co education essay in hindi

Essay on Co Education in Hindi- सह शिक्षा पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Co Education in Hindi. सहशिक्षा पर निबंध, सहशिक्षा के विरोधी और उनके विचार, सहशिक्षा का अर्थ और परम्परा, समाधान, सहशिक्षा के पक्षधर और नके विचार ।

भूमिका- शिक्षा मानव के आंतरिक गुणों के विकास का साधन भी हैं और उसे सामाजिक जीवन में व्यवहार का ज्ञान कराने के लिए अनिवार्य भी है। शिक्षित व्यक्ति दूसरे की प्रकृति, गुण, आदत तथा व्यक्तित्व को भली-भांति समझता है और अनुकूल व्यवहार उसके साथ करता है। इसी प्रकार सामाजिक संदर्भ में बदलती हुई परिस्थतियों के साथ वह। स्वयं को भी बदलता है। शिक्षा के आलोक से जीवन आलोकित होता है अतः अज्ञान अन्धकार दूर होता है। इसीलिए प्रार्थना की गई है।

“तमसो मा ज्योतिर्गमय

अर्थात् हे भगवान् मुझे अज्ञान रूप अन्धकार से दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाओ।

इससे यह प्रमाणित हुआ कि शिक्षा का उद्देश्य अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करके अपने भीतर ज्ञान रूप प्रकाश भरना है। शिक्षा का चलन कोई नई चीज नहीं बल्कि वैदिक युग में ही इसका प्रचलन है। संस्कृत में लिखा है-

“विद्याविहीनः पशुः समानः 

अर्थात् विद्या के बिना मनुष्य पशु तुल्य होता है।

सहशिक्षा का अर्थ और परम्परा- सहशिक्षा का अर्थ है बालक और बालिकाओं तथा युवक और युवतियों को एक साथ शिक्षा देना। एक साथ शिक्षा देने का तात्पर्य यह है। कि दोनो एक ही विद्यालय, कॉलेज आदि में कक्षाओं में साथ-साथ पढ़े। सभी गतिविधियों में जिनका संबंध विद्यालय से है में वे समान रूप से साथ-साथ भाग लें। इनमें सांस्कृतिक कार्यक्रम भाषण प्रतियोगिता वाद-विवाद प्रतियोगिता जैसी गतिविधियां भी हैं। |

हमारी प्राचीन संस्कृति और इतिहास इस बात का प्रमाण देता है कि प्राचीन भारत में शिक्षा का आरम्भ गुरुकुलों से हुआ है। गुरु के आश्रम में पढ़ कर ही विद्यार्थी विद्या प्राप्त करते थे। वैदिक युग में सभी को समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। बालक और बालिकाएं गुरु के आश्रम में रहकर ही शिक्षा ग्रहण करते थे। धीरे-धीरे युग बदलने के साथ-साथ सामाजिक परिस्थितियाँ भी बदलने लगी। इतिहास में आक्रमणकारियों का युग जब आया तब स्त्री के प्रति सुरक्षा की भावना बढ़ती गयी। दूसरी ओर नारी का सौंदर्य भी युद्धों का कारण बनने लगा। मुसलमान अब भारत पर राज्य करने लगे तब उनकी अनेक भिन्न-भिन्न प्रथाओं से भारतीय समाज प्रभावित हुआ और लड़कियों की शिक्षा पर ही  प्रतिबंध  लगने लगा। यह स्थिति इतनी बिगड़ी कि उसे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित किया जाने  लगा।

इससे मध्यकाल नारी के विकास में रुढ़िवादी बन गया। भक्ति की लहर जब हमारे देश जली तब भी नारी को समाज में अपमान सहन करना पड़ा। पाश्चात्य देशों में स्थिति भिन्न । अंग्रेज़ों के भारत पर राज्य करने के दौर में स्थिति बदलने लगी क्योंकि इस समय अनेक समाज-सुधार आन्दोलन चलाए जा रहे थे।

सहशिक्षा के पक्षधर और उनके विचार-सहशिक्षा के समर्थक प्राचीन पौराणिक युग का उदाहरण देते हुए मानते हैं कि उस समय मन्दोदरी जैसी नारी भी गुरुकुल में पढ़ती थी। महर्षि कण्व, बाल्मीकि के आश्रम में भी सहशिक्षा होती थी।

आधुनिक युग में पाश्चात्य विचारधारा मनोवैज्ञानिक आधार पर आधारित है। इस सन्दर्भ में रोज मौटेयू ने कहा था—सह-शिक्षा में विद्यार्थियों को एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने का अवसर प्राप्त होता है, न कि केवल ज्ञान का विकास करने का। इससे स्पष्ट होता है कि साथ-साथ पढ़ने से परस्पर सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। जीवन में नर और नारी पति-पत्नी के रूप में साथ चलते हैं। एक दूसरे के प्रति समझ की भावना, एक दूसरे की मानसिकता को पहचानने का अवसर इस समय ही प्राप्त होता है। एक दूसरे के निकट आने से झिझक दूर होती है। वे अपने विचार और भावों को नियंत्रित करते हैं। इससे चित्त वृत्तियों को अनुशासित करते हैं। अत: मनोवैज्ञानिक धरातल पर सह-शिक्षा उपयोगी है।

सह-शिक्षा से युवक और युवतियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होती है। अध्ययन के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों में भी इस भावना का विकास होता है जिससे उनका व्यक्तित्व भी विकसित होता है।

लड़कियों के मन से लड़कों के प्रति अनेक अर्थहीन भावनाएं जन्म लेती हैं। माँ-बाप की रुढ़िवादी प्रवृत्तियों के कारण वे दुर्भावना भय, आशंका से पीड़ित होती हैं। लड़कों के मन में स्वाभाविक आकर्षण बनता है। वे वासनात्मक दृष्टिकोण अपनाने लगते हैं। लेकिन जब सह शिक्षा होती है तो उनके संस्कार बदलते हैं। वे अनावश्यक भय, लज्जा और वासना के कल्पनात्मक लोक से यथार्थ की धरती पर सत्य को समझने लगते हैं। इस प्रकार संस्कारों में सुधार होता है।

लड़के और लड़कियों में अन्तर न करने की प्रवृत्ति सहशिक्षा से ही विकसित होती है। इससे लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत भी बढ़ता है तथा उनका व्यक्तित्व अधिक उत्तरदायी बनता है। विकसित होता है। जहाँ केवल लड़कों के लिए स्कूल या कॉलेज होते हैं और लड़कियाँ शिक्षा से वंचित हो जाती है वहाँ लड़कियों को भी अवसर प्राप्त होते हैं।

सहशिक्षा के समर्थक मानते हैं कि इससे बहुत बड़ी संख्या में अलग-अलग संस्थाएँ खालने से धन का अपव्यय होता है। एक ही संस्था से यह स्थिति भी सुधरेगी। एक साथ पड़ने से युवक और युवतियों धर्म,सम्प्रदाय, जातिवाद जैसी बातों से परिचित होते हैं और उनके  सत्य को समझते हैं। इससे भविष्य में अन्तर्जातीय विवाह भी होते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना विकसित होती है साथ ही दहेज जैसे अभिशाप भी मिटते हैं। स्पष्ट है कि जीवन में  एक दूसरे के प्रति सहयोग और समझ की भावना होने से वे भविष्य में अच्छे हैं। अत: सहशिक्षा का होना आवश्यक है।

सहशिक्षा के विरोधी और उनके विचार-सहशिक्षा के विरोधियों का सल तर्क यह है कि प्रकृति से ही नर और नारी की प्रवृत्ति भिन्न है। अत: उसका विकास भी रूप भिन्न रूप में होता है। जीवन क्षेत्र में भी उनकी कार्यप्रणाली भिन्न है। जीवन को सफल में चलाने के लिए पुरुष को पुरुष ही रहना होगा और नारी को नारी ही। अतः । उत्तरदायित्व और कर्तव्य भी भिन्न-भिन्न होंगे। उसकी शिक्षा में सहचारी और मातृत्व । गुणों का विकास आवश्यक है अत: उसकी शिक्षा-पद्धति एवं पाठ्यक्रम तथा संस्था अलग होनी चाहिए।

दूसरी ओर वे कहते हैं कि इस काल में युवक और युवतियों का शारीरिक विकास तीव्रगति से होता है। ऐसी अवस्था में भावात्मक स्थिरता का अभाव रहता है। कल्पनामय । जीवन और स्वप्नों का संसार बनता है। इससे वे असंयम से कभी-कभी गलत मार्ग भी ग्रहण करने लगते हैं। अनैतिक मार्ग अपनाने से जीवन में दु:खी रहते हैं और सामाजिक तथा नैतिक अपराध बोध की भावना से ग्रस्त होते हैं।

सह शिक्षा के विरोधी यह भी कहते हैं कि एक ही संस्था में आने से आज लड़कियों की मानसकिता बदल जाती है और उनमें उदण्डता, स्वेच्छाचारिता आदि दुर्गण विकसित होने लगते हैं। लड़कों में और लड़कियों में स्वयं सुन्दर दिखने और दिखाने, की भावना बढ़ती है इससे वे अध्ययन के मार्ग से तो भटकते ही हैं कई बार अनेक समस्याओं को भी जन्म देते हैं, इससे अपराध भी बढ़ते हैं। कॉलेज के वातावरण में भी तनाव व्याप्त रहता है।

समाधान-सह शिक्षा के पक्ष और विपक्ष में जो विचार दिए जाते हैं वे वास्तव में किसी सीमा तक उचित ही हैं। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि इन समस्याओं का कोई निराकरण नहीं किया जा सकता है। अगर विद्यार्थी जीवन अनुशासनयुक्त है, शिक्षा प्रणाली आदर्श है, शिक्षक संयमी हैं तो सहशिक्षा होने में कोई दोष नहीं। चरित्र कोई छुईमुई का पौधा नहीं जो हाथ लगाने से बिगड़ेगा। कालेज में लड़के लड़कियां अगर एक साथ घूमें तो उनके दिमाग में आकर्षण का विचार ही पैदा न हो। विचार ही अलग रहने से होता है। इस के समाधान के लिए प्राइमरी और मिडिल स्तर तक शिक्षा सहशिक्षा के रूप में हो । सकती है और 10+2 तक ही शिक्षा अलग-अलग संस्थाओं में होनी आवश्यक है। यही काल होता है जब भावात्मक फिसलन हो सकती है। जब युवक युवतियाँ उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं तो उनमें समझदारी आ जाती है और वे नियंत्रित होते हैं। ऐसी स्थिति में कोई। भी अनैतिक कार्य करने से वे सतर्क होते हैं। अत: समस्या के समाधान के रूप में यही । पद्धति अपनाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त विद्यालयों में, जितना अधिक आत्मिक अनुशासन होगा, कार्य प्रणाली साफ-सुथरी होगी, अध्यापक विद्वान एवं उच्च चरित्र एव चिंतन के होंगे यह समस्या उतनी जटिल नहीं रहेगी।

उपसंहार-यह नितांत सत्य है कि स्त्री और पुरुष से ही जीवन रूपी गाड़ी चला है जिसके कि वे दो पहिए हैं। दोनों की सफलता सहयोग की भावना पर निर्भर करती है।  शिक्षा जीवन के लिए हमें तैयार करती है अत: सहशिक्षा को अनुशासित और नैतिक बनाकर ही यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है इससे स्वस्थ नागरिक राष्ट्र के निर्माण में सहायक होते हैं तथा पारिवारिक समस्या भी जटिल नहीं होती है अपितु सुख और शान्तिमय जीवन बीतता है।

Essay on Moral Education in Hindi

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सह पाठयक्रम गतिविधियाँ : अर्थ, परिभाषा, उदाहरण, महत्व एवं लाभ

सह पाठयक्रम गतिविधिओं का अर्थ – cocurricular meaning in hindi, सह पाठयक्रम गतिविधिओं की परिभाषा – cocurricular definition in hindi.

सह पाठयक्रम गतिविधियाँ एक ऐसा पाठयक्रम है जो मुख्य पाठ्यक्रम के पूरक के रूप में काम करता है। ये पाठ्यक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है जो छात्रों के व्यक्तित्व का विकास करने के साथ ही कक्षा शिक्षा को मजबूत करने में सहायक है। इस तरह की कार्यक्रम स्कूल के नियमित समय के बाद आयोजित किया जाता है इसलिए इसे पाठ्येतर गतिविधियां के रूप में जाना जाता है।

सह पाठयक्रम गतिविधिओं के उदाहरण – Cocurricular examples in Hindi

  • बहस और चर्चा
  • भाषण प्रतियोगिता
  • कहानी लेखन प्रतियोगिता
  • निबंध लेखन प्रतियोगिता
  • प्रतियोगिता
  • स्कूल पत्रिका में लेख
  • फूलों की सजावट
  • स्कूल  सजावट
  • मूर्ति निर्माण
  • फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता
  • चार्ट और मॉडल की तैयारी
  • एल्बम बनाना
  • क्ले मॉडलिंग
  • खिलौना बनाना
  • साबुन बनाना
  • टोकरी बनाना
  • त्योहार के उत्सव मानना

छात्र और सह पाठयक्रम गतिविधिओं की भूमिका

सह पाठयक्रम गतिविधिओं द्वारा छात्र व्यावहारिक ज्ञान के अनुभव को जान पाता है। बहुत हद तक यह क्लास शिक्षण और प्रशिक्षण को मजबूत करता है। बौद्धिक व्यक्तित्व के लिए क्लास रूम टीचिंग जरूरी है जबकि सौंदर्य विकास ,चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक विकास इत्यादि में सह पाठयक्रम गतिविधिओं का होना जरूरी है। यह स्कूल तथा कॉलेज के छात्रों के बीच समन्वय, समायोजन , भाषण प्रवाह आदि विकसित करने के लिए मदद करता है।

सह पाठयक्रम गतिविधिओं के लाभ -Cocurricular benefits in Hindi

वैसे तो सह पाठयक्रम गतिविधिओं के बहुत सारे फायदे हैं। लेकिन यहां पर कुछ महत्वपूर्ण लाभ के बारे में बताया है।

  • सह पाठयक्रम गतिविधियाँ खेल, अभिनय, गायन एवं कविता पाठ को प्रोत्साहित करता है।
  • गतिविधियाँ जैसे खेल, बहस में भागीदारी, संगीत, नाटक, आदि शिक्षा को पूर्ण करने में मदद करता है।
  • यह बहस के माध्यम से स्वतंत्र रूप से खुद को अभिव्यक्त करने के लिए छात्रों को सक्षम बनाता है।
  • खेल बच्चों को फिट और ऊर्जावान बनने में मदद करता है।
  • स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करने के लिए मदद करता है।
  • यह गतिविधियाँ बताता है कि किसी भी काम को संगठित रूप में कैसे करना चाहिए, कौशल विकसित कैसे किया जाये, सहयोग और विभिन्न प्रस्थिथिओं में समन्वय कैसे रखा जाये।
  • यह समाजीकरण, आत्म-पहचान और आत्म मूल्यांकन का अवसर प्रदान करता है।
  • यह निर्णय लेने में आप को एकदम सही बनाता है।
  • यह अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद करता है।

पाठयक्रम गतिविधियाँ के आयोजन में शिक्षक की भूमिका

1.   शिक्षक को एक अच्छा योजनाकार होना चाहिए ताकि विभिन्न गतिविधियों को व्यवस्थित ढंग से पूरा किया जा सके। 2.   शिक्षक का कर्तव्य होना चाहिए कि वह पाठयक्रम गतिविधियों प्रदर्शन करते हुए बच्चों को अधिक से अधिक अवसर दे। 3.   शिक्षक को एक अच्छा आयोजक होना चाहिए ताकि छात्रों को इसके बारे में अधिक से अधिक फायदा उठा सके ।

आउटडोर सह पाठयक्रम गतिविधिओं की सूची – Cocurricular outdoor activity in Hindi

  • सामूहिक परेड
  • सामूहिक ड्रिल
  • साइकिल चलाना
  • लंबी पैदल यात्रा
  • सामूहिक प्रार्थना
  • सुबह की सभा
  • पड़ोस में समाज सेवा
  • गांव सर्वेक्षण

इंडोर सह पाठयक्रम गतिविधिओं की सूची – Cocurricular Indoor activity in Hindi

  • संगीत और नृत्य
  • चित्रांकन और रंगाई
  • प्राथमिक चिकित्सा
  • बुक बाइंडिंग
  • कार्ड बोर्ड काम
  • चमड़े का काम
  • आयोजन स्कूल पंचायत
  • कला और शिल्प

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7 thoughts on “सह पाठयक्रम गतिविधियाँ : अर्थ, परिभाषा, उदाहरण, महत्व एवं लाभ”

Very nice thank you

Thanx for sharing this amazing knowledge

Yes That’s Too Good 👍

very nice blog

Thnak you so much

Thnx apne co curricular ke bare me samjha diya

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सहशिक्षा पर विद्यार्थियों के लिए निबंध: Co-Education System

admin July 9, 2019 Essays in Hindi 2,346 Views

1920-1930 तक स्त्रियों की शिक्षा के लिए जो विद्यालय खोले गये उनमें केवल लड़कियाँ पढती थीं। शेष शिक्षा-संस्थानों में केवल लड़कों के पढने की व्यवस्था थी, वहाँ लड़कियों का प्रवेश वर्जित था। यह स्थिति काफी समय तक बनी रही। लड़कियों ने जब अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, परीक्षा-परिणामों में लडकियों ने लड़कों से बढकर सफलता प्राप्त की और जीवन के अनेक क्षेत्रों में जब उन्होंने पुरुषों के कन्धा मिलाकर काम किया तो स्वाभाविक था कि सहशिक्षा की माँग सुनाई देने लगी। प्रायः लड़कों के विद्यालयों में जितने योग्य अध्यापक होते थे, जितनी सुविधाएँ-पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ आदि होती थीं उतनी केवल लड़कियों के विद्यालयों में नहीं। इन्हीं सब बातों को देखकर लड़कियों को लड़कों के विद्यालयों में प्रवेश देने की बात ने बल पकड़ा। एक कारण यह भी था कि समय के साथ-साथ हमारी मानसिकता में परिवर्तन हुआ। पहले समझा जाता था कि किशोर-किशोरी अपरिपक्व बुद्धि के होते हैं, दुनियादारी नहीं समझते, इस आयु में परस्पर आकर्षण भी होता है और सम्भव है वे यौनाचार में लिप्त हो कर अपना अहित कर बैठें, विशेषतः लड़कियाँ जिन्हें प्रकृति ने गर्भधारण का भार सौंपा है। जब यह विचार, मानसिकता बदली तो लड़कियों को लड़कों के विद्यालयों में धीरे-धीरे प्रवेश मिलने लगा और सहशिक्षा आरम्भ हुई। योग्य अध्यापकों के अध्यापन तथा पुस्तकालय-प्रयोगशालाओं की सुविधा पाकर लड़कियों ने अपनी योग्यता, प्रतिभा का परिचय दिया। अतः जो विद्यालय और महाविद्यालय पहले लड़कियों को प्रवेश नींद देते थे, उन्होंने भी अपने द्वार लड़कियों के लिए खोल दिये। दिल्ली में हंसराज महाविद्यालय में बहुत समय तक केवल लड़कों को प्रवेश मिलता था, परन्तु कुछ वर्ष पहले उसमें भी सहशिक्षा आरम्भ हो गयी।

सहशिक्षा के अनेक लाभ हैं। किशोर-किशोरी को एक-दूसरे की प्रकृति, स्वभाव जानने का अवसर मिलता है। उनमें प्रतिस्पर्धा का भाव जागता है अतः अधिक परिश्रम कर परीक्षा में ऊँचा स्थान प्राप्त करने की होड़ लगती है। दोनों का लाभ होता है। महिला विद्यालयों में जो सुविधाएँ नहीं उपलब्ध हैं, और जिन सुविधाओं से वंचित रहने के कारण लड़कियाँ अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं कर पातीं, उन्हें सहशिक्षावाली शिक्षा-संस्थाओं में पाकर लाभान्वित होती हैं। मनोविज्ञान की दृष्टि से भी सहशिक्षा लाभदायक है, वह छात्रों-छात्राओं को कुण्ठा मुक्त करती है और कुण्ठामुक्त व्यक्ति निश्चय ही अधिक सफल होता है। कुण्ठाग्रस्त व्यक्ति का मानसिक और बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

कुछ लोगों का विचार है कि सहशिक्षा छात्राओं के लिए हानिकर है। उनकी आशंका है कि आज की भौतिकतावादी सभ्यता, उपभोक्ता प्रवृतियों, सिनेमा आदि के प्रभाव से नासमझ या अपरिपक्व बुद्धि के किशोर-किशोर अनैतिक मार्ग पर चलकर अपना, अपने परिवार का और समाज का अहित करेंगे। लड़कों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए लड़कियाँ फैशन करेंगी, अंगों का प्रदर्शन करेंगी और लड़के लड़कियों को आकृष्ट करने के लिए उन्हें प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसायेंगे। परिणाम होगा अश्लील, अमर्यादित आचरण। विद्यालयों का वातावरण दूषित हो जायेगा, पढाई-लिखाई ठप्प हो जायेगी, सारा समय, शक्ति, प्रतिभा केवल एक-दूसरे को आकर्षित करने के व्यय होंगे। शिक्षा का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। शिक्षालय शिक्षा के संस्थान न होकर यौनाचार के अड्डे बन जायेंगे।

यह सच नहीं है कि विद्यार्थी जीवन में छात्र-छात्राओं की बुद्धि अपरिपक्व होती है, आज के लड़के-लडकियाँ अपना हित-अहित समझते हैं। यौनाकर्षण होता है, परस्पर एक दूसरे के निकट आते हैं, घनिष्ट मित्र भी बन जाते हैं और कभी-कभी प्रेम भी कर बैठते हैं। यदि प्रेम सच्चा होता है तो वे विवाह-बन्धन में बन्धन में बंध जाते हैं और माता-पिता की चिन्ता को कम ही करते हैं। यदि विवाह नहीं भी हो पाता तो मर्यादा में रहने के कारण कोई अनिष्ट नहीं होता। शारीरिक शुचिता का आज उतना महत्त्व नहीं रह गया है जितना कुछ वर्ष पूर्व था। अपहरण, बलात्कार का कारण सहशिक्षा नहीं है, बलात्कार पढनेवाली छात्राओं का कम अन्य युवतियों का अधिक होता है। अतः मिथ्या आशंकाओं के कारण नारी जाति के विकास-पथ को अवरुद्ध करना और देश की प्रगति में बाधा डालना अनुचित ही है।

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सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co Education in Hindi

December 19, 2017 by essaykiduniya

यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में सहशिक्षा पर निबंध मिलेगा। Here you will get Paragraph and Short Essay on Co Education in Hindi Language/ sah shiksha in hindi essay for students of all Classes in 300 and 1000 words.

Essay on Co-Education in Hindi

सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co Education in Hindi ( 300 words )

सह-शिक्षा एक आम शब्द है; इसका मतलब है कि लड़कों और लड़कियों की शिक्षा एक ही स्कूल और कॉलेज दोनों में होती है। यह स्पष्ट रूप से आर्थिक दृष्टि से एक लाभ है क्योंकि अलग-अलग संस्थानों और उन संस्थानों के लिए अलग-अलग कर्मचारियों में सह-शैक्षणिक संस्थान चलाने के लिए आवश्यक व्यय में दोगुना खर्च होता है।

भारतीयों के लिए सह-शिक्षा एक नई बात नहीं है। सबसे पहले, प्रणाली अर्थव्यवस्था की ओर जाता है। दूसरा, यह लड़कों और लड़कियों के बीच स्वतंत्र विचारों के आदान-प्रदान के लिए जगह देता है और भारतीय लड़कों और लड़कियों को पीड़ित अवरोधों को हटा देता है। तीसरा, यह प्रतिस्पर्धा के लिए उत्साह और उत्साह बढ़ाता है और बेहतर परिणाम देता है। इसके अलावा, एक ही स्कूल, कॉलेजों और पुस्तकालयों में लड़कों के बीच लड़कियों की उपस्थिति के परिणामस्वरूप स्वस्थ सोच और उनके रिश्ते के यौन पक्ष पर लड़कों या लड़कियों द्वारा किसी भी अवांछित जोर से कामरेड की भावना होगी।

सह-शिक्षा एक उपयोगी प्रणाली है। जो लोग सह-शिक्षा का विरोध करते हैं, उनके अनुसार, हालांकि प्रणाली ‘अर्थव्यवस्था को अभी तक लाभ देती है जैसे अंततः झूठे हैं। इसके अलावा, लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए एक ही तरह की शिक्षा देना प्रकृति के खिलाफ जाने के बराबर है। इस प्रकार, सह-शिक्षा का विचार गलत है।

अब अगर हम दोनों पक्षों के तर्कों का वजन करते हैं तो हम दोनों में सत्य पाएंगे। भारत में सह-शिक्षा कॉलेज स्तर पर शुरू होती है जब लड़कों और लड़कियों के बीच मुफ्त मिश्रण संभव नहीं होता है क्योंकि इस बड़े स्तर पर वे बहुत अधिक यौन-जागरूक होते हैं और शर्मीली उनके रास्ते में खड़े होते हैं। नतीजा यह है कि लड़के आम तौर पर लड़कियों कृत्रिम शिष्टाचार की उपस्थिति में दिखाते हैं। सह-शिक्षा, इसलिए, यदि प्राथमिक चरण से ठीक से शुरू होता है, तो जब तक छात्र कॉलेज में प्रवेश करते हैं, तब तक उनका एकमात्र उद्देश्य सेक्स में किसी भी अवांछित रुचि के बजाय अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना होता है। वर्तमान परिस्थिति और मानसिक मेकअप में भारत में सह-शिक्षा अच्छे से ज्यादा नुकसान कर सकती है।

सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co Education in Hindi ( 1000 words )

सह-शिक्षा लड़कों और लड़कियों को एक साथ शिक्षा देने की एक प्रणाली है। प्राचीन समय में, ग्रीस में स्पार्टा में सह-शिक्षा विद्यमान थी| लड़कों और लड़कियों के बीच कोई भेदभाव नहीं था| उन्होंने एक साथ अध्ययन किया और खेला। शैक्षणिक शिक्षा के साथ, दोनों लिंगों को शारीरिक प्रशिक्षण भी दिया गया था। प्लेटो, ग्रीक दार्शनिक, का मानना था कि सह-शिक्षा ने पुरुषों और महिलाओं दोनों के व्यक्तित्व के विकास में मदद की और उनके बीच साझेदारी की भावना पैदा की। पश्चिम में, सह-शिक्षा का महत्व प्राचीन समय से महसूस किया गया है।

प्रारंभिक वैदिक सोसाइटी (प्राचीन भारत) में, कुछ स्थानों में सह-शिक्षा प्रचलित थी। लेकिन धीरे-धीरे महिला शिक्षा को नजरअंदाज करना शुरू हो गया। इसके अलावा, शिक्षा की व्यवस्था आज की तुलना में काफी भिन्न थी। पूरे शिक्षण काल के लिए लड़कों गुरुकुल्ले में रहे। वहां, उन्हें शैक्षिक शिक्षा और शारीरिक प्रशिक्षण दोनों मिला। पूर्व में शास्त्रों के अध्ययन और उत्तरार्द्ध, युद्ध में प्रशिक्षण शामिल थे। लड़कियों को गुरुकुलों को नहीं भेजा गया था और इसलिए उन्हें शिक्षा के लाभों से वंचित किया गया था। मध्ययुगीन भारत में, निम्न जातियों और महिलाओं के लोगों को स्कूलों में जाने या शास्त्रों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी। राजा राममोहन राय, एक महान सामाजिक सुधारक और विद्वान, इस कदाचार के खिलाफ लड़े और अपने मिशन में सफल रहे उनका मिशन आगे अन्य सामाजिक सुधारकों द्वारा किया गया था।

आज, दुनिया के लगभग सभी देशों में सह-शिक्षा प्रचलित है। भारत में, सह-शिक्षा विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या लगातार बढ़ रही है। शिक्षा के सह-शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के कई फायदे हैं। यह किफायती है, खासकर गरीब देशों के लिए जो लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल खोलने का जोखिम नहीं उठा सकते। अगर लड़कों और लड़कियों को एक ही स्कूल में पढ़ाया जाता है, तो उनके लिए अलग-अलग स्कूल खोलने की कोई जरूरत नहीं है। इस प्रकार, बुनियादी ढांचा, फर्नीचर, स्टेशनरी, कर्मियों की भर्ती आदि पर खर्च की जाने वाली लागत को बचाया जाता है। भारत जैसे विकासशील देशों में अच्छे प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। यदि सह-शिक्षा है, तो एक ही कर्मचारी लड़कों और लड़कियों को एक ही कक्षा में एक ही समय में पढ़ सकता है, और शिक्षक की कमी की समस्या को काफी हद तक पेश किया जा सकता है।

इसलिए, अधिक से अधिक सह-शिक्षा विद्यालयों की स्थापना, साक्षरता के प्रसार को सीमित शिक्षण कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे के साथ भी मदद कर सकती है। इस प्रकार, सह-शिक्षा न केवल लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए भी फायदेमंद है। सह-शिक्षा लड़कों और लड़कियों को मिलाने में मदद करती है “और एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। जब दूरी ढीली जाती है, बाधाएं गिर जाती हैं, जिससे पागलपन और पूर्वाग्रह धीरे-धीरे गायब हो जाते हैं। यह छात्रों को व्यापक लिंग के प्रति दिमाग और सहिष्णु बनाता है। एक-दूसरे के साथ आज़ादी से, संकोच बहाएं और इस तरह से हिचकिचाहट और शील को दूर किया जा सकता है.इस प्रकार, सह-शिक्षा लड़कों और लड़कियों के बीच एक स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण संबंध की ओर जाता है।

सह शिक्षा debate

एक सह-शिक्षा विद्यालय में, लड़कों को लड़कियों से मिलना और बात करने के लिए स्वतंत्र हैं। लड़कों और लड़कियों के व्यक्तित्व के संतुलित विकास में सह-शिक्षा का योगदान होता है। एक अध्ययन से पता चला है कि सह-शिक्षा विद्यालय बेहतर हैं क्योंकि कक्षाओं में लड़कियों की उपस्थिति लड़कों को अनियंत्रित व्यवहार में शामिल होने से रोकती है और उनकी अकादमिक प्रदर्शन में सुधार लाती है। वास्तव में, लड़कियों की एक उच्च प्रतिशत कक्षा की मात्रा को कम ही नहीं करती है भड़काऊ लेकिन छात्रों और उनके शिक्षकों के बीच बेहतर रिश्ते को बढ़ावा देता है शोधकर्ताओं ने पाया कि 55% से अधिक लड़कियों के साथ कक्षाएं बेहतर परीक्षा परिणाम दिखाती हैं और समग्र रूप से कम हिंसक विस्फोट दिखाती हैं।

उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यह प्रभाव कक्षाओं के माहौल पर लड़कियों के सकारात्मक प्रभाव के कारण है। वास्तव में, अध्ययन में पाया गया कि प्राथमिक विद्यालय कक्षाएं जिनमें एक महिला बहुमत है, लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए अकादमिक सफलता में वृद्धि हुई है। मध्य और उच्च विद्यालयों में, कक्षाएं जो कुल मिलाकर सबसे अच्छी शैक्षणिक उपलब्धियां थीं, लगातार उन लोगों की संख्या थी जिनके नामांकन में लड़कियों का उच्च अनुपात था। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग सीखने के लिए जैविक रूप से वायर्ड किया जा सकता है, लेकिन उन्हें सेक्स-अलग स्कूलों में भेजना बेहतर नहीं है। लड़कों अपने ड्रेसिंग की आदतों, व्यवहार और लड़कियों की कंपनी में संचार की शैली के प्रति जागरूक हो जाते हैं।

वे ठीक तरह से तैयार करते हैं, अच्छी तरह से व्यवहार करते हैं और एक सभ्य भाषा में बात करते हैं। लड़कियां भी इसी तरह अपने शर्म को दूर करती हैं, लड़कों के साथ अच्छा व्यवहार करती हैं और उन्हें बेहतर समझती हैं। सह-शिक्षा लड़कों और लड़कियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करती है। वे एक दूसरे से आगे रहने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं सह-शिक्षा समाज में लिंग पूर्वाग्रह को कम करता है। यह दोनों लिंगों के बीच समानता को बढ़ावा देता है यदि इस प्रणाली की शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है तो पुरुष प्रभुत्व का आदर्श समाज से मिटा दिया जा सकता है। हालांकि, कुछ रूढ़िवादी लोग सह-शिक्षा प्रणाली के विरोध में हैं। उनके अनुसार, यह व्यवस्था भारतीय संस्कृति और परंपरा के खिलाफ है। यह भी तर्क दिया जाता है कि लड़कियों को एक संस्था में स्वतंत्र महसूस होती है जो केवल लड़कियों के लिए होती है। जैसे, उनके व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए उनके पास एक बड़ा अवसर है।

वे खेल, नाटक और वाद-विवाद में अधिक स्वतंत्र रूप से भाग लेते हैं। जीव विज्ञान जैसे कुछ विषयों के शिक्षक प्रजनन जैसे विषयों की व्याख्या करना आसान पाते हैं यदि केवल लड़कियों या केवल लड़के ही कक्षा में बैठे हों। विद्यालय के पाठ्यक्रम और सह-शिक्षा विद्यालयों में सेक्स शिक्षा शुरू की गई है, यहां तक कि शिक्षकों को कक्षा में ऐसे विषयों पर चर्चा करने में हिचक लगती है। यह भी महसूस किया जाता है कि जब से छात्र (विशेष रूप से किशोरावस्था, 13-19 वर्ष की आयु) प्रभावशाली उम्र के हैं, उनके भटक जाने की संभावना सह-शिक्षा संस्थानों में बहुत अधिक है, जहां वे अन्य सेक्स के साथ मिलकर काम करने की अधिक स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं ।

वे पढ़ाई पर केंद्रित नहीं रह सकते हैं यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि इक्कीसवीं सदी के तेजी से बदलने वाले समाज में, सह-शिक्षा को दिन का क्रम बनना होगा। आज, लड़कियां बड़ी संख्या में सभी व्यवसायों में प्रवेश कर रही हैं और पुरुषों के समान काम कर रही हैं। उनमें से कई बड़े संगठनों का जाल लगाते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। सह-शिक्षा युवा लड़कों और लड़कियों को किसी भी क्षेत्र में कंधे से कंधे पर काम करने के लिए तैयार करती है, जो भी हो। आज के बच्चे कल के नागरिक हैं हमें उन्हें एक स्वतंत्र और स्वस्थ वातावरण में अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। महिलाओं को अब घर की चार दीवारों तक ही सीमित नहीं रहना पड़ता है। उन्हें जीवन के हर पैरों में पुरुषों के साथ सह अस्तित्व होना है सह-शिक्षा संभावित रूप से दोनों लिंगों को देश की प्रगति के लिए एक साथ सीखने और काम करने के लिए तैयार करेगी।

हम उम्मीद करेंगे कि आपको यह निबंध ( सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co Education in Hindi ) पसंद आएगा।

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सह शिक्षा का अर्थ व परिभाषा Co Education Meaning In Hindi Language

नमस्कार दोस्तों आज के आर्टिकल सह शिक्षा का अर्थ व परिभाषा Co Education Meaning In Hindi Language में हम सहशिक्षा के बारे में जानेगे. सह शिक्षा क्या है इसका अर्थ और परिभाषा को सरल शब्दों में इस लेख में समझने का प्रयास करेंगे.

सह शिक्षा का अर्थ व परिभाषा Co Education Meaning In Hindi

सह शिक्षा का अर्थ व परिभाषा Co Education Meaning In Hindi Language

सह-शिक्षा का अर्थ है लड़के और लड़कियों दोनों के लिए एक साथ शिक्षा । एक ही संस्थान और एक ही कक्षा में दोनों लिंगों की संयुक्त शिक्षा को सह-शिक्षा कहा जाता है।

यह एक सामाजिक व्यवस्था है क्योंकि लड़के और लड़कियां दोनों एक ही स्कूल और कॉलेज में एक ही शिक्षक के साथ पढ़ते हैं ।

इसके अलावा, लड़के और लड़कियों को एक ऐसे समाज में एक साथ रहना पड़ता है जिसमें बाद में जीवन होता है, और अगर वे शुरू से ही एक साथ पढ़ते हैं, तो वे एक-दूसरे को समझ सकते हैं।

पहला सह-शैक्षिक कॉलेज 3 दिसंबर, 1833 को ओबेरलिन, ओहियो में ओबेरलिन कॉलेजिएट इंस्टीट्यूट में 29 पुरुषों और 15 महिलाओं सहित 44 छात्रों के साथ स्थापित किया गया था।

हालांकि आजकल यह आम हो चुका है, सह-शिक्षा अतीत में एक बहुत ही विवादास्पद विचार था। यह धारणा कि महिला और पुरुष एक साथ सीख सकते हैं और एक दूसरे को शिक्षित करने में मदद कर सकते हैं, एक लंबी अवधि में विकसित हुई है।

co education को एजुकेशन को हिन्दी में सह-शिक्षा कहा जाता है. जिसका तात्पर्य एक ऐसी शिक्षक व्यवस्था से हैं जिसमें बिना लिंग भेद के लड़के व लड़कियाँ एक ही भवन की छत के नीचे बैठकर अध्ययन करते हैं. 

हम सभी बचपन में ऐसी प्रणाली के विद्यालयों से निकलकर आए हैं जिनमें कक्षा के अगले हिस्से में लड़कियों की बैठक व्यवस्था तथा पिछली पंक्तियों में लडकों के बैठने की व्यवस्था होती थी. इसे ही Co Education अथवा सह शिक्षा का नाम दिया जाता है. जिसमें बालक बालिकाओं को साथ साथ शिक्षा देने की व्यवस्था हो.

सह-शिक्षा का समर्थन

सह-शिक्षा का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क हैं कि सह शिक्षा से बच्चों में व्यक्तित्व, नेतृत्व विकास के साथ-साथ संप्रेक्षण क्षमता का विकास होता हैं.

एक ही विद्यालय में समान विषयों की शिक्षा प्राप्त करने तथा समान गतिविधियों में भाग लेने से किशोर किशोरियों की आपसी समझ बढ़ती हैं. इस लिहाज से वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सह-शिक्षा का बड़ा महत्व हैं.

सह-शिक्षा प्राप्त करने से विद्यार्थी उन बालकों को तुलना में अधिक सफल पाए गये है जिन्हें किसी वर्ग विशेष के अलग स्कूलों  में पढ़ाया गया हैं.

जब स्त्री पुरुष को समाज में हर कार्य साथ मिलकर करना ही हैं तो इसकी शुरुआत हमारे प्राथमिक विद्यालयों से क्यों न की जाए, जिनमें उन्हें बालपन से एक ही तरह के वातावरण में शिक्षा दी जाए.

सह-शिक्षा का विरोध

भारत में सह शिक्षा की व्यवस्था कोई नई बात नहीं हैं बल्कि सदियों पुरानी व्यवस्था हैं, जिसके तहत प्राचीन काल में गुरुकुलों में बच्चे व बच्चियों को साथ साथ ही शिक्षा दी जाती थी.

मगर आज के कुछ मजहबी कट्टरपंथी अपनी ओछी सोच का परिचय देते हुए इसका विरोध इन तर्कों से करते हैं कि लड़के व लड़कियों को साथ शिक्षा देने से सरकार अनैतिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रही हैं.  अभिभावकों को अपने किशोर किशोरियों पर नजर रखनी चाहिए.

सह शिक्षा सही या गलत

बड़े बड़े विदेशी शिक्षण संस्थानों में पढ़े बुद्धिजीवी जिन तर्कों के आधार पर सह-शिक्षा का विरोध करते हैं इससे उनके विचारो का परिचय मिलता हैं.

निश्चित ही वे भारतीय इतिहास तथा संस्कृति से अपरिचित हैं. साथ भारत की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की स्थिति से भी बेखबर प्रतीत होते हैं.

शिक्षा का आशय व्यक्ति के गुणों का विकास करना है न कि उनमें संकीर्ण मानसिकता के विचारों को पनपाना. शिक्षा व्यक्ति में संस्कारों का परिष्कार और परिमार्जन करती हैं. वे प्रतिभाओं को तराशती हैं.

व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा बेहद जरुरी हैं. एक तरफ हम कहते हैं तमाम तरह के भेद अशिक्षा के चलते हैं. फिर शिक्षा में ही आप स्त्री पुरुष का भेद करने लगेगे तो यह कहा तक उचित हैं.

  • सहशिक्षा पर निबंध व भाषण
  • भारत में प्राथमिक शिक्षा पर निबंध
  • लड़कियों की शिक्षा पर निबंध

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Essay on co education in hindi सहशिक्षा पर निबंध.

Read an essay on co education in Hindi language for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. What is co education (सहशिक्षा) means? Co education means studying together in group of girls and boys. Basically, it means where girls, boys and others can get an education. So it is very important to read an essay on co education in Hindi to know what it actually means and how can you explain it better. सहशिक्षा पर निबंध।

Essay on Co Education in Hindi

hindiinhindi Essay on Co Education in Hindi

सहशिक्षा एक ओर विकास और प्रगति के लिये आवश्यक है, तो दूसरी ओर उनका प्रतीक भी। सहशिक्षा को न तो नकारा जाना चाहिए और न इससे मुँह मोड़ना चाहिए। इसे सभी स्तरों पर लागू किया जाना चाहिए। देश व समाज की प्रगति और उन्नति के लिए स्त्री तथा पुरुषों दोनों का पूर्ण शिक्षित होना आवश्यक है। देश की आधी जनसंख्या स्त्रियों और महिलाओं की है। इसमें बालिकाएँ और कुमारियाँ भी शामिल हैं। यदि इनका थोड़ा-सा प्रतिशत भी निरक्षर और अनपढ़ रहता है तो देश का विकास रुक जायेगा। जीवन के कुरूक्षेत्र में स्त्री और पुरुष दोनों को कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है और सफलता प्राप्त करनी है। दोनों के परस्पर सहयोग के बगैर कुछ भी संभव नहीं है। अत: यह आवश्यक है कि इस सहयोग का प्रारंभ बचपन से ही किया जाए। इसके लिए पाठशाला से अच्छा स्थान कोई और दूसरा नहीं हो सकता। अत: यह वांछनीय है कि पाठशाला से सहशिक्षा प्रारंभ हो और शिक्षा तथा प्रशिक्षण के उच्चतम स्तर तक जारी रहे। स्त्री और पुरुषों की समानता और सहभागिता के लिए यह अनिवार्य है। इसका विरोध करना बेकार है।

सहशिक्षा का अर्थ है लड़कों तथा लड़कियों की एक साथ, एक ही स्थान पर शिक्षा उनके लिए अलग विद्यालयों, पाठशालाओं आदि का न होना। शुरू में तो इसका विरोध भी हुआ। विरोधियों ने तर्क दिया कि इससे ध्यान बंटेगा, व्यवधान बढ़ेगा और विद्यार्थी अनुशासनहीन हो जाएँगे। यौन-आकर्षण से अराजकता और निरंकुशता बढ़ेगी। लेकिन ये अवधारणाएँ समय और प्रयोग की कसौटी पर खरी नहीं उतरी हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि सहशिक्षा की कोई कमियाँ या सीमाएँ नहीं हैं। इसकी सीमाएं आवश्यक हैं परन्तु न इतनी अधिक और न इतनी गंभीर। सारे विश्व में आज सहशिक्षा का प्रचलन है क्योंकि इसके अनेक लाभ हैं।

सहशिक्षा का प्रारंभ बहुत पुराना नहीं हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों पश्चात् इसका प्रचलन हुआ है। यह शिक्षा प्रणाली और पद्धति विदेशी देन है। प्राचीन भारत में छात्र और छात्राएँ अलग-अलग रहकर गुरुकुल में शिक्षा पाते थे। विद्यार्थी जीवन में अन्य बातों के अतिरिक्त संयम, अनुशासन और ब्रहाचर्य पर बहुत बल दिया जाता था। चरित्रनिर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं। चरित्र और आचरण की परिभाषा में भी परिवर्तन आ गया है। आर्थिक क्षेत्र में स्त्री और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हैं। जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ आगे आ रही हैं। किसी भी स्तर पर किसी भी तरह वे पुरुषों से पीछे नहीं है। प्रेम और अन्तर्जातीय विवाह लोकप्रिय हो रहे हैं। स्त्री और पुरुष खुले आम एक दूसरे से मिलते हैं और एक साथ कार्य करते हैं।

समाज में एक नया खुलापन, उदारता और सहिष्णुता के भाव उत्पन्न हुए हैं। सहशिक्षा से संसाधनों की बड़ी बचत होती है। दोहरा खर्च टल जाता है। अलगअलग स्कूल आदि खोलने से दुगना स्टाफ चाहिये और इसी तरह अन्य दुगने खर्चे तथा व्यवस्था। भारत जैसा गरीब देश इसे सहन नहीं कर सकता। विकसित देशों में भी आर्थिक दृष्टि से सहशिक्षा को ही प्राथमिकता दी जाती है। कई गाँवों, कस्बों आदि में छात्राओं की पर्याप्त संख्या नहीं होती। उनके लिए अलग से स्कूलों की व्यवस्था करना संभव नहीं है। साथ ही उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता। अतः सहशिक्षा आज की हमारी जरूरत भी है।

सहशिक्षा के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी कई लाभ हैं। छात्र और छात्राओं को शुरू से ही एक दूसरे को समझने तथा पहचानने को सुयोग मिल जाता है। वे एक दूसरे का आदर करना सीख जाते हैं। एक दूसरे की भावनाओं और आवश्यकताओं को सरलता से समझने लगते हैं। आगे चलकर भी जीवन में एक दूसरे के साथ उन्हें पति-पत्नी, सहयोगी आदि रूपों में जीवन व्यतीत करना है। तो फिर क्यों न शुरु से ही उन्हें साथ रहने का अवसर प्रदान किया जाए। इससे सहयोग और सहकार की भावना बढ़ती है।

सहशिक्षा, प्रेम-विवाह को भी प्रोत्साहित करती है। छात्र-छात्राएँ अपनी इच्छानुसार और समझदारी के साथ अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं। इससे उन्हें जो संतोष और सुख मिलता है तथा समझदारी की भावना बढ़ती है, वह प्रशंसा के योग्य है। प्राचीन काल में हमारे यहाँ स्वयंवर की व्यवस्था थी। इसमें लड़की अपने पति का चुनाव अपनी इच्छा से कर पाती थी। इस स्वयंवर परम्परा का विस्तार और विकास आधुनिक प्रेम-विवाहों में देखा जा सकता है। प्रेम-विवाह से दहेजप्रथा, अनमेल विवाह और बालविवाह जैसी कुरीतियों से भी सरलता से छुटकारा पाया जा सकता है।

आधुनिक जीवन में यौन शिक्षा का महत्त्व बढ़ गया है। बहुत सी बीमारियों और समस्याओं के निराकरण के लिए यह अनिवार्य है। यौनशिक्षा के माध्यम से एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से बचने में सहायता मिलती है। इस शिक्षा में यौनशिक्षा को भी अच्छी प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है। स्त्रियों को शोषण से बचाने और उनके सशक्तिकरण की दृष्टि से भी सहशिक्षा कारगर सिद्ध हो रही है।

प्राथमिक स्तर पर तो छात्र-छात्राएँ बालक-बालिकाएँ होते हैं। वे मासूम होते हैं। अत: उन्हें एक साथ शिक्षा देने में किसी भी तरह की हानि नहीं होती। उच्च स्तर पर विद्यार्थी बहुत समझदार और योग्य हो जाते हैं। वे अपना भला-बुरा अच्छी प्रकार समझने लगते हैं। अत: इस स्तर पर भी कहीं कोई खतरा नहीं दिखाई देता। विद्यालय स्तर पर जरूर कुछ शंकाएँ व्यक्त की जाती हैं। परन्तु यदि कुछ सावधानियाँ बरती जाएँ और योग्य अध्यापकों का पथप्रदर्शन मिलता रहे तो वहां भी इन शंकाओं का कोई महत्त्व नहीं रह जाता। अत: सहशिक्षा हर स्तर पर अपनाई जानी चाहिए।

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सह शिक्षा पर निबंध – Coeducation Essay in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु सह शिक्षा पर निबंध Essay on Coeducation in Hindi पर पुरा आर्टिकल। ‘सहशिक्षा’ का शाब्दिक अर्थ है ‘साथ-साथ शिक्षा अर्थात् लड़के-लड़कियों को एक साथ शिक्षा देना।’ सहशिक्षा एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली है और पश्चिमी देशों से भारत में आई है। आइये पढ़ते है सह शिक्षा पर निबंध

  • सह शिक्षा पर निबंध

Coeducation Essay in Hindi

प्रस्तावना :

‘सहशिक्षा’ का शाब्दिक अर्थ है ‘साथ-साथ शिक्षा अर्थात् लड़के-लड़कियों को एक साथ शिक्षा देना।’ सहशिक्षा एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली है और पश्चिमी देशों से भारत में आई है। कुछ लोगों का मत है कि वैदिक काल से ही सहशिक्षा का प्रचलन चला आ रहा है। मध्यकाल में सहशिक्षा कम हो गई थी। परिणामतः महिलावर्ग में शिक्षा का पूर्ण अभाव हो गया। उसके बाद अंग्रेजी शासन में पुनः सहशिक्षा प्रारम्भ हुई। महिलावर्ग एक बार फिर से जाग्रत हो गया और उन्होंने पुरुषों के साथ कन्धे से कंधा मिलाकर चलने का साहस किया।

जिस प्रकार प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार सहशिक्षा के भी लाभ एवं हानि दोनों ही हैं-

सहशिक्षा के लाभ :

सहशिक्षा के पक्ष में बोलने वाले लोगों के अनुसार सहशिक्षा के लाभ ही लाभ हैं। सहशिक्षा हमारे सामाजिक जीवन की प्रगति के लिए अत्यावश्यक है। सहशिक्षा से हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। सहशिक्षा में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग विद्यालयों की आवश्यकता नहीं होगी, इससे बचे हुए पैसे को दूसरे कामों में लगाया जा सकता है।

सहशिक्षा से छात्र-छात्राओं में परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी और इससे उनका बौद्धिक विकास भी होगा। दोनों वर्ग एक-दी आगे निकलने का प्रयास करेंगे। लड़के लड़कियाँ एक-दूसरे से झिझको, नहीं। इससे लड़कियों में व्यर्थ की लज्जा दूर होगी, जिससे पढ़ाई समाप्त होने पर वे नौकरी में लड़कों से बात करने पर शर्माएगी नहीं और लड़के पी लड़कियों के समक्ष अधिक संयम में रहना सीखेंगे। उन्हें नारी का सम्मान करते की प्रेरणा मिलेगी। जिससे आगे जाकर उनका वैवाहिक जीवन भी सफल होगा।

सहशिक्षा की हानियाँ :

सहशिक्षा के विरोधी मत वाले व्यक्तियों को इसमें कमियाँ ही कमियाँ प्रतीत होती हैं। उनके अनुसार सहशिक्षा से हमारी परम्पराओं तथा संस्कृति पर भीषण आघात हो रहा है। उनके अनुसार लड़के लड़कियों का विद्यालय विपरीत दिशाओं में होने चाहिए। सहशिक्षा प्राचीन’ काल की नहीं अपितु आधुनिक युग की देन है। सभी महापुरुषों ने इसका विरोध किया है। महात्मा कबीर तो नारी को सर्पिणी की भांति जहरीली तथा आग की भांति रौद्र-रूपा मानते थे।

सहशिक्षा के विरोधी मत वाले यह भी मानते हैं कि इससे लड़के-लड़कियों का चरित्र भ्रष्ट हो रहा है। आजकल विद्यार्थी विद्यालयों में पढ़ने नहीं, अपितु प्रेम करने जाते हैं। वे विपरीत लिंग में अधिक रुचि लेते है और इसीलिए अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।

भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल होते हुए भी सहशिक्षा भारत में महत्वहीन नहीं है। इसके अनेक कारण हैं-प्रथम तो पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव, वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विदेशी शासकों की नीति एवं लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए माँग तथा आगे जाकर लड़कों के बराबर पैसे कमाने के लिए नौकरियाँ करना। आज सहशिक्षा बड़े-बड़े नगरों से होती हुई गाँवा तक भी पहुंच चुकी है। हालांकि वर्तमान समय में इसका स्तर कुछ गिर रहा है जिसका मुख्य कारण नैतिकता की कमी है। हमे इसके प्रति सजग रहना होगा। परन्तु सहशिक्षा का महत्व उसकी कमियों से कही अधिक है। सहशिक्षा द्वारा ही समाज में फैली विसंगतियों को सरलता से दूर किया जा सकता है।

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  • मुहावरे फोटो के साथ भाग 2
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सह शिक्षा से तात्पर्य है कि सभी आयु के बालक और बालिकाएँ एक साथ एक ही कक्ष में बैठकर एक साथ शिक्षा को ग्रहण करें। बालक और बालिकाओं के लिए अलग से कोई कक्षाएँ रखने की आवश्यकता न हो।

भारतवर्ष में इस प्रकार की शिक्षा का प्रचलन प्राचीन काल से नहीं रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक स्त्रियाँ इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने में रुचि नहीं रखती थी। परन्तु एक शताब्दी पूर्व ही स्त्रियों को शिक्षा देने पर जोर दिया जा रहा है। उसके मद्देनजर आज के इस भौतिकवादी युग में स्त्रियों ने भी सह शिक्षा के महत्व को समझा है और इसलिए वह सह शिक्षा प्राप्त करने में अधिक संकोच नहीं रखती हैं। सह शिक्षा से बालक- बालिकाओं का मनोवैज्ञानिक विकास होता है।

भारतीय सामाजिक संस्कार तथा पाश्चात्य संस्कारों में बड़ा भेद है। जिन संस्कारों का पाश्चात्य देशों में सम्मान किया जाता है, भारत में उनको गलत माना जाता है। उदाहरण के तौर पर भारत में अपने पुत्र पुत्री के लिए वर-वधू का चयन माता-पिता करते थे, तो पाश्चात्य देशों में किशोर या किशोरियां अपना जीवन साथी स्वयं चुनते हैं। इसीलिए वहाँ सह शिक्षा अनिवार्य मानी गई।

यहीं से वे लोग एक दूसरे से परिचित होकर, अपने लिए स्वयं साथी ढूँढ सकते हैं। भारत में ऐसी कोई विवशता नहीं है। किन्तु आजकल भारत में भी पाश्चात्य रीति ने प्रवेश कर लिया है।

पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से भारत में भी सह शिक्षा का प्रयोग होने लगा। यहाँ भी प्रेम विवाह होने लगे। भारतीय समाज में भी सह शिक्षा की पाठशालाएँ खुलने लगी। आज स्त्री और पुरुष की समानता का बोलबाला है, तो सह शिक्षा का विरोध क्यों किया नााा

भारत का वातावरण गर्म है जबकि यूरोपीय देशों का शीत है। भारत में विवाह की आयु कम है। यहाँ के वातावरण में परिपक्वता जल्दी प्राप्त होती है। अतएव सह शिक्षा के कारण किशोर एवं किशोरियों में आकर्षण होने लगता है। यदि अनुशासन में कमी पाई गई तो कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। भारतीय समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाता। सह शिक्षा में उछंखल जीवन हो जाने की संभावना बनी रहती है।

प्राथमिक पाठशालाओं में सह शिक्षा देने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है। समाज में समान भावना विकसित करने, एक साथ रहने का अभ्यास बढ़ाने में यह सहायक होती है।

समाज के ऊपर भी एक काम के लिए दो पाठशालाओं को चलाने का भार नहीं पड़ता है। किन्तु उच्च कक्षाओं में अवश्य सह शिक्षा के कारण समस्याएँ उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है। यद्यपि यह ऐसा काल होता है जहाँ एक दूसरे के साथ रहने एवं काम करने का अभ्यास होता है। सह शिक्षा वाली पाठशालाओं में अनुशासन अच्छा हो तो कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती। बालक बालिकाओं में स्वत: ही संयम और अनुशासन की भावना विकसित हो जाती है। दोनों ही जीवन के क्षेत्र में अपना उत्तरदायित्व समझने लगते हैं।

आज भारत के शिक्षित समाज में पाश्चात्य संस्कार प्रभाव डाल चुके हैं। विवाहादि में भी उनके परिवारों को उतनी ही स्वतंत्रता मिल चुकी है। सह शिक्षा देश की आवश्यकता बनती जा रही है। अतएव यदि ऐसी दशा में सहशिक्षा की संस्थाएँ फलती फूलती हैं तो सावधानी आवश्यक है। पाठशालाओं का प्रबन्ध कुशल होना चाहिए। पाठशाला के समय में छात्र और छात्राओं को व्यस्त रखना चाहिए। उन्हें स्वच्छंद घूमने फिरने का समय नहीं मिलना चाहिए।

उच्च शिक्षा का स्तर आते-आते छात्र और छात्राएँ परिपक्व हो जाते हैं। वे अपना भला बुरा समझने लगते हैं। अतएव सहशिक्षा में यहाँ उतनी सावधानी बरतने की आवश्यकता नहीं होती।

सह शिक्षा का महत्व आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में इसलिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि आजकल कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। महिलाएँ अब घरों में ही सीमित नहीं रही हैं बल्कि अब वह व्यापारिक क्षेत्रों में भी अपनी भागीदारी करने लगी हैं।

इससे वह आर्थिक रूप से सक्षम होती हैं तथा उनके परिवार में भी खुशहाली आती है। इसके लिए सह शिक्षा बहुत मददगार साबित होती है। क्योंकि सह शिक्षा में पुरुष और महिला होने के कारण उन्हें नौकरी करते समय अपने पुरुष सहयोगियों के साथ काम करने में दिक्कत नहीं आती है।

आज के युग में सह शिक्षा वरदान सिद्ध हो सकती है। विशेषकर आर्थिक दृष्टि से सह शिक्षा उन माता-पिताओं के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है, जो दहेज के दबाव के कारण अपनी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते। यह अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देती है।

निष्कर्ष यह है कि सह शिक्षा आज के युग की आवश्यकता है, पर सह शिक्षा की प्रथम शर्त यह है कि सह शिक्षा वाली संस्थाओं में अनुशासन अनिवार्य हो। तभी हम सच्चे अर्थों में भारत के अन्दर सह शिक्षा को सफल बना सकेंगे।

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Romi Sharma

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सहशिक्षा पर निबंध

प्रस्तावना: सहशिक्षा आधुनिक प्रणाली है।और पश्चिमी देश की देन है। सहशिक्षा का अर्थ है छात्रा – छात्रों का एक ही विद्यालय में एक ही समय एक ही अध्यापक द्वारा एक साथ मिलकर विद्याध्ययन करना है। पहले यह प्रणाली भारत मे नही थी। इस प्रणाली से लाभ तथा हानियां दोनों ही है। यधपि यह प्रणाली भारत मे पूर्ण रूप से सफल नही हुई, फिर भी इसका परीक्षण हो रहा है। बहुत से भारतीय विचारवान इस प्रणाली को छात्र-छात्राओं के लिए चारित्रिक पतन का कारण समझते है। कुछ प्रगतिशील महान भाव इसके पक्ष में भी है।

पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण: इसका पक्ष लेने वाले लोग अनेक तर्को द्वारा इसकी विशेषता सिद्ध करते हुए इसे लसभप्रद बता रहे है। उनका कहना है।की सहशिक्षा हमारे सामाजिक जीवन की प्रगति के लिए उपयोगी है। इससे अनेक प्रत्यक्ष लाभ है।

(1) अलग विद्यालय की आवश्यकता नही होंगी। यदि देश मे सहशिक्षा प्रणाली प्रचलित कर दी जाए तो छात्र -छात्रों के लिए पृथक-पृथक विद्यालय बनाने की आवश्यकता न होती। एक ही भवन में लडके -लड़कियों के स्कूल एवं कालेजों का प्रबंध हो जाएगा।

(2)प्रतिस्पर्धा की भावना छात्र-छात्राओं में पढ़ाई के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी। इससे उनका बौद्धिक विकास होगा।और दोनों वर्ग एक दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करेंगे।

(3) व्यर्थ की झिझक दूर होगी सहशिक्षा से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लड़कियों में पाई जाने वाली व्यर्थ की लज्जा दूर होंगी।लड़के लड़कियों के सम्मुख झेंप महसूस नहीं करेंगे।इससे दोनो में सहानुभूति की भावना उत्पन्न होंगी।वे एक दूसरे के सुख दुख में साझीदार बनेंगे ।

(4) एक दूसरे की मनोवृति का ज्ञान

सहशिक्षा से छात्र-छात्राओं में एक दूसरे की मनोवर्ती ओर स्वभाव को समझ लेने की अधिक क्षमता आ जाती हैं।यह बात उनके भावी जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।

तनिक विचार करने से प्रतीत होगा कि इन युक्तियों में अधिक बल नहीं है । किसी भी अच्छी सरकार का यह परम कर्तव्य है की जैसे भी हो अन्य विभागों में बचत करके भी लड़कियों के शिक्षा का पूरा प्रबंध करें क्योंकी ईसी से देश का भविष्य उज्जवल हो सकता है।

विरोधी दृष्टिकोण

सह शिक्षा के विरोधी इसमें अनेक त्रुटियां बताते हैं। उनका कहना है कि इससे हमारी परंपराओं तथा संस्कृति पर भीषण आघात हो रहा है। उनके कथा अनुसार सहशिक्षा में अनेक हानियां हैं।

(1) हमारे शास्त्रों का मत: भारतीय शास्त्रों का विधान है कि लड़के और लड़कियों के पाठशाला में प्राप्त अंतर होना चाहिए बल्कि दोनों के विद्यालय विपरीत दिशा में होना चाहिए।

(2) भारतीय दृष्टिकोण के विपरीत: सहशिक्षा का पूर्ण रूप से विदेशी शिक्षा पद्धति का भारतीय इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं मिलता सभी महापुरुषों ने इसका विरोध किया है महात्मा कबीर ने नारी की तुलना आग से की है।

(3)विद्यालय का दूषित वातावरण: वर्तमान युग में देखने में आता है कि प्राय विद्यालयों का वातावरण दूषित होता है।अतः लड़के और लड़कियां दोनों का चरित्र भ्रष्ट हो रहा है। संदेश का चारित्रिक हास हो रहा है।

(4) छात्र-छात्राओं के भिन्न रुचि

छात्र-छात्राओं की भिन्न रूचि -पुरूष और स्त्री में रूचि की भिन्नता प्राकृतिक है।दोनों की शिक्षा एक प्रकार की नहीं हो सकती और दोनों का कार्यक्षेत्र भी प्रथक -पृथक है।इसलिए उनकी शिक्षा पृथक-पृथक स्थानों में होनी चाहिए।

भारतीय परंपराओं के प्रतिकूल होते हुए भी सहशिक्षा भारत में आई।इसके अनेक कारण है।प्रथम तो पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव, वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विदेशी शासकों के नीति, लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए मांग,तथा अधिकारियो की उक्त मांग को पूरा करने की असमर्थता आती है।

सरशिक्षा के समर्थकों के विचारशील सम्मति यह है।कि प्राम्भिक श्रेणियों तक सहशिक्षा अच्छी है।माध्य्म अवस्था की कन्याओं के लिए यह शिक्षा हानिकारक है। उस अवस्था में ही अज्ञान के दुष्परिणाम प्रकट होते हैं। बड़ी अवस्था में भी सहशिक्षा से कोई हानि नहीं। क्योंकि लड़की अपना अच्छा गलत खुद सोच सकती है। सहशिक्षा से अनेक लाभ है। लेकिन इससे एक हानि भी है ।जससे सब पर पानी फिर जाता है। उत्तम तो यहीं होंगा की लड़के और लड़कियों को पृथक- पृथक शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उन्हें किसी प्रकार का भय न रहे।

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शिक्षा का महत्व पर निबंध (Importance of Education Essay in Hindi)

शिक्षा का महत्व

बेहतर शिक्षा सभी के लिए जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है। यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है। स्कूली शिक्षा सभी के जीवन में महान भूमिका निभाती है। पूरे शिक्षा तंत्र को प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च माध्यमिक शिक्षा जैसे को तीन भागों में बाँटा गया है। शिक्षा के सभी स्तर अपना एक विशेष महत्व और स्थान रखते हैं। हम सभी अपने बच्चों को सफलता की ओर जाते हुए देखना चाहते हैं, जो केवल अच्छी और उचित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।

शिक्षा का महत्व पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Importance of Education in Hindi, Shiksha Ka Mahatva par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – शिक्षा का महत्व.

जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा सभी के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें जीवन के कठिन समय में चुनौतियों से सामना करने में सहायता करता है।

पूरी शिक्षण प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान हम सभी और प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति आत्मनिर्भर बनाता है। यह जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसरों के लिए विभिन्न दरवाजे खोलती है जिससे कैरियर के विकास को बढ़ावा मिले। ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा बहुत से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। यह समाज में सभी व्यक्तियों में समानता की भावना लाती है और देश के विकास और वृद्धि को भी बढ़ावा देती है।

शिक्षा का महत्व

आज के समाज में शिक्षा का महत्व काफी बढ़ चुका है। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि एक व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है। हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है, यहीं कारण है कि हमें शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती है।

आज के आधुनिक तकनीकी संसार में शिक्षा काफी अहम है। आजकल के समय में  शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए बहुत तरीके सारे तरीके अपनाये जाते हैं। वर्तमान समय में शिक्षा का पूरा तंत्र अब बदल चुका है। हम अब 12वीं कक्षा के बाद दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम (डिस्टेंस एजूकेशन) के माध्यम से भी नौकरी के साथ ही पढ़ाई भी कर सकते हैं। शिक्षा बहुत महंगी नहीं है, कोई भी कम धन होने के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है। दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से हम आसानी से किसी भी बड़े और प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में बहुत कम शुल्क में प्रवेश ले सकते हैं। अन्य छोटे संस्थान भी किसी विशेष क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

निबंध 2 (400 शब्द) – विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है

शिक्षा स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए समान रुप से आवश्यक है, क्योंकि स्वास्थ्य और शिक्षित समाज का निर्माण दोनो द्वारा मिलकर ही किया जाता हैं। यह उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक यंत्र होने के साथ ही देश के विकास और प्रगति में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस तरह, उपयुक्त शिक्षा दोनों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करती है। वो केवल शिक्षित नेता ही होते हैं, जो एक राष्ट्र का निर्माण करके, इसे सफलता और प्रगति के रास्ते की ओर ले जाते हैं। शिक्षा जहाँ तक संभव होता है उस सीमा तक लोगों बेहतर और सज्जन बनाने का कार्य करती है।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली

अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे; व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना और अन्य सामाजिक मुद्दे आदि। दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के प्रयोग के कारण, आजकल शिक्षा प्रणाली बहुत साधारण और आसान हो गयी है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली, अशिक्षा और समानता के मुद्दे को विभिन्न जाति, धर्म व जनजाति के बीच से पूरी तरह से हटाने में सक्षम है।

विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है

विद्या एक ऐसा धन है जिसे ना तो कोई चुरा सकता है और नाही कोई छीन सकता। यह एक मात्र ऐसा धन है जो बाँटने पर कम नहीं होता, बल्कि की इसके विपरीत बढ़ता ही जाता है। हमने देखा होगा कि हमारे समाज में जो शिक्षित व्यक्ति होते हैं उनका एक अलग ही मान सम्मान होता है और लोग उन्हें हमारे समाज में इज्जत भी देते हैं। इसलिए हर व्यक्ति चाहता है कि वह एक साक्षर हो प्रशिक्षित हो इसीलिए आज के समय में हमारे जीवन में पढ़ाई का बहुत अधिक महत्व हो गया है। इसीलिए आपको यह याद रखना है कि शिक्षा हमारे लिए बहुत जरूरी है इसकी वजह से हमें हमारे समाज में सम्मान मिलता है जिससे हम समाज में सर उठा कर जी सकते हैं।

शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को उच्च स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है और समाज में लोगों के बीच सभी भेदभावों को हटाने में मदद करती है। यह हमारी अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलू को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में भी हमारी सहायता करता है।

निबंध 3 (500 शब्द) – शिक्षा की मुख्य भूमिका

शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण है । हम जीवन में शिक्षा के इस उपकरण का प्रयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों को सामाजिक और पारिवारिक आदर और एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। यह एक व्यक्ति को जीवन में एक अलग स्तर और अच्छाई की भावना को विकसित करती है। शिक्षा किसी भी बड़ी पारिवारिक, सामाजिक और यहाँ तक कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को भी हर करने की क्षमता प्रदान करती है। हम से कोई भी जीवन के हरेक पहलू में शिक्षा के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकता। यह मस्तिष्क को सकारात्मक ओर मोड़ती है और सभी मानसिक और नकारात्मक विचारधाराओं को हटाती है।

शिक्षा क्या है ?

यह लोगों की सोच को सकारात्मक विचार लाकर बदलती है और नकारात्मक विचारों को हटाती है। बचपन में ही हमारे माता-पिता हमारे मस्तिष्क को शिक्षा की ओर ले जाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्था में हमारा दाखिला कराकर हमें अच्छी शिक्षा प्रदान करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। यह हमें तकनीकी और उच्च कौशल वाले ज्ञान के साथ ही पूरे संसार में हमारे विचारों को विकसित करने की क्षमता प्रदान करती है। अपने कौशल और ज्ञान को बढ़ाने का सबसे अच्छे तरीके अखबारों को पढ़ना, टीवी पर ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों को देखना, अच्छे लेखकों की किताबें पढ़ना आदि हैं। शिक्षा हमें अधिक सभ्य और बेहतर शिक्षित बनाती है। यह समाज में बेहतर पद और नौकरी में कल्पना की गए पद को प्राप्त करने में हमारी मदद करती है।

शिक्षा की मुख्य भूमिका

आधुनिक तकनीकी संसार में शिक्षा मुख्य भूमिका को निभाती है। आजकल, शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए बहुत तरीके हैं। शिक्षा का पूरा तंत्र अब बदल दिया गया है। हम अब 12वीं कक्षा के बाद दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम (डिस्टेंस एजूकेशन) के माध्यम से भी नौकरी के साथ ही पढ़ाई भी कर सकते हैं। शिक्षा बहुत महंगी नहीं है, कोई भी कम धन होने के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है। दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से हम आसानी से किसी भी बड़े और प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में बहुत कम शुल्क पर प्रवेश ले सकते हैं। अन्य छोटे संस्थान भी किसी विशेष क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

यह हमें जीवन में एक अच्छा चिकित्सक, अभियंता (इंजीनियर), पायलट, शिक्षक आदि, जो भी हम बनना चाहते हैं वो बनने के योग्य बनाती है। नियमित और उचित शिक्षा हमें जीवन में लक्ष्य को बनाने के द्वारा सफलता की ओर ले जाती है। पहले के समय की शिक्षा प्रणाली आज के अपेक्षा काफी कठिन थी। सभी जातियाँ अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थी। अधिक शुल्क होने के कारण प्रतिष्ठित कालेज में प्रवेश लेना भी काफी मुश्किल था। लेकिन अब, दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करके आगे बढ़ना बहुत ही आसान और सरल बन गया है।

Importance of Education Essay in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द) – ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का महत्व

घर शिक्षा प्राप्त करने पहला स्थान है और सभी के जीवन में अभिभावक पहले शिक्षक होते हैं। हम अपने बचपन में, शिक्षा का पहला पाठ अपने घर विशेष रुप से माँ से प्राप्त करते हैं। हमारे माता-पिता जीवन में शिक्षा के महत्व को बताते हैं। जब हम 3 या 4 साल के हो जाते हैं, तो हम स्कूल में उपयुक्त, नियमित और क्रमबद्ध पढ़ाई के लिए भेजे जाते हैं, जहाँ हमें बहुत सी परीक्षाएं देनी पड़ती है, तब हमें एक कक्षा उत्तीर्ण करने का प्रमाण मिलता है।

एक-एक कक्षा को उत्तीर्ण करते हुए हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, जब तक कि, हम 12वीं कक्षा को पास नहीं कर लेते। इसके बाद, तकनीकी या पेशेवर डिग्री की प्राप्ति के लिए तैयारी शुरु कर देते हैं, जिसे उच्च शिक्षा भी कहा जाता है। उच्च शिक्षा सभी के लिए अच्छी और तकनीकी नौकरी प्राप्त करने के लिए बहुत ही आवश्यक है।

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का महत्व

हम अपने अभिभावकों और शिक्षक के प्रयासों के द्वारा अपने जीवन में अच्छे शिक्षित व्यक्ति बनते हैं। वे वास्तव में हमारे शुभ चिंतक हैं, जिन्होंने हमारे जीवन को सफलता की ओर ले जाने में मदद की। आजकल, शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चलायी जा रही हैं ताकि, सभी की उपयुक्त शिक्षा तक पहुँच संभव हो। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के महत्व और लाभों को दिखाने के लिए टीवी और अखबारों में बहुत से विज्ञापनों को दिखाया जाता है क्योंकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी और शिक्षा की ओर अधूरी जानकारी के कारण पढ़ाई करना नहीं चाहते हैं।

गरीबों और माध्यम वर्ग के लिए शिक्षा

पहले, शिक्षा प्रणाली बहुत ही महंगी और कठिन थी, गरीब लोग 12वीं कक्षा के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे। समाज में लोगों के बीच बहुत अन्तर और असमानता थी। उच्च जाति के लोग, अच्छे से शिक्षा प्राप्त करते थे और निम्न जाति के लोगों को स्कूल या कालेज में शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। यद्यपि, अब शिक्षा की पूरी प्रक्रिया और विषय में बड़े स्तर पर परिवर्तन किए गए हैं। इस विषय में भारत सरकार के द्वारा सभी के लिए शिक्षा प्रणाली को सुगम और कम महंगी करने के लिए बहुत से नियम और कानून लागू किये गये हैं।

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण, दूरस्थ शिक्षा प्रणाली ने उच्च शिक्षा को सस्ता और सुगम बनाया है, ताकि पिछड़े क्षेत्रों, गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भविष्य में समान शिक्षा और सफलता प्राप्त करने के अवसर मिलें। भलीभाँति शिक्षित व्यक्ति एक देश के मजबूत आधार स्तम्भ होते हैं और भविष्य में इसको आगे ले जाने में सहयोग करते हैं। इस तरह, शिक्षा वो उपकरण है, जो जीवन, समाज और राष्ट्र में सभी असंभव स्थितियों को संभव बनाती है।

शिक्षा: उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण

शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण है। हम जीवन में शिक्षा के इस उपकरण का प्रयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों को सामाजिक और पारिवारिक आदर और एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। यह एक व्यक्ति को जीवन में एक अलग स्तर और अच्छाई की भावना को विकसित करती है। शिक्षा किसी भी बड़ी पारिवारिक, सामाजिक और यहाँ तक कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को भी हर करने की क्षमता प्रदान करती है। हम से कोई भी जीवन के हरेक पहलू में शिक्षा के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकता। यह मस्तिष्क को सकारात्मक ओर मोड़ती है और सभी मानसिक और नकारात्मक विचारधाराओं को हटाती है।

शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को बड़े स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है तथा इसके साथ ही यह समाज में लोगों के बीच के सभी भेदभावों को हटाने में भी सहायता करती है। यह हमें अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलू को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में हमारी सहायता करती है।

FAQs: Frequently Asked Questions on Importance of Education (शिक्षा का महत्व पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- तथागत बुध्द के अनुसार शिक्षा व्यक्ति के समन्वित विकास की प्रक्रिया है।

उत्तर- शिक्षा तीन प्रकार की होती है औपचारिक शिक्षा, निरौपचारिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा।

उत्तर- शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है।

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co education essay in hindi

Education Essay in Hindi – नेल्सन मंडेला ने ठीक ही कहा था, “दुनिया को बदलने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण हथियार है।” शिक्षा एक व्यक्ति के विकास और उसे एक जानकार नागरिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह शिक्षा ही है जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, सामाजिक बुराइयों को दबाने में मदद करती है और समग्र रूप से समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान देती है।

शिक्षा प्रकृति के रहस्य को जानने में मदद करती है। यह हमें हमारे समाज के कामकाज को समझने और सुधारने में सक्षम बनाता है। यह बेहतर जीवन के लिए परिस्थितियाँ बनाता है। शिक्षा समाज में हो रहे अन्याय से लड़ने की क्षमता लाती है। प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है।

परिचय (Introduction)

शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है जो ज्ञान, कौशल, तकनीक, सूचना प्रदान करती है और लोगों को अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने अधिकारों और कर्तव्यों को जानने में सक्षम बनाती है। आप हमारे आसपास की दुनिया को देखने के लिए अपनी दृष्टि और दृष्टिकोण का विस्तार कर सकते हैं। यह जीवन के प्रति हमारी धारणा को बदल देता है। शिक्षा आपकी रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए नई चीजों का पता लगाने की क्षमता का निर्माण करती है। आपकी रचनात्मकता राष्ट्र को विकसित करने का एक उपकरण है।

शिक्षा पर निबंध 10 लाइन (Education Essay 10 lines in Hindi)

  • 1) शिक्षा वह प्रक्रिया है जो किसी के चरित्र को सीखने, ज्ञान और कौशल प्राप्त करने में सहायता करती है।
  • 2) शिक्षा समाज की सोच को उन्नत करती है और सामाजिक बुराइयों को दूर करने में मदद करती है।
  • 3) यह समाज की असमानताओं से लड़कर देश के समान विकास में मदद करता है।
  • 4) हम शिक्षण, प्रशिक्षण और अनुसंधान गतिविधियों आदि जैसे विभिन्न तरीकों से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
  • 5) कहानी सुनाना शिक्षा का एक तरीका है जो ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने में मदद करता है।
  • 6) गुरुकुल प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली थी जब छात्र गुरुओं के साथ रहकर सीखते थे।
  • 7) शिक्षा का अधिकार अधिनियम शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बनाता है।
  • 8) शिक्षा आजीविका कमाने और हमारे मूल अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करती है।
  • 9) शिक्षा अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने में मदद करती है।
  • 10) आय में वृद्धि और गरीबी को कम करके शिक्षा भी आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शिक्षा पर निबंध 20 लाइन (Education Essay 20 lines in Hindi)

  • 1) शिक्षा ज्ञान प्रदान करने, तार्किक दृष्टिकोण विकसित करने और व्यक्ति की क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
  • 2) शिक्षित नागरिकों वाले देश में हमेशा तार्किक सोच और विचारों वाले लोग होंगे।
  • 3) लोकतांत्रिक देशों में शिक्षा सही सरकार चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • 4) शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में मदद करती है।
  • 5) यह एक व्यक्ति के सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी बढ़ाता है और उसे अधिक समझदार, सहिष्णु, सहायक और सहानुभूतिपूर्ण बनाता है।
  • 6) यह कठोर शिक्षा और विकास के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यवहार को संशोधित और बढ़ाता है।
  • 7) शिक्षा गरीबी उन्मूलन और समाज में समानता लाने में मदद करती है।
  • 8) यह किसी देश के नागरिकों की निर्णय लेने की क्षमता को एक बौद्धिक चैनल देने का एक तरीका है।
  • 9) कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में विकास शिक्षा के कारण ही संभव है।
  • 10) शिक्षा बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करती है ताकि वे विकास में अपना योगदान दे सकें।
  • 11) शिक्षा व्यक्ति को सामाजिक, वित्तीय और बौद्धिक पहलुओं में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाती है।
  • 12) प्राचीन भारत में शिक्षा सभी के लिए थी, लेकिन यह जाति और कर्तव्यों के आधार पर उपलब्ध हो गई।
  • 13) नालंदा और तक्षशिला प्राचीन काल के सबसे प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान थे।
  • 14) शिक्षा को कोई चुरा नहीं सकता, इसलिए यह हमेशा हमारे पास रहती है और कभी बेकार नहीं जाती।
  • 15) भारत में मुख्य रूप से तीन प्रकार के स्कूल हैं जैसे सरकारी स्कूल, सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूल और निजी स्कूल।
  • 16) भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में उड़ान, सक्षम, प्रगति आदि जैसे विभिन्न पहलों की शुरुआत की है।
  • 17) इन पहलों ने भारत में शिक्षा की स्थिति और गुणवत्ता में सुधार करने में प्रमुख रूप से मदद की है।
  • 18) विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने शिक्षा प्राप्त करने के तरीके को भी बदल दिया है।
  • 19) आजकल, शिक्षा प्रदान करने के लिए ई-लर्निंग, वीडियो-आधारित शिक्षा आदि जैसी विभिन्न तकनीकें और तरीके हैं।
  • 20) शिक्षा हमेशा मानव जाति के लिए प्रेरक शक्ति रही है।

इनके बारे मे भी जाने

  • Essay in Hindi
  • New Year Essay
  • My School Essay
  • Importance Of Education Essay

शिक्षा पर लघु पैराग्राफ (Short Paragraphs on Education in Hindi)

शिक्षा मानव जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है। हम सभी शिक्षित होने के पात्र हैं। यह हमारा मानवीय अधिकार है। लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिनके पास शिक्षा प्राप्त करने का उचित अवसर नहीं है। इसके पीछे मुख्य कारण गरीबी है। इनमें ज्यादातर बाल मजदूरी से जुड़े हैं। माता-पिता को इस मुद्दे पर जागरूक होने की जरूरत है। आपको इस उम्र में अपने बच्चों को काम नहीं करने देना चाहिए। वे स्कूल जाने के योग्य हैं; अन्यथा, वे देश के लिए एक खतरनाक व्यक्ति हो सकते हैं। हम सभी को सभी के लिए शिक्षा अभियान पर अपनी आवाज बुलंद करने की जरूरत है। यह वास्तव में महत्वपूर्ण है।

शिक्षा पर निबंध 100 शब्दों मे (Education Essay 100 Words in Hindi)

सबसे पहले शिक्षा किसी को भी पढ़ने लिखने की क्षमता देती है। जीवन में आगे बढ़ने और सफल होने के लिए एक अच्छी शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायता मिलती है। शिक्षा हमारे जीवन में एक बड़ी भूमिका निभाती है। शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जैसे 3 भागों में विभाजित किया गया है। शिक्षा के इन तीनों विभागों का अपना मूल्य और लाभ है। प्राथमिक शिक्षा व्यक्ति के लिए शिक्षा का आधार है, माध्यमिक शिक्षा आगे की शिक्षा के लिए दिशा प्रदान करती है और उच्च माध्यमिक शिक्षा भविष्य और जीवन का अंतिम मार्ग बनाती है।

शिक्षा पर निबंध 150 शब्दों मे (Education Essay 150 Words in Hindi)

शिक्षा जीवन में बढ़ने और कुछ महत्वपूर्ण समझने का एक बहुत शक्तिशाली माध्यम है। मनुष्य के जीवन में कठिन जीवन की कठिनाइयों को कम करने में शिक्षा का बहुत लाभ होता है। शिक्षा युग के माध्यम से प्राप्त विशेषज्ञता हर किसी को अपने जीवन के बारे में प्रोत्साहित करती है। शिक्षा कैरियर के विकास में सुधार के लिए जीवन में अधिक वास्तविक संभावनाएं प्राप्त करने की संभावनाओं के लिए कई दरवाजों में प्रवेश करने का एक तरीका है। सरकार विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और हमारे जीवन में इसके लाभों के बारे में सभी को शिक्षित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की व्यवस्था भी कर रही है। शिक्षा समाज में सभी के बीच समानता का ज्ञान प्रदान करती है और राष्ट्र के विकास और सुधार को प्रोत्साहित करती है।

इस आधुनिक तकनीक आधारित युग में, शिक्षा हमारे जीवन में एक सर्वोच्च भूमिका निभाती है। और इस युग में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए कितने ही तरीके हैं। शिक्षा का पूरा मानदंड अब आधुनिक हो चुका है। और शिक्षा किसी के भी जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालती है।

शिक्षा पर निबंध 200 शब्दों मे (Education Essay 200 Words in Hindi)

हर बच्चे का जीवन में कुछ अनोखा करने का अपना नजरिया होता है। कभी-कभी माता-पिता भी अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस या पीसीएस अधिकारी, या किसी अन्य उच्च-स्तरीय पेशे जैसे उच्च व्यवसायों में होने का सपना देखते हैं। बच्चों या माता-पिता के ऐसे सभी लक्ष्यों को शिक्षा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

इस प्रतिस्पर्धी युग में, जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी के पास अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान होना चाहिए। शिक्षा न केवल अच्छी नौकरी देती है बल्कि जीवन को नए नजरिए से समझने की क्षमता भी बढ़ाती है। सभ्य शिक्षा जीवन में आगे बढ़ने के कई रास्ते बनाती है। यह हमारे विशेषज्ञता स्तर, तकनीकी क्षमताओं और उत्कृष्ट कार्य में सुधार करके हमें बौद्धिक और नैतिक रूप से शक्तिशाली बनाता है।

साथ ही, कुछ बच्चे अन्य क्षेत्रों जैसे खेल, नृत्य, संगीत, और भी बहुत कुछ में रुचि रखते हैं, वे अपनी संबंधित डिग्री, अनुभव, प्रतिभा और भावना के साथ अपनी अतिरिक्त शिक्षा कर सकते हैं। भारत में, शिक्षा के विभिन्न बोर्ड उपलब्ध हैं जैसे राज्यवार बोर्ड (गुजरात बोर्ड, यूपी बोर्ड, आदि), आईसीएसई बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड, आदि। और शिक्षा विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है जैसे कि एक बच्चा अपनी मातृभाषा में पढ़ सकता है या हिंदी माध्यम में या अंग्रेजी माध्यम में, बोर्ड या भाषा का चयन करना माता-पिता या बच्चे की पसंद है। यह वह उम्र है जहां शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी मदद से कोई भी अपने जीवन को बेहतर तरीके से बदल सकता है।

शिक्षा पर निबंध 250 शब्दों मे (Education Essay 250 Words in Hindi)

शिक्षा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि एक स्वस्थ और स्मार्ट समाज के विकास में दोनों की एक आवश्यक भूमिका है। शिक्षा एक शानदार भविष्य देने का एक आवश्यक तरीका है और साथ ही राष्ट्र के विकास और सुधार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राष्ट्र के बेहतर भविष्य और प्रगति के लिए राष्ट्र के नागरिक जिम्मेदार हैं।

अत्यधिक शिक्षित नागरिक एक विकसित राष्ट्र की नींव बनाते हैं। इसलिए, सभ्य शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र दोनों के लिए एक शानदार कल का निर्माण करती है। शिक्षित निर्देशक ही देश को बनाते हैं और उसे समृद्धि और विकास के शीर्ष पर ले जाते हैं। शिक्षा सभी को प्रतिभाशाली और यथासंभव उत्कृष्ट बनाती है।

एक विश्वसनीय शिक्षा जीवन के लिए कई उद्देश्य प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत सुधार, सामाजिक स्थिति में वृद्धि, सामाजिक कल्याण में विकास, वित्तीय विकास, देश की समृद्धि, जीवन के उद्देश्यों की स्थापना, हमें कई सामाजिक सरोकारों से अवगत कराना और पेशकश करने के लिए परिस्थितियों का निर्धारण करना। किसी भी मुद्दे और अन्य प्रासंगिक मामलों के लिए सर्वोत्तम समाधान।

आजकल, हर कोई आधुनिक तकनीक आधारित प्लेटफॉर्म का उपयोग करके शिक्षा प्राप्त कर सकता है, और इसके लिए विभिन्न दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम भी उपलब्ध हैं। और इस तरह की आधुनिक शिक्षा प्रणाली विभिन्न जातियों, धर्मों और जातियों में से प्रत्येक के बीच अशिक्षा और असमानता की सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करने में पूरी तरह से कुशल है।

शिक्षा बड़े पैमाने पर लोगों की रचनात्मकता का विस्तार करती है और राष्ट्र में सभी विविधताओं को दूर करने के लिए उन्हें लाभान्वित करती है। यह हमें ठीक से अध्ययन करने और जीवन के हर चरण को जानने की अनुमति देता है। शिक्षा सभी मानवीय स्वतंत्रताओं, सामाजिक स्वतंत्रताओं, उत्तरदायित्वों और राष्ट्र के प्रति दायित्वों को जानने का बोध कराती है। संक्षेप में, शिक्षा में किसी राष्ट्र को सर्वोत्तम तरीके से सुधारने की शक्ति है।

शिक्षा पर निबंध 500 शब्दों मे (Education Essay 500 Words in Hindi)

शिक्षा एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो हर किसी के जीवन में बहुत उपयोगी है। शिक्षा वह है जो हमें पृथ्वी पर अन्य जीवित प्राणियों से अलग करती है। यह मनुष्य को पृथ्वी का सबसे चतुर प्राणी बनाता है। यह मनुष्यों को सशक्त बनाता है और उन्हें जीवन की चुनौतियों का कुशलतापूर्वक सामना करने के लिए तैयार करता है। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि शिक्षा अभी भी हमारे देश में एक विलासिता है और एक आवश्यकता नहीं है। शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए देश भर में शैक्षिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है। लेकिन, यह पहले शिक्षा के महत्व का विश्लेषण किए बिना अधूरा रहता है। केवल जब लोग यह महसूस करते हैं कि इसका क्या महत्व है, तभी वे इसे अच्छे जीवन के लिए आवश्यक मान सकते हैं। शिक्षा पर इस निबंध में, हम शिक्षा के महत्व और कैसे यह सफलता का द्वार है, देखेंगे।

शिक्षा का महत्त्व

शिक्षा गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। इसके अलावा, यह वाणिज्यिक परिदृश्य को बढ़ाता है और देश को समग्र रूप से लाभान्वित करता है। अतः किसी देश में शिक्षा का स्तर जितना ऊँचा होगा, विकास की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक होंगी।

इसके अतिरिक्त, यह शिक्षा व्यक्ति को विभिन्न प्रकार से लाभ भी पहुँचाती है। यह एक व्यक्ति को अपने ज्ञान के उपयोग के साथ बेहतर और सूचित निर्णय लेने में मदद करता है। इससे व्यक्ति के जीवन में सफलता दर बढ़ती है।

इसके बाद, शिक्षा एक उन्नत जीवन शैली प्रदान करने के लिए भी जिम्मेदार है। यह आपको करियर के अवसर प्रदान करता है जो आपके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

इसी प्रकार शिक्षा भी व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाने में सहायक होती है। जब कोई पर्याप्त शिक्षित होगा, तो उसे अपनी आजीविका के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वे अपने लिए कमाने और एक अच्छा जीवन जीने के लिए आत्मनिर्भर होंगे।

इन सबसे ऊपर, शिक्षा व्यक्ति के आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है और उन्हें जीवन में कुछ निश्चित बनाती है। जब हम देशों के दृष्टिकोण से बात करते हैं, तब भी शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षित लोग देश के बेहतर उम्मीदवार को वोट देते हैं। यह एक राष्ट्र के विकास और विकास को सुनिश्चित करता है।

सफलता का द्वार

यह कहना कि शिक्षा आपकी सफलता का द्वार है एक अल्पमत होगा। यह कुंजी के रूप में कार्य करता है जो कई दरवाजे खोल देगा जो सफलता की ओर ले जाएगा। बदले में, यह आपको अपने लिए एक बेहतर जीवन बनाने में मदद करेगा।

एक शिक्षित व्यक्ति के पास दरवाजे के दूसरी तरफ नौकरी के बहुत सारे अवसर होते हैं। वे विभिन्न प्रकार के विकल्पों में से चुन सकते हैं और वे कुछ नापसंद करने के लिए बाध्य नहीं होंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षा हमारी धारणा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। यह हमें सही रास्ता चुनने और चीजों को सिर्फ एक के बजाय विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने में मदद करता है।

शिक्षा से आप अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं और एक अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में किसी कार्य को बेहतर ढंग से पूरा कर सकते हैं। हालांकि, हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केवल शिक्षा ही सफलता सुनिश्चित नहीं करती है।

यह सफलता का द्वार है जिसके लिए कड़ी मेहनत, समर्पण और बहुत कुछ की आवश्यकता होती है जिसके बाद आप इसे सफलतापूर्वक खोल सकते हैं। ये सभी चीजें मिलकर आपको जीवन में सफल बनाएंगी।

अंत में, शिक्षा आपको एक बेहतर इंसान बनाती है और आपको विभिन्न कौशल सिखाती है। यह आपकी बुद्धि और तर्कसंगत निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाता है। यह किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास को बढ़ाता है।

शिक्षा किसी देश के आर्थिक विकास में भी सुधार करती है। इन सबसे ऊपर, यह किसी देश के नागरिकों के लिए एक बेहतर समाज के निर्माण में सहायता करता है। यह अज्ञानता के अंधकार को नष्ट करने और दुनिया में प्रकाश लाने में मदद करता है।

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शिक्षा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है.

A.1 शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक व्यक्ति के समग्र विकास के लिए जिम्मेदार है। यह आपको कौशल हासिल करने में मदद करता है जो जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक हैं।

Q.2 शिक्षा सफलता के द्वार के रूप में कैसे काम करती है?

A.2 शिक्षा सफलता का द्वार है क्योंकि यह आपको नौकरी के अवसर प्रदान करती है। इसके अलावा, यह जीवन की हमारी धारणा को बदलता है और इसे बेहतर बनाता है।

सहशिक्षा पर निबंध | Essay on Co-Education in Hindi

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सहशिक्षा पर निबंध | Essay on Co-Education in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

सहशिक्षा से तात्पर्य लड़कों व लडकियों का विद्‌यालय में एक साथ अध्ययन करना है। हमारे देश में अनेक रूढ़िवादी लोग लंबे समय से सहशिक्षा का विरोध करते चले आ रहे हैं परंतु समय के बदलाव के साथ अब यह धीरे-धीरे कार्यान्वित हो रही है ।

इसमें विज्ञान का योगदान अधिक है जिसने मनुष्यों को अपनी पुरातनपंथी सोच में बदलाव लाने का महती प्रयास किया है । सहशिक्षा का इतिहास हमारे देश के लिए नया नहीं है । प्राचीन काल के गुरुकुलों व आश्रमों में सहशिक्षा की प्रथा प्रचलित थी । उस समय में स्त्री और पुरुष को समान दृष्टि से देखा जाता था ।

हिंदू समाज के धर्मग्रंथों व पुराने तत्वों से इसके प्रचलित होने के अनेक उदाहरण मिलते हैं परंतु देश में मुसलमानों के आगमन के पश्चात् स्थिति में काफी परिवर्तन हुआ । मुस्लिम समाज में प्रचलित परदा प्रथा के चलते धीरे-धीरे सहशिक्षा का प्रचलन लुप्त होता चला गया ।

देश-विदेश के अनेक विद्‌वानों ने इसके विरोध में मत दिए हैं । इसके विरोध में किसी अंग्रेज शिक्षाशास्त्री ने कहा है कि ”औरत के समीप होने पर पुरुष अध्ययन नहीं कर सकता है ।” विरोध में कुछ अन्य लोगों का मत है कि सहशिक्षा वातावरण में अराजकता को जन्म देती है । लड़के-लड़कियाँ विपरीत यौनाकर्षण के चलते अध्ययन में कम अपितु प्रेम व भ्रमित वातावरण की ओर अधिक आकर्षित होते हैं ।

समय-समय पर कुछ स्वार्थलोलुप अध्ययनों व छात्र-छात्राओं के अवैध संबंधों की खबरें भी सहशिक्षा के विरोध को प्रबल समर्थन देती हैं । कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि सहशिक्षा विद्‌यालय में अव्यवस्था का वातावरण उत्पन्न करती है । कुछ व्यक्तियों की क्षुब्ध धारणा है कि सहशिक्षा से छात्रों के मस्तिष्क में विचलन की संभावना बहुत अधिक रहती है ।

दूसरी ओर सहशिक्षा के समर्थन में भी अनेक मत प्रचलित हैं । इनमें से कुछ प्रचलित मत निम्नलिखित हैं:

1. सहशिक्षा के प्रयोग से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है । उनके अनुसार किसी चीज का लगातार उपयोग करने से उसके प्रति उदासीनता आ जाती है । अत: उदासीनता के कारण छात्रगण अपने अध्ययन अथवा भविष्य के प्रति अपनी ऊर्जा को अधिक केंद्रित कर सकते हैं ।

2. कुछ लोगों की धारणा है कि सहशिक्षा आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक उपयोगी है । लड़कों तथा लड़कियों के अलग-अलग संस्थानों के बजाय यदि एक ही संस्थान हो तो खर्च काफी कम किया जा सकता है । विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहाँ आर्थिक स्थिति मजबूत न हो वहाँ सहशिक्षा बहुत अधिक उपयोगी है ।

3. कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि छात्र-छात्राओं के एक ही संस्थान में अध्ययन से उनके बीच आपसी समझ बढ़ती है । यह आपसी समझ उनके गृहस्थ जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्‌ध होती है ।

4. सहशिक्षा का एक लाभ यह भी है कि एक ही परिवार की छात्र-छात्राएँ यदि एक ही विद्‌यालय में शिक्षा पाते हैं तो अभिभावकों को कम परेशानी उठानी पड़ती है ।

भारत में रूढ़िवादी परंपराओं के चलते परिवर्तन आसान नहीं है परंतु धीरे-धीरे स्कूली स्तर से बड़े स्तर में लाया जाए तो सहशिक्षा को सामान्य बनाया जा सकता है । आज के प्रगतिशील युग में जहाँ विकास के पथ पर नारी पुरुष का बराबर साथ दे रही है वहाँ पर तो यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम तुच्छ मानसिकता से ऊपर उठें ताकि सहशिक्षा का लाभ उठाया जा सके ।

वैसे भी सहशिक्षा अब धीरे-धीरे ही सही इस स्तर पर सामाजिक मान्यता प्राप्त कर चुका है कि इसे वापस नहीं लौटाया जा सकता । आधुनिक प्रगतिवादी समाज में अब लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है ।

दूसरी ओर लड़कियाँ विभिन्न स्तरों पर लड़कों की तुलना पर अच्छे अंक हासिल कर रही हैं अत: कोई आश्चर्य नहीं कि इक्कीसवीं सदी के आखिर तक दुनिया भर में लड़कियों का शिक्षा प्रतिशत लड़कों से अधिक हो जाए । ऐसे में सहशिक्षा की अहमियत और भी बढ़ जाती है ।

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Essay On Co Education

500 words essay on co education.

Co-education refers to education for both boys as well as girls. It is when the joint education of both the sexes takes place at the same institution in the same classes. It is an economic system as both the girls and boys study in the same school and college. Moreover, as girls and boys have to live together in a society in their later life, it prepares them in advance for this. The essay on co education will take us through its importance and advantages.

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Importance of Co-education

Co-education is very essential for understanding social intelligence. In other words, social intelligence is what helps us, humans, to effectively negotiate and navigate the complicated relationships and environments we live in.

Further, we regard it as the competence of the individual for understanding their background and reacting in a manner that is socially acceptable.  In other words, social intelligence is a vital tool for children.

It helps them grow up as good human beings within society. Through this, a child can develop healthy relationships with their family and friends as well as a member of society. Moreover, it also makes them better at managing their emotions.

Similarly, they are able to handle conflicts well and be empathetic towards others along with improving their values. Most importantly, co-education also helps to remove gender discrimination . Both the boys and girls get equal respect which helps them in the future.

Co-education is also important as it helps in nurturing healthy competition amongst the opposite sexes. Thus, it helps them to maintain their dignity and educates them to face their failures as well as learn from them.

Advantages of Co-education

There are many advantages to co-education. The first one is that they offer school diversity. This helps the students who wish to enrol in that school. Moreover, when students get exposed to diversity young, they find it easier to adapt to different diverse environments.

Further, it also teaches them equality as the teachers treat everyone equally. Students participate in all competition equally without any discrimination. Moreover, it also promotes socialization by promoting co-existence.

Students can prepare in advance for the real world because, at co-educational schools, they live in a healthy environment composed of both sexes. It also improves the communication skills of students as they interact with everyone.

Students also develop mutual respect and self-esteem in these schools. Most importantly, these institutions help the students overcome the fear of the opposite sex. It helps them get rid of the hesitation and shyness to talk to the opposite sex as they study in a friendly environment together.

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Conclusion of the Essay on Co Education

To conclude, co-education is an excellent system which helps the students in almost all spheres of life. It is great for the all-round development of kids as it takes away the fear of interacting with the opposite sex. Consequently, it prepares them for a world where they can effortlessly work in an environment filled with all kinds of people.

FAQ of Essay on Co Education

Question 1: What is the importance of co-education?

Answer 1: Co-education carries a lot of importance to kids as they benefit from higher levels of social skills. Moreover, their self-esteem also increases which allows them to prepare better for a diverse world with both men and women playing important roles.

Question 2: What are the disadvantages of co-education?

Answer 2: One of the most important disadvantages of co-education is lack of concentration. It is a known fact that opposite-sex attracts each other so students tend to lose temperament and momentum to their studies. Another disadvantage often noticed in co-educational institutions is sexual harassment caused by students.

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Co-Education Essay in Hindi

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सह शिक्षा पर निबंध

रूपरेखा : प्रस्तावना - सह शिक्षा का अर्थ - युवक-युवतियों का एक साथ पढ़ना - सह शिक्षा का महत्व - सह शिक्षा की विशेषताएं - प्राथमिक शिक्षा में अध्यापिका की भूमिका - सह शिक्षा आज की आवश्यकता - सह शिक्षा के फायदे - सहशिक्षा के नुकसान - उपसंहार।

विद्यालय के एक ही कक्ष में एक ही श्रेणी में बालक-बालिकाओं, युवक-युवतियों, लड़के-लड़कियों का साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करना 'सहशिक्षा' है। पाद्यक्रम, अध्यापक तथा कक्ष को एकता में छात्र-छात्राओं का शिक्षार्थ गमन 'सहशिक्षा' है। सहशिक्षा का शाब्दिक अर्थ है साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करना अर्थात् लड़के-लड़कियों को एक साथ शिक्षा देना। सहशिक्षा एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली है और पश्चिमी देशों से भारत में आई है। कुछ लोगों का मत है कि वैदिक काल से ही सहशिक्षा का प्रचलन चला आ रहा है। मध्यकाल में सहशिक्षा कम हो गई थी। परिणामतः महिलावर्ग में शिक्षा का पूर्ण अभाव हो गया। उसके बाद अंग्रेजी शासन में पुनः सहशिक्षा प्रारंभ हुई। आधुनिक युग में जहां लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर सकने में सक्ष हैं, उन्हें शिक्षा के अधिकार से वचिंत नहीं रखा जा सकता।

विद्यालय के एक ही कक्ष में एक ही श्रेणी में बालक-बालिकाओं, युवक-युवतियों, लड़के-लड़कियों का साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने को 'सहशिक्षा' कहते है। सह-शिक्षा का अर्थ है एक ही स्कूल या कॉलेज में लड़कों और लड़कियों दोनों की शिक्षा देना। पुरुषों और महिलाओं को एक-दूसरे समझने के लिए ये शिक्षा एक महत्वपूर्ण अंग है । सहशिक्षा का मतलब है 'पाद्यक्रम, अध्यापक तथा कक्ष को एकता में छात्र-छात्राओं का शिक्षार्थ गमन करना।'

आर्य-समाज के प्रचार ने स्त्री-शिक्षा पर बल दिया तो अंग्रेजी - प्रचार ने सह-शिक्षा को प्रश्नय दिया। ज्यों-ज्यों भारत में पाश्चात्य संस्कारों का विकास होता गया, सहशिक्षा बढ़ती गई। परिणामत: आज का सभ्य-नागरिक प्राचीन रूढिगत विचारों से ग्रस्त होते हुए भी अपने बच्चों को सहशिक्षा दिलाने में कोई आपत्ति नहीं करता, उसे जीवन के विकास में बाधक नहीं मानता। हमारे देश में अनेक रूढ़िवादी लोग हमेशा से सहशिक्षा का विरोध करते चले आ रहे हैं परंतु समय के बदलाव और विज्ञान का योगदान से मनुष्यों को अपनी पुरातनपंथी सोच में बदलाव लाने का महती प्रयास किया है । सहशिक्षा का इतिहास हमारे देश के लिए नया नहीं है । प्राचीन काल के गुरुकुलों व आश्रमों में सहशिक्षा की प्रथा प्रचलित थी । उस समय में स्त्री और पुरुष को समान दृष्टि से देखा जाता था ।

सह-शिक्षा व्यक्तित्व, नेतृत्व विकास के साथ-साथ संप्रेक्षण क्षमता में सहायक है। वर्तमान युग में सह-शिक्षा आवश्यक है। सह-शिक्षा प्राप्त करने से विद्यार्थी अपने जीवन में अधिक सफल रहते हैं। उनका कहना है कि हम पुरुषों और महिलाओं को हर संभव तरीके से एक साथ काम कर रहे हैं। जहां एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, तो हम बहुत शुरुआत यानी बचपन से एक की धारणा में इस माहौल विकसित करने की जरूरत है। सहशिक्षा से हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। सहशिक्षा में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग विद्यालयों की आवश्यकता नहीं होगी, इससे बचे हुए पैसे को दूसरे कामों में लगाया जा सकता है जो कि सह शिक्षा के महत्व को दर्शाता है।

विश्व रूपी जीवन में नर-नारी दो एक पात्र हैं। विश्व रूपी रंगमंच पर नर-नारी दो ऐसे पात्र हैं, जिनके बिना जीवन रूपी नाटक का मंचन नहीं हो सकता है। प्रकृति और पुरूष के रूप में उससे सृष्टि विकास का क्रम के अनुसार दोनों आज भी निरंतर जीवन और गृहस्थ की गाड़ी के दोनों पहियों के समान एक-दूसरे के पूरक बन कर एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। सहशिक्षा के प्रयोग से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है । उनके अनुसार किसी चीज का लगातार उपयोग करने से उसके प्रति उदासीनता आ जाती है । अत: उदासीनता के कारण छात्रगण अपने अध्ययन अथवा भविष्य के प्रति अपनी ऊर्जा को अधिक केंद्रित कर सकते हैं । कुछ लोगों की धारणा है कि सहशिक्षा आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक उपयोगी है । लड़कों तथा लड़कियों के अलग-अलग संस्थानों के बजाय यदि एक ही संस्थान हो तो खर्च काफी कम किया जा सकता है । विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहाँ आर्थिक स्थिति मजबूत न हो वहाँ सहशिक्षा बहुत अधिक उपयोगी है । कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि छात्र-छात्राओं के एक ही संस्थान में अध्ययन से उनके बीच आपसी समझ बढ़ती है । यह आपसी समझ उनके गृहस्थ जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्‌ध होती है ।

प्राथमिक शिक्षा में अध्यापिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। परिवार से निकलकर विद्यालय के नए बातावरण में प्रवेश करने वाले शिशु के लिए अध्यापिका माता और शिक्षक का कर्तव्य निभाती है। यदि शिशु का विभाजन बालक या बालिका में करके अलग से शिक्षा का आयोजन किया गया तो पुरुषों के अध्यापन में न वह सहृदयता होगी, न उनमें बालक की प्रवृत्ति-परिवर्तन के लिए सिद्धता होगी जो एक अध्यापिका में होती है। सहशिक्षा छात्रों में प्रतिस्पर्धा लाती है। यहाँ छात्र-छात्राओं से और छात्राएँ छात्रों से आगे बढ़ने की प्रयत्न करते हैं। यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा उनके अध्ययन, चिंतन, मनन को बलवती बनाती है।

सहशिक्षा के पक्ष में बोलने वाले लोगों के अनुसार सह शिक्षा आज की जीवन के लिए आवश्यकता प्रतीत करती है। सहशिक्षा हमारे सामाजिक जीवन की प्रगति के लिए अत्यावश्यक है। सहशिक्षा से हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। सहशिक्षा में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग विद्यालयों की आवश्यकता नहीं होगी, इससे समाज में लड़के-लड़कियों को एक समान होने का जागरूकता फैलेगा। इससे लोगों के अंदर लड़के-लड़कियों के लिए भेदभाव करने की बुरी आदत छूटेगी और देश में लड़के-लड़कियों को बराबर का अधिकार मिलेगा। इसीलिए आज के समाज को सहशिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है।

सहशिक्षा के अनेक लाभ हैं। सहशिक्षा से लड़कियों में नारी-स्वभाव सुलभ लग्जा, झिझक, पर-पुरुष से भय, कोमलता, अबलापन, हीनभावना किसी सीमा तक दूर हो जाती है। दूसरी ओर, युवक नारी के गुणों को अपना लेता है। उसकी निर्लज्जता, अक्खड़पन, अनर्गलता पर अंकुश लग जाता है और उसमें मृदुभाषिता, संयमित संभाषण, शिष्ट आचरण तथा नारी-स्वभाव के गुण विकसित होते हैं। युवक-युवतियों में भावों का यह आदान-प्रदान भावी जीवन में सफलता के कारण बनेंगे। सहशिक्षा से छात्र-छात्राओं में परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी और इससे उनका बौद्धिक विकास भी होगा। दोनों वर्ग एक दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करेंगे। लड़के लड़कियाँ एक-दूसरे से झिझको, नहीं। इससे लड़कियों में व्यर्थ की लज्जा दूर होगी, जिससे पढ़ाई समाप्त होने पर वे नौकरी में लड़कों से बात करने पर शर्माएगी नहीं और लड़के पी लड़कियों के समक्ष अधिक संयम में रहना सीखेंगे। उन्हें नारी का सम्मान करते की प्रेरणा मिलेगी। जिससे आगे जाकर उनका वैवाहिक जीवन भी सफल होगा।

आज के विषाक्त वातावरण में सहशिक्षा का सहपाठी भाई-बहन की भावना के कम और प्रेमी-प्रेमिका की भावना से अधिक ग्रस्त होता है । सहपाठी का लावण्य उसे आकर्षित करता है, आकर्षण स्पर्श के लिए प्रेरित करता है। स्पर्श आलिंगन-चुम्बन की ओर अग्रसर होता है और अन्तत: छात्र कामवासना का शिकार होता है। न अध्ययन, न जीवन-विकास, उलटा चरित्र-पतन, विनाश की ओर गति। सहशिक्षा में अध्ययन में चित्त अशांत रहता है। युवतियाँ युवकों से दबी-दबी रहती हैं। घुटन के वातावरण में जीती हैं। अध्ययनशील और लज्जालु छात्र-छात्राओं की छाया से भी कतराते हैं । ऐसी स्थिति में मन की एकाग्रचितता कहाँ ? पढ़ाई की मन:स्थिति कहाँ ? प्राध्यापक प्रवचन की ग्राह्मता कहाँ? पाठ्य-क्रम तथा पादय-पुस्तकों में कभी-कभी कुछ ऐसे प्रसंग आ जाते हैं, जो नैतिकता के मापदंडों के विपरीत होते हैं । सहशिक्षा में उन प्रसंगों को स्पष्ट कर पाना बहुत कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में प्राय: शिक्षक उन प्रसंगों की उपेक्षा कर जाता है या अस्पष्ट रहते देता है। इस प्रकार सहशिक्षा ज्ञानवर्धन में बाधक भी है।

आज का भारतीय, चाहे वह किसी भी आर्थिक स्तर पर जीवनयापन कर रहा हो, पाश्चात्य-संस्कृति को लपकने के लिए लालायित है | भारतीय-संस्कृति में उसे पिछड़ेपनकी कमी आने लगी है। सहशिक्षा से शिक्षा व्यवस्था में खर्च की बहुत बचत होती हैं। अलग-अलग कक्ष, अध्यापक तथा प्रबंध व्यवस्था में जो दुहरा खर्च होता है, वह नहीं होता । इतिहास, भूगोल, गणित, कॉमर्स, चार्टर्ड एकाउन्टेंसी, कॉस्ट एकाउन्टेंसी, बिजनेस मैनेजमेंट, आयुर्विज्ञान, एल-एल.बी. आदि कक्षाओं में युवतियों की संख्या उँगली पर गिनने योग्य होती है। उनके लिए शिक्षा की अलग व्यवस्था करना शिक्षा को अत्यधिक महँगा बनाना है। कम विद्यार्थियों के लिए पृथक व्यवस्था कर ही नहीं पाएंगे। दूरदर्शन की कृपा, सरकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रोत्साहन देने तथा पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के भारतीय जीवन को प्रभावित करने के कारण सहशिक्षा की हिचक अब समाप्त हो रही है । युवक-युवती मिलन, घुट-घुट कर बातें करना, हँसी-मजाक करना, एक-दूसरे के घर बिना झिलक आना-जाना, सैर-सपाटे, शिक्षण-संस्थाओं द्वारा आयोजित “टूर” पर जाना सामान्य-सी बात होती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति जहाँ जीवन में चमक-दमक लाएगी, विलास और वासना के मानदंड स्वतः: बदल जाएंगे, तब सहशिक्षा किसी भी स्तर पर भारतीयता के विरुद्ध नहीं मानी जाएगी।

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