत्न करना चाहिए कि निकट भविष्य में ही संस्कृत भाषा राष्ट्र भाषा बने तभी हम भारत के भाषा संबंधी प्रान्तीयता आदि के कलह को दूर भगा सकते हैं और तभी हम संसार में सच्ची विश्वशाँति की स्थापना कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें
- संस्कृत भाषा की उत्पति | Origin of Sanskrit language
- संस्कृत शब्द की उत्पत्ति | Origin of Sanskrit words
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Indian culture essay in hindi भारतीय संस्कृति पर निबंध.
Write an essay on Indian culture in Hindi language. भारतीय संस्कृति। What is Indian culture in Hindi/ भारतीय संस्कृति? What are the effects of western culture on Indian youth essays in Hindi. Now you can write long and short essay on Indian culture in Hindi in our own words. We have added an essay on Indian culture in Hindi 300 and 1000 words. You may get questions like Bhartiya Sanskriti essay in Hindi, Bhartiya Sanskriti par Nibandh or Bharat ki Sabhyata aur Sankriti in Hindi. If you need we will add Bhartiya Sanskriti in Hindi pdf in this article. You can write a paragraph on Indian culture and give a speech on Indian culture in Hindi.
Essay on Indian Culture In Hindi 300 Words
भारत की संस्कृति बहुत सारी चीजों से मिल जुलकर बनी है जैसे की विरासत के विचार, लोगों की जीवन शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें अदि। भारत की संस्कृति, भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान आगे बढ़ी और चलते-चलते वैदिक युग में विकसित हुई। भारत विश्व के उन प्राचीन देशो में से एक है जिसमे बौद्ध धर्म और स्वर्ण युग की शुरुआत हुई, जिसमे खुद की एक अलग प्राचीन विश्व विरासत शामिल है।
संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, प्रतिक्रिया, मूल्यों को समझना, मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। दुनिआ भर के अलग अलग देशो की अपनी भिन-भिन संस्कृति है, और सभी को अपनी संस्कृति पर नाज़ है। भारत की संस्कृति में पड़ोसी देशों के रीति-रिवाज, परंपरा और विचारों का अभी बहुत समावेश है। भारत हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य कई धर्मों का जनक है। दिन भर के सभी कार्यो में अपने देश के संस्कृति के झलक मिल जाती है जैसे कि नृत्य, संगीत, कला, व्यवहार, सामाजिक नियम, भोजन, हस्तशिल्प, वेशभूषा आदि।
विश्व कि प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक होने के कारन भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में बहुत महत्व रखती है। भारत कि संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता और तीसरी जगद्गुरु होना है।
पुराणी पीढ़ी के लोग नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति और मान्यताओं को सौंपते है, जो खुद बूढ़े होने पर आने वाली पीढ़ी को सौंप देते है। इसी तरह ये संस्कृति आगे बढ़ती जाती है और विशाल रूप धारण कर लेती है। इसी संस्कृति की वजह से ही सभी बच्चे अच्छे वे व्यवहार करते ही क्योकि ये संस्कृति उन्हें उनके दादा-दादी और नाना-नानी से मिली। ये हमारे भारत देश कि ही संस्कृति है जहा घर ए मेहमान कि सेवा की जाती है और मेहमान को भगवन का दर्जा दिया जाता है। इसी वजह से भारत में “अतिथि देवो भव:” का कथन बेहद प्रसिद्ध है।
Essay on Indian Culture In Hindi 1000 Words
संस्कृति-सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम है जिसे कोई समाज विरासत के रूप में प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है, एक ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लम्बी परम्परा होती है।
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है, किंतु यह कब और कैसे विकसित हुई, यह कहना कठिन है। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। भारतीय संस्कृति के मूलरूप का परिचय हमें वेदों से मिलता है। वेदों की रचना ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता का विवरण भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। इसका इतना लंबा और अखंड इतिहास इसे महत्त्वपूर्ण बनाता है। मिस्र, यूनान और रोम आदि देशों की संस्कृतियां आज केवल इतिहास बन कर सामने हैं, जबकि भारतीय संस्कृति एक लम्बी ऐतिहासिक परम्परा के साथ आज भी निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। महाकवि इकबाल के शब्दों में - यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।
आखिर यह बात क्या है ? भारत में समय-समय पर ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मंगोल आदि जातियाँ आईं लेकिन भारतीय संस्कृति ने अपने विकास की प्रक्रिया में इन सभी को आत्मसात कर लिया और उनके अच्छे गुणों को ग्रहण करके उन्हें अपने रंग-रूप में ऐसा ढाला कि वे आज भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। भारत ने वे सभी विचार, आचार-व्यवहार स्वीकार कर लिए जो उसकी दृष्टि में समाज के लिए उपयोगी थे। अच्छे विचारों को ग्रहण करने में भारतीय संस्कृति ने कभी परहेज नहीं किया। विविध संस्कृतियों को पचाकर उन्हें एक सामाजिक स्वरूप दे देना ही भारतीय संस्कृति के कालजयी होने का कारण है।’ अनेकता में एकता’ ही भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है। कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत को ‘महामानवता का सागर’ कहा है। यह सचमुच महासागर है। यह – जाति, धर्म, भाषा-साहित्य, कला-कौशल आदि की अनेक सरिताओं द्वारा समृद्ध महामानवता का महासागर है। संसार के सभी प्रमुख धर्म भारत में प्रचलित हैं। सनातन धर्म (हिंदू), जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, इस्लाम, सिख सभी धर्मों को मानने वाले लोग यहां रहते हैं। भाषा की दृष्टि से यहां लगभग 150 भाषाएं बोली जाती हैं। यहाँ ‘ढाई कोस पर बोली बदले’ वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है। संसार के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के रूप में साहित्य की जो प्रथम धारा यहीं फूटी थी, वही समय के साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, बंगला, तथा तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि के माध्यमों से विकसित हुई और फ़ारसी तथा अंग्रेजी साहित्य ने भी उसे ग्रहण किया।
नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी यही समन्वय देखने को मिलता है। भारत नाट्यम, ओडिसी, कुच्चिपुड़ि, कथकली, मणिपुरी, कत्थक नृत्य शैली में मुगल दरबार की संस्कृति का बड़ा सुंदर रूप देखने को मिलता है। भारतीय संगीत में भी हमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। सामगान से उत्पन्न भारतीय संगीत के विकास के पीछे भी समन्वय की एक लम्बी परम्परा है। यह लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों को अपने में समेटे हुए है। हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दोनों में ही अनेक लोकधुनों ने राग-रागिनियों के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है। ईरानी संगीत का प्रभाव आज भी अनेक राग-रागिनियों और वाद्य यंत्रों पर स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुस्तानी संगीत की समद्धि में तो अनेक मुस्लिम संगीतकारों का योगदान रहा है।
साहित्य और संगीत के समान भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला में भी विविधता में एकता दिखाई देती है। इससे भारत में आई विभिन्न जातियों की कलाशैलियों के पूरे इतिहास की झलक देखने को मिलती है। इसमें एक ओर तो शक, कुषाण, गांधार, ईरानी, यूनानी शैलियों से प्रभावित धाराएँ आ जुड़ी हैं तो दूसरी ओर इस्लामी और ईसाई सभ्यता से प्रभावित धाराएँ, किंतु ये सब धाराएँ मिलकर भारतीय कला को एक विशिष्ट रूप प्रदान करती हैं।
भारत पर्वो एवं उत्सवों का देश है। हमारे पर्व एवं त्योहार अनेकता में हमारी सांस्कृतिक एकता को दर्शाते हैं। दीपावली, दशहरा, बैशाखी, पोंगल, ओणम, मकर संक्रांति, गुरुपर्व, बिहू, ईद-उल-फ़ितर, ईद-उल-जुहा, क्रिसमस, नवरोज आदि में भारतीय संस्कृति की इसी एकात्मकता के दर्शन होते हैं। इन सभी पर्यों एवं त्योहारों ने हमारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया हुआ है। ये सभी भारतीय संस्कृति की एकता जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं और हमें ये बार-बार अनुभव कराते हैं कि हमारी परम्परा और हमारी संस्कृति मूलत: एक है। देश के विभिन्न भागों में बसे लोग भाषा, धर्म, वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़ आदि की दृष्टि से भले ही ऊपरी तौर पर एक दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं, किंतु इन विभिन्नताओं के बावजूद भारत एक सांस्कृतिक इकाई है।
वस्तुत: अनेकरूपता ही किसी राष्ट्र की जीवंतता, संपन्नता तथा समृद्धि का द्योतक है। भारतीय संस्कृति की समृद्धि तथा गरिमा इसी अनेकता का परिणाम है। इस अनेकता ने ही धर्म, जाति, वर्ग, काल की सीमाओं से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को एकात्मकता प्रदान की है और महामानवता के एक सागर के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
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सिक्किम की वेशभूषा, नृत्य एवं संगीत, भाषा, कला एवं शिल्प संस्कृति.
भारत की संस्कृति में जो विविधता है वही सिक्किम की संस्कृति में भी देखने को मिलती है. सिक्किम ऊँचे ऊँचे पहाड़ो चारो तरफ फैली हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से घिरा एक राज्य है. जो बेहद खुबसुरत है. पूर्वोत्तर में स्थित सिक्किम सिर्फ एक राज्य नहीं बल्कि लाखो पर्यटकों की यादे है. सिक्किम राज्य में मुख्य रूप से भोटिया, लेपचा और नेपाली समुदायों के लोग हैं. यहां सारे पर्व मनाएं जाते हैं.
सिक्किम में समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है जो हिंदू धर्म की परम्परा और बौद्ध धर्म के लेपचास के साथ मिश्रित होने से बनती है क्योंकि सिक्किम में बौद्ध धर्म का पालन किया जाता हैं, उनके त्योहार सरल, कम भरे हुए और अधिक रंगीन होते हैं सिक्किम के ज्यादातर स्थानों में बौद्ध उत्सव जैसे द्रुकप्रेसी, पांग लुबसोल, सागा दावा, लॉसोंग और दासैन को बड़े व्यापक रूप से मनाया जाता है.
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सिक्किम की संस्कृति के साथ ही सिक्किम कई दर्शनीय स्थलों को अपने में समाये हुए है. सिक्किम अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए काफी प्रसिद्ध है.यहां की घाटियों और पर्वतमालाओं को अव्वल सांस्कृतिक धरोहर के रुप में जाना जाता है. यहां के लोग शांतिप्रिय के कारण यह राज्य पर्यटकों के लिए स्वर्ग है. राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन को अनेक सुविधाएं दे रही है. पर्यटन उद्योग की संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार दक्षिण सिक्किम में चैमचेय गांव में हिमालयन सेंटर फॉर एडवेंचर दूरिज्म की स्थापना की है.
सिक्किम का ताशिदिंग मठ है. जो संभवत: 1700 ईसवी में स्थापित किया गया था.वहीं कुछ अन्य प्रसीद मठों में – फोडोंग, फेन्सांग, रुमटेक, नगाडक, तोलुंग, आहल्य, त्सुकलाखांग, रालोंग, लाचेन, एन्चेय. यहाँ का प्रमुख हिंदू मंदिर – गंगटोक के मध्य में स्थित जिसको ठाकुर बाड़ी के नाम से जानते है.
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सिक्किम के उत्सव
सिक्किम में लगभग सभी धर्मो के लोगो के त्योहार बड़े उत्साह से मनाये जाते है . सिक्किम के लोगों के लिए हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म प्रमुख है.सिक्किम के प्रमुख त्यौहार में द्रुकप्रेसी, पांग लुबसोल, ल्हाबाब ,ड्युचेन, ड्रुपका, सागा दावा, लॉसोंग और दासैन को बौद्ध धर्म में मनाया जाता है .सिक्किम के महत्वपूर्ण त्योहारों में माघे संक्रांति,चैत्र दसाई/राम नवमी, दसई त्योहार, सोनम लोसूंग, नामसूंग, तेन्दोग हलो रूम फाट (तेन्दोंग पर्वत की पूजा), लोसर उत्सव,होली,राम नवमी,दुर्गा पूजा,दशहरा,दिवाली,क्रिसमस डे और नववर्ष प्रमुख है .
सिक्किम की भाषा
नेपाली सिक्किम की प्राथमिक भाषा है जबकि लेपचा और सिक्किम (भूटिया) भी इस उत्तर-पूर्वी प्रांत के कुछ हिस्से में बोली जाती हैं. सिक्किम के लोगों द्वारा भी अंग्रेजी बोली जाती है. अन्य भाषाओं में काफले, लिंबू, मझवार, यखा, तमांग, तिब्बती और शेरपा शामिल हैं.
सिक्किम की वेशभूषा
सिक्किम में लेप्चा, भूटिया और नेपाल के तीनों समुदाय अलग-अलग वेशभूषा पायी जाती है. सिक्किम की संस्कृति में वेशभूषा का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है. पुरुषों की वेशभूसा- लेप्चा पुरुषों की पारम्परिक वेशभूषा थोकोरो-दम होती है जिसमें एक सफेद पाजामा येन्हत्से, एक लेपचा शर्ट और शंबो, टोपी आदि शामिल है. इस पोशाक की बनावट खुरदरी और लंबे समय तक चलती है . जबकि भूटिया पुरुषो की पारंपरिक वेशभूषा में खो शामिल होता है. जिसे बाखू भी कहा जाता है.
इसी के साथ सिक्किम के एक अन्य समूह नेपाली पुरुष में चूड़ीदार पायजामा, एक शर्ट, जो कि दउरा शामिल होता है. जो शूरवल के ऊपर खुद को पहनते हैं. यह आसकोट, कलाई कोट और उनकी बेल्ट से जुड़ा होता है जिसको पटुकी भी कहा जाता है.
वहीं महिलाओं की वेशभूषा की बात करें तो लेप्चा महिलाओं की पोशाक डमवम या डुमिडम है.जिसमें महिलाओं द्वारा गहने , प्रवेश, बालियां, नामचोक, लयक एक हार, ग्यार, एक कंगन आदि पहना जाता है . भूटिया महिला की सामान्य वेशभूषा में खो या बाखू, हंजु, एक रेशमी फुल-स्लीव्स वाला ब्लाउज, कुशेन, एक जैकेट, टोपी का एक अलग पैटर्न, शंबो और शबचू आदि पहना जाता हैं.
जबकि विवाहित भूटिया महिलाओं में पैंगडन, धारीदार एप्रन, विवाहित भूटिया महिलाओं का पहनावा होता है.अगर बात नेपाली महिलाओं की करे तो पचौरी, कपड़े का एक रंगीन टुकड़ा, सिर से कमर तक निलंबित, नृत्य प्रदर्शन के दौरान अलंकरण उपयोग होता है.
और पढ़े: सिक्किम की जलवायु- प्रत्येक मौसम का संक्षिप्त वर्णन
सिक्किम की संगीत और नृत्य संस्कृति
लोक गीत और नृत्य सिक्किम की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. अधिकांश आदिवासी नृत्य फसल के मौसम का चित्रण करते हैं. सिक्किम के नृत्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ होते हैं, जप करते हैं, और नर्तकियां चमकीली वेशभूषा और पारंपरिक मुखौटे पहनती हैं. कुछ सबसे प्रसिद्ध नृत्य रूप हैं रेचुंग्मा, गाह टू किटो, ची रम्मू, बी यू मिस्टा, ताशी जलधा, एनची चाम, लू खंगथामो, गुनुंगमाला ज्ञानुघे और काग्येद नृत्य शामिल है.
सिक्किम की कला और शिल्प संस्कृति
सिक्किम में बहुत सारे कला और शिल्प रूप हैं.इसका बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से है. सिक्किम की सबसे लोकप्रिय हस्तशिल्प वस्तुओं में से एक में चोकसी टेबल, ऊनी कालीन, कैनवास की दीवार लटकना, शामिल है. साथ ही, सिक्किम में कुटीर उद्योगों के बेहतर विकास के लिए सरकार ने दक्षिण जिले में कुटीर उद्योग का एक संस्थान स्थापित किया है. राज्य में बेंत और बांस के उत्पादों के रूप में विभिन्न हस्तशिल्प हैं. मल्लि, गंगटोक, और नामची हथकरघा उत्पादों और कुटीर उद्योगों के लिए सिक्किम के बहुत लोकप्रिय स्थान हैं. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा एवं ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पेज फॉलो करें.
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Sanskrit Essays संस्कृतभाषायां निबन्धाः
Learn about many different Sanskrit essays with translation in Hindi and English. हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद के साथ कई अलग-अलग संस्कृत निबंधों के बारे में जानें। Essays in Sanskrit are called as “संस्कृतभाषायां निबन्धाः”.
An essay is a piece of content which is written from the perception of the writer. Essays can be of different types, long or short, formal or informal, biography or autobiography etc.
These are useful for Sanskrit students and others interested in learning Sanskrit.
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संस्कृत भाषा का महत्व पर निबंध sanskrit bhasha ka mahatva essay in hindi
Sanskrit bhasha mahatva par nibandh.
दुनिया में कई तरह की भाषाएं बोली जाती हैं और हमारे भारत में भी कई तरह की भाषा बोली जाती हैं. आज हम आपको दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के बारे में बताने जा रहे हैं जिस भाषा का उपयोग पहले ऋषि मुनि किया करते थे हम बात कर रहे हैं संस्कृत भाषा के बारे में. यह वह भाषा है जिसका उपयोग पुराने समय में ऋषि मुनि करते थे । संस्कृत भाषा में हमारे देश के कई ग्रंथ लिखे गए हैं.
पुराने समय के राजा महाराजा संस्कृत भाषा का उपयोग करते थे । पुराने समय के गुरुकुल में गुरु के द्वारा शिष्यों को संस्कृत भाषा मैं ज्ञान दिया जाता था संस्कृत भाषा को दुनिया की भाषा मैं श्रेष्ठ माना गया है. संस्कृत भाषा सभी भाषाओं अच्छी होती है इसलिए हमारे भारत के ज्यादातर धर्मों के ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं ।
विश्व के कई देशों में भी संस्कृत भाषा को श्रेष्ट बताया गया है कहते हैं की संस्कृत भाषा के द्वारा ही कई भाषाएं बनाई गई हैं लेकिन आज भारत में भी संस्कृत भाषा को कम बोलते हैं. हमारे भारत में तो संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है जो सावन के महीने में मनाते हैं और पुराने समय से ही संस्कृत दिवस बनाने की प्रथा चली आ रही है. संस्कृत दिवस मनाने का हमारा एक ही उद्देश्य है कि इस भाषा को हम ज्यादा से ज्यादा उपयोग में ला सकें ।
संस्कृत भाषा में हमें कई ग्रंथ मिले हैं कई शास्त्र संस्कृत में लिखें गए हैं. संस्कृत के द्वारा ही हमारे समाज का कल्याण हुआ है । बदलती हुई इस दुनिया में संस्कृत भाषा ना जाने कहां खो गई है लेकिन अब हमारा यह दायित्व बनता है कि हम संस्कृत भाषा को दोबारा से प्रचलन में लाएं । आज जब हम अपने घर में पूजा पाठ और यज्ञ करवाते है तो संस्कृत भाषा में लिखे हुए मंत्र का उपयोग किया जाता है पुराने जमाने में जब साधु महात्मा तपस्या करते थे तो संस्कृत भाषा के मंत्रों का उच्चारण करते थे ।
संस्कृत भाषा में जो श्लोक लिखे गए हैं उन श्लोकों को जब हम पढ़ते हैं तो हमको आनंद आता है. कई स्कूल और विद्यालय भी हमारे भारत में हैं जहां पर संस्कृत की पढ़ाई कराई जाती है जिसका उद्देश्य हैं की संस्कृत भाषा को सभी सीख सकें । संस्कृत भाषा का खो जाना हम भारतीयों के लिए बड़ी दुख की बात है क्योंकि संस्कृत हमारे भारत की सबसे प्राचीन भाषा है और हमारा समाज और हम सभी लोग मिलकर इस भाषा का उपयोग पुराने समय से करते आ रहे हैं ।
हमारे भारत का सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद माना जाता है जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसी भाषा के माध्यम से हम देवी देवताओं की स्तुति करते हैं और गीता काव्य के द्वारा हम पूजा पाठ करते है.यजुर्वेद , सामवेद और अर्थवेद आदि हमारे भारत के वेद हैं। हमारे देश में हिंदू , बौद्ध , जैन आदि धर्मों के ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं ।
हमारे देश में सन 1791 में वाराणसी में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय खोला गया यहां पर हम संस्कृत की शिक्षा ले सकते हैं. वाराणसी के साथ-साथ दरभंगा , तिरुपति , नई दिल्ली , जयपुर , वेरावल , हरिद्वार , उज्जैन और बैंगलोर , नलवाड़ी में भी संस्कृत के कॉलेज है जहां पर हम संस्कृत की शिक्षा ले सकते हैं. अगर कोई संस्कृत सीखना चाहता है तो वह यहां पर पढ़ाई करके सीख सकता है यहां पर संस्कृत भाषा की डिग्री भी दी जाती है ।
हमारे देश की संस्कृत भाषा से ही गणित और विज्ञान की उत्पत्ति हुई है. वैज्ञानिकों ने भी संस्कृत भाषा को श्रेष्ठ भाषा माना है और आज हम सभी कंप्यूटर का उपयोग सबसे ज्यादा करते हैं. कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर मैं भी संस्कृत भाषा सबसे उपयुक्त है फिर भी कंप्यूटर में इस भाषा का उपयोग नहीं किया जाता है । आज हमारे भारत के सभी स्कूलों में संस्कृत का ज्ञान दिया जाता है और यह सब संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है ।
adhunik kaal mein sanskrit bhasha ka mahatva
प्राचीनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता था और प्राचीनकाल में संस्कृत भाषा का उपयोग सबसे ज्यादा साधु संत किया करते थे । जब कहीं पर यज्ञ होते थे तो संस्कृत भाषा का ही उपयोग किया जाता था. ब्राह्मण संस्कृत भाषा का उपयोग सबसे ज्यादा करते थे. गुरुकुल में शिष्यों को शिक्षा संस्कृत भाषा में दी जाती थी और हमारे देश के ग्रंथ लिखने में भी संस्कृत का उपयोग किया गया है क्योंकि संस्कृत भाषा सबसे अच्छी भाषा मानी जाती है. पुराने समय में संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य होता था क्योंकि जो भी पढ़ाई होती थी वह संस्कृत भाषा में होती थी ।
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आपको हमारा यह आर्टिकल sanskrit bhasha ka mahatva essay in hindi कैसा लगा हमें जरुर बताये.
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kamlesh kushwah
Very nice nibandh
Very Very Grate essay on Sanskrit .
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सभ्यता और संस्कृति में अंतर [civilization and culture in hindi]
Posted by P B Chaudhary | 💫 Key Differences
सभ्यता और संस्कृति दोनों व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले शब्द है, हालांकि आम तौर पर हम इनके बीच के अंतर को लेकर अंजान रहते हैं और इन दोनों शब्दों को एक पर्याय के रूप में इस्तेमाल कर देते हैं;
इस लेख में हम संस्कृति और सभ्यता (civilization and culture) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके मध्य कुछ मूल अंतरों को स्पष्ट करेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें; और साथ ही रोज़ नए-नए Content के लिए हमारे Facebook Page को लाइक जरूर करें।
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सभ्यता और संस्कृति
हम किस धर्म को फॉलो करते हैं, हम क्या भोजन करते हैं, हम क्या पहनते हैं, हम इसे कैसे पहनते हैं, हमारी भाषा, विवाह, संगीत, जो हम सही या गलत मानते हैं, हम कैसे मेज पर बैठते हैं, हम आगंतुकों का अभिवादन कैसे करते हैं, हम प्रियजनों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं और अन्य लाखों चीज़ें जिससे हमारी पहचान जुड़ी है, संस्कृति है।
ऊपर के वाक्यों से आप समझ सकते हैं संस्कृति किस स्तर की चीज़ है। और सभ्यता की बात करें तो जितनी भी चीजों का हमने ऊपर जिक्र किया है और इसके अलावे अन्य लाखों चीज़ें जो हम करते हैं या हम उसमें संलग्न (engage) होते हैं; उससे हम प्रत्यक्ष रूप से एक समन्वित भौतिक उन्नति की प्राप्ति करते हैं, जिसे हम सभ्यता कहते हैं।
यूरोप, भारत, रूस और चीन आदि अपनी समृद्ध संस्कृतियों के लिए ही तो जाने जाते हैं, ख़ासकर के भारत जो कि अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, और पर्यटकों को निरंतर आकर्षित करते हैं। [आइये इसे विस्तार से समझते हैं।]
यह भी पढ़ें – लैंगिक भेदभाव : समस्या एवं समाधान
संस्कृति (Culture )
⚫ संस्कृति का संबंध संस्कार से है। और संस्कार का मतलब होता है भद्दापन अथवा त्रुटियों को दूर कर सही जीवन मूल्यों को स्थापित करना ताकि वे समाज के लिए उपयोगी बन सकें।
⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन को सुंदर बनाने के लिए मानव द्वारा किया जानेवाला बौद्धिक प्रयास संस्कृति है। संस्कृति किसी सभ्यता का मूल तत्व होता है।
जैसा कि हम जानते हैं संस्कृति के लिए इंग्लिश में “Culture” शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। शब्द “Culture” एक फ्रांसीसी शब्द “ colere ” से निकला है, जिसका अर्थ है पृथ्वी की ओर बढ़ना, या खेती करना और पोषण करना।
⚫ अगर हम इंसान को एक सभ्यता माने तो उसकी आत्मा संस्कृति है, अगर एक फूल को सभ्यता माने तो उसकी खुशबू संस्कृति है। कहने का अर्थ ये है कि मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ (जो कि प्रत्यक्ष भौतिक उपलब्धियां है) सभ्यता कहलाता है। वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक, नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति कहलाता है।
⚫ कहा जाता है कि सभ्यता और संस्कृति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है यानी कि अगर सभ्यता है तो देर-सवेर संस्कृति विकसित हो ही जाती है।
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संस्कृति का उदाहरण –
पाश्चात्य संस्कृति (Western culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर यूरोपियन देशों की संस्कृति और उससे प्रभावित अन्य देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। जैसे कि अमेरिका, इस तरह की संस्कृति को उसके शारीरिक खुलापन, फास्ट फूड इत्यादि से जाना जाता है।
भारतीय संस्कृति (Indian culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर भारतीय उप-महाद्वीप के देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। इसकी खासियत है अपनी समृद्ध परंपराओं को साथ लेकर आज की मान्यताओं एवं धारणाओं के साथ आगे बढना।
पूर्वी संस्कृति (Eastern culture) – पूर्वी संस्कृति आम तौर पर सुदूर पूर्व एशिया (चीन, जापान, वियतनाम, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया सहित) और कुछ हद तक भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के सामाजिक मानदंडों को संदर्भित करती है। पश्चिम की तरह, पूर्वी संस्कृति अपने प्रारंभिक विकास के दौरान धर्म और साथ ही कृषि कार्यों से काफी प्रभावित रही है। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कृषि एक मूल तत्व है।
अफ्रीकन संस्कृति (african culture) – भारतीय उप-महाद्वीप की संस्कृति की तरह ही अफ्रीकी संस्कृति न केवल राष्ट्रीय सीमाओं के बीच, बल्कि उनके भीतर भी भिन्न होती है। इस संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं में से एक महाद्वीप के 54 देशों में बड़ी संख्या में जातीय समूह हैं। उदाहरण के लिए, अकेले नाइजीरिया में 300 से अधिक जनजातियां हैं। इसीलिए पूरे अफ्रीका के संस्कृति को एक ही साँचे में डालना बहुत मुश्किल है।
ब्रिटानिका के अनुसार, कुछ पारंपरिक उप-सहारा अफ्रीकी संस्कृतियों में तंजानिया और केन्या के मासाई, दक्षिण अफ्रीका के ज़ुलु और मध्य अफ्रीका के बटवा शामिल हैं। इन संस्कृतियों की परंपराएं बहुत अलग वातावरण में विकसित हुईं। उदाहरण के लिए, बटवा, जातीय समूहों में से एक है जो परंपरागत रूप से वर्षावन में वनवासी जीवन शैली जीते हैं। दूसरी ओर, मासाई, खुले क्षेत्र में भेड़ और बकरियां चराते हैं।
लैटिन संस्कृति (Latin Culture) – लैटिन अमेरिका को आमतौर पर मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको के उन हिस्सों के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां स्पेनिश या पुर्तगाली प्रमुख भाषाएं हैं। ये सभी स्थान स्पेन या पुर्तगाल के उपनिवेश थे। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कैथीलिक परंपराओं के साथ-साथ वहाँ की स्थानीय संस्कृति और अफ्रीकियों द्वारा लाए गए संस्कृति का मिश्रण मिलता है।
मध्य पूर्वी संस्कृति (Middle Eastern culture) – मोटे तौर पर, मध्य पूर्व में अरब प्रायद्वीप के साथ-साथ पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र शामिल है। यह क्षेत्र यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम का जन्मस्थान है और अरबी से हिब्रू से तुर्की से पश्तो तक दर्जनों भाषाओं का घर है। विषम मौसमी परिस्थिति और आम जीवन पर शरिया कानून के प्रभाव के कारण यहाँ की संस्कृति एक अलग ही रूप में उभर कर आती है।
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सभ्यता (Civilization )
⚫ सभ्य , सभा से विकसित हुआ है। प्राचीन काल में शिष्ट-जनों की या राजाओं की सभा हुआ करती थी जिसमें उस समय के उच्च वर्ग के लोग या फिर जिसे अभिजात वर्ग ( Aristocrat class ) कहते हैं वहीं शामिल हो पाते थे।
इन सब लोगों को और इनके अलावे भी जिस किसी व्यक्ति को इस सभा में शामिल होने के काबिल समझा जाता था उसे सभ्य कहा जाता था।
⚫ कालांतर में अच्छे विचार रखनेवाला और भले लोगों जैसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति सभ्य कहा जाने लगा। इसी सभ्य से सभ्यता बना है।
⚫ इन्सानों के शीलवान और सज्जन होने की अवस्था ही सभ्यता है। जैसे हम अगर सिंधु घाटी सभ्यता की बात करें तो उस समय के लोगों के आचार, व्यवहार, जीवनशैली, सामाजिक ताना बाना, आर्थिक गतिविधियों को सामान्य रूप से हम उसकी सभ्यता कहते हैं।
⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो यह मानव समाज की बाहरी और भौतिक उन्नति है, जिसे मनुष्य ने आदिम युग से अब तक लौकिक, व्यावहारिक और सामाजिक क्षेत्र में प्राप्त की है।
⚫ सभ्यता में वे सभी उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हे मनुष्य ने प्रकृति पर विजय पाने और जीवन निर्वाह को सुगम बनाने के लिए हासिल की है। जैसे नदी पर बांध बनाना, सड़कें बनाना, घर एवं नालियाँ बनाना, बेहतरीन कपड़े बनाना इत्यादि।
⚫ सभ्यता के लिए इंग्लिश में Civilization शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और विकिपीडिया के अनुसार , एक सभ्यता एक जटिल समाज है जिसके पास शहरी विकास, सामाजिक स्तरीकरण, सरकार का एक रूप, और संचार की प्रतीकात्मक प्रणालियाँ होती है।
इसके अलावा सभ्यताएं केंद्रीकरण, पौधों और जानवरों की प्रजातियों (मनुष्यों सहित), श्रम की विशेषज्ञता, प्रगति की सांस्कृतिक रूप से निहित विचारधारा, स्मारकीय वास्तुकला, कराधान, खेती पर सामाजिक निर्भरता और विस्तारवाद जैसी अतिरिक्त विशेषताओं से भी जुड़ी हुई होती है।
एथेंस के एक्रोपोलिस को व्यापक रूप से पश्चिमी सभ्यता के पालने और लोकतंत्र के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। उसी तरह से सिंधु-सरस्वती सभ्यता को भारतीय सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है।
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| सभ्यता और संस्कृति में कुल मिलाकर अंतर
⚫ कुल मिलाकर देखें तो मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ सभ्यता है। यानी कि ये मनुष्य की प्रत्यक्ष और भौतिक उपलब्धियाँ है, वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक , नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति है।
⚫ व्यक्तित्व को समृद्ध और परिष्कृत करनेवाला दर्शन, चिंतन, आकलन, साहित्य आदि का संबंध संस्कृति से है। इसीलिए जब हम जीवन मूल्यों, सिद्धांतों, आदर्शों, रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं आदि की बात करते हैं तो इसको संस्कृति कहते है।
⚫ वहीं जब सभ्यता की बात करते हैं तो इसे एक वृहद पैमाने पर देखते हैं, ऐतिहासिक रूप से, “एक सभ्यता” को अक्सर एक बड़ी और “अधिक उन्नत” संस्कृति के रूप में समझा जाता है, जैसे कि पश्चिमी सभ्यता , भारतीय सभ्यता, रोमन सभ्यता आदि।
| संबन्धित अन्य लेख
⚫ जानने और समझने में अंतर होता है? ⚫ एथिक्स और नैतिकता में अंतर को समझिए ⚫ Attitude and Aptitude differences ⚫ अभिवृति और अभिक्षमता में अंतर ⚫ हंसी और दिल्लगी में अंतर क्या है? ⚫ बल और सामर्थ्य में अंतर क्या है? ⚫ संस्था और संस्थान में मुख्य अंतर ⚫ शिक्षा और विद्या में अंतर
⚫ एंटी ऑक्सीडेंट क्या है? ये शरीर के लिए इतना जरूरी क्यों है? ⚫ चिपकना और सटना में अंतर ⚫ समालोचना और समीक्षा में अंतर ⚫ अद्भुत और विचित्र में अंतर ⚫ विश्वास और भरोसा में अंतर ⚫ ईर्ष्या और द्वेष में अंतर ⚫ ज्ञापन और अधिसूचना में अंतर ⚫ शासन और प्रशासन में अंतर
[उम्मीद है आप इस लेख के माध्यम से सभ्यता और संस्कृति को अच्छे से समझ पाये होंगे, हमारे अन्य लेखों को भी पढ़ें और इसे शेयर जरूर करें।]
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गुजरात की संस्कृति: परंपरा और जीवन शैली के बारे में
गुजरात ‘गुर्जर’ शब्द से लिया गया है जो जाहिर तौर पर हूणों की एक उप-जनजाति है, जिन्होंने पहले 8वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया था।
गुजरात राज्य भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। गुजरात राज्य में जनसंख्या लगभग 60.4 मिलियन है। यह सबसे बड़ी आबादी की सूची में नौवें स्थान पर है। गुजरात के दक्षिण में दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, पूर्वोत्तर में राजस्थान, पूर्व में मध्य प्रदेश और दक्षिण पूर्व में महाराष्ट्र और सिंध का पाकिस्तान प्रांत और पश्चिम में अरब सागर है। गुजरात राज्य की राजधानी शहर गांधीनगर है। अहमदाबाद गुजरात का सबसे बड़ा राज्य है। गुजराती राज्य की राजभाषा है। इसे सबसे अधिक औद्योगिक रूप से विकसित माना जाता है और यह भारत का एक विनिर्माण केंद्र भी है।
गुजरात राज्य में कुछ प्राचीन स्थल भी हैं, उदाहरण के लिए, गोला धोरो, लोथल और धोलावीरा। लोथल को दुनिया के पहले बंदरगाहों में से एक माना जाता है। गुप्त और मौर्य साम्राज्यों में, तटीय शहर खंभात और भरूच ने व्यापारिक केंद्रों और बंदरगाहों के रूप में और पश्चिमी क्षत्रप युग के दौरान भी काम किया – शाही शक राजवंशों का उत्तराधिकार। गुजरात राज्य शराब की बिक्री को बढ़ावा नहीं देता है। गुजरात में स्थित गिर वन दुनिया में लुप्तप्राय एशियाई शेरों की एकमात्र जंगली आबादी का घर है।, गुजरात औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखता है। गुजराती लोग निस्संदेह व्यावसायिक कौशल के साथ पैदा होते हैं, जिससे उन्हें जरूरत पड़ने पर आत्मनिर्भर होने का अवसर मिलता है।, गुजरात की संस्कृति, गुजराती के झूठ की उत्पत्ति इंडो-एशियन के साथ हुई और जिनमें से 20% आदिवासी समूह का गठन करते हैं, अर्थात्, मच्छी – खारवा, कोली, भील, धुबला, नायकड़ा। वे अभी भी गुजरात राज्य के निवासी हैं। गुजरात अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध परंपराओं के लिए जाना जाता है। यह इस्लाम, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का एक सुंदर मिश्रण है जो उनकी संस्कृति को जीवंतता प्रदान करता है। वे अपनी सांस्कृतिक विचारधाराओं को आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करने से पीछे नहीं हटते हैं। वे अपनी पुश्तैनी विचारधाराओं को जीवित रखना पसंद करते हैं। गुजराती हो या उनका खाना आपको दोनों ही बहुत मीठे लगेंगे. वे अपनी मीठी भाषा से अपने संबंध और नेटवर्क बनाते हैं। उनका “केम छो मोटा भाई” (जिसका अनुवाद है: आप कैसे हैं, बड़े भाई) सब कुछ ठीक कर सकते हैं। उनका दिमाग हमेशा बिजनेस करने के लिए दौड़ता रहता है। एक गुजराती एक जन्मजात व्यवसायी / व्यवसायी होती है। वे अपने जीवन में हर चीज के बारे में बहुत गणनात्मक होते हैं। उदाहरण के लिए वे बहुत मिलनसार और बातूनी लोग हैं यदि आप एक ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं और आपके अलावा गुजराती हैं तो आप कभी ऊब नहीं पाएंगे और कभी भूख भी नहीं महसूस करेंगे क्योंकि “ज्या गुजराती त्या खवनु तो होय आज” (जिसका अनुवाद है: जहां गुजराती हैं वहां खाना है) , गुजराती कभी भी भोजन के बिना कहीं नहीं जाते – अरे नहीं बहुत सारा खाना खाखरा फाफड़ा थेपला “तो जोये आज साथे” (जिसका अनुवाद है: भोजन जरूरी है), गुजरातियों की जीवन शैली.
गुजराती पारंपरिक पोशाक पुरुषों के लिए केडिया और महिलाओं के लिए चनिया चोली हैं। इन कपड़ों पर मिरर वर्क, बीडवर्क और एम्ब्रॉयडरी होती है। पटोला और बंधनी जैसे कपड़ों पर अलग-अलग काम होते हैं।
गुजरातियों की पोशाक का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा उनके आभूषण हैं। वे जो गहने पहनते हैं, वे बाहर खड़े होते हैं। जंजीर, झुमके, चूड़ियाँ, चाभी के छल्ले और हार सुंदर और आकर्षक हैं। जबकि पुरुष खुद को सजाने के लिए सोने की जंजीरों, पगड़ी और अंगूठियों पर भरोसा करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं चांदी के धातु के गहनों का उपयोग करती हैं जो आज एक फैशन स्टेटमेंट भी है। गहनों को बारीकी से तैयार किया गया है जो इसे आकर्षक और भव्य बनाता है।, उनके पारंपरिक व्यंजनों में रोटी सब्जी चावल दाल फरसान मिठाई और दोपहर के भोजन के लिए छाछ (छास एक गुजराती थाली का दिल है) शामिल हैं। उनके खाने में भाकरी या खिचड़ी-कढ़ी शामिल है। इसके साथ ही पापड़ के अचार की चटनी भी खाई जाती है., गुजरात की परंपराएं.
नवरात्रि – “ऐ हल्लू”, गुजरात का सबसे मनाया जाने वाला त्योहार। यह देवी दुर्गा का नौ दिनों का त्योहार है और लोग इसे अपने पारंपरिक कपड़े पहनकर नौ दिनों के कार्यकाल में डांडिया और गरबा करके मनाते हैं।
रण उत्सव – कच्छ के महान रण में हर साल मनाया जाता है। यह त्यौहार गुजराती लोक संस्कृति को दर्शाता है। आप गुजराती व्यंजनों से लेकर खाने से लेकर संस्कृति तक हर चीज का लुत्फ उठा सकते हैं। साथ ही आप रेगिस्तान में टेंट में रहने के अनुभव का आनंद ले सकते हैं
उत्तरायण – “काई पो चे” बस आप सुन सकते हैं। इसे पतंग उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार में सुबह से लेकर रात तक सभी लोग अपनी छत पर आकर पतंग उड़ाते हैं। सूर्यास्त के बाद आकाश लालटेन छोड़े जाते हैं और उनमें से सैकड़ों को आकाश में देखना एक सुंदर दृश्य है। हर जगह संगीत और जयकार और खुशी है। इस दिन लोग रंग-बिरंगी पतंगों को देखने का आनंद लेने के लिए छत पर अपना भोजन भी करते हैं और यह भी कि वे एक पतंग को देखने से न चूकें|
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अंडमान निकोबार
29°C / बादल
- Places to visit
- How to reach
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सुरम्य दृश्यों, प्राचीन समुद्र तटों, शानदार समुद्री भोजन, साहसिक जल खेलों, साहसिक ट्रेकिंग मार्गों, ऐतिहासिक संरचनाओं, समृद्ध जैव विविधता और संस्कृतियों के मिश्रण के साथ पर्यटकों के लिए एक स्वर्ग है, जो इसकी विविधता को जोड़ता है। पोर्ट ब्लेयर द्वीपों की राजधानी है जो आपको अन्य सभी द्वीपों से जोड़ता है जो मनोरंजन और बेदाग सुंदरता का खजाना हैं।
अंडमान और निकोबार का इतिहास
अंडमान और निकोबार के इतिहास के बारे में बहुत कुछ प्रलेखित नहीं किया गया है। इतिहासकारों द्वारा किवदंतियों और सिद्धांतों को जोड़ते हुए, यह ज्ञात है कि द्वीपों में हमेशा अंडमानी, ओंगेस, सेंटिनलीज़, शोम्पेन और झारवास जैसे स्वदेशी जनजातियों का निवास रहा है, जो समय के दौरान जीवित रहने में कामयाब रहे और आज भी बहुत अधिक हैं द्वीपों का हिस्सा।
मध्ययुगीन काल के दौरान, द्वीप चोल वंश का एक हिस्सा थे, जिनके शासकों ने इसे विदेशी भूमि पर अभियान चलाने के लिए एक नौसैनिक अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया था। मध्ययुगीन काल के अंत में, यह डेनिश और बाद में अंग्रेजों का उपनिवेश बन गया। अंग्रेजों ने द्वीपों का इस्तेमाल राजनीतिक बंदियों को अंदर रखने के लिए किया सेलुलर जेल , जो आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। अंडमान और निकोबार 1950 में भारत गणराज्य का हिस्सा बना और 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।
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अंडमान और निकोबार संस्कृति
अंडमान और निकोबार की संस्कृति विविध है और इसमें विभिन्न मूल समुदाय और मध्यकाल के दौरान द्वीप पर आने वाले लोगों के वंशज शामिल हैं। कुछ मूल समुदाय अंडमान में नेग्रिटो, शोम्पेन और मंगोलॉयड निकोबारी हैं। इन स्वदेशी समुदायों के अलावा, बंगाली, तमिल और ईसाई यहां रहते हैं और अंडमान और निकोबार संस्कृति द्वीप समूह में अपनी परंपराओं का सार जोड़ते हैं।
मुख्य भूमि भारत में मनाए जाने वाले कई त्योहार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी मनाए जाते हैं, जैसे दुर्गा पूजा दीवाली, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी, गुरु नानक जयंती , होली, क्रिसमस और रमजान। इन मुख्यधारा के त्योहारों के अलावा, पर्यटकों के मनोरंजन के लिए कई वार्षिक मेलों का भी आयोजन किया जाता है, जैसे द्वीप पर्यटन महोत्सव, कॉर्बिन के कोव बीच पर बीच महोत्सव, पोर्ट ब्लेयर में मानसून संगीत समारोह , और 3 दिवसीय अंडमान फिल्म महोत्सव।
अंडमान और निकोबार की कला और हस्तशिल्प
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की कला और शिल्प के दुनिया भर में उनके उत्कृष्ट शिल्प और रचनात्मक कलाकृतियों के प्रशंसक हैं। पर्यटक हमेशा सीप से बने सामान, हाथ से बने बांस के उत्पाद, बेंत के सामान, लकड़ी के सजावट के उत्पाद, ताड़ की चटाई और बहुत कुछ स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं। द्वीपों के समुद्र तटों में दुकानें और स्टॉल हैं जहां स्थानीय कारीगर अपने हाथ से तैयार की गई वस्तुओं को किफायती कीमतों पर बेचते हैं।
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अंडमान और निकोबार का खाना
अंडमान और निकोबार के व्यंजनों पर बंगाली प्रभाव है क्योंकि यह समुदाय जनसांख्यिकी रूप से बहुसंख्यक है। इस वजह से पर्यटकों को सभी रेस्टोरेंट में फिश करी और माछेर झोल प्रमुखता से मिल जाएंगे। बंगाली व्यंजनों के अलावा, आप ग्रिल्ड लॉबस्टर्स, कोकोनट प्रॉन करी, तंदूरी फिश, चिली करी, अमृतसरी कुलचा और बार्बेक्यू फूड जैसे समुद्री भोजन का आनंद ले सकते हैं। भोजन के अलावा, रेस्तरां और कैफे कुछ आत्मा-ताज़ा मॉकटेल और कॉकटेल परोसते हैं जिनका विरोध करना कठिन है। खाने के जोड़ों में समुद्र तट के किनारे झोंपड़ियाँ और रेस्तरां कुछ होने वाली पार्टियों की मेजबानी करते हैं जहाँ आप अपनी स्वाद कलियों को प्रसन्न करते हुए बीट्स पर थिरकेंगे।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कैसे पहुँचें?
विचार करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग निम्नलिखित हैं -
हवाईजहाज से - अंडमान द्वीप समूह की राजधानी, पोर्ट ब्लेयर, बैंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई सहित कई शहरों से दैनिक उड़ानों द्वारा पहुंचा जाता है। पोर्ट ब्लेयर में वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से एयर इंडिया, गोएयर, इंडिगो, स्पाइसजेट और विस्तारा सहित एयरलाइनों द्वारा दैनिक उड़ानें संचालित की जाती हैं।
समुद्र से - आप जहाज से भी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जा सकते हैं। मालवाहक जहाज चेन्नई, कोलकाता और विशाखापत्तनम से पोर्ट ब्लेयर के हैडो जेट्टी तक जाते हैं। नाव से यात्रा करना मज़ेदार हो सकता है, लेकिन यह हमेशा आसान या आरामदायक नहीं होता क्योंकि इसमें बहुत समय लगता है। मौसम और समुद्र की स्थिति भी यात्रा को लंबा बना सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों के लिए - विदेशी लोग बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे प्रमुख भारतीय शहरों में हवाई मार्ग से आ सकते हैं, वहां से पोर्ट ब्लेयर के लिए घरेलू उड़ान ले सकते हैं। पोर्ट ब्लेयर के लिए कोई सीधी अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवा प्रदान नहीं की गई है।
गतिविधियां और आनंद लेने के स्थान अंडमान व नोकोबार द्वीप समूह
- Cinque द्वीप में पानी के नीचे की दुनिया का पता लगाने के लिए स्पार्कलिंग नीला पानी में गोता लगाएँ।
- यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सेल्युलर जेल के चारों ओर की अलौकिक हवा को महसूस करें। इतिहास की किताबों में कैदियों के बारे में दर्ज रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियां यहां जीवंत हो उठेंगी।
- यदि आप कछुओं को पसंद करते हैं, तो उनके घोंसले बनाने की प्रशंसा करें डिगलीपुर द्वीप .
- आइए इतिहास को आपके सामने उजागर करें पोर्ट ब्लेयर में जापानी बंकर , द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया।
- टाइम्स मैगजीन का शीर्षक हैवलॉक द्वीप में राधानगर बीच एशिया में सबसे अच्छा समुद्र तट. यह अंडमान और निकोबार में सबसे अधिक देखे जाने वाले समुद्र तटों में से एक है।
- की समृद्ध जैव विविधता के साक्षी हैं सैडल पीक राष्ट्रीय उद्यान और इसके मनमोहक दृश्यों को अपने लेंस से कैद करें।
- साहसिक जल क्रीड़ा में शामिल हुए बिना अंडमान और निकोबार की यात्रा व्यर्थ है! नॉर्थ बे बीच, नील द्वीप पर बनाना बोट राइड, स्कूबा डाइविंग, ग्लास बॉटम बोट राइड, पैरासेलिंग, सी प्लेन राइड, सी वॉकिंग और सबमरीन राइड में एड्रेनालाईन रश का अनुभव करें। हैवलॉक द्वीप , या राधानगर बीच।
- एलीफेंट बीच एक और दिलचस्प गंतव्य है जो अपने शानदार प्राकृतिक दृश्यों और स्नोर्केलिंग और स्कूबा डाइविंग जैसे पानी के खेलों के लिए जाना जाता है।
- दुनिया भर से पक्षी प्रेमी चिड़िया टापू पहुंचते हैं, जो समुद्री ईगल, पन्ना कबूतर, तोते और कई अन्य प्रजातियों के पक्षियों का घर है।
- अपनी यात्रा में मिट्टी के ज्वालामुखी देखने से न चूकें! यह अजीब लगता है, लेकिन यह सच है। ज्वालामुखी डिगलीपुर में स्थित हैं और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करने में कभी असफल नहीं होते हैं।
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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में असंख्य विदेशी अवकाश समुद्र तट हैं जिनका आनंद आप एक बार में कभी नहीं ले सकते! यदि आप कभी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पहुंचते हैं, तो आप तटरेखा की शांति को सुनने, इसकी जीर्ण-शीर्ण संरचनाओं के साथ बीते युग में जाने और इसकी जीवंत संस्कृति और उत्सवों का हिस्सा बनने के लिए फिर से वापस आएंगे।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की संस्कृति और परंपरा का अनुभव करें, जिसमें उष्णकटिबंधीय सुंदरता और शांत तटीय आकर्षण के साथ समृद्ध स्वदेशी विरासत का मिश्रण है। आदिवासी नृत्यों की लयबद्ध धुनों से लेकर स्थानीय व्यंजनों के आकर्षक स्वाद तक, इस मनोरम सांस्कृतिक पच्चीकारी में खुद को डुबो दें। अंडमान और निकोबार द्वीप संस्कृति की विविध विरासत और समृद्ध इतिहास का अन्वेषण करें, परंपराओं का खजाना जो खोजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा है।
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अंडमान और निकोबार के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की संस्कृति क्या है? A1। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की संस्कृति विविध और समृद्ध है, जो स्वदेशी जनजातियों, भारतीय मुख्य भूमि से आए निवासियों और विभिन्न अन्य जातीय समूहों से प्रभावित है। इसमें अद्वितीय परंपराएं, भाषाएं, संगीत, नृत्य, व्यंजन और त्यौहार शामिल हैं, जो द्वीप की बहुसांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
Q2. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की खाद्य संस्कृति क्या है? A2। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की खाद्य संस्कृति स्वदेशी व्यंजनों और दक्षिण भारतीय, बंगाली और बर्मी प्रभावों सहित विभिन्न पाक परंपराओं का एक आनंददायक मिश्रण है। मछली करी, केकड़ा मसाला और झींगा बिरयानी जैसे लोकप्रिय व्यंजनों के साथ समुद्री भोजन उनके व्यंजनों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। नारियल, मसाले और उष्णकटिबंधीय फल प्रमुख रूप से शामिल हैं, जो द्वीप की विविध विरासत को दर्शाते हुए एक अद्वितीय गैस्ट्रोनॉमिक अनुभव प्रदान करते हैं।
Q3. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की परंपराएँ क्या हैं? A3 . अंडमान और निकोबार के द्वीप लगभग प्राचीन संस्कृतियों का मिश्रण हैं, जिनमें जीवंत नृत्य, शिल्प और अनुष्ठान हैं जो स्वाभाविक रूप से आदिवासी लोगों की विरासत और खिलती हुई प्रकृति से जुड़े हुए हैं।
Q4. पर्यटक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की स्थानीय संस्कृति का सर्वोत्तम अनुभव कैसे कर सकते हैं? A4। गाँव के दौरे, आदिवासी त्यौहार, द्वीपों पर संग्रहालय, और बुनाई और मिट्टी के बर्तनों की पारंपरिक कलाओं में व्यस्त रहना - ये सभी स्थानीय संस्कृति में डूबने के अवसर प्रदान करते हैं। साथ ही, स्थानीय गाइड मूल निवासियों के इतिहास और परंपरा की गहराई तक जाने में मदद करते हैं।
Q5. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लोकप्रिय त्योहार कौन से हैं? A5। इन द्वीपों में आयोजित होने वाले त्यौहार हैं द्वीप पर्यटन महोत्सव, सुभाष मेला और मानसून महोत्सव - जो क्षेत्र में सांस्कृतिक मिश्रण का एहसास कराने और द्वीप की विशिष्टता का जश्न मनाने के लिए स्थानीय शिल्प के साथ-साथ उज्ज्वल प्रदर्शन, संगीत और नृत्य से भरपूर हैं। अनुभूति।
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15 अगस्त पर निबंध हिंदी में: Essay on Independence Day in Hindi
15 अगस्त पर निबंध: यह 78वां स्वतंत्रता दिवस है और हम भारतीय स्वतंत्रता के 79वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इस राष्ट्रीय त्योहार को मनाने के लिए आइए कुछ निबंध पढ़ें जिनका उपयोग छात्र अपने भाषण और अन्य प्रेरक उद्धरण बनाने के लिए कर सकते हैं।.
Independence Day Essay in Hindi: 15 अगस्त 2024 हमारा 78वां स्वतंत्रता दिवस है। यह एक राष्ट्रीय त्योहार है जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का जश्न मनाता है। छात्रों और बच्चों को इस बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए कि हमारे लोगों ने भारत को वर्षों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए क्या प्रयास किए हैं। सबसे अच्छा तरीका यह है कि उन्हें कहानियाँ सुनाएँ और भारतीय स्वतंत्रता दिवस और हमारे राष्ट्रीय ध्वज के बारे में उन्होंने जो सीखा है उस पर एक निबंध लिखने के लिए कहें। भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर निबंध लिखने के लिए नीचे दिए गए उदाहरणों का उपयोग करें।
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 10 लाइन
- भारतीय स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है।
- 15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश शासन से आज़ादी प्राप्त की थी।
- यह दिन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करने का दिन है।
- देशभर में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं।
- लाल किले से प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं।
- इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- स्वतंत्रता दिवस हमारे देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है।
- यह दिन हमें हमारे कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
- हम स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और बलिदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
- स्वतंत्रता दिवस हमें देश की प्रगति और विकास के लिए संकल्प लेने की प्रेरणा देता है।
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 100 शब्द में
15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस है। इस दिन, 1947 में, भारत अंग्रेजी शासन से मुक्त हुआ था। आज हम स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जानें दीं। हमें अपने देश से प्यार करना चाहिए और इसकी सेवा करनी चाहिए। हम सभी को मिलकर भारत को एक महान राष्ट्र बनाना है।
भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई के बारे में हम सभी जानते हैं जो सैकड़ों वर्षों तक लड़ी गई और इसमें कई बलिदान हुए। लेकिन कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता; 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली। यह भगत सिंह, राजगुरु, चंद्र शेखर आज़ाद और कई अन्य लोगों द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों का परिणाम था। भारतीय स्वतंत्रता में अहिंसा और सत्याग्रह ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दिन, हमें उन सभी को याद करना चाहिए जिन्होंने हमारे लिए लड़ाई लड़ी और इसे साकार किया ताकि हम सभी खुलकर सांस ले सकें और अपने मौलिक अधिकार प्राप्त कर सकें। एक-दूसरे के प्रति विनम्र रहें और हमारे बड़ों द्वारा किए गए प्रयासों का सम्मान करें। स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ!
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 200 शब्दों में
उपरोक्त 100 शब्दों के निबंध में जोड़ें….
भारत का स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन, 1947 में, भारत ने 200 सालों के अंग्रेजी शासन से अपनी आजादी हासिल की थी।
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 250 शब्द में
उपरोक्त 200 शब्दों के निबंध में जोड़ें….
15 अगस्त, भारत के लिए एक बहुत ही खास दिन है। इस दिन हम अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं। भारत की आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन किए थे।
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध 300 शब्द में
उपरोक्त 250 शब्दों के निबंध में जोड़ें….
भारत का स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी आजादी कितनी कीमती है। हमें अपने देश से प्यार करना चाहिए और इसकी रक्षा करनी चाहिए। हमें अपने देश को एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाना है।
आज के युवाओं को देश के विकास में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हमें शिक्षित बनना चाहिए और अपने देश की सेवा करनी चाहिए। हमें देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
आजादी के बाद, भारत ने कई क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है। लेकिन अभी भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। हमें इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें एकजुट होकर काम करना होगा और अपने देश को एक महान राष्ट्र बनाना होगा।
आप इन निबंधों को अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित कर सकते हैं।
- आप अपने निबंध में स्वतंत्रता सेनानियों के नामों का उल्लेख कर सकते हैं।
- आप स्वतंत्रता संग्राम के कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन कर सकते हैं।
- आप भारत की आजादी के बाद की उपलब्धियों के बारे में लिख सकते हैं।
- आप भारत के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में लिख सकते हैं।
- आप देश के भविष्य के लिए अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं।
स्वतंत्रता सेनानियों के नारे
- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है। - राम प्रसाद बिस्मिल
- दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आज़ाद ही रहेंगे, आज़ाद ही रहेंगे। - चंद्रशेखर आजाद
- तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। - सुभाष चंद्र बोस
- आज़ादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे। - महात्मा गांधी
- देश की सेवा ही धर्म है। - चंद्रशेखर आजाद
- दिल्ली चलो। - सुभाष चंद्र बोस
- हिन्दुस्तान आजाद होगा। - सुभाष चंद्र बोस
- अंग्रेजों भारत छोड़ो। - महात्मा गांधी
- इंकलाब जिंदाबाद: (क्रांति जिंदाबाद) - भगत सिंह
- "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।" -महात्मा गांधी
- "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। -सुभाष चंद्र बोस
- "सत्यमेव जयते" (सच्चाई की ही जीत होती है) - महात्मा गांधी
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भारतीय संस्कृति पर संस्कृत निबंध- Essay on Bhartiya Sanskriti in Sanskrit
In this article, we are providing information about Bhartiya Sanskriti | Indian Culture in Sanskrit- भारतीय संस्कृति पर संस्कृत निबंध, Essay on Bhartiya Sanskriti in Sanskrit Language.
भारतीय संस्कृति पर संस्कृत निबंध- Essay on Bhartiya Sanskriti in Sanskrit
कस्यापि राष्ट्रस्य जनानां यः साधारणतया परिष्कृतो विशुद्ध उत्तम आचारो व्यवहारश्च भवति स एव तस्य राष्ट्रस्य संस्कृतिरुच्यते । भारतीयसंस्कृतेरिदं वैशिष्ट्य यत् प्राचीनकालादेव या संस्कृतिरत्र पल्लविता सँवाधुनापि अक्षुण्णाऽत्र दृश्यते । अस्ति अस्यां संस्कृतौ किञ्चिदेवंविधं यद् उत्कृष्टतमं यच्च न कदापि क्षयि । अस्याः संस्कृतेः उदात्तत्वदर्शनं न केवलं संस्कृसाहित्ये एव भवति, अपितु ग्रामे ग्रामे नगरे नगरे लोकजीवने च भवति । अहिंसासत्यास्तेयादिधर्मास्तादृशा एव । समन्वयो हि भारतीयसंस्कृतेर्मूलतत्त्वम् । अस्मादेव कारणादत्र बढ्यो वैदेशिक्यः संस्कृतयः समायाताः परन्तु ताः सर्वा एव भारतस्य संस्कृती विलीनाः । भारतीयधार्मिककृत्यानां भारतीयपूजाविधीनां च तादृशमस्ति स्वरूपं यत्तत्र प्राचीनावाचीनयोः पौरस्त्यपाश्चात्ययोश्च ससुखं सम्मेलनं सम्भाव्यते । भारतस्य विविधेषु प्रदेशेषु विविधा जनाः विविधवेषधारिणो विविधभाषाभाषिणोऽपि विविधदेवान् पूजयन्तोऽपि हृदये समाना एव । सर्व एव एकमेव परमेश्वरं मन्यन्ते, सर्वेषु तीर्थेषु सर्वेषां समानादरो दृश्यते गङ्गा सर्वेषामेव पूज्यतमा, गां च सर्व एव मातरं मन्यन्ते । सर्वत्र विवाहादिसंस्कारेषु त एवं वैदिकमन्त्री उच्चार्यन्ते । अमर्तमनादिमनन्तं परमम् आत्मानं सर्व एव जना विश्वस्य आधारभूतं मन्यन्ते । मद्यधूतादिव्यसनानि सकले भारते निन्द्यन्ते । कर्मफलानुसारेण पुनर्जन्मनि सर्वत्रैव विश्वासो दृश्यते ।।
इयं समन्वयभावनैव सर्वत्र साहित्येऽपि दृग्गोचरीभवति । वेदेषु गीतायां च वयं ज्ञानकर्मोपासनासमुच्चयं पश्यामः । अस्या भावनाया आधारे एव अस्माकं महषिभिराचार्यैश्च पुरा समाजः चतुषु वर्णेषु कर्मानुसारं विभक्तः यतो हि समाजोत्थानाय सर्वेषां वर्णानां समन्वितः प्रयासोऽपेक्ष्यते । तथैव च पूर्ण जीवनसाफल्याय मनुष्यजीवनं चतुषु ब्रह्मचर्यगृहस्थवानप्रस्थसंन्यासाख्येषु आश्रमेषु विभक्तम् । एते चत्वारोऽपि आश्रमाः समन्वितरूपेणैव जीवनस्य पूर्णतां सम्पादयन्ति, न त्वेकैकशः । अयं समन्वय एवं भारतीयसंस्कृतेः प्राणाः अनेनैव च सम्मिल्यास्माभिः स्वातन्त्र्यमधिगतम् । सर्वत्रैव भारते धामकोत्सवेषु कृष्या सह सम्बन्धोऽन्यद् वैशिष्ट्यमस्याः संस्कृतेः । कृषिप्रधाना हीयं संस्कृतिः ग्रामप्रधाना च । अत एव वयं सरलजीवनम् अनुसरन्तोऽपि उत्कृष्टानादर्शान् रामकृष्णबुद्धादिमहापुरुषाणां धारयामः ।।
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