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जीवनी क्या होती हैं? इसकी परिभाषा और गुण. What is Biography(Jivani) in Hindi

What is Biography jivani in Hindi

What is Biography(Jivani), it’s Definition and types in hindi | जानिए जीवनी क्या होती हैं, क्या होते हैं इसके गुण और इसके उदाहरण

जीवनी साहित्य की महत्वपूर्ण विधा है. किसी व्यक्ति के जीवन का चरित्र चित्रण करना अर्थात किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन वृतांत को जीवनी कहते है. जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है. जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है. जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी होती है. जीवनी में लेखक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन और यथेष्ट जीवन की जानकारी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है. जीवनी के अनेक भेद होते जैसे आत्मीय जीवनी, लोकप्रिय जीवनी, ऐतिहासिक जीवनी, मनोवैज्ञानिक जीवनी, व्यक्तिगत जीवनी, कलात्मक जीवनी इत्यादि. आत्मकथा में भी व्यक्ति जीवन वृतांत लिखता हैं. परन्तु वह स्वयं द्वारा लिखा जाता है जबकि जीवनी में लेखक किसी दूसरे के जीवन के जीवन वृत को लिखता है. जीवनी में लेखन की शैली वर्णात्मक होती है.

जीवनी की परिभाषा (Definition of Jivani)

डॉ रामप्रकाश (डी.यु प्रोफेसर) के अनुसार आधुनिक काल में “पद्य” के साथ-साथ “गद्य” की बहुलता और उसमे विविध विधाओं की रचना पद्धति की प्रचुरता होने के कारण पुराने ढंग के चरित-काव्य के स्थान पर भी नए ढंग के गद्यबध्द चरित्र अथवा जीवनवृत लिखने की परम्परा चली जिसका संक्षिप्त एवं सर्वेसम्मत परिभाषिक नाम “जीवनी” है.

जीवनी में अतीत का चित्रण और सत्य घटनाओ का क्रमबद्ध विवरण मिलता है. जीवनी में लेखक व्यक्ति के जीवन संघर्षो के साथ-साथ उसके आन्तरिक स्वभाव और व्यक्तित्व का चित्रण करता है.

प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामनाथ सुमन ने लिखा है कि “जीवन की घटनाओं के विवरण का नाम जीवनी है. लेखक यहाँ नायक के जीवन में छिपे उसके विकास को, उसके व्यक्तित्व के रहस्य को, उसकी मुख्य जीवन धरा को खोलकर पाठको के सामने रख देता है, वहाँ जीवनी लेखनकला सार्थक होती है. ऊपर से मनुष्य के दिखाई पड़ने वाले रूप को दिखाकर ही जीवनी लेखन कला संतुष्ट नहीं होती, वह उस आवरण को भेदकर अंत: स्वरूप और आंतरिक सत्य को प्रत्यक्ष करती है

बाबू गुलाबराय ने जीवनी के उपुक्त स्वरुप को ध्यान में रखते हुए उसकी परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है “जीवनी घटनाओ का अंकन नहीं वरन चित्रण है. वह साहित्य की विधा है और उसमे साहित्य और काव्य के सभी गुण है. वह एक मनुष्य के अंतर और बाहर स्वरूप का कलात्मक निरूपण है.

जीवनी के अपेक्षित गुण (Jivani Ke Gun)

जीवनी गद्य साहित्य की ऐसी विधा है जिसमे ‘कला’ , आलोचना और विवेचन की मिली जुली प्रकिया कार्य करती है, अतः उसके तत्वों का निरूपण न तो उपन्यास, कहानी, नाटक आदि के तत्वों की भांति हो सकता है और न ही निबंध या आलोचना की भांति उसकी कसौटियां निर्धारित की जा सकती है. इसका अपना एक अद्भुत प्रारूप है जिनमे कथा, चरित्र, गुण, विवेचन सब कुछ रहता है. अतः “जीवनी” लेखक को कुछ अनिवार्यता का ध्यान रखना पड़ता था, जिनके बिना जीवनी एक पूर्ण और सफल जीवनी नहीं बन सकती.

आज वर्तमान समय में जीवनी साहित्य की लोकप्रिय विधा है. इसके लेखन वैज्ञानिक दृष्टी और प्रमाणिक तथ्य होना चाहिए. लेखन की कला में जिनती कलात्मकता होगी वह जीवनी उतनी ही प्रमाणिक समझी जाएगी. हिंदी साहित्य में इस विधा जिसका भविष्य उज्जवल है.

जीवनी के उदहारण (Jivani Examples)

  • बलबीर सिंह दोसांझ का जीवन परिचय
  • कल्पना चावला की जीवनी
  • सम्राट अशोक की जीवनी
  • भगवती प्रसाद मिश्र का जीवन परिचय
  • पोरस का जीवन परिचय
  • डॉ. मोहन अवस्थी का जीवन परिचय
  • हसीन जहां का जीवन परिचय
  • शावना पांड्या का जीवन परिचय
  • विशाल करवाल का जीवन परिचय
  • रॉबर्ट डॉनी जुनियर का जीवन परिचय
  • महेंद्र सूरी का जीवन परिचय
  • जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
  • विजय शंकर की जीवनी
  • मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन परिचय
  • करुण नायर का जीवन परिचय
  • मयंक मारकंडे का जीवन परिचय
  • राहुल तेवातिया का जीवन परिचय
  • तारा सुतारिया का जीवन परिचय
  • नीतिश राणा की जीवनी
  • अंकित शर्मा का जीवन परिचय
  • नेहा पेंडसे का जीवन परिचय
  • बनिता संधू का जीवन परिचय
  • कुमार विश्वास की जीवनी
  • अजिंक्य रहाणे की जीवनी
  • इशान किशन की जीवनी
  • किकु शारदा की जीवनी
  • सुनील ग्रोवर का जीवन परिचय
  • रिषभ पंत की जीवनी
  • शार्दूल ठाकुर की जीवनी
  • अंबटि रायुडु की जीवनी
  • इमरान ताहिर की जीवनी
  • स्मृति मंधाना का जीवन परिचय
  • हार्दिक पंड्या का जीवन परिचय
  • रोहित शर्मा की पूरी जीवनी
  • फातिमा सना शेख का जीवन परिचय
  • युज्वेंद्र चहल का जीवन परिचय

5 thoughts on “जीवनी क्या होती हैं? इसकी परिभाषा और गुण. What is Biography(Jivani) in Hindi”

जीवनी कैसे लिखी जाए इसकी अच्छी जानकारी प्राप्त हुई।

Very nice article,thanks

Very nice article dilse deshi team thanks.

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20 Best Biography & Autobiography Books in Hindi (You Must Read)

List Of Great Biography & Autobiography Books in Hindi : जीवन मे कुछ भी नया सीखने के दो तरीके है ? एक गलतियाँ करो और दूसरा दूसरों की गलतियों से सीखो। वैसे तो बहोत सारी सेल्फ मोटिवेशनल किताबे है, जिनको पढ़कर आप बहोत कुछ सीख सकते हो।  लेकिन अगर आप कुछ ज्यादा बहेतर सीखना चाहते है तो आपको महान लोगो की बायोग्राफ़ि पर जरूर पढ़नी चाहिए। 

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नीचे दी गयी लिस्ट मे कुछ महान लोगो की आत्मकथा और जीवनीया है, जिनको पढ़के आपको बहोत कुछ सीखने को मिलेगा। 

Top Biography & Autobiography Books List - महान लोगो की जीवनी पर किताबें

1. मैं स्टीव, मेरा जीवन मेरी जुबानी ( लेखक : स्टीव जॉब्स ).

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मैं स्टीव, मेरा जीवन मेरी जुबानी किताब दुनिया के महान बिजनेस टाईकून और आविष्कारक स्टीव जॉब्स की आत्म कथा है। स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फ़रवरी 1955 को सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमरीका में और मृत्यु 2003 में हुई थी।

Steve Jobs का जीवन जन्म से हि संघर्ष पूर्ण था। कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनी ऐप्पल के भूतपूर्व सीईओ और जाने-माने अमेरिकी उद्योगपति स्टीव जॉब्स ने संघर्ष करके जीवन में यह मुकाम हासिल किया।

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2. सत्य के प्रयोग ( लेखक : महात्मा गांधी )

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सत्य के प्रयोग किताब दुनिया के महान प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता महात्मा गांधी की आत्म कथा है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के शहर पोरबंदर में और मृत्यु 30 जनवरी 1948 में हुई थी।

यह आत्मकथा उन्होने गुजराती भाषा में लिखी थी। हर 27 नवम्बर को 'सत्य का प्रयोग' के आधारित प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं।  

यहां कुछ उक्तियां है जो गांधी जी ने अपनी आत्म कथा - सत्य के प्रयोग -- में कही हैं। ये उनके जीवन दर्शन को दर्शाती है।

पिछले तीस सालों से जिस चीज को पाने के लिये लालायित हूं वो है स्व की पहचान, भगवान से साक्षात्कार, और मोक्ष। इस लक्ष्य के पाने के लिये ही मैं जीवन व्यतीत करता हूं। मैं जो कुछ भी बोलता और लिखता हूं या फिर राजनीति में जो कुछ भी करता हू वो सब इन लक्ष्यो की प्राप्ति के लिये ही है।

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3. भगत सिंह जेल नोट बुक  ( लेखक : हरीश जैन )

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भगत सिंह की ‘जेल नोटबुक’ सुप्रसिद्ध विचारकों और दार्शनिकों के विचारों को लेकर उनकी पड़ताल का एक नया मार्ग खोलती है।

एक जिज्ञासु और पढ़ने की भूख रखनेवाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध, भगत सिंह ने जेल में सजा काटने के दौरान अपनी पसंद के जाने-माने लेखकों की चुनिंदा पुस्तकों को बड़ी संख्या में जुटा लिया था। 

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4. योगी कथामृत  ( लेखक : परमहंस योगानंद )

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परमहंस योगानंद पश्चिमी देशों के साथ-साथ भारत में भी योग ध्यान के विज्ञान और दर्शन को पढ़ाने के लिए एक प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे हैं।

योगानंद की यह प्रशंसित आत्मकथा 1999 में सामने आई और पूरे पश्चिम में एक त्वरित सफलता थी। 

सदी की 100 सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक के रूप में चयनित, यह आत्मकथा पाठकों को उनके जीवन की एक प्रेरणादायक यात्रा पर ले जाती है - उनके मासूम बच्चे उल्लेखनीय अनुभवों से भरे,

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5. अग्नि की उड़ान ( लेखक : ए. पी. जे. अब्दुल कलाम )

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इसी पुस्तक से प्रस्तुत पुस्तक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन की ही कहानी नहीं है बल्कि यह डॉ. कलाम के स्वयं की ऊपर उठने और उनके व्यक्‍त‌िगत एवं पेशेवर संघर्षों की कहानी के साथ ' अग्नि ', ' पृथ्वी ', ' आकाश ', ' त्रिशूल ' और ' नाग ' मिसाइलों के विकास की भी कहानी है। 

जिसने अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर भारत को मिसाइल-संपन्न देश के रूप में जगह दिलाई । 

यह टेकोलॉजी एवं रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की आजाद भारत की भी कहानी है ।.

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6. मेरी कहानी: अनब्रेकेबल ( लेखक : मैरी कॉम )

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यह कहानी है भारतीय मुक्केबाज़ी के अखाड़े की साम्राज्ञी, पाँच विश्व प्रतियोगिताओं और एक ओलंपिक पदक की विजेता - एम.सी. मैरी कॉम की।

पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य में भूमिहीन किसान माता-पिता के यहाँ जन्मीं, मैरी कॉम की यह कहानी अथक संघर्ष और जोश को दर्शाती है तथा मुक्केबाज़ी की इस पुरुष-प्रधान दुनिया में असंभव रुकावटों का सामना करने - और जीतने की गाथा बताती है।

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7. प्लेइंग इट माई वे ( लेखक : सचिन तेंडुलकर )

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यह मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की बस्टेलिंग आत्मकथा - प्लेइंग इट माय वे का हिंदी अनुवाद है।

जब वह एक छोटा लड़का था, तो सचिन तेंदुलकर के भाई ने उसे एक ऐसे खेल से परिचित करवाया, जो उसके जीवन और लाखों भारतीय लोगों के जीवन को बदलने के लिए था।

यह सचिन तेंदुलकर की कहानी है, जो अपने ही शब्दों में सभी समय के सबसे प्रसिद्ध क्रिकेटर हैं।

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8. संघर्ष से मिलि सफ़लता ( लेखक : सानिया मिर्जा )

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यह पुस्तक एक प्रतिष्ठित भारतीय खिलाड़ी की कहानी है, जिसने शिखर पर पहुँचने के लिए बेहद कठिन परिस्थितियों पर विजय पाई.

सानिया साफ़गोई से बताती हैं कि सफलता की राह में उन्हें कैसी-कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, कई चोट और ऑपरेशन के कारण कितनी शारीरिक और भावनात्मक क्षति हुई, 

उन्होंने भारत के लिए आक्रमक अंदाज़ में खेला है और इस बात की परवाह नहीं करी कि इसकी वज़ह से उनकी रैंकिंग पर बुरा असर पद सकता है - वे प्रेरणा का स्त्रोत हैं और टेनिस कोर्ट से विदा होने के बाद भी हमेशा प्रेरणादायी बनी रहेंगी.

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9. बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा ( लेखक : बेंजामिन फ्रैंकलिन )

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बेंजामिन फ्रैंकलिन की जीवनी ‘बेंजामिन संयुक्त राज्य अमेरिका के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो कभी संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं थे।’ उपरोक्त वाक्य बेंजामिन फ्रैंकलिन के बारे में कहा गया है।

उनके कार्य का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देशभर में उनकी सैकड़ों प्रतिमाएँ लगी हुई है।

ऐसे बहुत आयामी व्यक्तित्व का जीवन चरित्र इस पुस्तक में पढ़ें और उनके कार्यों से प्रेरणा लें।

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10. द डायरी ऑफ यंग गर्ल ( लेखक : ऐनी फ्रैंक )

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यह उस युवती का मर्मस्पर्शी दस्तावेज़ है जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक यहूदी होने के नाते नाज़ी अत्याचारों की शिकार बनी. ऐन फ्रैंक का परिवार 1942 से 1944 के दरमियान एक ईमारत में स्तिथ किताबों की अलमारी के पीछे बने कुछ गुप्त कमरों में छिप कर रहा.

युद्ध की भयावहता को दर्शाती यह पुस्तक मानवीय भावनाओं का एक आश्चर्यजनक व् दिलचस्प वृत्तांत है, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बचे हुए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों में से एक मन जाता है. मूलतः डच भाषा में लिखी गई इस पुस्तक का 60 से अधिक भाषाओँ में अनुवाद किया जा चूका है.

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11. मेरा संघर्ष ( लेखक : एडॉल्फ हिटलर )

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माइन काम्फ ("मेरा संघर्ष") एडोल्फ हिटलर की आत्मकथा है

अडोल्फ हिटलर को विश्व मानवता का शत्रु समझने वाले लोगों के लिए ‘माइन काम्फ’ हिटलर की आत्मकथा ‘मेरा संघर्ष’ एक ऐसी ख्याति प्राप्त ऐतिहासिक ग्रन्थ है, जिसके अध्ययन से न केवल जर्मनी की पीड़ा, बल्कि हिटलर की पीड़ित मानसिकता में उसकी राष्ट्रवादी मनोवृत्ती का भी अनुभव होगा।

साथ ही राजनीतिज्ञों के चरित्र, राजनीति के स्वरूप, भाग्य-प्रकृति, शिक्षा सदनों का महत्त्व, मानवीय मूल्यों तथा राष्ट्रवादी भावना की महानता के आधार की भी प्रेरणा मिलेगी।

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12.  परोपकारी बिज़नसमेन अजीम प्रेमजी ( लेखक : एन चोखन  )

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24 जुलाई, 1945 को जनमे हाशिम प्रेमजी अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जब विद्युत् इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तभी पिता के अचानक निधन के कारण उन्हें स्वदेश लौटकर पारिवारिक व्यवसाय सँभालना पड़ा।

उनके व्यापारिक कौशल और योग्यता के बल पर विप्रो ने अनेक क्षेत्रों में कार्य विस्तार किया।

सरल-सहज अजीम प्रेमजी ने विलक्षण उपलब्धियाँ प्राप्‍त की हैं। 

ऐसे समाजसेवी, परोपकारी सफल बिजनेसमैन अजीम प्रेमजी की प्रेरक जीवनगाथा।

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13. स्वामी विवेकानंद एक जीवनी ( लेखक : स्वामी निखिलानंद )

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स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे।

उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्‍तित्व, उनकी वाक‍्‍शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। 

अद‍्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।.

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14. मेरे बिजनेस मंत्र ( लेखक : एन.आर. नारायण मूर्ति )

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संसार में यदाकदा ऐसे बुद्धिमान व धैर्यवान् व्यक्ति का उदय होता है, जिसे नजरअंदाज करना कठिन ही नहीं, नामुमकिन होता है।

श्री एन.आर. नारायण मूर्ति ऐसे ही विनम्र व्यक्ति हैं। वे एक उद्यमी, उद्यमी-नेता, समाजसेवी व परिवार-प्रिय व्यक्ति हैं।

इस पुस्तक से आपको ऐसा दृष्टिकोण, प्रोत्साहन व महत्त्वपूर्ण प्रेरणा प्राप्त होगी, जिसके बल पर आप सफलता के पथ पर आगे बढ़ते जाएँगे।

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15. मैं मलाला हूँ ( लेखक : मलाला युसुफ़ज़ई )

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लड़कियों की शिक्षा की वकालत करनेवाली, तालिबानी आतंकियों के सामने न झुकनेवाली मलाला का जन्म 12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात जिले में हुआ।

कम उम्र में ही अन्याय और आतंकवाद के विरुद्ध आवाज बुलंद करनेवाली मलाला यूसुफजई की प्रेरक जीवनगाथा, जो हर शांतिप्रिय और संवेदनशील पाठक को पसंद आएगी और उसे प्रेरित करेगी।.

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16. नरेन्द्र मोदी: एक रजनीतिक यात्रा ( लेखक : एंडी मारिनो )

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यह नरेन्द्र की राजनीतिक जीवनी का हिंदी अनुवाद है।

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के लिए एक शक्तिशाली जीत हासिल की, अनगिनत बैठकों और रैलियों में बात की और वैश्विक प्रोफ़ाइल हासिल की।

उस शख्स का एक अनोखा चित्र जिसे वह याद रखना चाहता है जिसने भारत को बेहतर के लिए बदल दिया।

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17. आइजैक न्यूटन ( लेखक : डॉ. श्रीवास्तव प्रीति )

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आइजक न्यूटन सर आइजक न्यूटन अपने समय के बड़े एवं प्रतिष्‍ठित वैज्ञानिकों में थे। 

उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में कहा जाता था— प्रकृति अँधेरे में थी, प्रकृति के नियम अँधेरे में थे, तब न्यूटन पैदा हुए और चारों ओर उजाला हो गया।

विश्‍वास है, इसे पढ़कर पाठकगण सर आइजक न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक तथ्यों एवं संदर्भों को जान सकेंगे।

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18. थॉमस अल्वा एडीसन ( लेखक : विनोद कुमार मिश्रा )

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बाल्यकाल में ही बधिरता जैसे अभिशाप को एकाग्रता जैसे अद्भुत गुण में परिवर्तित करनेवाले थॉमस अल्वा एडिसन ने जीवन के अंतिम प्रहर तक थकना नहीं सीखा। 

औपचारिक शिक्षा से वंचित होने पर भी साहित्य से लेकर विज्ञान तक का गहन अध्ययन करनेवाले इस वैज्ञानिक ने अपने कार्यकाल में औसतन हर पंद्रह दिन में एक पेटेंट हासिल किया; उनके जरिए दुनिया आधुनिक काल में प्रवेश कर गई और उपभोक्तावाद का प्रादुर्भाव हुआ।

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19. बिकमिंग : मेरा जीवन सफ़र ( लेखक : मिशेल ओबामा )

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एक कामकाजी दो बच्चों की माँ और अश्वेत महिला कैसे अपनी नौकरी और जीवन के साथ तालमेल बिठाती है जब उसका पति दुनिया के सबसे शक्तिशाली पद के लिए चुनावी दौड़ में शामिल होता है?

एक हार्वर्ड शिक्षित महिला की आत्मकथा जो अपने पति और बच्चों के ख़ातिर बार-बार अपना करियर बदलती है—अपने आप में नारीवाद, नस्लवाद और समावेशी विकास पर एक विमर्श है।

किताब में बराक ओबामा और मिशेल के खूबसूरत प्रेमकहानी का भी वर्णन है। ईमानदारी और साहस के साथ कही गई इस कहानी में मिशेल एक चुनौती भी पेश करती है।

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20. बिजनेस कोहिनूर: रतन टाटा ( लेखक : बी सी पांडे )

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बिजनेस कोहिनूर रतन टाटा—बी.सी. पाण्डेय भारतीय उद्योग जगत् के सबसे चमकते सितारे, टाटा ग्रुप जैसे विशाल औद्योगिक साम्राज्य के सर्वेसर्वा ‘रतन टाटा’ का विश्व उद्योग-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान है।

वर्तमान परिवेश में टाटा ग्रुप को न केवल स्वदेश, बल्कि विदेशों में भी अहम स्थान दिलाने में उनकी भूमिका एवं नेतृत्व का सराहनीय योगदान रहा है। 

‘बिजनेस कोहिनूर रतन टाटा’ व्यवसायी, व्यापारी, उद्यमी, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक ही नहीं, सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए प्रेरणादायी एवं मार्गदर्शक सिद्ध होगी।

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अब आपकी बारी : आपने किस महान इंसान की जीवनी पढ़ी है और उससे आपने क्या सीखा ये नीचे कमेंट करके बताए। अगर ये पोस्ट आपको हेल्पफूल लगे तो इसे अपने दोस्तो के शेअर करे।

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  • This biography offers a few glimpses of his life before he became famous .
  • Her biography revealed that she was not as rich as everyone thought .
  • The biography was a bit of a rush job .
  • The biography is an attempt to uncover the inner man.
  • The biography is woven from the many accounts which exist of things she did.

(Translation of biography from the Cambridge English–Hindi Dictionary © Cambridge University Press)

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By: savita mittal

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एक पुरानी कहावत है, यह इस प्रकार है :

“अच्छा निर्णय अनुभव से आता है, और अनुभव बुरे निर्णय से आता है।”

इसलिए चाणक्य का एक महान विचार सार्थक है :

“दूसरों की गलतियों से सीखें | आपका जीवन इतना लम्बा नहीं है कि इन सब को आप स्वयं करके सीखें.” |

महान और संघर्षशील लोगों की आत्म जीवनी पढ़ने से हमें प्रेरणा मिलती है और नए-नए क्रान्तिकारी विचारो का संचार हमारे जीवन में होता है | जीवनी या आत्मकथाएँ अक्सर इतिहास की किताबों से परे जाकर दुनिया को आकार देने वाली विभिन्न जिंदगियों और घटनाओं को देखती हैं। क्रांतिकारी, राजनेताओं, महान हस्तियों से लेकर आधुनिक आइकन तक, ये Biographies व्यक्तिगत कहानियों को बताती है, उपलब्धियों और असफलताओं को उजागर करती हैं, जो पाठकों को प्रभावित कर सकती हैं और अनंत जीवन प्रश्नों को हल कर सकती हैं। Hindi Swaraj Top Biography Blogs of famous personalities 2020 in Hindi

जीवनी किसी अन्य व्यक्ति के जीवन की कहानी का एक विस्तृत वृतांत है। इस विषय में उनके जीवन के बारे में बुनियादी व महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है – जैसे उनका जन्म स्थान, शिक्षा, उनके संघर्ष, सोच, उनका दर्शन एवं रुचियां। एक जीवनी उनके परिवार के सदस्यों के साथ-साथ, उनके बचपन में घटी प्रमुख घटनाओं और कैसे उनकी परवरिश प्रभावित हुई आदि घटनाओं को बयान करती है। एक जीवनी एक वास्तविक व्यक्ति की विभिन्न उपलब्धियों और जीवन की घटनाओं का विवरण देती है, लेकिन यह तथ्यों और आंकड़ों से अधिक है – यह जीवन की शुरुआत से लेकर अंत तक बताई गई महान कहानियों से जुड़ा होता है ।

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  • हमें मूल्यवान जीवन का पाठ पढ़ाती हैं |
  • हमें एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के करीब लाती हैं |
  • आत्म-खोज को बढ़ावा देती हैं |
  • हमें असफलता का सामना करने के लिए प्रेरित करती है |
  • सामान्य संस्कृति के हमारे ज्ञान को व्यापक बनाती हैं |

दुनियाभर की महान शख्सियतों के अच्छे – बुरे अनुभवों से भरे जीवनी को पढ़ना रोचक भी है और लाभप्रद भी। हमे जानने को मिलता है कि उन्होंने अपनी समस्याओं का सामना कैसे किया, वे अपने आप पर कैसे विश्वास करते थे, कैसे वे अपनी प्रतिभा का दोहन करने में सक्षम थे, और कैसे वे अपने जीवन को उन्मुख करते थे, यह ज्ञान का एक अनमोल स्रोत ही है, जो हमें अपने स्वयं के जीवन को निर्देशित करने में मदद करता है और एक आदर्श जीवन दर्शन देता है | Hindi Swaraj Best and popular Hindi Biography Blogs 2020

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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Definitions and meaning of biography in english, biography noun.

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A biography , or simply bio , is a detailed description of a person's life. It involves more than just basic facts like education, work, relationships, and death; it portrays a person's experience of these life events. Unlike a profile or curriculum vitae (résumé), a biography presents a subject's life story, highlighting various aspects of their life, including intimate details of experience, and may include an analysis of the subject's personality.

जीवनचरित , किसी व्यक्ति के जीवन वृत्तांतों को सचेत और कलात्मक ढंग के बारे लिखे उपन्यास अथवा लेख को कहा जा सकता है। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और जीवनी-लेखक टामस कारलाइल ने अत्यन्त सीधी सादी और संक्षिप्त परिभाषा में इसे "एक व्यक्ति का जीवन" कहा है। यद्यपि इतिहास कुछ हद तक, कुछ लोगों की राय में, महापुरुषों का जीवनवृत्त है तथापि जीवनचरित उससे एक अर्थ में भिन्न हो जाता है। जीवनचरित में किसी एक व्यक्ति के यथार्थ जीवन के इतिहास का आलेखन होता है, अनेक व्यक्तियों के जीवन का नहीं। फिर भी जीवनचरित का लेखक इतिहासकार और कलाकार के कर्त्तव्य के कुछ समीप आए बिना नहीं रह सकता। जीवनचरितकार एक ओर तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं की यथार्थता इतिहासकार की भाँति स्थापित करता है; दूसरी ओर वह साहित्यकार की प्रतिभा और रागात्मकता का तथ्यनिरूपण में उपयोग करता है। उसकी यह स्थिति संभवत: उसे उपन्यासकार के निकट भी ला देती है।

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संत रविदास की जीवनी – Biography of Sant Ravidas in Hindi

संत रविदास कौन थे.

रविदास भारत में 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। वो निर्गुण संप्रदाय अर्थात् संत परंपरा में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और प्रसिद्ध व्यक्ति थे तथा उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व देते थे। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले, अनुयायी, सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिये अपने महान कविता लेखनों के जरिये संत रविदास ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिये।

वो लोगों की नजर में उनकी सामाजिक और आध्यात्मिक जरुरतों को पूरा करने वाले मसीहा के रुप में थे। आध्यात्मिक रुप से समृद्ध रविदास को लोगों द्वारा पूजा जाता था। हर दिन और रात, रविदास के जन्म दिवस के अवसर पर तथा किसी धार्मिक कार्यक्रम के उत्सव पर लोग उनके महान गीतों आदि को सुनते या पढ़ते है। उन्हें पूरे विश्व में प्यार और सम्मान दिया जाता है हालाँकि उन्हें सबसे अधिक सम्मान उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्रा में अपने भक्ति आंदोलन और धार्मिक गीतों के लिये मिलता था।

संत रविदास जयंती

पूरे भारत में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने के पूर्ण चन्द्रमा दिन पर माघ पूर्णिमा पर हर साल संत रविदास की जयंती या जन्म दिवस को मनाया जाता है। जबकि; वाराणसी में लोग इसे किसी उत्सव या त्योहार की तरह मनाते है।

2020 (643 वां) – 9 फरवरी

इस खास दिन पर आरती कार्यक्रम के दौरान मंत्रों के रागों के साथ लोगों द्वारा एक नगर कीर्तन जुलूस निकालने की प्रथा है जिसमें गीत-संगीत, गाना और दोहा आदि सड़कों पर बने मंदिरों में गाया जाता है। रविदास के अनुयायी और भक्त उनके जन्म दिवस पर गंगा- स्नान करने भी जाते है तथा घर या मंदिर में बनी छवि की पूजा-अर्चना करते है। इस पर्व को प्रतीक बनाने के लिये वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर के श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर के बेहद प्रसिद्ध स्थान पर हर साल वाराणसी में लोगों के द्वारा इसे बेहद भव्य तरीके से मनाया जाता है। संत रविदास के भक्त और दूसरे अन्य लोग पूरे विश्व से इस उत्सव में सक्रिय रुप से भाग लेने के लिये वाराणसी आते है।

संत रविदास से संबंधित तथ्य

जन्म: 1377 एडी में (अर्थात् विक्रम संवत-माघ सुदी 15, 1433, हालाँकि कुछ लोगों का मानना है कि ये 1440 एडी था) सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी, यूपी।

पिता: श्री संतोक दास जी

माता: श्रीमती कालसा देवी जी

दादा: श्री कालूराम जी

दादी: श्रीमती लखपती जी

पत्नी: श्रीमती लोनाजी

पुत्र: विजय दास जी

मृत्यु: वाराणसी में 1540 एडी में।

रविदास की जीवनी

आरंभिक जीवन

संत रविदास का जन्म भारत के यूपी के वाराणसी शहर में माता कालसा देवी और बाबा संतोख दास जी के घर 15 वीं शताब्दी में हुआ था। हालाँकि, उनके जन्म की तारीख को लेकर विवाद भी है क्योंकि कुछ का मानना है कि ये 1376, 1377 और कुछ का कहना है कि ये 1399 सीइ में हुआ था। कुछ अध्येता के आँकड़ों के अनुसार ऐसा अनुमान लगाया गया था कि रविदास का पूरा जीवन काल 15वीं से 16वीं शताब्दी सीइ में 1450 से 1520 के बीच तक रहा।

रविदास के पिता मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे और खुद जूतों का व्यापार और उसकी मरम्मत का कार्य करते थे। अपने बचपन से ही रविदास बेहद बहादुर और ईश्वर के बहुत बड़े भक्त थे लेकिन बाद में उन्हें उच्च जाति के द्वारा उत्पन्न भेदभाव की वजह से बहुत संघर्ष करना पड़ा जिसका उन्होंने सामना किया और अपने लेखन के द्वारा रविदास ने लोगों को जीवन के इस तथ्य से अवगत करवाया। उन्होंने हमेशा लोगों को सिखाया कि अपने पड़ोसियों को बिना भेद-भेदभाव के प्यार करो।

पूरी दुनिया में भाईचारा और शांति की स्थापना के साथ ही उनके अनुयायीयों को दी गयी महान शिक्षा को याद करने के लिये भी संत रविदास का जन्म दिवस का मनाया जाता है। अपने अध्यापन के आरंभिक दिनों में काशी में रहने वाले रुढ़ीवादी ब्राह्मणों के द्वारा उनकी प्रसिद्धि को हमेशा रोका जाता था क्योंकि संत रविदास अस्पृश्यता के भी गुरु थे। सामाजिक व्यवस्था को खराब करने के लिये राजा के सामने लोगों द्वारा उनकी शिकायत की गयी थी। रविदास को भगवान के बारे में बात करने से, साथ ही उनका अनुसरण करने वाले लोगों को अध्यापन और सलाह देने के लिये भी प्रतिबंधित किया गया था।

रविदास की प्रारंभिक शिक्षा

बचपन में संत रविदास अपने गुरु पंडित शारदा नंद के पाठशाला गये जिनको बाद में कुछ उच्च जाति के लोगों द्वारा रोका किया गया था वहाँ दाखिला लेने से। हालाँकि पंडित शारदा ने यह महसूस किया कि रविदास कोई सामान्य बालक न होकर एक ईश्वर के द्वारा भेजी गयी संतान है अत: पंडित शारदानंद ने रविदास को अपनी पाठशाला में दाखिला दिया और उनकी शिक्षा की शुरुआत हुयी। वो बहुत ही तेज और होनहार थे और अपने गुरु के सिखाने से ज्यादा प्राप्त करते थे। पंडित शारदा नंद उनसे और उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे उनका विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में जाने जायेंगे।

पाठशाला में पढ़ने के दौरान रविदास पंडित शारदानंद के पुत्र के मित्र बन गये। एक दिन दोनों लोग एक साथ लुका-छिपी खेल रहे थे, पहली बार रविदास जी जीते और दूसरी बार उनके मित्र की जीत हुयी। अगली बार, रविदास जी की बारी थी लेकिन अंधेरा होने की वजह से वो लोग खेल को पूरा नहीं कर सके उसके बाद दोनों ने खेल को अगले दिन सुबह जारी रखने का फैसला किया। अगली सुबह रविदास जी तो आये लेकिन उनके मित्र नहीं आये। वो लंबे समय तक इंतजार करने के बाद अपने उसी मित्र के घर गये और देखा कि उनके मित्र के माता-पिता और पड़ोसी रो रहे थे।

उन्होंने उन्हीं में से एक से इसका कारण पूछा और अपने मित्र की मौत की खबर सुनकर हक्का-बक्का रह गये। उसके बाद उनके गुरु ने संत रविदास को अपने बेटे के लाश के स्थान पर पहुँचाया, वहाँ पहुँचने पर रविदास ने अपने मित्र से कहा कि उठो ये सोने का समय नहीं है दोस्त, ये तो लुका-छिपी खेलने का समय है। जैसै कि जन्म से ही गुरु रविदास दैवीय शक्तियों से समृद्ध थे, रविदास के ये शब्द सुनते ही उनके मित्र फिर से जी उठे। इस आश्चर्यजनक पल को देखने के बाद उनके माता-पिता और पड़ोसी चकित रह गये।

वैवाहिक जीवन

भगवान के प्रति उनके प्यार और भक्ति की वजह से वो अपने पेशेवर पारिवारिक व्यवसाय से नहीं जुड़ पा रहे थे और ये उनके माता-पिता की चिंता का बड़ा कारण था। अपने पारिवारिक व्यवसाय से जुड़ने के लिये इनके माता-पिता ने इनका विवाह काफी कम उम्र में ही श्रीमती लोना देवी से कर दिया जिसके बाद रविदास को पुत्र रत्न की प्रति हुयी जिसका नाम विजयदास पड़ा।

शादी के बाद भी संत रविदास सांसारिक मोह की वजह से पूरी तरह से अपने पारिवारिक व्यवसाय के ऊपर ध्यान नहीं दे पा रहे थे। उनके इस व्यवहार से क्षुब्द होकर उनके पिता ने सांसारिक जीवन को निभाने के लिये बिना किसी मदद के उनको खुद से और पारिवारिक संपत्ति से अलग कर दिया। इस घटना के बाद रविदास अपने ही घर के पीछे रहने लगे और पूरी तरह से अपनी सामाजिक मामलों से जुड़ गये।

बाद का जीवन

बाद में रविदास जी भगवान राम के विभिन्न स्वरुप राम, रघुनाथ, राजा राम चन्द्र, कृष्णा, गोविन्द आदि के नामों का इस्तेमाल अपनी भावनाओं को उजागर करने के लिये करने लगे और उनके महान अनुयायी बन गये।

बेगमपुरा शहर से उनके संबंध

बिना किसी दुख के शांति और इंसानियत के साथ एक शहर के रुप में गुरु रविदास जी द्वारा बेगमपुरा शहर को बसाया गया। अपनी कविताओं को लिखने के दौरान रविदास जी द्वारा बेगमपुरा शहर को एक आदर्श के रुप में प्रस्तुत किया गया था जहाँ पर उन्होंने बताया कि एक ऐसा शहर जो बिना किसी दुख, दर्द या डर के और एक जमीन है जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गराबी और जाति अपमान के रहते है। एक ऐसी जगह जहाँ कोई शुल्क नहीं देता, कोई भय, चिंता या प्रताड़ना नहीं हो।

मीरा बाई से उनका जुड़ाव

संत रविदास जी को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रुप में माना जाता है जो कि राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी। वो संत रविदास के अध्यापन से बेहद प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी बनी। अपने गुरु के सम्मान में मीरा बाई ने कुछ पंक्तियाँ लिखी है-

“गुरु मिलीया रविदास जी-”।

वो अपने माता-पिता की एक मात्र संतान थी जो बाद में चितौड़ की रानी बनी। मीरा बाई ने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया जिसके बाद वो अपने दादा जी के संरक्षण में आ गयी जो कि रविदास जी के अनुयायी थे। वो अपने दादा जी के साथ कई बार गुरु रविदास से मिली और उनसे काफी प्रभावित हुयी। अपने विवाह के बाद, उन्हें और उनके पति को गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त हुआ। बाद में मीराबाई ने अपने पति और ससुराल पक्ष के लोगों की सहमति से गुरु जी को अपने वास्तविक गुरु के रुप में स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने गुरु जी के सभी धर्मों के उपदेशों को सुनना शुरु कर दिया जिसने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा और वो प्रभु भक्ति की ओर आकर्षित हो गयी। कृष्ण प्रेम में डूबी मीराबाई भक्ति गीत गाने लगी और दैवीय शक्ति का गुणगान करने लगी।

अपने गीतों में वो कुछ इस तरह कहती थी:

“गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी,

चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी”।

दिनों-दिन वो ध्यान की ओर आकर्षित हो रही थी और वो अब संतों के साथ रहने लगी थी। उनके पति की मृत्यु के बाद उनके देवर और ससुराल के लोग उन्हें देखने आये लेकिन वो उन लोगों के सामने बिल्कुल भी व्यग्र और नरम नहीं पड़ी। बल्कि उन्हें तो आधी रात को उन लोगों के द्वारा गंभीरी नदी में फेंक दिया गया था लेकिन गुरु रविदास जी के आशीर्वाद से वो बच गयी।

एक बार अपने देवर के द्वारा दिये गये जहरीले दूध को गुरु जी द्वारा अमृत मान कर पी गयी और खुद को धन्य समझा। उन्होंने कहा कि:

“विष को प्याला राना जी मिलाय द्यो

मेरथानी ने पाये

कर चरणामित् पी गयी रे,

गुण गोविन्द गाये”।

संत रविदास के जीवन की कुछ महत्वपूर्णं घटनाएँ

एक बार गुरु जी के कुछ विद्यार्थी और अनुयायी ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। रविदास जी के एक विद्यार्थी ने उनसे दुबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा उनका मानना है कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा और ह्दय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये।

एक बार उन्होंने अपने एक ब्राहमण मित्र की रक्षा एक भूखे शेर से की थी जिसके बाद वो दोनों गहरे साथी बन गये। हालाँकि दूसरे ब्राहमण लोग इस दोस्ती से जलते थे सो उन्होंने इस बात की शिकायत राजा से कर दी। रविदास जी के उस ब्राहमण मित्र को राजा ने अपने दरबार में बुलाया और भूखे शेर द्वारा मार डालने का हुक्म दिया। शेर जल्दी से उस ब्राहमण लड़के को मारने के लिये आया लेकिन गुरु रविदास को उस लड़के को बचाने के लिये खड़े देख शेर थोड़ा शांत हुआ। शेर वहाँ से चला गया और गुरु रविदास अपने मित्र को अपने घर ले गये। इस बात से राजा और ब्राह्मण लोग बेहद शर्मिंदा हुये और वो सभी गुरु रविदास के अनुयायी बन गये।

सामाजिक मुद्दों में गुरु रविदास की सहभागिता

वास्तविक धर्म को बचाने के लिये रविदास जी को ईश्वर द्वारा धरती पर भेजा गया था क्योंकि उस समय सामाजिक और धार्मिक स्वरुप बेहद दु:खद था। क्योंकि इंसानों द्वारा ही इंसानों के लिये ही रंग, जाति, धर्म तथा सामाजिक मान्यताओं का भेदभाव किया जा चुका था। वो बहुत ही बहादुरी के साथ सभी भेदभाव को स्वीकार करते और लोगों को वास्तविक मान्यताओं और जाति के बारे में बताते। वो लोगों को सिखाते कि कोई भी अपने जाति या धर्म के लिये नहीं जाना जाता, इंसान अपने कर्म से पहचाना जाता है। गुरु रविदास जी समाज में अस्पृश्यता के खिलाफ भी लड़े जो उच्च जाति द्वारा निम्न जाति के लोगों के साथ किया जाता था।

उनके समय में निम्न जाति के लोगों की उपेक्षा होती थी, वो समाज में उच्च जाति के लोगों की तरह दिन में कहीं भी आ-जा नहीं सकते थे, उनके बच्चे स्कूलों में पढ़ नहीं सकते थे, मंदिरों में नहीं जा सकते थे, उन्हें पक्के मकान के बजाय सिर्फ झोपड़ियों में ही रहने की आजादी थी और भी ऐसे कई प्रतिबंध थे जो बिल्कुल अनुचित थे। इस तरह की सामाजिक समयस्याओं को देखकर गुरु जी ने निम्न जाति के लोगों की बुरी परिस्थिति को हमेशा के लिये दूर करने के लिये हर एक को आध्यात्मिक संदेश देना शुरु कर दिया।

उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि “ईश्वर ने इंसान बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर बनाया है” अर्थात इस धरती पर सभी को भगवान ने बनाया है और सभी के अधिकार समान है। इस सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में, संत गुरु रविदास जी ने लोगों को वैश्विक भाईचारा और सहिष्णुता का ज्ञान दिया। गुरुजी के अध्यापन से प्रभावित होकर चितौड़ साम्राज्य के राजा और रानी उनके अनुयायी बन गये।

सिक्ख धर्म के लिये गुरु जी का योगदान

सिक्ख धर्मग्रंथ में उनके पद, भक्ति गीत, और दूसरे लेखन (41 पद) आदि दिये गये थे, गुरु ग्रंथ साहिब जो कि पाँचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित की गयी। सामान्यत: रविदास जी के अध्यापन के अनुयायी को रविदासीया कहा जाता है और रविदासीया के समूह को अध्यापन को रविदासीया पंथ कहा जाता है।

गुरु ग्रंथ साहिब में उनके द्वारा लिखा गया 41 पवित्र लेख है जो इस प्रकार है; “रागा-सिरी(1), गौरी(5), असा(6), गुजारी(1), सोरथ(7), धनसरी(3), जैतसारी(1), सुही(3), बिलावल(2), गौंड(2), रामकली(1), मारु(2), केदारा(1), भाईरऊ(1), बसंत(1), और मलहार(3)”।

ईश्वर के द्वारा उनकी महानता की जाँच की गयी थी

वो अपने समय के महान संत थे और एक आम व्यक्ति की तरह जीवन को जीने की वरीयता देते है। कई बड़े राजा-रानियों और दूसरे समृद्ध लोग उनके बड़े अनुयायी थे लेकिन वो किसी से भी किसी प्रकार का धन या उपहार नहीं स्वीकारते थे। एक दिन भगवान के द्वारा उनके अंदर एक आम इंसान के लालच को परखा गया, एक दर्शनशास्त्री गुरु रविदास जी के पास एक पत्थर ले कर आये और उसके बारे में आश्चर्यजनक बात बतायी कि ये किसी भी लोहे को सोने में बदल सकता सकता है। उस दर्शनशास्त्री ने गुरु रविदास को उस पत्थर को लेने के लिये दबाव दिया और साधारण झोपड़े की जगह बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने को कहा। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।

उस दर्शनशास्त्री ने फिर से उस पत्थर को रखने के लिये गुरुजी पर दबाव डाला और कहा कि मैं इसे लौटते वक्त वापस ले लूँगा साथ ही इसको अपनी झोपड़ी के किसी खास जगह पर रखने को कहा। गुरु जी ने उसकी ये बात मान ली। वो दर्शनशास्त्री कई वर्षों बाद लौटा तो पाया कि वो पत्थर उसी तरह रखा हुआ है। गुरुजी के इस अटलता और धन के प्रति इस विकर्षणता से वो बहुत खुश हुए। उन्होंने वो कीमती पत्थर लिया और वहाँ से गायब हो गये। गुरु रविदास ने हमेशा अपने अनुयायीयों को सिखाया कि कभी धन के लिये लालची मत बनो, धन कभी स्थायी नहीं होता, इसके बजाय आजीविका के लिये कड़ी मेहनत करो।

एक बार जब उनको और दूसरे दलितों को पूजा करने के जुर्म में काशी नरेश के द्वारा उनके दरबार में कुछ ब्राह्मणों की शिकायत पर बुलाया गया था, तो ये ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने सभी गैरजरुरी धार्मिक संस्कारों को हटाने के द्वारा पूजा की प्रकिया को आसान बना दिया। संत रविदास को राजा के दरबार में प्रस्तुत किया गया जहाँ गुरुजी और पंडित पुजारी से फैसले वाले दिन अपने-अपने इष्ट देव की मूर्ति को गंगा नदी के घाट पर लाने को कहा गया।

राजा ने ये घोषणा की कि अगर किसी एक की मूर्ति नदी में तैरेगी तो वो सच्चा पुजारी होगा अन्यथा झूठा होगा। दोनों गंगा नदी के किनारे घाट पर पहुँचे और राजा की घोषणा के अनुसार कार्य करने लगे। ब्राह्मण ने हल्के भार वाली सूती कपड़े में लपेटी हुयी भगवान की मूर्ति लायी थी वहीं संत रविदास ने 40 कि.ग्रा की चाकोर आकार की मूर्ती ले आयी थी। राजा के समक्ष गंगा नदी के राजघाट पर इस कार्यक्रम को देखने के लिये बहुत बड़ी भीड़ उमड़ी थी।

पहला मौका ब्राह्मण पुजारी को दिया गया, पुजारी जी ने ढ़ेर सारे मंत्र-उच्चारण के साथ मूर्ती को गंगा जी ने प्रवाहित किया लेकिन वो गहरे पानी में डूब गयी। उसी तरह दूसरा मौका संत रविदास का आया, गुरु जी ने मूर्ती को अपने कंधों पर लिया और शिष्टता के साथ उसे पानी में रख दिया जो कि पानी की सतह पर तैरने लगा। इस प्रकिया के खत्म होने के बाद ये फैसला हुआ कि ब्राह्मण झूठा पुजारी था और गुरु रविदास सच्चे भक्त थे।

दलितों को पूजा के लिये मिले अधिकार से खुश होकर सभी लोग उनके पाँव को स्पर्श करने लगे। तब से, काशी नरेश और दूसरे लोग जो कि गुरु जी के खिलाफ थे, अब उनका सम्मान और अनुसरण करने लगे। उस खास खुशी के और विजयी पल को दरबार की दिवारों पर भविष्य के लिये सुनहरे अक्षरों से लिख दिया गया।

संत रविदास को कुष्ठरोग को ठीक करने के लिये प्राकृतिक शक्ति मिली हुई थी

समाज में उनकी महान प्राकृतिक शक्तियों से भरी गज़ब की क्रिया के बाद ईश्वर के प्रति उनकी सच्चाई से प्रभावित होकर हर जाति और धर्म के लोगों पर उनका प्रभाव पड़ा और सभी गुरु जी के मजबूत विद्यार्थी, अनुयायी और भक्त बन गये। बहुत साल पहले उन्होंने अपने अनुयायीयों को उपदेश दिया था और तब एक धनी सेठ भी वहाँ पहुँचा मनुष्य के जन्म के महत्व के ऊपर धार्मिक उपदेश को सुनने के लिये।

धार्मिक उपदेश के अंत में गुरु जी ने सभी को प्रसाद के रुप में अपने मिट्टी के बर्तन से पवित्र पानी दिया। लोगों ने उसको ग्रहण किया और पीना शुरु किया हालाँकि धनी सेठ ने उस पानी को गंदा समझ कर अपने पीछे फेंक दिया जो बराबर रुप से उसके पैरों और जमींन पर गिर गया। वो अपने घर गया और उस कपड़े को कुष्ठ रोग से पीड़ित एक गरीब आदमी को दे दिया। उस कपड़े को पहनते ही उस आदमी के पूरे शरीर को आराम महसूस होने लगा जबकि उसके जख्म जल्दी भरने लगे और वो जल्दी ठीक हो गया।

हालाँकि धनी सेठ को कुष्ठ रोग हो गया जो कि महँगे उपचार और अनुभवी और योग्य वैद्य द्वारा भी ठीक नहीं हो सका। उसकी स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती चली गयी तब उसे अपनी गलतियों का एहसास हुआ और वो गुरु जी के पास माफी माँगने के लिये गया और जख्मों को ठीक करने के लिये गुरु जी से वो पवित्र जल प्राप्त किया। चूँकि गुरु जी बेहद दयालु थे इसलिये उसको माफ करने के साथ ही ठीक होने का ढ़ेर सारा आशीर्वाद भी दिया। अंतत: वो धनी सेठ और उसका पूरा परिवार संत रविदास का भक्त हो गया।

संत रविदास का सकारात्मक नज़रिया

उनके समय में शुद्रों (अस्पृश्य) को ब्राह्मणों की तरह जनेऊ, माथे पर तिलक और दूसरे धार्मिक संस्कारों की आजादी नहीं थी। संत रविदास एक महान व्यक्ति थे जो समाज में अस्पृश्यों के बराबरी के अधिकार के लिये उन सभी निषेधों के खिलाफ थे जो उन पर रोक लगाती थी। उन्होंने वो सभी क्रियाएँ जैसे जनेऊ धारण करना, धोती पहनना, तिलक लगाना आदि निम्न जाति के लोगों के साथ शुरु किया जो उन पर प्रतिबंधित था।

ब्राह्मण लोग उनकी इस बात से नाराज थे और समाज में अस्पृश्यों के लिये ऐसे कार्यों को जाँचने का प्रयास किया। हालाँकि गुरु रविदास जी ने हर बुरी परिस्थिति का बहादुरी के साथ सामना किया और बेहद विनम्रता से लोगों का जवाब दिया। अस्पृश्य होने के बावजूद भी जनेऊ पहनने के कारण ब्राह्मणों की शिकायत पर उन्हें राजा के दरबार में बुलाया गया। वहाँ उपस्थित होकर उन्होंने कहा कि अस्पृश्यों को भी समाज में बराबरी का अधिकार मिलना चाहिये क्योंकि उनके शरीर में भी दूसरों की तरह खून का रंग लाल और पवित्र आत्मा होती है

संत रविदास ने तुरंत अपनी छाती पर एक गहरी चोट की और उस पर चार युग जैसे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलयुग की तरह सोना, चाँदी, ताँबा और सूती के चार जनेऊ खींच दिया। राजा समेत सभी लोग अचंभित रह गये और गुरु जी के सम्मान में सभी उनके चरणों को छूने लगे। राजा को अपने बचपने जैसे व्यवहार पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुयी और उन्होंने इसके लिये माफी माँगी। गुरु जी ने सभी माफ करते हुए कहा कि जनेऊ धारण करने का ये मतलब नहीं कि कोई भगवान को प्राप्त कर लेता है। इस कार्य में वो केवल इसलिये शामिल हुए ताकि वो लोगों को वास्तविकता और सच्चाई बता सके। गुरु जी ने जनेऊ निकाला और राजा को दे दिया इसके बाद उन्होंने कभी जनेऊ और तिलक का इस्तेमाल नहीं किया।

कुंभ उत्सव पर एक कार्यक्रम

एक बार पंडित गंगा राम गुरु जी से मिले और उनका सम्मान किया। वो हरिद्वार में कुंभ उत्सव में जा रहे थे गुरु जी ने उनसे कहा कि ये सिक्का आप गंगा माता को दे दीजीयेगा अगर वो इसे आपके हाथों से स्वीकार करें। पंजित जी ने बड़ी सहजता से इसे ले लिया और वहाँ से हरिद्वार चले गये। वो वहाँ पर नहाये और वापस अपने घर लौटने लगे बिना गुरु जी का सिक्का गंगा माता को दिये।

वो अपने रास्ते में थोड़ा कमजोर होकर बैठ गये और महसूस किया कि वो कुछ भूल रहे हैं, वो दुबारा से नदी के किनारे वापस गये और जोर से चिल्लाए माता, गंगा माँ पानी से बाहर निकली और उनके अपने हाथ से सिक्के को स्वीकार किया। माँ गंगा ने संत रविदास के लिये सोने के कँगन भेजे। पंडित गंगा राम घर वापस आये वो कँगन गुरु जी के बजाय अपनी पत्नी को दे दिया।

एक दिन पंडित जी की पत्नी उस कँगन को बाजार में बेचने के लिये गयी। सोनार चालाक था, सो उसने कँगन को राजा और राजा ने रानी को दिखाने का फैसला किया। रानी ने उस कँगन को बहुत पसंद किया और एक और लाने को कहा। राजा ने घोषणा की कि कोई इस तरह के कँगन नहीं लेगा, पंडित अपने किये पर बहुत शर्मिंदा था क्योंकि उसने गुरुजी को धोखा दिया था। वो रविदास जी से मिला और माफी के लिये निवेदन किया। गुरु जी ने उससे कहा कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” ये लो दूसरे कँगन जो पानी से भरे जल में मिट्टी के बर्तन में गंगा के रुप में यहाँ बह रही है। गुरु जी की इस दैवीय शक्ति को देखकर वो गुरु जी का भक्त बन गया।

उनके पिता के मौत के समय की घटना

रविदास की पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से विनती की कि वो गंगा नदी के किनारे अंतिम रिवाज़ में मदद करें। हालाँकि ब्राह्मण रिती के संदर्भ में खिलाफ थे कि वो गंगा के जल से स्नान करेंगे जो रस्म की जगह से मुख्य शहर की ओर जाता है और वो प्रदूषित हो जायेगा। गुरु जी बहुत दुखी और मजबूर हो गये हालाँकि उन्होंने कभी भी अपना धैर्य नहीं खोया और अपने पिता की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करने लगे। अचानक से वातावरण में एक भयानक तूफान आया और नदी का पानी उल्टी दिशा में बहना प्रारंभ हो गया और जल की एक गहरी तरंग आयी और लाश को अपने साथ ले गयी। इस भवंडर ने आसपास की सभी चीजों को सोख लिया। तब से, गंगा का पानी उल्टी दिशा में बह रहा है।

कैसे बाबर प्रभावित हुए रविदास के अध्यापन से

इतिहास के अनुसार बाबर मुगल साम्राज्य का पहला राजा था जो 1526 में पानीपत का युद्ध जीतने के बाद दिल्ली के सिहांसन पर बैठा जहाँ उसने भगवान के भरोसे के लिये लाखों लोगों को कुर्बान कर दिया। वो पहले से ही संत रविदास की दैवीय शक्तियों से परिचित था और फैसला किया कि एक दिन वो हुमायुँ के साथ गुरु जी से मिलेगा। वो वहाँ गया और गुरु जी को सम्मान देने के लिये उनके पैर छूए हालाँकि; आशीर्वाद के बजाय उसे गुरु जी से सजा मिली क्योंकि उसने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की थी। गुरु जी ने उसे गहराई से समझाया जिसने बाबर को बहुत प्रभावित किया और इसके बाद वो भी संत रविदास का अनुयायी बन गया तथा दिल्ली और आगरा के गरीबों की सेवा के द्वारा समाज सेवा करने लगा।

संत रविदास की मृत्यु

समाज में बराबरी, सभी भगवान एक है, इंसानियत, उनकी अच्छाई और बहुत से कारणों की वजह से बदलते समय के साथ संत रविदास के अनुयायीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। दूसरी तरफ, कुछ ब्राह्मण और पीरन दित्ता मिरासी गुरु जी को मारने की योजना बना रहे थे इस वजह से उन लोगों ने गाँव से दूर एक एकांत जगह पर मिलने का समय तय किया। किसी विषय पर चर्चा के लिये उन लोगों ने गुरु जी को वहाँ पर बुलाया जहाँ उन्होंने गुरु जी की हत्या की साजिश रची थी हालाँकि गुरु जी को अपनी दैवीय शक्ति की वजह से पहले से ही सब कुछ पता चल गया था

जैसे ही चर्चा शुरु हुई, गुरु जी उन्ही के एक साथी भल्ला नाथ के रुप में दिखायी दिये जो कि गलती से तब मारा गया था। बाद में जब गुरु जी ने अपने झोपड़े में शंखनाद किया, तो सभी हत्यारे गुरु जी को जिंदा देख भौंचक्के रह गये तब वो हत्या की जगह पर गये जहाँ पर उन्होंने संत रविदास की जगह अपने ही साथी भल्ला नाथ की लाश पायी। उन सभी को अपने कृत्य पर पछतावा हुआ और वो लोग गुरु जी से माफी माँगने उनके झोपड़े में गये।

हालाँकि, उनके कुछ भक्तों का मानना है कि गुरु जी की मृत्यु प्राकृतिक रुप से 120 या 126 साल में हो गयी थी। कुछ का मानना है उनका निधन वाराणसी में 1540 एडी में हुआ था।

गुरु रविदास जी के लिये स्मारक

वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क

वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर “गुरु रविदास स्मारक और पार्क” बना है

गुरु रविदास घाट

वाराणसी में पार्क से बिल्कुल सटा हुआ उनके नाम पर गंगा नदी के किनारे लागू करने के लिये गुरु रविदास घाट भी भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तावित है

संत रविदास नगर

ज्ञानपुर जिले के निकट संत रविदास नगर है जो कि पहले भदोही नाम से था अब उसका नाम भी संत रविदास नगर है।

श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर वाराणसी

इनके सम्मान में सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर स्थित है, जो इनके सम्मान में बनाया गया है पूरी दुनिया में इनके अनुयायीयों द्वारा चलाया जाता है जो अब प्रधान धार्मिक कार्यालय के रुप में है।

श्री गुरु रविदास स्मारक गेट

वाराणसी के लंका चौराहे पर एक बड़ा गेट है जो इनके सम्मान में बनाया गया है।

इनके नाम पर देश के साथ ही विदेशों मे भी स्मारक बनाये गये है।

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  • Jivan Parichay (जीवन परिचय) /

APJ Abdul Kalam Biography in Hindi: मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का संपूर्ण जीवन परिचय  

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  • Updated on  
  • अक्टूबर 13, 2023

ए पी जे अब्दुल कलाम

APJ Abdul Kalam Biography in Hindi: भारत रत्न से सम्मानित और ‘भारत का मिसाइल मैन’ कहे जाने वाले मशहूर वैज्ञानिक डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam) अपने बेहतरीन कार्यों के लिए आज भी जाने जाते हैं। डॉ कलाम वर्ष 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति भी बने। डॉ कलाम ने भारत को प्रगतिशील बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। 

क्या आप जानते हैं  डॉक्टर कलाम ने ISRO में भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लांच व्हीकल (SLV-III) के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एपीजे अब्दुल कलाम अपने कार्यों और अपनी प्रेरणादायक बातों के लिए आज भी याद किए जाते है। वहीं उनके जन्म दिवस को हर वर्ष ‘ विश्व छात्र दिवस ’ के रूप में मनाया जाता हैं। आइए जानते हैं ए पी जे अब्दुल कलाम का संपूर्ण जीवन परिचय। 

This Blog Includes:

डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम का प्रारंभिक जीवन, इसरो में निभाई अहम भूमिका , क्यों कहा जाता है डॉ कलाम को मिसाइल मैन , द्वितीय पोखरण परमाणु परीक्षण में दिया अहम योगदान , डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मिसाइलों के नाम और उनकी विशेषताएं , डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम का राजनैतिक सफर , डॉ कलाम का निधन , डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम की उपलब्धियां , डॉ. कलाम द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकें, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पर लिखी गई जीवनी , डॉ. कलाम के 10 अनमोल विचार , सम्बंधित ब्लॉग.

APJ Abdul Kalam Biography in Hindi: डॉ कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था। उनका पूरा नाम ‘अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम’ था। लेकिन उन्हें डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम और मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है। उनके पिता का नाम ‘ जैनुलाब्दीन’ था, जो एक नाविक थे और उनकी माता का नाम ‘ असीम्मा ‘ था, जो एक गृहणी थी। डॉ कलाम के पांच भाई बहन थे। 

डॉ कलाम का शुरूआती जीवन संघर्षों से भरा रहा था। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था। उन्हें बचपन से ही सिखने की बहुत इच्छा थी। रामनाथपुरम, तमिलनाडु से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ कलाम वर्ष 1955 में वे मद्रास चले गए वहाँ उन्होंने ‘ मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ , चेन्नई में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। क्या आप जानते हैं डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम एक लड़ाकू पायलट बनना चाहते थे लेकिन उन्हें ‘भारतीय वायु सेना’ (IAF) की प्रवेश परीक्षा में नौवां स्थान मिला था। जबकि IAF ने केवल 8वीं रैंक तक ही रिजल्ट की घोषणा की थी इसलिए वह पायलट नहीं बन सके। 

यह भी पढ़ें – डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का शिक्षा में योगदान

डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हुए, जहां उन्होंने ‘ हावरक्राफ्ट परियोजना’ पर काम किया। डॉ कलाम ने कुछ समय तक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘ विक्रम साराभाई’ के साथ भी काम किया था। इसके बाद वह वर्ष 1962 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ ( ISRO) में आ गए, यहाँ उन्होंने प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते हुए सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam) ने ISRO में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लांच व्हीकल SLV-III के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रथम सैटेलाइट व्हीकल से भारत ने वर्ष 1980 में रोहिणी सैटेलाइट सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा था। इस मिसाइल को बनाने में डॉ कलाम में अपना अहम योगदान दिया था, जिस वजह से उन्हें ‘ मिसाइल मैन’ की उपाधि से नवाजा गया। इसके बाद डॉ कलाम ने देश के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में कार्य किया और देश के लिए कई मिसाइलें बनाई। 

यह भी पढ़ें – जानिए सत्य, अहिंसा के पुजारी ‘महात्मा गांधी’ का संपूर्ण जीवन परिचय 

इसके बाद डॉ. कलाम ने वर्ष 1992 से 1999 तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में सेक्रेटरी के रूप में कार्य किया। वह प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी थे। वर्ष 1998 में दूसरे परमाणु परीक्षण में डॉ. कलाम ने महत्वपूर्ण तकनीकी और राजनीतिक भूमिका निभाई थी। इस सफल परमाणु परिक्षण के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक पूर्ण विकसित परमाणु देश घोषित किया और भारत विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरा।  

APJ Abdul Kalam Biography in Hindi में अब हम उनकी कुछ प्रमुख मिसाइलों और उनकी विशेषताओं के बारे में बता रहे है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-

डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम 18 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। क्या आप जानते हैं कि डॉ कलाम भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ भारत रत्न’ प्राप्त करने वाले भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे। बता दें कि डॉ कलाम से पहले वर्ष 1954 में “ डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ” और वर्ष 1963 में “ डॉ. जाकिर हुसैन ” को यह सम्मान प्रदान किया गया था। डॉ कलाम वर्ष 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे और इसके बाद उन्होंने फिर से राष्ट्रपति चुनाव ना लड़ने का फैसला किया। राष्ट्रपति के पद से मुक्त होने के बाद डॉ कलाम ने देश के विभिन्न कॉलेज-संस्थानों में अध्यापन कार्य किया और कई पुस्तकें लिखी 

यह भी पढ़ें – ‘फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन’ कहे जाने वाले एम.एस. स्वामीनाथन के बारे में कितना जानते हैं आप? 

डॉ. कलाम ने विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना अतुलनीय योगदान दिया है, जिसकी वजह से उन्हें वर्ष 1997 में भारत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने जीवन के बहुत से वर्ष रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के लिए काम करते हुए बिताए थे। 

देश का सर्वोच्‍च पद पर रहने के बाद भी डॉ. कलाम हमेशा अपना जीवन सादगी के साथ जीते रहे  उनका स्‍वभाव बेहद सहज, सरल और विनम्र था। वे हमेशा खुद को एक वैज्ञानिक और शिक्षक की तरह ही देखा करते थे। लेकिन 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) शिलांग में व्याख्यान देते समय हृदय गति रुकने से अचानक उनका निधन हो गया। 

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam) ने अपने जीवन में बहुत सी विपरीत परिस्थितियों का सामना किया था। लेकिन जीवन में उन्होंने कभी भी कठिन परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानी। यही वजह रही है कि उनका जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा हैं। डॉ. कलाम को उनके कार्यों के लिए बहुत से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। जिन्हें नीचे दिए गए टेबल में बताया जा रहा हैं:-

यहाँ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam) का जीवन परिचय के साथ ही उनके द्वारा लिखित कुछ पुस्तकों के बारे में बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-

यह भी पढ़ें – लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी

APJ Abdul Kalam Biography in Hindi में अब हम डॉ. कलाम के जीवन पर लिखी गई कुछ प्रमुख जीवनी के बारे में बता रहे है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-

यहाँ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन परिचय (APJ Abdul Kalam Biography in Hindi) के साथ ही उनके कुछ अनमोल विचारों के बारे में भी बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-

  • शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्य को आकार देता हैं। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा। 
  • महान शिक्षक ज्ञान, जूनून और करुणा से निर्मित होते हैं।
  • अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो।
  • सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दे।
  • महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।
  • मैं इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता।
  • अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा।
  • शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत की जरूरत होती है, चाहे वो माउंट एवरेस्ट का शिखर हो या आपके पेशे का।
  • किसी भी मिशन की सफलता के लिए, रचनात्मक नेतृत्व आवश्यक हैं।
  • जब तक भारत दुनिया के सामने खड़ा नहीं होता, कोई हमारी इज्जत नहीं करेगा। इस दुनिया में, डर की कोई जगह नहीं है। केवल ताकत ही ताकत का सम्मान करती हैं।
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आशा है आपको डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam Biography in Hindi) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। नीरज को स्टडी अब्रॉड प्लेटफाॅर्म और स्टोरी राइटिंग में 2 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में upGrad Campus, Neend App और ThisDay App में कंटेंट डेवलपर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविधालय से बौद्ध अध्ययन और चौधरी चरण सिंह विश्वविधालय से हिंदी में मास्टर डिग्री कंप्लीट की है।

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Tulsidas – महान कवि तुलसीदास का जीवन परिचय (जीवनी)

Tulsidas – गोस्वामी तुलसीदास (हिंदी साहित्य के महान कवि और साहित्यकार) का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) में राजापुर, कासगंज उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। (जन्म को लेकर एक राय नहीं है ) इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था, माता का नाम हुसली था, पत्नी रत्नावली थी। यह एक अच्छे कवि और समाजसुधारक भी थे। इनके गुरु का नाम आचार्य रामानंद था। यह हिन्दू धर्म से तालुक रखते थे, गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के कवि कहें जाते है।

तुलसीदास (Goswami Tulsidas) की प्रमुख रचनाएं – रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा आदि

Tulsidas Biography in Hindi – संछिप्त परिचय

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नाम – गोस्वामी तुलसीदास जन्म – सन 1532 or 1511 (संवत – 1589), राजापुर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम – आत्माराम दुबे माता का नाम – हुलसी पत्नी का नाम – रत्नावली कार्यक्षेत्र – कवि, समाज सुधारक मृत्यु – सन 1623 (संवत- 1680), काशी कर्मभूमि – बनारस (वाराणसी) काल – भक्ति काल विधा – कविता, दोहा, चौपाई विषय – सगुण भक्ति भाषा का ज्ञान – संस्कृत, अवधी, हिंदी

Tulsidas ka Jivan Parichay – तुलसीदास का बचपन –

कहा जाता है की भगवान शिव की प्रेरणा से प्रभावित होकर रामशैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी महाराज के प्रिय चेले श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने रामबोला नाम से चर्चित तुलसीदास को बचपन में खोज निकाला था। उसके बाद उन्हीं लोगों ने मिलकर रामबोला को तुलसीदास बना दिया यानि उनका नाम तुलसीदास रखा गया। उसके बाद उन गुरुओं ने तुलसीदास को अयोध्या ले गए जहां माघ शुक्ला पंचमी (शुक्रवार) को उसका यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न कराया। संस्कार के समय तुलसीजी ने बिना बताएं गायत्री मंत्र जप डाला था। जिसको देखकर वहां बैठे सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए थे।

तुलसीदास के जन्म को लेकर बिद्वानों में कई तरह की भ्रांतियाँ है , कुछ लोग इनके जन्म के बारे में कहते है की इनका जन्म 1497 ई./ 1511 ई./ या 1532 ई. में श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था. जबकि इनकी मृत्यु को लेकर सबके मत एक जैसे है। उनकी मृत्यु 1623 ई. में हुई थी, ऐसा माना जाता है की तुलसीदास की मृत्यु 1623 ई. में हुई थी।

Tulsidas ke dohe – तुलसीदास के दोहे

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?

प्रेम पाट पटडोरि गौरि-हर-गुन मनि। मंगल हार रचेउ कवि मति मृगलोचनि।।

तुलसीदास  के सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाएँ व ग्रन्थ

तुलसीदास ने अपने जीवनकाल में इतनी प्रमुख रचनाएँ और ग्रन्थ लिखे है जिसमे रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। गुरुस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है।

  • रामचरितमानस
  • हनुमान चालीसा
  • छप्पय रामायण
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • पार्वती-मंगल
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • श्रीकृष्ण-गीतावली
  • विनय-पत्रिका
  • छंदावली रामायण
  • कुंडलिया रामायण
  • करखा रामायण
  • रोला रामायण
  • कवित्त रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरूपण

तुलसी के मानस के पूर्व वाल्मीकि रामायण की कथा ही लोक प्रचलित थी। काशी के पंडितों से मानस को लेकर तुलसीदास का मतभेद और मानस की प्रति पर विश्वनाथ का हस्ताक्षर संबंधी जनश्रुति प्रसिद्ध है।

रामचरितमानस की रचना – (संवत्‌ 1631)

संवत्‌ 1631 में रामनवमी के दिन त्रेतायुग में राम-जन्म दिन प्रातःकाल तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने और छ्ब्बीस दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ तुलसीदास के द्वारा सम्पन्न हुआ। संवत्‌ 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये, बताया जाता है की इसके बाद भगवान् की आज्ञा से तुलसीदास काशी चले गए। काशी पहुंचने के बाद तुलसीदास ने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रखकर सो गए, प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गये तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया-सत्यं शिवं सुन्दरम्‌ जिसके नीचे भगवान शंकर की सही (पुष्टि) थी। उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने “सत्यं शिवं सुन्दरम्‌” की आवाज भी कानों से सुनी।

ये सब चमत्कारी बातें होने और देखने के बाद काशी के सभी साधु संतों में तुलसीदास के प्रति ईर्ष्या की भावना उत्पन होने लगी, सभी साधु दल बनाकर तुलसीदास की निंदा पर उतर आये थे कहा जाता है की वो लोग तुलसीदास की किताब रामचरितमानस को चुराना चाहते थे उसके लिए उनलोगों ने तुलसीदास की कुटिया में किताब चोरी करवाने का भी प्रयास किया था।

बाद में जब चोरों ने तुलसीदास को देखा तो उनके मन और बुद्धि में परिवर्तन आ गया और वो लोग उसी दिन से चोरी करना छोड़ दिए। और भगवान् के भजन कीर्तन में अपना मन लगाने लगे।

Tulsidas से जुडी रोचक जानकारी –

  • तुलसीदास एक रामभक्त, कवि, तथा एक समाज सुधारक, तीनों रूपों में एक साथ मान्य है।
  • Tulsidas Jayanti हर साल 20 जुलाई को होती है।
  • Tulsidas ke pad ? कवि, समाज सुधारक
  • Tulsidas Ramcharitmanas की रचना संवत्‌ 1631 में की गयी थी।
  • तुलसीदास जी की हस्तलिपि अत्यधिक सुन्दर थी।
  • बताया जाता है की तुलसीदास के गावं में आज भी श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की एक प्रति सुरक्षित रखी हुई है।

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