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मन के हारे हार मन के जीते जीत पर निबंध for Class 6, 7, 8, 9, 10

Essay on The Defeat of the mind, the Victory of the Heart in Hindi for Class 6, 7, 8, 9, & 10 Class Board Students. This Essay on The Defeat of the mind, the Victory of the Heart in Hindi also named as मन के हारे हार मन के जीते जीत पर निबंध. This essay will help You for exams.

Essay in Hindi – The Defeat of the mind, the Victory of the Heart for Class 6 – 10 Class Students

जिंदगी में हार जीत तो चलती रहती है। मगर वह व्यक्ति जो हारने से पहले ही मन में हार जाता है वह जीवन में कभी जीत नहीं सकता। हमारे द्रुढ मन की शक्ति हमें कुछ भी करवा सकती है। यदि हम निश्चय कर ले तो हम पहाड़ पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं l कभी कभी हमें छोटी सी राई भी पहाड़ की तरह मालूम होती है। हम हारने से पहले ही अपनी हार मान लेते हैं। जिस व्यक्ति ने रणभूमि में शत्रु को देख हार मान ली वह व्यक्ति कभी युद्ध नहीं जीत सकता। हर क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए हमें कुशल ज्ञान के साथ-साथ खुद पर आत्मविश्वास का होना जरूरी है। यदि हम हार का अनुभव करेंगे तो हम निश्चित ही हारेंगे। यदि हम जीत का अनुभव करते हैं तो हमारे जीतने के अवसर बढ़ जाएंगे। हार और जीत किसी के हाथों में नहीं होती पर हमें हार से पहले ही हार नहीं माननी चाहिए। जिससे खुद पर भरोसा हो वह हार को जीत में बदल सकता है। विजय का मुख्य कारण मेहनत के साथ उत्साह तथा द्रुढ निश्चय होता है। जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए द्रुढ निश्चय होना जरूरी है। यदि हमारा मन कमजोर पड़ जाए तो निराशा हम पर हावी हो जाती है।

हमारे दुख सुख सारे हमारे मन पर निर्भर करते हैं। यदि हमारे मन पर नियंत्रण हो तो हम बड़े से बड़ा दुख मुस्कुराकर सहन कर जाते हैं। इसीलिए तो कहते हैं मन के हारे हार और मन के जीते जीत। यदि कोई मनुष्य अपने मन में अपनी हार नीचे समझता है तो इस धरती पर उस व्यक्ति को कोई नहीं जिता सकता। यदि हमें सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाना है तो अपने मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। यदि हमारे मन पर संयम ना हो तो इसके हमें विपरीत परिणाम मिलते हैं। इसलिए हमें सकारात्मक विचार रखना चाहिए। हमें अपने चंचल मन को स्थिर बनाना चाहिए। ताकि हम जीत के और अपने लक्ष्य के करीब जा सके। यदि हमारा मन चंचल है तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है। मनुष्य के विचारों का परिणाम उसके कार्य पर पड़ता है। इसीलिए हमें अपने विचार सकारात्मक रखनी चाहिए। ताकि हमारे हर कार्य का परिणाम भी सकारात्मक आ सके।

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It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – essay on it is the mind which wins and defeats” in hindi.

  • प्रस्तावना,
  • उक्ति का आशय,
  • मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण,
  • कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति,
  • सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म,
  • मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

प्रस्तावना– संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

उक्ति का आशय–मन के महत्त्व पर विचार करने के उपरान्त प्रकरण सम्बन्धी उक्ति के आशय पर विचार किया जाना आवश्यक है। यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार है-

दुःख–सुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहु न मीत।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।

मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति– प्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म–वस्तुत: मन सफलता की कुंजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा।

मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?–प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

उपसंहार– मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा।

वाघा बार्डर Summary in Hindi

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay In Hindi

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | man ke hare har hai man ke jeete jeet essay in hindi:-  मनोविज्ञान का मानना है कि वनस्पति जाग्रत रहती है पशु सोते है पत्थर में भी चेतना सोती है.

और मनुष्य विचार चिन्तन करता है इसलिए इन अन्य सजीवों तथा निर्जीवों से भिन्न हैं. चिन्तन एवं मनन करना इन्सान की विशेषता है जिनका सीधा सम्बन्ध मन से होता है.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध

man ke hare har hai man ke jeete jeet essay in hindi

मन लगने पर अस्म्भव एवं कठिन लगने वाले कार्य भी संकल्प के साथ सहज हो जाते है तथा बेहद सरल लगने वाले कार्य भी मन टूटने से नही हो पाते है.

मन की इसी बला पर आज हम आपके लिए man ke hare har hai man ke jeete का हिंदी निबंध अनुच्छेद भाषण प्रस्तुत कर रहे हैं.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत essay in hindi

मनुष्य के पास संकल्प शक्ति एक महत्वपूर्ण हथियार है जिसके दम पर बड़े से बड़े शत्रु को आसानी से हराया जा सकता है. संकल्प की शक्ति के आगे बड़ी बड़ी फौज एवं अस्त्र शस्त्र भी निष्प्रभावी हो जाते है.

मन का संकल्प व्यक्ति की आंतरिक वस्तु हैं. मानव की इस अद्भुत क्षमता के आगे देवता भी घबराते है. व्यक्ति के मन की इस ताकत के बल पर उसने आज प्रकृति पर शासन स्थापित करने में सफलता अर्जित की हैं.

मानव के मन की ताकत ने ही आज आकाश की उंचाई तथा जमीन की गहराई को नाप डाला हैं. अपनी कल्पना शक्ति में मानव में सुखी जीवन के जो जो सपने देखे थे उन्हें पूरा करने का साधन उसनें जुटा लिए हैं.

जीवन रुपी अनवरत चलने वाले इस संघर्ष के साथ ही मानव जीवन की यही लालसा निरंतर आगे बढ़ रही हैं. निर्बाध जीवन में कई सारी बाधाओं ने इसको घेरने का साहस भी किया, मगर इन्ही अवरोधों को मानव ने पराजित कर अपनी राह को अधिक मजबूत बनाया हैं.

जीवन कर्म का पथ है यहाँ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कड़ी एवं लम्बी साधना की आवश्यकता पड़ती हैं. कई बार विकट स्थितियों में जीवन को असहाय होने की स्थिति में पाया हैं.

जब वह टूटने बिखरने लगा, समस्याओं से जूझते थक गया, तथा मन में लक्ष्य के प्रति निराशा के भाव जन्म लेने लगे, तो इस स्थिति में खुद को संभालकर आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता आन पड़ी.

हरेक व्यक्ति का जीवन एक संघर्ष है मगर इससे भागकर या पलायन कर कोई नहीं बच पाया हैं. सार्थक दिशा में किये गये कर्म ही मनुष्य को इन जटिलताओं से निकाल पाते हैं.

हरेक के जीवन में संघर्ष तो आने निश्चित है मगर जिन्होंने दृढ संकल्प के साथ काम किया तथा स्वयं की योग्यता का सौ प्रतिशत योगदान इन विकट परिस्थियों में विश्वास के साथ दिया तो निश्चय ही वह संघर्ष को पार कर एक नये साहस, ताजगी और अपनी क्षमताओं में पहले से अधिक विश्वास के साथ वह आगे बढ़ सकेगा.

essay on It is the Mind which Wins and Defeats’ in Hindi language

यहाँ आपकों एक कहानी के जरिये मन के हारे हार है मन के जीते जीत का अर्थ समझाने का प्रयत्न करते हैं. आपने बचपन में मकड़ी वाली कहानी तो सुनी ही होगी. जो सीधी दीवार पर सैकड़ों बार चढती है गिरती है फिर हिम्मत जुटाकर फिर चढ़ती है.

अंत में वह उस दीवार पर चढने में सफलता अर्जित कर ही लेती है. भले ही यह कहानी छोटी व छोटे बच्चों के लिए ही हो. मगर जो सीख देती हैं वह विचारने योग्य हैं.

यदि चींटी की तरह हम अपने मन को कभी भी कमजोर न होने दे, मन ही हमारी सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है जितना साहस हम सींच सकते है सींचे.

हमें उस शक्ति की संभावना को महसूस करना होगा. बस हम इसे कितना मानते है और कितना नहीं यही हमारी सफलता और असफलता का निर्धारण करती हैं. .

जैसा कि हमने पूर्व में कहा जीवन एक संघर्ष है, कई बार हमे अपनी आशाओं अपेक्षाओं के अनुसार परिणाम मिल जाते है मगर कई बार ऐसा नहीं होता है, हम असफलता से घबरा जाते हैं तथा मन को निराशा के भाव से भर देते हैं.

ऐसे अवसरों पर साहस के साथ काम लेना चाहिए तथा अपना मन छोटा करने की बजाय हमारे मन से और शक्ति सींचते हुए संघर्ष में कूद पड़ना है क्योंकि अभी कहानी खत्म नहीं हुई हैं.

यदि हम छोटी छोटी निराशाओं को अपनी पराजय मान लेते है तो जीवन में उत्साह समाप्त हो जाता है तथा जीवन बोझ की तरह प्रतीत होता है, इसीलिए कहा गया है मन का हारना ही वास्तविक हार है तथा मन का जीतना ही जीत,

एक बार जब इन्सान मन हार जाता है तो उसकी समस्त ऊर्जा,उत्साह, उमंग, दृढ इच्छाशक्ति जैसी कई शक्तियाँ एक साथ ही समाप्त हो जाती है जिसके चलते वह दुबारा उठकर प्रयास ही नहीं कर पाता हैं.

मन के हारे हार है मन के जीते जीत विषय पर निबंध

प्रस्तावना – मनुष्य मन आधारित प्राणी है. वह मन के बल पर ही चलता है और विपरीत परिस्थतियों से संघर्ष कर विजयी होता है,

उसकी विजय के पीछे उसका उत्साह और दृढता संजीवनी का काम करती हैं. यदि मन कमजोर पड़ जाता है तो ऊस्में निराशा का भाव प्रबल हो जाता है और वह अपनी लक्ष्य सिद्धि में हार जाता हैं.

यह हार उसके जीवन में निराशा ला देती हैं.  जीवन में आगे बढ़ने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मन का दृढ संकल्पित होना आवश्यक हैं. क्योंकि हार और जीत मन पर ही आधारित होती हैं.

मन की प्रबलता को दृष्टिगत करके ही संस्कृत में कहा गया है, मन एवं मनुष्याणां कारण बंध मोक्ष्यों अर्थात मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण हैं. कहने का अभिप्रायः यह है कि मन ही मनुष्य को संसारिक बन्धनों में बांधता हैं.

और मन ही सांसारिक बन्धनों से छुटकारा दिलाता हैं. इसीलिए कहा गया है कि जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया.

उक्ति का आशय – उक्ति का आशय जानने से पूर्व हमें सबसे पहले उक्ति को पूर्ण रूप में जान लेना भी आवश्यक प्रतीत होता है यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार हैं.

दुःख सुख सब कहँ परत हैं, पौरुष तजहु न मीत, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.

अर्थात इस संसार में दुःख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं, इसलिए मनुष्य को अपना पौरुष नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि हार और जीत मन के मानने और न मानने पर ही निर्भर करती हैं.

अर्थात मन के द्वारा हार स्वीकार किये जाने पर व्यक्ति की हार होती है इसके विपरीत मन के द्वारा हार न स्वीकार किये जाने पर विपरीत परिस्थतियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है,

जय- पराजय, यश- अपयश, दुःख-सुख और लाभ- हानि सब मन के कारण ही हैं. अतः जैसा मनुष्य मन से सोचेगा, वैसा ही बनेगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत.

मन के सम्बन्ध में विचार – गुरु नानक ने मन के सम्बन्ध में कहा है कि मन जीते, जग जीते, उन्होंने मन की जीत को महत्व दिया हैं. मन को जीतने का अर्थ है संसार को जीतना.

अतः मनुष्य को सबसे पहले अपने मन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए तभी वह दूसरों के मन को भी जीत सकता हैं. दिनकरजी ने कहा भी है कि हम तलवार से मनुष्य को पराजित कर सकते है उसे जीत नहीं सकते.

सच्ची जीत तो उसके मन पर अधिकार प्राप्त करना हैं. नीतिशास्त्र में लिखा है- मनस्विन सिंहमुपैति लक्ष्मी अर्थात दृढ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहो का ही लक्ष्मी वरण करती हैं. अतः मन की संकल्प शक्ति की सफलता की कुंजी हैं.

कार्य सम्पादन में मन की स्थिति – यदि मन स्थिर एवं विचारशील नहीं है तो हमारे लिए कर्म हमें विपरीत परिणाम देते हैं. मन की इच्छा और प्रेरणा से ही अच्छा बुरा फल मिलता हैं.

अतः इस चंचल मन को स्थिर व नियंत्रण में रखने का अभ्यास करना आवश्यक हैं. मन की चंचलता की ओर संकेत करते हुए कबीर ने कहा है मन के मते न चालिए मन के मते अनेक.

मन भौतिक वस्तुओं की ओर भागता हैं, पर भौतिक वस्तुएं तो तृष्णा है तृप्ति नहीं. अतः तृप्ति के लिए मन को जीतना आवश्यक हैं.

श्रीकृष्ण ने अर्जुन के दुर्बल मन को धैर्यशाली बनने का उपदेश दिया था. मन की संकल्प शक्ति और दृढता के कारण ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की दमन नीति का मुकाबला किया था, मन के हार जाने पर मनुष्य ही नहीं राष्ट्र तक पराजित हो जाता हैं.

मन विचारों का उत्पादक – हमारे विचारों का उत्पादक मन ही है इसलिए मनुष्य मन के विचारों से प्रभावित होकर कार्य करता है जैसा कि तुलसीदास ने लिखा हैं.

कर्म प्रधान विश्व रूचि राखा जो जस करहि सो तस फल चाखा

शुभ अशुभ, सत असत विचार मन में ही उत्पन्न होते हैं. उसी विचार भेद से कामी व्यक्ति के स्वभाव व कार्यों में अंतर आता हैं. जिस प्रकार यह संसार द्वंदात्मक है उसी प्रकार मन भी द्वंदात्मक हैं. कुविचारों से, असत से उसे सुविचारों, सत की ओर मोड़ना चाहिए.

उपसंहार – मन परम शक्ति सम्पन्न है. मन को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना का दूर करना भी आवश्यक हैं. यदि मन को अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे कमजोर बना लिया तो हम अपने आप को असंतुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे.

यदि मन को शक्ति सम्पन्न बनाकर रखेगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी नहीं होगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.

  • मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना पर निबंध
  • माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं निबंध 
  • सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध

उम्मीद करता हूँ फ्रेड्स मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay In Hindi का यह निबंध आपको पसंद आया होगा.

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One comment

mujhe bachpan ki yaad dila di joमेरे पित! जी कha karte the

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मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – It is the Mind which Wins and Defeats Essay In Hindi

Hindi Essay प्रत्येक क्लास के छात्र को पढ़ने पड़ते है और यह एग्जाम में महत्वपूर्ण भी होते है इसी को ध्यान में रखते हुए hindilearning.in में आपको विस्तार से essay को बताया गया है |

Table of Contents

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Essay On It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

  • प्रस्तावना,
  • उक्ति का आशय,
  • मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण,
  • कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति,
  • सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म,
  • मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Par Nibandh

प्रस्तावना :.

संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

उक्ति का आशय–मन के महत्त्व पर विचार करने के उपरान्त प्रकरण सम्बन्धी उक्ति के आशय पर विचार किया जाना आवश्यक है। यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार है-

दुःख–सुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहु न मीत।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।

मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

कर्म के सम्पादन में मन की शक्ति :

प्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

सफलता की कुंजी : मन की स्थिरता, धैर्य एवं सतत कर्म–वस्तुत: मन सफलता की कुंजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा।

मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए?–प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा

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मन जीते जग जीत निबंध Man jeete jag jeet essay in hindi

Man jeete jag jeet essay in hindi.

हम सभी के जीवन में हमारा मन एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है मन ही हमको शक्तिशाली बनाता है हम यदि कोई कार्य करते हैं तो मन ही हमें उस कार्य को करने की प्रति इच्छा शक्ति प्रदान करता है यदि हमको कोई कार्य करते समय परेशानी आती है तो मन ही होता है जो हमको उस कार्य को करने के प्रति पीछे हटा देता है जिससे हम जीवन में सफलता की ओर बढ़ने से पहले ही रुक जाते हैं और मन ही होता है जो हमको उस कार्य को करने के प्रति विश्वास दिलाता है, हमारी इच्छा शक्ति जागृत करता है और हम जीवन में आगे बढ़ते चले जाते हैं।

Man jeete jag jeet essay in hindi

वास्तव में यह बात पूरी तरह सत्य है कि जिसने मन जीते उसने जग जीता. हम यदि इस पूरी दुनिया में कुछ करना चाहते हैं, नाम कमाना चाहते हैं, सफलता अर्जित करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमको जग जीतने से पहले अपने मन को ही जीतना चाहिए क्योंकि मन ही होता है जो एक इंसान को गरीब और दूसरे इंसान को अमीर बना देता है। मन की जीत सबसे बड़ी जीत हो सकती है क्योंकि अगर मन हमारे बस में है तो हम बड़े से बड़ा कार्य कर सकते हैं और उसमें सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

कई बार ऐसा होता है कि आप कोई ऐसा कार्य करते हो जिसमें सफलता कुछ ही दूरी पर है आप अगर थोड़ा सा भी प्रयास करते तो उसमें सफलता प्राप्त जरूर कर लेते है लेकिन यह मन होता है जो आपके कदम पीछे करवा देता है और आप की अभी तक की मेहनत बेकार हो जाती हैं. जिंदगी के किसी भी पहलू में मन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मन ही एक विद्यार्थी को सुबह जल्दी नही जागने देता और पढ़ाई नहीं करने देता। जिससे वह विद्यार्थी पीछे रह जाता है मन ही एक विद्यार्थी को अच्छी तरह से पढ़ाई करने पर जोर देता है। वास्तव में सफलता प्राप्त करने में मन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है सबसे पहले हमें अपने मन को जीतना चाहिए उसके बाद ही किसी और विषय पर हमें सोचना चाहिए।

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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध | Essay on “It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi

hindi essay on man jeete jag jeet

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध | Essay on “It is the Mind which Wins and Defeats” in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

“जो भी परिस्थितियाँ मिलें , काँटे चुभें कलियाँ खिले,

हारे नहीं इंसान , है संदेश जीवन का यही ।”

मनुष्य का जीवन चक्र अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा होता है जिसमें सुख- दु:खु, आशा-निराशा तथा जय-पराजय के अनेक रंग समाहित होते हैं । वास्तविक रूप में मनुष्य की हार और जीत उसके मनोयोग पर आधारित होती है । मन के योग से उसकी विजय अवश्यंभावी है परंतु मन के हारने पर निश्चय ही उसे पराजय का मुँह देखना पड़ता है ।

मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्‌वारा होता है । मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से है । मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते हैं हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता है । हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है। हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है ।

परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं ।

हमारे चारों ओर अनेकों ऐसे उदाहरण देखने को मिल सकते हैं कि हमारे ही बीच कुछ व्यक्ति सदैव सफलता पाते हैं । वहीं दूसरी ओर कुछ व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते चले जाते हैं । दोनों प्रकार के व्यक्तियों के गुणों का यदि आकलन करें तो हम पाएँगे कि असफल व्यक्ति प्राय: निराशावादी तथा हीनभावना से ग्रसित होते हैं ।

ऐसे व्यक्ति संघर्ष से पूर्व ही हार स्वीकार कर लेते हैं । धीरे-धीरे उनमें यह प्रबल भावना बैठ जाती है कि वे कभी भी जीत नहीं सकते हैं । वहीं दूसरी ओर सफल व्यक्ति प्राय: आशावादी व कर्मवीर होते हैं । वे जीत के लिए सदैव प्रयास करते हैं ।

कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।

मन के द्‌वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्‌वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।

अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्‌धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।

सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है । एक-दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंतत: विजयश्री उसे ही प्राप्त होती है ।

इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।

हालाकि कई बार परिस्थितियाँ अथवा जमीनी सचाइयों इतनी भयावह होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता परंतु दृढ़निश्चयी बनकर वह धीरे-धीरे ही सही परिस्थितियों को अपने वश में कर सकता है । अत: संकल्पित व्यक्ति समय की अनुकूलता का भी ध्यान रखता है ।

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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत Man Ke Haare Haar – Man ke Jeete Jeet

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत Man Ke Haare Haar - Man ke Jeete Jeet

इस लेख में जानें और पढ़ें ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पंक्ति पर निबंध Essay on ‘Man Ke Haare Haar, Man ke Jeete Jeet’.

लम्बी टाँगे हो जाने से, सफर नहीं कटता है जो मन से लंगड़ा हो जाये, उसे कौन चला सकता है

मनुष्य जीवन में विभिन्न तरह की परिस्थितियां आ सकती हैं। जिनका मनुष्य को सामना करना ही पड़ता है। परिस्थितियां कई तरह की हो सकती हैं – अच्छी या बुरी, हार या जीत आदि। मनुष्य जीवन भर अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लगा रहता है। लेकिन वे उद्देश्य पूरे न हो पाएं तो वह निराश हो जाता है और वह अपने आप को असफल मान लेता है।

लोगों की सोच का सीधा सम्बन्ध उसके मस्तिष्क से होता है। अगर वह नकारात्मक सोच रखता है तो परिणाम भी नकारात्मक होते हैं और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी के विपरीत यदि मनुष्य ये सोचे कि वह सारे कार्यों को साकार कर सकता है, सकारात्मक सोच रखता है तो कई सारी समस्याएं हल हो सकती हैं।

मनुष्य के जीवन में कई सारी ऐसी अवस्थाएं आती हैं जिसमें वह हताश हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह बिना किसी प्रयास के ही हार मान लेता है। किसी भी समस्या का हल हार मान लेने से तो नहीं निकलता। इसीलिए हमें हमेशा अपने कार्यों को सुचारु रूप से करते रहना चाहिए चाहे हमें जितनी भी असफलताएं मिले।

बार-बार असफल होने वाला व्यक्ति ही कोशिश करने पर सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। अगर आप इस सोच के साथ जीते हो कि सफलता अवश्य मिलेगी तो आपको सफलता जरूर मिलेगी, लेकिन आप पहले से ही अगर हार मान लोगे तो आप अपना बेस्ट देने में भी असक्षम हो जाओगे।

राष्ट्र कवि स्व. श्री मैथली शरण गुप्त जी ने भी कहा है कि “नर हो न निराश करो मन को”

अर्थात यह जीवन अमूल्य है, जीवन में अगर कोई विपत्ति या परेशानी आ भी जाए तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इस तरह हार मान लेने से आप अगर निराश होते हो तो यह मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है। अपने मानव मूल्यों को आपको समझना चाहिए। अगर आप हार मान कर बैठ जायेंगे तो आप कार्यो को सही ढंग से नहीं कर पाएंगे।

अगर आपको यह मानव शरीर मिला है तो आपको अवश्य ही कुछ अच्छे कार्य करना चाहिए ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। जीवन में बड़ी सी बड़ी असफताए ही क्यों न आये लेकिन आपको हार नहीं मानना चाहिए। आपके कार्य दूसरों को प्रेरित करने के लिए हैं नाकि आप से लोगों को यह निराश होने की प्रेरणा मिले। इसीलिए लोगों के लिए आप प्रेरणा बने। जिससे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सके।

सोचना एक स्टेट ऑफ़ माइंड है। कुछ ऐसी घटनाओं को यहाँ बताया जा रहा है जिससे आप समझ सकते हैं कि ये सिर्फ आपकी मनोवृत्ति है। आप सोचिये कि आप गहरी नींद में हैं और एक सांप आपके पास से होकर निकल गया है।

तब आपको डर नहीं लगेगा क्योंकि आप सो रहे थे और सांप ने भी कुछ नहीं किया। लेकिन दूसरी तरफ जब आप जाग रहे हो और आपके काफी दूरी पर कोई सांप आ जाये तो आपकी डर के कारण हालत खराब हो जाएगी। जबकि सांप तो दूर है और उसने कुछ नहीं किया तब भी आप सोच कर परेशान हो गए।

अब दूसरा उदहारण – एक बार की बात है किसी बस में बहुत से यात्री सफर कर रहे थे। बस ठसा – ठस यात्रियों से भरी हुई थी। उसमें एक ब्राह्मण भी था जो खड़े होकर सफर कर रहा था। चूँकि बस बहुत भरी हुई थी तो उन्ही से सट कर खड़े हुए सह यात्री को किसी ने उसके नाम से आवाज़ लगाई।

ब्राह्मण ने वह नाम सुना और छी-छी करने लगा। क्योंकि उसके नाम से ब्राह्मण को लगा कि वह कोई नीची जाति का व्यक्ति है और वह उससे स्पर्श हो गया और वह अपवित्र हो गया। जबकि दोनों मानव शरीर ही हैं। जबकि कुछ देर पहले ब्राह्मण को उस व्यक्ति से कोई परेशानी नहीं थी। यह तो केवल लोगों की सोच का फर्क है। इसीलिए जैसा आप सोच लेते हो वैसा असर आप पर पड़ता है।

अगर जीवन में कभी आप हार जाये तो निराश होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि हार और जीत लगी ही रहती है। सफलता के साथ-साथ आपको असफलता का अनुभव होना भी जरुरी है। क्योंकि तभी आप एक पूर्ण व्यक्ति बन सकते हैं। और वैसे भी सफल-असफल जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है। सिर्फ एक मन का सोचना है इसीलिए सदा अपने अंदर सकारात्मक सोच को बनाये रखिये।

कहानी से समझें – कैसे (मन के हारे हार है, मन के जीते जीत) है

एक बार की बात है दो राज्यों के बीच युद्ध छिड़ गया। जो छोटा राज्य था वह बहुत डरा हुआ था। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वे हार जायेंगे क्योंकि उनके पास कम सैनिक थे। जबकि दूसरे राज्य के पास बहुत सारे सैनिक थे। इसी कारण से छोटे राज्य के सेनापतियों ने युद्ध में जाने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब हार निश्चित ही है तो क्यों युद्ध लड़ने के लिए जाएँ और उन्होंने पहले से ही हार मान ली। ऐसी स्थिति को देखकर राजा सोच में पड़ गया। लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था। तब राजा एक गांव में गया और एक फ़कीर से प्रार्थना की कि क्या आप मेरे युद्ध में मेरे सेनापति बनकर जा सकते हैं। तभी वहां खड़े सेनापति को आश्चर्य हुआ कि राजा एक ऐसे फ़कीर से युद्ध लड़ने को कह रहा है जिसने कभी युद्ध लड़ा ही नहीं न उसे युद्ध का कोई ज्ञान है। लेकिन फ़कीर ने राजा की बात मान ली। लेकिन सैनिकों को युद्ध में उस फ़कीर के साथ जाने में डर लग रहा था। लेकिन फ़कीर में युद्ध के प्रति जोश भरा था  और सैनिकों को उसके साथ जाना ही पड़ा। युद्ध में जाते हुए बीच में ही एक मंदिर में फ़कीर ने सबको रोका और कहा कि युद्ध में जाने से पहले भगवान की भी मर्ज़ी जान ले। उसने अपनी जेब में से एक सिक्का निकला और बोला मैं ये सिक्का उछालूँगा अगर ये सीधा आया तो जीत अपनी अगर उल्टा आया तो जीत दुश्मनों की होगी। उसने सिक्का उछाला और वह सीधा आया। तब फ़कीर ने सबसे कहा कि अब आप सभी निश्चिन्त हो जाओ। जीत हमारी ही होगी। हार के बारे में भूल जाओ क्योंकि सिक्का सीधा गिरा है और ईश्वर हमारे साथ है । फिर क्या था सभी ने मान लिया कि अब तो जीत पक्की है और युद्ध के लिए निकल पड़े और सभी को परास्त कर दिया। युद्ध जीत कर जब वे सभी लौट रहे थे तब वही मंदिर बीच में आया और सभी वहां रुक कर ईश्वर को धन्यवाद करने लगे कि आपकी कृपा से हम युद्ध जीत गए। तब फ़कीर बोला कि चलते – चलते जरा एक बार इस सिक्के को भी देख लो। फ़कीर ने सिक्का सबको दिखाया तब सबने देखा कि वह सिक्का तो दोनों तरफ से सीधा ही है। तब फ़कीर बोला कि तुम्हे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी सोच ने जिताया है क्योंकि तुम जीत की आशा से भर गए थे। हार को भूल गए थे। तो अब आप सभी को समझ में आ गया होगा कि हम जैसा सोचेंगे वैसा हमारे साथ होने लगेगा। हमने जीत के बारे में सोचा तो हमे जीत हासिल हुई। इसीलिए कहा जाता है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’।

जीवन में सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना सकारात्मक सोचते हैं। इसीलिए कभी हताश मत होइए, हमेशा सकारात्मक सोच रखिये जिससे आप सदा सफलता प्राप्त करेंगे। इसीलिए कहा जाता है – “ मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।”

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‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पर अनुच्छेद – Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi

‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ पर निबंध ( man ke hare har hai essay in hindi).

Man Ke Hare Har Hai Essay

Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi – मन ही वह सबसे बलवान तत्व है जिसे शरीर के सब अंगों हाथ पैर, नाक – कान आदि तथा जड़ चेतन सभी इन्द्रियों का राजा और प्रशासक स्वीकार किया गया है । हम या हमारी इन्द्रियाँ जो कुछ भी करती – कहती है, उन्हें करने – कहने का इरादा या विचार पहले मन ही में बनता है । उसके बाद, उसकी प्रेरणा से अन्य इन्द्रियां इच्छित कार्य की ओर सक्रिय हुआ करती है । अच्छा – बुरा जो कुछ भी होता है या किया जाता है वह सब मन की इच्छा और प्रेरणा से ही हो पाता है ।

मन को जितना बलवान अथवा ताकतवर समझा जाता है उतना ही इसे चंचल, जागरूक और चेतन अंग भी माना जाता है । तभी तो जब मन में शक्ति, उत्साह और उमंग होता है तो शरीर भी तेजी से कार्य करता है तथा जब मन हतोत्साहित होता है तो दुर्बलता का कारण बनता है ।

‘मन के हांरे हार है, मन के जीते जीत’ यह युक्ति मन के संदर्भ में ही किसी विचारवान  व्यक्ति ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर कहा है । यह सौ आने सच है व्यक्ति तब तक नहीं हारता जब तक कि उसका मन किसी काम से हार नहीं मान लेता । हो सकता है की एक – दो या चार बार कोई काम करते हुए व्यक्ति को असफल भी होना पड़ जाए पर यदि वह अपना यह विचार बनाए रखकर कि “हार नहीं मानना है” और निरंतर प्रयत्न करता रहता है कि मुझे अवश्य सफलता या जीत हासिल करना ही करना है तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता एवं विजय प्राप्त न हो ।

मानव मन में आई निराशा की भावना अकसर तन और मन दोनों को कमजोर बनाती है इसी कारण हर स्थिति में ‘मन बनाए रखने’, ‘मन को चंचल, अस्थिर, या डांवाडोल न होने देने’ की प्रेरणा दी जाती है क्योंकि मन मानव की समस्त इच्छाओं का केंद्र होता है जो वास्तविक हार और सच्ची जीत के रूप में व्यावहार में दिखाई पड़ता है ।

हर मनुष्य शारीरिक शक्ति की दृष्टि से लगभग बराबर होता है लेकिन उनमें मन की सबलता या मानसिक शक्ति की दृष्टि से अंतर होता है । शरीर तो केवल एक यन्त्र होता है जो भौतिक तत्वों से प्रभावित होता रहता है परन्तु मन, तन को शक्ति प्रदान करता है । जब तन थक जाता है तो मन उसे शक्ति प्रदान कर पुन: खड़ा कर देता है ।

इसलिए मनुष्य को अपनी मानसिक शक्ति बनाए रखने के लिए सदैव यह विचार करना चाहिए कि मन को दुर्बल करने वाले विचार न आने पाए क्योंकि मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है ।  जिस मनुष्य में जितनी इच्छाशक्ति बलवती होती है उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होता है ।

मनुष्य जीवन ही ऐसा जीवन है जहाँ परिस्थितियाँ पल – पल बदलती रहती है । ये परिस्थितियाँ सफलता – असफलता, जय – पराजय, हानि – लाभ किसी भी रूप में हो सकती है लेकिन जब ये  जीवन के मार्ग में विध्न – बाधाएँ या रूकावटे बनकर आती है तो साधारण मनुष्य का मन इन विपत्तियों को देखकर बहुत जल्दी हार स्वीकार कर लेता है जबकि प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के आधार पर उन पर विजय प्राप्त कर लेता है । विषम परिस्थितियों में और उन पर मानसिक दृढ़ता के कारण विजय प्राप्त करना, उसे महान बना देती है ।

कहने का मतलब है कि जो भी परिस्थितियाँ मिले पर हारे नहीं इंसान । मनुष्य जीवन का तो सन्देश यही है कि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का मन की दृढ़ता का होना बेहद जरुरी है । गुलामी और आतंकवाद के वातावरण में भी जब क्रांतिकारी विद्रोह का विगुल बजा लेते है और मुट्ठी भर हड्डियों वाले महात्मा गांधी विश्व विजयी जिन अंग्रेजों को देश से बाहर कर लेते है तो आखिर वह कौन सा बल था ? निश्चय ही यह थी मन की सबलता यानि मन से हार न मानने की सबलता ।

अगर मनुष्य अपने मन को किसी भी स्थिति में मरने न दे तो वह दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर एक बार मृत्यु को भी टाल सकता है । वास्तव में मन की दृढ़ता असंभव को भी संभव बना सकती है । अघटित को घटा सकती है ।

मनस्वी व्यक्ति का तो यही गुण होता है कि वह विषम परिस्थियों में भी कभी हारता नहीं । लक्ष्य तक न पहुँच पाकर भी वह मन में यह संतोष लेकर प्राण त्यागा करता है कि उसने अंत तक पहुँचने का प्रयत्न तो किया । यह संतोष भी निश्चय ही एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है, जो किसी-किसी को ही प्राप्त हो पाती है ।

आम जीवन में भी एक कहावत है – “जी है, तो जहान है । ” वास्तव में यह कहावत उचित है । जिसका जी या मन ही बुझ जाता है, सब प्रकार की सुख सुविधाएँ पाकर भी उसका जीवन अपने लिए भी बोझ समान हो जाया करता है । इसके विपरीत जिसका मन दृढ़ रहता है, हर हाल में तरो ताजगी का अनुभव कर सकता है, वह कठोर अभावों में भी जी लेता है । एक न एक दिन सफलता भी पा लेता है । अत: जहान और जीवन को बनाए रखने के लिए सुखी – समृद्ध बनाने के जी को कभी भी पतला या क्षीण नहीं पड़ने देना चाहिए ।

मनुष्य जीवन में तो न चाहते हुए भी कठिन परिस्थितयाँ आ ही जाती है और मन भी एक बार को घबराने लगता है पर इसका कत्तई ये मतलब नहीं की हम हार मान ले बल्कि हमें ये सोच कर आगे बढ़ना चाहिए कि यह हमारी परीक्षा की घड़ी है । मानव इतिहास भी तो हमें यही प्रेरणा देता है कि ‘हिम्मते मर्दा मद्दे खुदा’ । अर्थात जो ब्यक्ति हिम्मत नहीं हारता, ईश्वर भी उसकी सहायता करता है । मन को सबल बनाएं रखने वाला सदैव विजयी होता है ।

नीति – शास्त्र ने भी कहा है – “मनस्विन: सिंहमुपैति लक्ष्मी:” अर्थात दृढ़ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहों का ही लक्ष्मी वरण किया करती है । गीता में श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि मन को कभी बुझने या मरने नहीं देना चाहिए । उसकी जाग्रति ही सक्रीयता की पर्याय है ।

अत: सफलता या जिंदादिली के लिए मन की दृढता आवश्यक है । हारा हुआ मन कभी कुछ नहीं कर पाता । जीता हुआ मन ही अंत में सफल हुआ करता है । इसलिए मन को हार के निकट तक भी नहीं फटकने देना चाहिए क्योंकि –

“जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,

मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते है । ”

सांच बराबर तप नहीं Click Here

संतोष ही सच्चा धन Click Here

जाको राखे साइयां मार सके न कोय Click Here

कल करे सो आज कर Click Here

जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं Click Here

घर का भेदी लंका ढाए Click Here

दोस्तों ! उम्मीद है उपर्युक्त ‘ मन के हारे हार है ‘ पर निबन्ध (Man Ke Hare Har Hai Essay In Hindi)  छोटे और बड़े सभी लोगों के लिए उपयोगी साबित होगा। गर आपको हमारा यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसमें निरंतरता बनाये रखने में आप का सहयोग एवं उत्साहवर्धन अत्यंत आवश्यक है। आशा है कि आप हमारे इस प्रयास में सहयोगी होंगे साथ ही अपनी प्रतिक्रियाओं और सुझाओं से हमें अवगत अवश्य करायेंगे ताकि आपके बहुमूल्य सुझाओं के आधार पर इस निबंध को और अधिक सारगर्भित और उपयोगी बनाया जा सके।

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Punjabi essay on “man jite jag jeet”, “ਮਨ ਜੀਤੈ ਜਗ ਜੀਤ” punjabi essay, paragraph, speech for class 7, 8, 9, 10, and 12 students in punjabi language..

ਮਨ ਜੀਤੈ ਜਗ ਜੀਤ

Man Jite Jag Jeet

ਭੂਮਿਕਾ – ਮਨ ਜੀਤੈ ਜਗ ਜੀਤ ਦੇ ਅਰਥ ਹਨ- ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਨਾਲ ਜਗ ਦੀ ਪਾਤਸ਼ਾਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਕਥਨ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਹੈ।

ਮੁੱਢ ਕਦੀਮ ਤੋਂ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਜਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੇ ਅਸਫ਼ਲ ਯਤਨ-ਮੁੱਢ ਕਦੀਮ ਤੋਂ ਸ਼ਕਤੀਵਰ ਤੇ ਸੂਰਬੀਰ ਮਨੁੱਖ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਰਾਜ ਕਰਨ ਦੀ ਲਾਲਸਾ ਕਰਕੇ ਮਾਰ ਧਾੜ ਤੇ ਖੂਨ-ਖਰਾਬਾ ਕਰਦਾ ਆਇਆ ਹੈ। ਇਹ ਹਵਸ ਨੂੰ ਪੂਰਿਆਂ ਕਰਨ ਲਈ ਕੌਰਵਾਂ-ਪਾਂਡਵਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਵਿਚ ਮਹਾਂਭਾਰਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ।ਇਸ ਲਾਲਚ ਖ਼ਾਤਰ ਗੌਰੀਆਂ, ਗੱਜ਼ਨਵੀਆਂ ਤੇ ਅਬਦਾਲੀਆਂ ਆਦਿ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪਵਿੱਤਰ ਧਰਤੀ ਨੂੰ ਲਤਾੜਿਆ।ਇਸ ਲਾਲਚ ਪਿੱਛੇ ਵੀਹਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ 1914-18 ਈ. ਤੋਂ 1939-45 ਈ. ਵਿਚ ਦੋ ਮਹਾਨ ਯੁੱਧ ਹੋਏ ਅਤੇ ਹੁਣ ਤੀਜੇ ਲਈ ਜ਼ੋਰਾਂ-ਸ਼ੋਰਾਂ ਨਾਲ ਤਿਆਰੀਆਂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ।ਕਿੰਨੀ ਮਾਰੂ, ਉਜਾੜ, ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਤੇ ਵਿਨਾਸ਼ਕਾਰੀ ਇਹ ਲਾਲਸਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਹ ਕੁਝ ਬਾਬਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਗ ਨਹੀਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾਂਦਾ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚੱਕਰਵਰਤੀ ਰਾਜਾ ਨਹੀਂ ਬਣਿਆ ਜਾਂਦਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਜਗ ਦੀ ਬਾਦਸ਼ਾਹੀ ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਚੰਚਲ ਮਨ ਉੱਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਅਸਲ ਵਿਚ ਕਾਬੁ ਮਨ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਲਾਲਸਾ ਉਪਜਦੀ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਅਜਿਹੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਮਨ ਮਰਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਸਬਰ-ਸੰਤੋਖ ਰਾਜ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਦਾਨਵ ਸ਼ਕਤੀ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਮਨ ਅਤੇ ਜਗਨੂੰ ਜਿੱਤਣਾਹਰ ਜੀਵ ਵਿਚ ਦੋ ਸ਼ਕਤੀਆਂ-ਵ ਸ਼ਕਤੀ ਤੇ ਦਾਨਵ ਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ।ਦਿੱਵ ਜਾਂਦੇਵ ਸ਼ਕਤੀ ਸਦਾ ਸ਼ੁੱਭ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਪ੍ਰੇਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਦਾਨਵ ਜਾਂ ਭੂਤ ਸ਼ਕਤੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਵਿਸ਼ੇ-ਵਿਕਾਰਾਂ-ਕਾਮ, ਕਰੋਧ, ਲੋਭ, ਮੋਹ ਤੇ ਹੰਕਾਰ ਵੱਲ।ਉਸ ਪਾਣੀ ਦੀ ਚੰਚਲ ਮਨ ਤੇ ਜਿੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਮਨ ਦੀਆਂ ਵਾਗਾਂ ਦਿੱਵ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ।ਉਹ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਹੀ ਜਿੱਤਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਮਨ ਕਾਬੂ ਕਰ ਕੇ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਗੁਣਾਂ ਸਦਕਾਜਗਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਜਗ ਦੇ ਰਚਨਹਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਨਾਨਕ ਦੇਵ, ਮਹਾਤਮਾ ਬੁੱਧ ਤੇ ਯਸੂ ਮਸੀਹ ਆਦਿ ਅਜਿਹੇ ਮਹਾਂ ਵਿਅਕਤੀ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ੁੱਭ ਕਰਮਾਂ ਸਦਕਾ ਜਗ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਜਿੱਤਿਆ ਤੇ ਇਹ ਹੁਣ ਵੀ ਲੁਕਾਈ ਦੇ ਮਨਾਂ ਤੇ ਰਾਜ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹੁਣ ਵੀ ਲੋਕੀਂ ਗੁਰੂ ਪੀਰ ਜਾਂ ਪੈਗੰਬਰ ਜਾਣ ਕੇ ਸਿਮਰਦੇ, ਸਤਿਕਾਰਦੇ ਤੇ ਵਡਿਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਰਹਿੰਦੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤਕ ਪੁਜਦੇ-ਪਿਆਰਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।

ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦਾ ਢੰਗ – ਪਹਿਲਾਂ ਪਹਿਲ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਘਰ-ਬਾਰ ਛੱਡ ਕੇ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿਚ ਆਸਣ ਜਮਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ, ਵਿਭੁਤੀ ਮਲੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਅਨੇਕ ਕਸ਼ਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਕੁਝ ਕਰਨੋਂ ਮੋੜਿਆ ਅਤੇ ਹਿਸਤ ਵਿਚ ਰਹਿ ਕੇ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਆ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੈਵੀ ਗੁਣਾਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਸਰਬ-ਸਾਂਝੇ ਧਰਮ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸੱਚੇ-ਸੁੱਚੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬਣਨ ਲਈ ਇਹ ਰਾਹ ਦੱਸਿਆ-

ਮਿਹਰੁ ਮਸੀਤ , ਸਿਦਕ ਮੁਸਲਾ , ਹੱਕ ਹਲਾਲ ਕੁਰਾਨ । ਸਰਮ ਸੁਨਤ , ਸੀਲ ਰੋਜ਼ਾ , ਹੋ ਮੁਸਲਮਾਨ ॥ ਕਰਣੀ ਕਾਬਾ , ਸਚੁ – ਪੀਰ , ਕਲਮਾ ਕਰਮ ਨਿਵਾਜ ॥ ਤਸਬੀ ਸਾਤਿਸੁ ਭਾਵਸੀ , ਨਾਨਕ ਰਖੈ ਲਾਜ ॥

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਭੇਖ-ਰਹਿਤ ਰਾਹ ਦੱਸਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਆਖਿਆ:

ਮੁੰਦਾ ਸੰਤੋਖ , ਸਰਮੁ ਪਤੁ ਝੋਲੀ , ਆਨ ਕੀ ਕਰਹਿ ਬਿਭੂਤਿ ॥ ਖਿੰਥਾ ਕਾਲੁ ਕੁਆਰੀ ਕਾਇਆ , ਜੁਗਤਿ ਡੰਡਾ ਪਰਤੀਤਿ ॥

ਉਨ੍ਹਾਂ ਹਰ ਇਕ ਨੂੰ ਸਰਬ-ਸਾਂਝੇ ਧਰਮ ਦਾ ਅਨੁਯਾਈ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਆ ਅਤੇ ਕਾਮ, ਕਰੋਧ, ਲੋਭ, ਮੋਹ ਤੇ ਹੰਕਾਰ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਸ਼ੁੱਭ ਕਰਮ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਨੇਹਾ ਦਿੱਤਾ।

ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ – ਵੀਹਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਦੀ ਅਹਿੰਸਾ ਤੇ ਸਤਿਆਗ੍ਰਹਿ ਦੀ ਨੀਤੀ ਵੀ ਦੱਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਮਨ ਤੇ ਇੰਨਾ ਕਾਬੂ ਹੋਵੇ ਕਿ ਵਿਰੋਧੀ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਨੂੰ ਅਮਨ-ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਾਲ ਜਰਿਆ ਜਾ ਸਕੇ |ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਪਰਾਧੀ ਦੀ ਆਤਮਾ ਕੰਬ ਉੱਠਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਹੋਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰਤ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ।ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੀਹਵੀਂ ਸਦੀ ਦਾ ਅਮਨ ਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਅਵਤਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਡੋਲਦਾ ਨਹੀਂ – ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਜ਼ਰਾ ਭਰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਡੋਲ੍ਹਦਾ। ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੇਲੇ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਨੂੰ ਖਰੀਆਂ-ਖਰੀਆਂ ਸੁਣਾਈਆਂ:

ਰਾਜੇ ਸ਼ੀਹ ਮੁਕੱਦਮ ਕੁੱਤੇ , ਜਾਇ ਜਗਾਇਨ ਬੈਠੇ ਸੁੱਤੇ ਜਾਂ ਕਲ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਸਾਈ , ਧਰਮ ਪੰਖ ਕਰ ਉਡਰਿਆ ॥ ਕੁੜ ਅਮਾਵਸ ਸਚ ਚੰਦਰਮਾ , ਦੀਸੈ ਨਾਹੀ ਕੈ ਚੜਿਆ ॥

ਸਿੱਟਾ – ਉਹ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਵਾਂਗ ਤੱਤੀ ਤਵੀ ਜਾਂ ਉਬਲਦੀ ਦੇਗ ਵਿਚ ਹੀ ਸਮਾਧੀ ਲਾ ਕੇ ‘ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਮੀਠਾ ਲਾਗੇ’ ਦਾ ਗੀਤ ਮਿੱਠੀ ਸੁਰ ਨਾਲ ਗੁਣਗੁਣਾਉਂਦਾ ਹੈ।ਉਹ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਵਾਂਗ ਖਿੜੇ ਮੱਥੇ ਆਪਣਾ ਸਰਬੰਸ ਵਾਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਸੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ।ਉਹ ਮਨਸੂਰ ਵਾਂਗ ਬਲੀ ਤੇ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਵੀ ‘ਅਨਹਲਕ` ਕਹਿਣੋਂ ਨਹੀਂ ਟਲਦਾ ਤੇ ਮੌਤ ਨਾਲ ਮਖੌਲਾਂ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਯੋਗੀ ਤਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ਪਰ ਅਸਲ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਮਨ ਉੱਪਰ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇ ਮਨ ਜਿੱਤ ਲਿਆਉਹ ਤਨ ਤੇ ਉਸ ਪਿਛੋਂ ਜਗ ਦਾ ਜੇਤੂ ਹੋ ਨਿਬੜਦਾ ਹੈ।

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ਲੇਖ : ਮਨਿ ਜੀਤੈ ਜਗੁ ਜੀਤ

ਮਨਿ ਜੀਤੈ ਜਗੁ ਜੀਤ.

ਅਰਥ : ‘ਮਨਿ ਜੀਤੈ ਜਗੁ ਜੀਤੁ’ ਤੁਕ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਉਚਾਰਨ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਇਹ ਬਾਣੀ ‘ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀ 27ਵੀਂ ਪਉੜੀ ਵਿੱਚ ਦਰਜ ਹੈ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅਟੱਲ ਸਚਾਈ ਨੂੰ ਬਿਆਨ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਕੇ ਹੀ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਣ ਦੇ ਸਮਰੱਥ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਭਾਵ ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਜੱਗ-ਜੇਤੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਕੀ ਹੈ ? : ਮਨ ਸਰੀਰ ਦਾ ਇੱਕ ਸੂਖਮ ਅੰਗ ਹੈ ਜੋ ਦਿਸਦਾ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਅਨੁਭਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਅਛੋਹ ਹੈ। ਇਹ ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰਕ ਢਾਂਚੇ ਨੂੰ ਚਲਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਟਿਕਾਣਾ ਦਿਮਾਗ਼ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਕਿ ਦਿਲ ਛਾਤੀ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਮਨ ਅੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਣ, ਕੰਨਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ, ਨੱਕ ਨੂੰ ਸੁੰਘਣ, ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਕੰਮ ਕਰਨ ਅਤੇ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਤੁਰਨ-ਫਿਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦਿੰਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਚੰਚਲ ਹੈ : ਮਨ ਚੰਚਲ ਹੈ। ਇਹ ਭਟਕਦਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਮਨ ਹੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਸਾਡੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ, ਲਾਲਸਾਵਾਂ, ਉਮੰਗਾਂ ਤੇ ਸਧਰਾਂ ਪਲਦੀਆਂ ਹਨ। ਮਨ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਸਾਡੀਆਂ ਗਿਆਨ ਇੰਦਰੀਆਂ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਇੱਛਾਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜੋ ਮਿਰਗ-ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਵਾਂਗ ਵਧਦੀਆਂ ਹੀ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਇਹਨਾਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਨਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਮਨੁੱਖ ਦੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ : ਦੁੱਖਾਂ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣ ਤੇ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਤਰੱਕੀ ਪਾਉਣ ਲਈ ਮਨ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ। ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਭਾਣੇ ਅਨੁਸਾਰ ਚੱਲ ਕੇ ਆਪਣੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸੀਮਿਤ ਘੇਰੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖਦਾ ਹੈ, ਹਮੇਸ਼ਾ ਸੁੱਖੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।

ਸੁੰਨ-ਅਵਸਥਾ ਤੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਮੇਲ : ਸੁੰਨ ਹੋਏ ਮਨ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜੱਗ-ਜੇਤੂ ਹੋ ਕੇ ਚੁਰਾਸੀ ਕੱਟ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਜੰਮਣ-ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ ਪੈਂਦਾ। ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਵਿਚਾਰ, ਫੁਰਨੇ ਤੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾਵਾਂ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਉਹ ਸੰਤੋਖੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਮੰਗਿਆਂ ਸਭ ਕੁਝ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਹੁਣ ਤੱਕ ਪ੍ਰਭੂ-ਭਗਤਾਂ ਨੂੰ ਇਹੀ ਅਨੁਭਵ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਈਸ਼ਵਰ ਮਨ ਦੇ ਮਰ ਜਾਣ ਨਾਲ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜਦ ਅਜਿਹੇ ਮਨ ਦੇ ਜੇਤੂ ਨੂੰ ਰੋਸ਼ਨੀ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤਦ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਦਾ ਹੈ ਤੇ ਜੱਗ-ਜੇਤੂ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਇੰਨ-ਬਿੰਨ ਜਿਵੇਂ ਇੱਕ ਦੀਵਾ ਆਪਣੀ ਜੋਤ ਨਾਲ ਅਨੇਕ ਦੀਵੇ ਜਗਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ।

ਮਨ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾਵੇ : ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਾਧੂ-ਸੰਤਾਂ ਨੇ ਘਰ-ਬਾਹਰ ਛੱਡ ਕੇ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਡੇਰੇ ਲਾ ਲਏ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਘੋਰ ਤਪੱਸਿਆ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਝਾਗੀਆਂ ਪਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗ੍ਰਹਿਸਤ ਵਿੱਚ ਰਹਿ ਕੇ ਮਾਇਆ ਤੋਂ ਨਿਰਲੇਪ ਰਹਿਣ ਦਾ ਮਾਰਗ ਦੱਸਿਆ। ਭਗਤ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਭਗਤ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਦਾ ਸੰਸਾ ਦੂਰ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਹੱਥਾਂ-ਪੈਰਾਂ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਮਨ ਨੂੰ ਨਾਮ-ਸਿਮਰਨ ਦੁਆਰਾ ਈਸ਼ਵਰ ਨਾਲ ਜੋੜਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ।

ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾਵਾਂ ਦਾ ਤਿਆਗ : ਧਰਮ ਦੀ ਸਾਰੀ ਸਾਧਨਾ ਮਨ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਹੈ। ਜਾਨ-ਮਾਰੀ ਕਰ ਕੇ ਸੰਸਾਰਕ ਲੋੜਾਂ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਹੱਦ ਤੱਕ ਪੂਰੀਆਂ ਹੋ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ ਪਰ ਨਾ ਮਨ ’ਤੇ ਨਾ ਜੱਗ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਈਸ਼ਵਰ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ ਤਾਂ ਮਨ ਮਾਰਨ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਸਹੀ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਬਣਨ ਲਈ ਮਨ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿੱਚ ਰੱਖ ਕੇ ਫ਼ੁਰਨਿਆਂ ਤੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾਵਾਂ-ਰਹਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਸਹਿਜ – ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਵਿਚਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਧਾਰਨ ਕਰ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ ’ਤੇ ਚੱਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਮਨ ਸੰਸਾਰ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਟਕਰਾਉਂਦਾ ਤੇ ਜਗਤ-ਜੇਤੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਹਿੰਸਾ ਨਾਲ ਜੱਗ ਨਹੀਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ : ਮੁੱਢ-ਕਦੀਮ ਤੋਂ ਹਿੰਸਾ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ ਜੱਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਅਥਵਾ ਚੱਕਰਵਰਤੀ ਰਾਜਾ ਬਣਨ ਲਈ, ਮਾਰ-ਧਾੜ ਤੇ ਖ਼ੂਨ-ਖ਼ਰਾਬਾ ਕਰਦੇ ਆਏ ਹਨ। ਤ੍ਰੇਤੇ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਰਾਮ-ਰਾਵਣ ਵਿੱਚ ਲੰਕਾ ਵਿਖੇ, ਦੁਆਪਰ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਕੌਰਵਾਂ-ਪਾਂਡਵਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਵਿੱਚ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ ਕਲਜੁਗ ਵਿੱਚ ਗ਼ੋਰੀਆਂ, ਗ਼ਜ਼ਨਵੀਆਂ ਤੇ ਅਬਦਾਲੀਆਂ ਆਦਿ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਤਬਾਹੀ-ਬਰਬਾਦੀ ਕੀਤੀ ; ਵੀਹਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ੧੯੧੪-੧੮ ਈ: ਅਤੇ ੧੯੩੯-੪੫ ਦੇ ਦੋ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਹੋਏ ਤੇ ਤੀਜੇ ਲਈ ਕਮਰ-ਕੱਸੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ਪਰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾ ਕੋਈ ਜੱਗ ਜਿੱਤ ਸਕਿਆ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦੀ ਦੁਨੀਆ ਤੱਕ ਜਿੱਤ ਸਕੇਗਾ।

ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਤੋਂ ਨਾ ਘਬਰਾਉਣਾ : ਜਿਵੇਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਲਈ ਹਨੇਰੇ ਤੋਂ ਲੰਘਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ; ਇਵੇਂ ਹੀ ਮਨ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਔਕੜਾਂ ਦੂਰ ਹੋ ਕੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਨੂੰ ਨਿਖਾਰ ਕੇ ਰੱਬ-ਰੂਪ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਜਗਤ-ਜੇਤੂ ਬਣ ਕੇ ਨਿਰਭਉ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵੇਲੇ ਦੇ ਜ਼ਾਲਮ ਹਾਕਮਾਂ ਨੂੰ ਖਰੀਆਂ ਤੇ ਖਰ੍ਹਵੀਆਂ ਸੁਣਾਈਆਂ :

ਰਾਜੇ ਸ਼ੀਂਹ ਮੁਕਦਮ ਕੁਤੇ॥ ਜਾਇ ਜਗਾਇਨਿ ਬੈਠੇ ਸੁਤੇ॥ ਕਲ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਾਸਾਈ ਧਰਮ ਪੰਖ ਕਰ ਉਡਰਿਆ॥ ਕੂੜ ਅਮਾਵਸ ਸਚ ਚੰਦਰਮਾ ਦੀਸੈ ਨਾਹੀ ਕੈ ਚੜ੍ਹਿਆ॥

(ਵਾਰ ਮਾਝ ਮ: 1)

ਸਾਰੰਸ਼ : ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਨ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਸਾਰ ਉੱਤੇ ਬੜੇ-ਬੜੇ ਕਾਰਨਾਮੇ ਕਰਕੇ ਵਿਖਾਏ ਹਨ। ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਮਨੁੱਖੀ ਮਨ ਦੇ ਟਿਕਾਅ ਵਿੱਚੋਂ ਹੀ ਪੈਦਾ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਤਪੱਸਿਆ ਮਨ ਦੀ ਇਕਾਗਰਤਾ ਨਾਲ ਹੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਸਾਰੇ ਇਲਮ, ਗਿਆਨ ਤੇ ਹੁਨਰ ਇਕਾਗਰ ਮਨ ਦੀ ਹੀ ਕਿਰਤ ਹਨ। ਜੋ ਲੋਕ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਪੂਜਣਯੋਗ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਲੋਕ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਆਦਰਸ਼ ਮੰਨਦੇ ਹਨ। ਇੰਞ ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਸਾਰੇ ਜੱਗ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।

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Hindi Essay on “Man ke Hare Har Hai, Man ke Jeete Jeet”, “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध”, for Class 6, 7, 8, 9, and 10, B.A Students and Competitive Examinations.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध. Man ke Hare Har Hai, Man ke Jeete Jeet. मन ही बन्धन का कारण बनता है, मन ही मोक्ष का। मन को ऊंचा रखने वाला अवश्य विजयी होता है; अतः हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' हमें हार की ओर नहीं; हमेशा जीत की ओर ही बढ़ना है और मन कोदृढ़-निश्चयी बनाकर बढ़ते जाना है। सफल-सार्थक जीवन व्यतीत करने का अन्य कोई उपाय नहीं है। मन क्योंकि सभी इच्छाओं का केन्द्र है, सभी दृश्य-अदृश्य इन्द्रियों का नियामक और स्वामी है; अत: व्यवहार के स्तर पर उसकी हार को वास्तविक हार और जीत को सच्ची जीत माना जाता है। इसीलिए मन पर नियंत्रण और मन की दृढ़ता की बात भी बात कही जाती है।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत हिंदी निबंध

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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत सूक्ति पर निबंध

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत सूक्ति पर निबंध .

संकेत बिंदु - (1) मन की अस्थिरता हार और एकाग्रता जीत (2) मन कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय से मुक्त (3) क्रियाएँ ज्ञान के अनुरूप न होने से भारत की दुर्दशा (4) मन के हारे हार की व्याख्या (5) उपसंहार।

मन की अस्थिरता हार और एकाग्रता जीत

मन की अस्थिरता मन की हार है और मन की एकाग्रता मन की जीत है। मन की अस्थिरता अर्थात् मन की चंचलता, ध्यान परिवर्तन। मन की एकाग्रता अर्थात् मन की सभी वृत्तियों की एक ही विषय में स्थिरता या दत्तचित्तता। पाठ याद करने बैठे हो, मन चंचल हो उठा, पहुँच गया दूरदर्शन के चित्रहार में। मन का हरण पाठ याद होने ही नहीं देगा। पाठ याद न होने का कारण मन की हार है। इसके विपरीत यदि मन की समग्र शक्ति को पाठ याद करने में लगा दिया तो पाठ निश्चित ही याद होगा। अर्जुन भी मछली की आँख का निशाना तभी लगा सका था, जब मन एकाग्र हो गया था। पाठ याद होना या मछली की आँख का भेदन मन की जीत है।

मन में विकल्प होना, मन का किसी निश्चय पर न पहुँचना, निराश हो जाना, हार है और संकल्प पर दृढ़ रहना मन की जीत। मन में यह या वह की स्थिति बन जाने से संदेह उत्पन्न हो जाता है। शेक्सपीयर के अनुसार, 'संदेह हृदय में भय उत्पन्न करता है, जिससे हमें जिस पर विजय प्राप्त करने का पूरा भरोसा होता है, उसी के आगे नत-मस्तक होना पड़ता है।' हजरतबल दरगाह (कश्मीर) में केन्द्रीय-सत्ता के विकल्प-मन के कारण ही भारत सरकार को आतंकवादियों के आगे नतमस्तक होना पड़ा। कोई कार्य करने का मन में होने वाला निश्चय 'संकल्प' है। जब नैपोलियन की सेना ने आल्प्स-पर्वत को दुर्लंघ्य मान पर उस पर चढ़ने से इंकार कर दिया तो वह स्वयं सैनिकों को ललकारते हुए आगे बढ़ा। उसने कहा-आल्प्स है ही नहीं। बस, आल्प्स-पर्वत नैपोलियन के संकल्प से पराजित हो गया। यही परिस्थिति महाराज रणजीतसिंह के सम्मुख उपस्थित हुई। अटक नदी की उफनती जलधारा को देखकर उनकी सेना ठिठक गई। महाराजा रणजीतसिंह यह कहते हुए कि-

सबै भूमि गोपाल की यामें अटक कहा? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा।

स्वयं आगे बढ़े और अपने घोड़े को नदी में उतार दिया। अटक-नदी परास्त हुई। सेना अटक के पार हुई। महाराजा रणजीतसिंह की विजय उनके दृढ़ संकल्प की विजय थी, मन के जीतने के कारण उनकी यह जीत थी।

स्मरण-शक्ति के अभाव में मानव दर-दर पराजय का मुख देखता है। परीक्षा में कमजोर स्मरण-शक्ति 'असफलता' का मुंह देखती है। पराजित मन से राष्ट्रीय चिंतन-मनन के कारण विश्व में भारत का तिरस्कार हो रहा था, किन्तु आज सबल मन के कारण (मन के जीतने से) वह विश्व राष्ट्रों में सम्मान का अधिकारी माना जाने लगा है।

मानसिक कार्यशक्ति की प्रचण्डता के कारण अमेरिका जीत दर जीत का वरण करता हुआ 'विश्व सम्राट्' बनने की चेष्टा कर रहा है। शक्ति की तीव्रता के बल पर ही मानव पग-पग पर विजयश्री का वरण करता है। स्वस्थ मन से चिंतन-मनन के कारण ही पाश्चात्य राष्ट्र उन्नति और समृद्धि का आलिंगन कर रहे हैं।

मन कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय से मुक्त

वैशेषिक दर्शन ने मन को उभयात्मक कहा है अर्थात् मन कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय, दोनों के गुणों से युक्त है। इसका अर्थ यह हुआ कि कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय का भेद ही 'हार' है और दोनों गुणों का मिलन जीत है। कामायनी के रहस्य सर्ग में ज्ञान और कर्म की विभिन्नता पर 'मन के हारे हार है' बात का समर्थन करते हुए जयशंकर प्रसाद जी लिखते हैं-

ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की। एक दूसरे से न मिल सके, यही विडम्बना है जीवन की।

क्रियाएँ ज्ञान के अनुरूप न होने से भारत की दुर्दशा

वर्तमान भारत की दुर्दशा का पूर्ण ज्ञान हमारी सत्ता को है, किन्तु क्रियाएँ ज्ञान के अनुरूप न होने से भारत की दुर्दशा होती जा रही है। यह भारतीय मन के हार के कारण हार है। दूसरी ओर पाश्चात्य राष्ट्र ज्ञान के अनुरूप क्रिया कर रहे हैं, वे विश्व में अपनी विजय पताका फहरा रहे हैं। यह उनके मन की जीत की जीत है। मन ही हार (अस्थिरता) के कारण दसियों वर्षों से भारत का परमाणु परीक्षण रुका हुआ था, पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मन की दृढ़ता प्रकट की तो पोखरण में परमाणु परीक्षण हो गया। विश्व के विकसित राष्ट्रों ने डराया भी तो उनकी परवाह न की। अन्ततः वे झुके और अब भारत का सम्मान करने लगे हैं। है न मन के जीते जीत।

मन के हारे हार की व्याख्या

'मन के हारे हार है' की व्याख्या करेंगे तो कहेंगे, मन के हारने से ही हार होगी। मन की हार है मन के बल की क्षीणता अर्थात् मनोबल का टूटना हार है। 'मन के जीते जीत' का तात्पर्य होगा 'मनोबल की तेजस्विता' । मनोबल ऊंचा है तो जीत चरण चूमेगी। देश स्वातन्त्र्य के समय कांग्रेसी नेताओं ने मुस्लिम लीग की कूटनीति के सम्मुख मानसिक हार मान ली थी, मनोबल टूट गया था। जिसका परिणाम हुआ भारत माता का अंग-विभाजन, देश का बंटवारा। उसके विरुद्ध अनेक आपत्तियों-विपत्तियों को सहते हुए भी मुस्लिमलीग का मनोबल बना रहा। उसकी जीत हुई। वह पाकिस्तान ले मरी।

द्वितीय विश्व-युद्ध में जापान प्रायः टूट चुका था, किन्तु उसका मनोबल नहीं टूटा था। इस मनोबल के बल पर टूटा हुआ जापान पुनः विश्व की महती शक्ति बन गया। महादेवी के शब्द, 'हार भी तेरी बनेगी, मानिनी जय की पताका' , सच सिद्ध हुए।

अर्जुन युद्ध लड़ने से पूर्व मानसिक दृष्टि से पराजित हो गया था, क्योंकि वह मन से हार चुका था। दूसरी ओर, भीष्म पितामह मृत्यु-शैया पर लेटे हुए भी इच्छा शक्ति से मृत्यु को रोके हुए थे। यह इच्छा-शक्ति मन की शक्ति थी। इसलिए वे शरशय्या पर पड़े हुए भी जीवित थे। 'मन के जीते जीत' को चरितार्थ कर रहे थे।

उपसंहार

जीवन की अनिवार्य स्थिति है- हार और जीत। दोनों का सम्बन्ध मनुष्य के मन से है। जहाँ मन की शक्ति सबल होगी, वहाँ जीत होगी।जहाँ मन की शक्ति क्षीण होगी, वहाँ पराजय होगी। मन की शक्ति तन को शक्ति प्रदान करती है, साहस का प्रणयन करती है, आशा को बलवती बनाती है, 'हारिए न हिम्मत' का उपदेश देती है, संकल्प को दृढ़ निश्चय में ढालकर हार को भी जीत में बदल देती है। संस्कृत सूक्ति भी है 

'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।'

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NOTION OF “MAN JEETEY JAG JEET” IN HEART OF DARKNESS

Profile image of Navdeep  Kaur

Man Jeetey Jag Jeet” in Japji Sahib by Guru Nanak is a world famous teaching of controlling over the desires of mind lest one gets corrupted by them. It means, one can win the world but one cannot easily win over the mind/ desires. Therefore, a man who ha s controlled his mind is greater than the one who has conquered the world. The characters – Marlow and Kurtz – in Joseph Conrad’s Heart of Darkness display such contrast. The present study is aimed at understanding the symbolic darkness in the novella in the light of above given line by Guru Nanak.

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This essay explores whether the strange atmosphere and queer incidents of Joseph Conrad’s Heart of Darkness are really strange and queer or they are the creation of the unconscious mind of one of the central character, Marlow. This paper offers a critical reading of Joseph Conrad’s Heart of Darkness to scrutinize the significance of the Uncanny through analyzing different images, symbols and incidents with the help of psychoanalytical theory of Sigmund Freud. Moreover, it delves into the Heart of Darkness to focus on one of the finer issues of psychoanalysis, the Uncanny. It also shows the strange feeling in Marlow about a so-called “dark” continent, Africa and its impact on his psychology as a purgation of his unconscious fear. Thus, an expedition into the heart of Africa turns into a study of the uncanny. Finally, it is arguable that these peculiar incidents and strange imageries are nothing but the creation of Marlow’s restless and unconscious mind which is in trance.

hindi essay on man jeete jag jeet

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This piece, originally written during my postgraduate studies of Humanities and Social Sciences at the Anglo-American University in Prague, is a comprehensive overview of Joseph Conrad's classic "Heart of Darkness" (2006 Norton Critical Edition), covering the context of the work, the plot, selected critical interpretations, and adding a Heideggerian reading of this text.

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The psychoanalysis of the plot development in Heart of Darkness encompasses Marlow’s journey not only into the heart of darkness at the center of Africa, but through the stages of the mind, both conscious and unconscious. Western Europe and its Women, including the Intended, represent the superego or the ruling conscience. Civilization, Righteousness, and Abundance are the rewards for following this superego of Western Europe. Marlow and the Outer and Inner Stations represent the ego or the mediating mind which balances the superego and the id. The ego, however, is in constant flux between governing the other two elements of the psyche. The id, represented by the Inner Station and Mr. Kurtz and his African Mistress, runs rampant as a set of uncoordinated, instinctual actions.

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This paper, written to fulfill a requirement for a class on British Modernism, analyses Joseph Conrad's novella, "Heart of darkness".

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Introduction Geographical discoveries and economic developments from the sixteenth to nineteenth and to the early half of twentieth centuries deeply influenced to every field of life from the politic to the literature, cultures and the lifestyles of people. The geographical discoveries and the need of imperial powers for the markets changed the balance. As the results of changes during the 16 th century, some governments such as Portugal, Russia, France and England became the great powers of the world in terms of colonialism and imperialism. Besides discovering new lands and markets they also advanced technologically that enabled them to dominate over their colonies. The aim of this study is to explain colonialism, imperialism and capitalism and their relationships. The colonization process will be discussed in terms of historical development and how it was started. In addition, colonialism process will be explained through its causes and effects. The study aims to focus on fifteenth and sixteenth century colonial period accepted as the beginning of modern colonialism and to emphasize the colonial and imperial ideologies of western nations not only among the Africans but also through the other parts of the world. The relationship between colonizer and colonized people will be discussed as a subject matter that shows different features in different periods of time. Decolonization is defined as the separation of the colonies from their colonizers. This works aims to represent changes and developments during the decolonization which cannot be associated with a certain period of time. The basic concepts related to the nineteenth century ideologies and attitudes of West toward Africans will be examined and discussed in order to clarify basic ideas that the novel reveals to the readers. Joseph Conrad's experiences of his childhood related to imperialism and colonialism, and the harsh circumstances that he witnessed will be discussed. The politic, and economic problems that change the way of his life, will be examined and also these problems he witnessed that is associated with his decisions and future are going to be explained in terms of their relations with his psychological problems which cause him to make same fatal mistakes. His life and his experiences, career and his devotion of the sea will be discussed in the sense that how this all affects his vision through his famous novella Heart of Darkness. Apparently, Joseph Conrad is very much influenced by his experiences and repressed memories which shape his literary perspective. Heart of darkness is discussed as one of the most famous literary texts written on the western imperial activities in the first half of the twentieth century. Joseph Conrad (1857-1924) is an eminent writer of postmodern literature who represents the colonial ideology of colonizer during the late of the nineteenth century. The main intention of famous writer is to draw attention to the exploitation of Africans and to illuminate what is going on through the dark center of Africa. The story is mainly based upon the experiences of Charlie Marlow, who associated with the writer. Joseph Conrad narrates Congo as a center of colonialism and imperialism upon the activities of western civilization that he witnessed. Colonizing activities of European countries in Heart of Darkness enable to perceive the brutality of colonization and imperialism. As a work of modern period Heart of Darkness not only represents the colonial and imperial facts about West in Africa and also it shows how western nations have certain attitudes against both Orient and the others who are rejected as primitive or undeveloped. The author also represents the general atmosphere of the Victorian period. The general views of Europeans towards Africans and their mistreatment will be examined through critical discussions of Hart of Darkness upon the views of the scholars and the critics in terms of colonization and imperialism. Besides, it represents the general condition of Africa in the nineteenth century and aims of Western civilizations. The book represents Africa as a common property of Europeans in the 19 th century.

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Punjabi Essay, Paragraph on "Mann Jite Jag Jeet", "ਮਨ ਜੀਤੇ ਜਗੁ ਜੀਤ" for Class 8, 9, 10, 11, 12 of Punjab Board, CBSE Students.

ਮਨ ਜੀਤੇ ਜਗੁ ਜੀਤ  mann jite jag jeet.

hindi essay on man jeete jag jeet

ਗੁਰਬਾਣੀ ਦਾ ਉਪਰੋਕਤ ਮਹਾਂਵਾਕ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਜੋਤ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਮਣੀ ਰਚਨਾ 'ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚੋਂ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਭਾਵ ਹੈ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਉਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਕੇ ਸਮੁੱਚੇ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਣ .. ਦੇ ਸਮਰਥ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੱਚਾ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਜੀਵ ਆਤਮਾ ਦੀ ਅਦਿਖ ਤੇ ਅਛੋਹ ਵਸਤੁ ਹੈ। ਇਹ ਸਾਡੀਆਂ . ਇੱਛਾਵਾਂ ਤੇ ਉਮੰਗਾਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਮਨ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ . ਚੰਗੇ ਬੁਰੇ ਕੰਮ ਲਈ ਉਕਸਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਜਦੋਂ ਇਹ ਪੂਰੀਆਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀਆਂ . ਤਾਂ ਦਖਾਵੀਆਂ ਸੋਚਾਂ ਦੇ ਵਹਿਣ ਵਲ ਲੈ ਤੁਰਦਾ ਹੈ। ਮਨ ਪਾਰੇ ਵਾਂਗ ਚੰ ਚਲੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਕਦੇ ਵੀ ਵਿਹਲਾ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ । ਕਈਆਂ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਬਾਂਦਰ ਨਾਲ ਉਪਮਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਇਸ ਦਾ ਵੀ ਪਿਉ ਹੈ। ਮਨ ਤਾਂ ਮਨੁੱਖ ਤੋਂ ਇਸ ਤਰਾਂ ਸਵਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਜਿਵੇਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਸੇ ਤੀਰਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਮੰਨ ਦੇ ਅਧੀਨ ਬੜੇ-ਬੜੇ ਸਾਧੂ, ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਜੋਤੂ ਵੀ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਜੋ ਵੀ ਲੜਾਈ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੋ ਕੇ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਇਕ ਵਾਰੀ ਸਿਕੰਦਰ ਆਪਣੀ ਫੌਜ ਨਾਲ ਬੜੇ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਹਾੜੀ ਦੀ ਚੋਟੀ ਤੇ ਬੈਠੇ ਸਾਧੂਆਂ ਪਾਸੋਂ ਦੀ ਲੰਆਂ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਸਿਕੰਦਰ ਨੂੰ ਸਲਾਮ ਤੱਕ ਨਾ ਕੀਤਾ । ਸਿਕੰਦਰ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਗੁੱਸਾ ਆਇਆ। ਉਸ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਇਸ ਤਰਾਂ ਕਰਨ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਬੇਇੱਜ਼ਤੀ ਸਮਝਾਂ । ਉਸ ਨੇ ਸਾਧੂਆਂ ਨੂੰ ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਆਖਿਆਂ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਤੇ ਕਾਫੀ ਰੋਅਬ ਵੀ ਪਾਇਆ। ਉਹਨਾਂ ਅਗੇ ਆਖਿਆ ਕਿ ਅਸੀਂ ਇਸ ਲਈ ਤੈਨੂੰ ਸਲਾਮ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਕਿ ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਗੁਲਾਮ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿਚ ਕਰ ਕੇ ਬੈਠੇ ਹਾਂ, ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਇਸ ਮਨ ਪਿਛੇ ਲੱਗ ਕੇ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਤਬਾਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਨੂੰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਲਾਮ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਸਿਕੰਦਰ ਬਹੁਤ ਸ਼ੁਰੂਮਿੰਦਾ ਹੋਇਆ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਧੂਆਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤਦੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਮਹਾਂ ਜੇ ਦੀ ਕੋਈ ਪਰਵਾਹ ਤੱਕ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਨੇ ਇਸ ਮਨ ਦੇ ਫੁਰਨਿਆਂ ਤੇ ਸੰਕਲਪ ਉਪਰ ਕਾਬੂ ਪਾ ਲਿਆ, ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਵੀ ਆਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਨ ਚੰਗੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਹੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰੇ ਤਾਂ ਵੀ ਮਨ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਆਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਮਨ ਜਿੱਤਿਆਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਦੁਖ ਸੁਖ ਇਕ -- ਬਰਾਬਰ ਹੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਦੁਖ-ਸੁਖ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਨਹੀਂ। ਮਨ ਦੀ ਇੱਛਿਆ ਪੂਰੀ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਸੁਖ ਹੈ, ਇੱਛਿਆ ਪੂਰੀ ਨਾ ਹੋਣ ਨੂੰ ਦੁਖ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਲਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਸਾਡੀ ਭਟਕਣੀ ਅਤੇ ਦੁਖ ਆਪੇ ਹੀ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਮਨ ਦੇ ਵਸ ਹੋ ਕੇ ਮਨੁੱਖ ਦਰ-ਦਰ ਧੱਕੇ ਖਾਂਦਾ ਹੈ, ਝੂਠ ਬੋਲਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਬੇਇੱਜ਼ਤੀ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਮਨ ਦੇ ਗੁਲਾਮਾਂ ਨਾਲ ਲੱਕੀ ਕੁੱਤਿਆਂ ਜਿਹਾ ਵਤੀਰਾ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਿਚ ਇਹ ਕਥਨ ਠੀਕ ਹੀ ਉਚਾਰਿਆ ਗਿਆ ਹੈ-ਸੁਖ ਕੇ ਹੇਤ ਬਹੁਤ ਦੁਖ ਪਾਵਤ ਸੇਵਾ ਕਰਤ , ਜਨ ਜਨਕੀ । ਜਿਹੜਾ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ 'ਲੱਕੀ ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਜਦੇ ਹਨ, ਉਸ ਦੀ ਇੱਜ਼ਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੈਂਰੀ ਪੈਂਦੇ ਹਨ। ਉਸ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਲਗਣਾ ਆਪਣਾ ਮਾਣ ਸਮਝਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਸਾਰੇ ਜਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦੇ ਹਨ।

ਉਹ ਲੋਕ ਜੋ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਸ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ, ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਕੀਆਂ ਨੂੰ ਕੀ ਉਮੀਦ ਰੱਖਣੀ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ? ਦੁਨੀਆ ਉਹਨਾਂ ਤੋਂ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਉਠਾ ਸਕਦੀ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਆਉਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਆਉਣਾ ਇਕ ਬਰਾਬਰ ਹੈ। ਕਿਸੇ ਠੀਕ ਹੀ ਆਖਿਆ ਹੈ-ਮਨ ਰਿਪੁ ਜੀਤਾ, ਸਭ ਰਿਪੂ ਜੀਤੇ-ਭਾਵ ਇਕ ਮਨ ਰੂਪ ਸ਼ਤਰੂ ਜਿੱਤਿਆ ਤਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸ਼ਤਰੂ ਜਿੱਤ ਲਏ । ਜੰਗਲਾਂ ਵਿਚ ਮਨ ਵਿਹਲਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਵਿਹਲੇ ਆਦਮੀ ਦਾ • ਮਨ ਸ਼ੈਤਾਨ ਦਾ ਚਰਖਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਕਬੀਰ ਜੀ ਫਰਮਾਉਂਦੇ ਹਨ :-

ਗ੍ਰਹਿ ਤਜਿ ਬਨ ਖੰਡੂ ਜਾਈਐ ਚੁਣ ਖਾਈਐ ਕਦਾ। ਅਜਹੁ ਬਿਕਾਰ ਨਾ ਛੋਡਈ, ਪਾਪੀ ਮਨ ਗੰਦਾ। 

ਮਨ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਰੱਖਣ ਲਈ ਚੰਗੇ-ਚੰਗੇ ਆਦਮੀਆਂ ਦੀ ਸੰਗਤ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ। ਇਹ ਸੰਗਤ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਸ਼ਬਦ ਸਿਖਾਏਗੀ ਤੇ ਉਸ ਸੰਗਤ ਵਿਚ ਅਜਿਹੇ ਗੁਣ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਕਿ ਆਦਮੀ ਦਾ ਮਨ ਸ਼ਾਂਤ ਰਹੇ, ਐਵੇਂ ਭਟਕਦਾ ਨਾ ਰਹੇ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਰੱਖਣ ਲਈ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਤੇ ਖਾਹਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਸੋ ਇਸ ਲਈ ਆਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮਨ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿਚ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੁਨੀਆ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿਚ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ।

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Punjabi Essay on “Man Jite Jag Jit”, “ਮਨ ਜੀਤੇ ਜੱਗ ਜੀਤ”, Punjabi Essay for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

ਮਨ ਜੀਤੇ ਜੱਗ ਜੀਤ

Man Jite Jag Jit

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ- ਭੂਮਿਕਾ, ਮਹਾਂਵਾਕ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੱਖ, ਮਨ ਉੱਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣਾ, ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਹੀ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਮਨ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾਵੇ, ਸੰਤੁਲਿਤ ਜੀਵਨ ਜੀਓ, ਗੁਰੂ ਉਪਦੇਸ਼ ਦੀ ਪਾਲਣਾ, ਸਾਰ-ਅੰਸ਼

ਭੂਮਿਕਾ- ਮਨ ਜੀਤੇ ਜੱਗ ਜੀਤ’ ਦਾ ਮਹਾਂਵਾਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਅਟੱਲ ਸੱਚਾਈ ਹੈ। ਇਹ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀ 27ਵੀਂ ਪਉੜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਤੁਕ ਹੈ। ਇਸ ਤੁਕ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਹੜਾ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਉੱਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਅਟੱਲ ਸੱਚਾਈ ਹਰ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਹਰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।

ਮਹਾਂਵਾਕ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੱਖ- ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਉਠਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਭ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਲਾਮ ਬਣਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਉਸ ਨੂੰ । ਤੰਗ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀਆਂ। ਜਿਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਜਾਂ ਵਾਸਨਾਵਾਂ ਉਪਰ ਕਾਬੂ ਨਹੀਂ ਪਾ ਸਕਦਾ, ਉਸ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ ਤੇ ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਪਰੇਸ਼ਾਨੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪ ਸੱਦਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਕੋਲ ਸੰਤੁਸ਼ਟੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਹਰ ਖੁਸ਼ੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਇਹ ਚਿੰਤਾ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਸਤਾਉਂਦੀ ਕਿ ਦੂਸਰਾ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਖੁਸ਼ ਹੈ ਨਾ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਕਦੇ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਈਰਖ਼ਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਕੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਮਿੱਤਰ ਦੋਸਤ ਕੋਲ ਮੇਰੇ ਨਾਲੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਹੂਲਤਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹਨ। ਉਸ ਦਾ ਸਬਰ ਸੰਤੋਖ ਉਸ ਦੀ ਸਭ = ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਖੁਸ਼ੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਾਲਾ ਜੱਗ ਦੀਆਂ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਉੱਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣਾ- ਮਨ ਕੀ ਹੈ ? ਇਸ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਸਾਡੀਆਂ ਗਿਆਨ ਇੰਦਰੀਆਂ ਮਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ। ਹਨ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਤੇ ਵਿਚਾਰ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਮਨ, ਹੀ ਚੰਗੀਆਂ-ਬੁਰੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਜੇ ਅਸੀ ਮਨ ਨੂੰ ਅਜਿਹੇ ਰਾਹ ਤੇ ਲੈ ਆਈਏ ਕਿ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਬਰੇ ਕੰਮ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ |ਹੀ ਨਾ ਕਰੇ। ਅਸੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਲਾਮ ਬਣਾਈਏ ਨਾ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਗੁਲਾਮ ਬਣੀਏ ਅਸੀਂ ਖੁਦਗਰਜ਼ ਨਾ ਬਣੀਏ ਤੇ ਹਮੇਸ਼ਾ ਆਪਣੇ ਲਾਭ ਦੇ ਨਾਲ ਦੂਸਰਿਆਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਵੀ ਧਿਆਨ ਰੱਖੀਏ।

ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ , ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਹੀ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਮਨ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰਾਂ ਸਮਝਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਾਲਾ ਮਨ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭੇਦਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।ਉਹ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਮਨ ਪੜ੍ਹਨ ਦੇ ਯੋਗ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਨਾਲ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਮਨ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਰੱਖਣ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਅਗਵਾਈਕਾਰ ਜਾਂ ਸਫ਼ਲ ਨੇਤਾ ਵੀ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਮਾਨਸਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।

ਮਨ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾਵੇ- ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੇ ਕਈ ਢੰਗ ਅਪਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪੁਰਾਤਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਜੋਗੀ ਸਾਧੂ ਆਦਿ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਤਪ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਅਸਰ ਮਨ ਨਾਲੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤਨ ਤੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਤਪ ਕਰ ਕੇ ਵੀ ਕਈ ਵਾਰ ਮਨ ਦੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਬਾਹਰ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦੀਆਂ। ਕਬੀਰ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਬਾਰੇ ਇਸ ਤਰਾਂ ਬਿਆਨ ਕੀਤਾ ਹੈ-

‘ਹਿ ਤਜਿ ਬਨਖੰਡ ਜਾਈਏ ਚੁਣ ਖਾਈਏ ਕੰਦਾ,

ਅਜਹੁ ਬਿਕਾਰ ਨਾ ਛੋਡਈ, ਪਾਪੀ ਮਨ ਮੰਦਾ।

ਸੰਤੁਲਿਤ ਜੀਵਨ ਜੀਓ- ਮਨ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਕਰਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਸੌਖਾ ਢੰਗ ਹੈ ਸਾਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰੋ। ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਪ੍ਰਤੀ ਫਰਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਲਾਲਸਾਵਾਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹੋ ਤੇ ਚਰਿੱਤਰ ਉੱਚਾ ਰਖੋ। ਕੰਵਲ ਦੇ ਫੁੱਲ ਵਾਂਗ ਚਿੱਕੜ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਰਹੋ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨੁੱਖ ਰੱਬੀ ਪਾਸੇ ਵੱਲ ਵੀ ਲੱਗਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਭੂ ਉਸ ਉੱਪਰ ਹਮੇਸ਼ਾ ਮਿਹਰਾਂ ਭਰਿਆ ਹੱਥ ਰੱਖਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਭੂ ਵੱਲ ਮਨ ਲਗਾਉਣਾ ਮਨ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਪਹਿਲਾ ਕਦਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਕਬੀਰ ਜੀ ਨੇ ਕੁਝ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਹੈ-

ਕਬੀਰ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੂਰਮੇ , ਬਾਹਿਆ ਬਾਨ ਜੋ ਏਕ।

ਲਾਗਤ ਹੀ ਭੁਇੰ ਗਿਰ ਪੜਾ , ਪਰਾ ਕਲੇਜੇ ਛੇਕ।

ਗੁਰੂ ਉਪਦੇਸ਼ ਦੀ ਪਾਲਣਾ- ਆਪਣੇ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ। ਗੁਰੂ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ (ਪਰਮਾਤਮਾ) ਦੇ ਚਰਨੀ ਲੱਗ ਕੇ ਮਨ ਹਉਮੈ ਤੇ ਵਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਸੰਸਾਰਿਕ ਇੱਛਾਵਾਂ ਤੇ ਲਾਲਸਾਵਾਂ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਉਹ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਕਿਸੇ ਨਾਲ ਸਾੜਾ, ਈਰਖਾ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦਾ।ਉਹ ਕਿਸੇ ਨਾਲ ਟਾਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ। ਉਸ ਲਈ ਸੋਨਾ-ਮਿੱਟੀ ਤੇ ਜੀਵਨ-ਮਰਨ ਬਰਾਬਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਮਨ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾ ਕੇ ਜੱਗ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼- ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੱਲਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੇ ਮਨ ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਜੀਵ-ਜੰਤੂ ਉਸ ਦੀ ਮਾਨਸਿਕ ਤਾਕਤ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦਾ ਜੇਤੂ ਬਣ ਕੇ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਜੇਤੂ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

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जीवन में खेलों का महत्त्व पर निबंध | Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh | Essay

In this article, we are providing an Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh | Essay in Hindi जीवन में खेलों का महत्त्व पर निबंध हिंदी में | Essay in 200, 300, 500, 600 words For Students. Importance Of Sports In Life Essay in Hindi.

जीवन में खेलों का महत्त्व पर निबंध | Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh

Jeevan Mein Khelo Ka Mahatva Essay in Hindi ( 300 words )

स्वस्थ शरीर जीवन की पहली आवश्यकता है। ठीक ही कहा गया हैं- पहला सुख निरोगी काया । स्वस्थ शरीर एक नियामत है। यदि मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक होगा तो वह सुखी रह सकेगा। निर्बल और अस्वस्थ व्यक्ति जीवन में कभी सफल तथा सुखी नहीं बन सकता। वह किसी भी काम को ठीक तरह से नहीं कर सकेगा। इसलिए हमें अपने स्वास्थ्य की ओर से कभी असावधान नहीं रहना चाहिए।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, खेलकूद, जिम्नास्टिक आदि अनेक साधन हैं। व्यायाम तथा जिम्नास्टिक से शरीर स्वस्थ तो रहता है, परन्तु इनसे मनोरंजन नहीं होता। ये दोनों साधन नीरस हैं। इसके विपरीत खेलों से व्यायाम के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। अतः व्यायाम और खेलकूद का गहरा सम्बन्ध है। यही कारण है कि विद्यार्थियों की रुचि व्यायाम की अपेक्षा खेल- में अधिक रहती -कूद है। वे खेलकूद में भाग लेकर स्वस्थ रहते हैं।

खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, इसके अतिरिक्त अन्य कई लाभ भी हैं। खेलो से मनोरंजन होता है, शरीर चुस्त रहता है, बुद्धि का विकास होता है। सहयोग, उदारता, मेलजोल, अनुशासन की भावना आदि गुण खेलों में भाग लेने से अपने-आप आ जाते हैं। खेलकूद में भाग लेने से खिलाड़ियों में खेल भावना का विकास होता है। स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार – “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।”

खेलों से केवल खिलाड़ियों का ही नहीं देखने तथा सुननेवालों का भी मनोरंजन होता है। क्रिकेट, हॉकी आदि के मैचों के अवसर पर रेडियो तथा टी० वी० पर लगी भीड़ इस बात का प्रमाण है। खेल के मैदान में खिलाड़ियों से अधिक उत्साह दर्शकों में दिखाई देता है। सभी देशों में खेलकूद पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर स्तर पर खेलों का आयोजन किया जाता हैं। विदेशों में खेलकूद पर अधिक ध्यान दिया जाता है। परन्तु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में इस ओर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए, नहीं दिया जा रहा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि खेलों में भाग लेकर हम अपना स्वास्थ्य तो ठीक रखते ही हैं साथ ही अपने विद्यालय, कार्यालय तथा देश का नाम भी उज्ज्वल करते हैं।

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आज के समय में ‘खेल’ स्कूली शिक्षा के अविभाज्य अंग बन गये हैं । हाल के दिनों में शिक्षाविदों, अध्यापकों और स्कूल प्रशासकों ने स्कूली जीवन में खेलों और क्रीड़ा के महत्व को अच्छी तरह से महसूस किया है । एक जमाना था जब खेलों को मांसपेशियों के लिए थोड़ा व्यायाम करने और छात्रों को विश्राम का समय देने के लिए ‘अवकाश का पीरियड’ भर माना जाता था, किन्तु आज इसके मूल्य को अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया गया है और इसे स्कूल के पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।

खेलों को स्कूल की पढ़ाई के साथ जोड़े जाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण या उद्देश्य है छात्रों की जन्मजात खेल प्रतिभा का विकास करना। यदि उचित अवसर प्रदान किये जाएँ तो ऊर्जा और उत्साह से भरे बच्चे खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। स्कूल केवल ऐसा स्थान मात्र नहीं है जहाँ केवल छात्र की मानसिक क्षमताओं का ही विकास किया जाता है बल्कि वह ऐसा स्थान भी है जहाँ वे अपनी छुपी हुई खेल प्रतिभाओं का भी विकास कर सकते हैं। हमारे देश की पी.टी. उषा, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, अंजू बॉबी जार्ज आदि कोई चाँद से उतरी हुई खेल प्रतिभाएँ नहीं हैं। उन्होंने अपने स्कूली जीवन के दौरान ही अपनी प्रतिभा को जाना- पहचाना और तराशा था ।

स्कूली जीवन की एकरसता को तोड़ने में खेलों के महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती। सामान्य तौर पर कई पीरियड की पढ़ाई के बाद खेलने का अवसर दिया जाता है। यह छात्रों को थोड़ा विश्राम लेने में सहायता करता है । यह उन्हें उत्साह और नई ऊजा प्रदान करता है। खेलों के माध्यम से मन- मस्तिष्क को कुछ देर के लिए पढ़ाई के दबाव से मुक्त रखने से बच्चे की सीखने की प्रक्रिया को तेजी मिलती है। आज हमारे बच्चे पढ़ाई के अत्यधिक बोझ से दबे होते हैं। इस संदर्भ में खेल उनके लिए राहत और ऊर्जा का स्रोत बन सकते हैं।

खेलों के शारीरिक लाभ के पक्ष की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। जब बच्चे आसपास दौड़ते हैं, घूमते-फिरते हैं और व्यायाम करते हैं और खेलों के जरिए खुली हवा में विभिन्न प्रकार की खेल गतिविधियों में लगे रहते हैं तो इससे शरीर को लाभ मिलता है। उनका शरीर विकसित होता है, मांसपेशियों का विकास होता है और मस्तिष्क को विश्राम मिलता है। यह उन्हें शारीरिक रूप से फुर्तीला और स्वस्थ बनाता है। डाक्टर अक्सर कहते हैं कि जो बच्चे अपना अधिकांश समय आलस्य में अथवा बहुत अधिक पढ़ाई और अध्ययन में खर्च कर बिता देते हैं वे शारीरिक रूप से स्वस्थ लोगों की तुलना में शारीरिक परेशानियों के ज्यादा शिकार बनते हैं।

खेलों और क्रीड़ा का एक और अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है छात्रों या खिलाड़ियों में अनुशासन की भावना भरना। खेलों और प्रतियोगिताओं में बच्चे नियमों से आबद्ध रहना, रेफरी के निर्णय को मानना और उकसाये जाने पर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना जैसी बातें सीखते हैं। खेलों, विशेष रूप से खुले मैदानों में आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में काफी हद तक स्व-नियंत्रण, आज्ञाकारी व्यवहार और अनुशासित सहभागिता की आवश्यकता होती है। यह उन्हें जीत ही नहीं हार को भी सम्मानपूर्ण तरीके से स्वीकार करने की शिक्षा देता है।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आने वाले दिनों में स्कूल के पाठ्यक्रमों में खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी और वह स्वयं एक अकादमिक या शैक्षणिक विषय बन सकता है । शैक्षणिक पहलू के अलावा खेल छात्रों में अनुशासन का गुण रोपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कैरियर के अच्छे अवसर भी प्रदान करते हैं । ये विश्राम और मनोरंजन प्रदान करते हैं और स्कूली जीवन को जीवंत और उत्साहपूर्ण बनाने के साथ-साथ छात्रों को शारीरिक रूप सें फिट (स्वस्थ ) और मानसिक रूप से फुर्तीला बनाये रखते हैं ।

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दोस्तों इस लेख के ऊपर Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh | Essay ( विद्यार्थी जीवन पर निबंध ) आपके क्या विचार है? हमें नीचे comment करके जरूर बताइए।

Jeevan Mein Khelon Ka Mahatva Par Nibandh’ ये हिंदी निबंध class 4,5,7,6,8,9,10,11 and 12 के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है। यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

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