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कारगिल युद्ध पर निबंध | Essay on Kargil War in Hindi

Essay on Kargil War in Hindi

कारगिल युद्ध पर निबंध (इतिहास, कारण, उद्देश्य, शौर्य की कहानी) | Essay on kargil war (History, Reasons, Heroes & Story) in Hindi

भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ तभी से पाकिस्तान भारत के विरुद्ध अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचता रहा हैं. वह 1965 और 1971 में भारत पर आक्रमण कर चूका हैं. प्रत्येक युद्ध में उसकी पराजय हुई हैं. भारत ने क्षमादान के साथ युद्ध में जीती हुई भारत भूमि लौटाई किन्तु पाकिस्तान निरंतर अपनी शत्रुतापूर्ण मनोवृति का परिचय दे रहा हैं. अपनी राजनीतिक, प्रशासकीय एवं आर्थिक कमजोरी को छिपाकर पाकिस्तानी जनता का ध्यान भटकाना, उसे भारत के विरुद्ध भड़काना तथा कश्मीर विजय का सपना लेकर भारत को प्रत्येक दृष्टि से कमजोर बनाना ही पाकिस्तान के राजनेताओं की विकृत मानसिकता का परिचायक है. मई से जुलाई 1999 तक भयानक कारगिल युद्ध इसी मानसिकता का परिणाम था. इस युद्ध में भी पाक को भारत के समक्ष घुटने टेकने पड़े और सारे संसार में उसकी छवि भी पूरी तरह से धूमिल हो गई.

कारगिल की भौगोलिक स्थिति (Geographical Location of Kargil)

जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा पर लगभग 814 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया है. यह नियंत्रण रेखा जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों राजौरी, पुंछ, उड़ी, उप वाला, कारगिल और लेह होते हुए सियाचिन तक जाती है. इस नियंत्रण रेखा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग जो श्रीनगर, कारगिल, द्रास और लेह को जोड़ता था. इस राजमार्ग के बंद होते ही लेह का संबंध देश से टूट जाता है. इन सीमावर्ती क्षेत्रों में 6000 फिट से 17000 फिट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ है. जिन पर पूरे वर्ष 20 से 30 फुट तक मोटी बर्फ जमा रहती है. इस क्षेत्र की 15000 फिट तक गहरी खाईया, दूर दूर तक फैली कटीली झाड़ियां तथा सकरे और दुर्गम मार्गों को देखकर दिल दहलने लगता है. सितंबर अक्टूबर में तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है. दिसंबर जनवरी की सर्दी की कल्पना से ही मन घबराने लगता है.

कारगिल का सामरिक दृष्टी से महत्त्व (Kargil’s Importance from strategic perspective)

कारगिल क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्षेत्र पर पाकिस्तान के साथ साथ चीन भी निगाहें लगाए बैठा रहता है. रक्षा सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान कारगिल के माध्यम से सियाचिन पर अपना कब्जा करना चाहता है और इसी उद्देश्य से पाक सेना लद्दाख स्थित कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की योजना पर कार्य करती रहती है.

कारगिल आक्रमण का उद्देश्य (Kargil Attack Objective)

कारगिल में घुसपैठ करके शेष भारत का सियाचिन से संपर्क मार्ग अलग करना तथा सियाचिन पर आधिपत्य स्थापित करना, कारगिल में पाकिस्तानी हरकतों का प्रमुख लक्ष्य रहा है. इसके साथ पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष उद्देश्य यह भी है कि वह ऐसा करके कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखना चाहता है.

घुसपैठ द्वारा पहले से ही भारतीय क्षेत्रों पर कब्ज़ा (Before Kargil Attack)

पाकिस्तान ने अपनी सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत सितंबर 1998 में सीधे सियाचिन पर आक्रमण कर दिया था. जिसमें वह पूरी तरह से असफल रहा था. भारत विरोध और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निंदा के बाद भी पाक सेना ने घुसपैठियों के रूप में नियंत्रण रेखा के समीपवर्ती स्थानों पर कब्जा जमाने का अभियान जारी रखा. दिनाँक 1 मार्च 1999 को अचानक पकिस्तान ने अपनी गतिविधियों को तेज करते हुए, इन क्षेत्रों में स्थित भारतीय चौकियों और बंकरो पर अपना अधिकार कर लिया. कारगिल स्थित द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बनाकर पूरी सामरिक तैयारी के साथ आक्रमण के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगे. भारतीय नागरिक ठिकानो पर लगातार इन घुसपैठियों द्वारा निरंतर गोलीबारी की जाती रही हैं. भारत के अनेक बार पाक सरकार को चेतावनी दी किन्तु पाक सेना के इशारों पर घुसपैठियों ने आक्रमण में और अधिक तीव्रता ला दी हैं.

कारगिल आक्रमण (Kargil Attack)

जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर स्थित कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने 10 मई 1999 को अचानक ही भीषण बमबारी शुरू कर दी. इसके फलस्वरूप भारतीय आयुध भंडार में आग लग गई और आठ भारतीय सैनिक शहीद हो गए. भारत द्वारा विरोध करने के बाद भी पाक का आक्रमण और अधिक तेज हो गया. विवश होकर 26 मई 1999 को भारत को भी कारगिल में खुला युद्ध शुरू करने की घोषणा करनी पड़ी. पूरे भारत में रेड अलर्ट कर दिया गया. भारतीय कारगिल की ओर से करने लगी. भारतीय तोपों तथा टैंकों का मुहँ कारगिल की ओर मोड़ दिया गया और कारगिल में कैसा युद्ध शुरू हो गया, जो इतनी ऊंचाइयों पर इतनी भीषण और दुर्गम परिस्थितियों में लड़ा जाने वाला विश्व का प्रथम तथा भीषण युद्ध था.

भीषण युद्ध (Kargil War)

कारगिल में घुसपैठियों और पाक सैनिकों के विरुद्ध भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय अभियान शुरू करते हुए दुश्मन को हर मोर्चे पर मुंह तोड़ करारा जवाब दिया और भारतीय सीमा में मौजूद लगभग 700 सैनिकों और घुसपैठियों को घेर लिया था. भारतीय सेना की इस प्रथम कार्यवाही में पाक के 160 सैनिक और आतंकवादी घुसपैठिए मारे गए. उसके बाद भारतीय सेना ने कारगिल की दुर्गम घाटियों, ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले मार्गो और शत्रु की गोलीबारी की चिंता ना करते हुए आंधी की तरह आगे बढ़ना शुरू कर दिया था. भारतीय सुर वीरों ने शीघ्र ही अनेक महत्वपूर्ण ठिकानों पर पुनः अपना कब्जा कर लिया तथा सैकड़ों घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया. शत्रु को तेजी से पीछा करते हुए प्वाइंट 4812, टाइगर हील तथा जुगार हिल पर फिर से तिरंगा फहरा दिया और 12 जुलाई तक संपूर्ण द्रास और बटालिक सेक्टर भारतीय सेना के कब्जे में आ गए. भारतीय थल तथा वायु सेना के सैकड़ों जवानों ने इन क्षेत्रों पर कब्जा करने हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए. थल सेना के साथ सहयोग करते हुए वायु सेना ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस पुण्य कार्य में अपने अदम में शौर्य का परिचय दिया.

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युद्ध का अंत और भारत की विजय (Kargil War Result and India Win)

युद्ध के दौरान संपूर्ण विश्व में पाक की घोर निंदा हुई तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अकेला पड़ गया. भारत ने पाक को 17 जुलाई तक अपने घुसपैठिए वापस बुलाने की चुनौती देकर अपनी सामरिक कार्यवाही जारी रखी. इसी बीच युद्ध में अपनी पराजय देखकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अमेरिका पहुंचकर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया और घुसपैठियों की वापसी व नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की घोषणा की. इसके बाद भी मश्कोह, द्रास और कारगिल में घुसपैठियों की स्थिति बनी रही, जिन्हें भारतीय सेना ने जुलाई के अंतिम सप्ताह तक मौत की नींद सुला दिया और नियंत्रण रेखा के पार भागने पर विवश कर दिया. मातृभूमि की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता, अदम्य साहस, रण कौशल और जान हथेली पर रख करने वाले बहादुरों के दम पर लगभग 2 माह के छद्म युद्ध में ही भारत ने पाक को अपमानजनक पराजय का मुंह देखने के लिए विवश करते हुए अपनी एक 1-1 इंच भूमि पुनः प्राप्त कर ली.

भारतीय सेना का अदम्य साहस एवं शौर्य (Story of Bravery of Indian Army in Kargil War)

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की बहादुरी, रोमांचकारी, विसमय्कारी, हरियद्रावक तथा बेमिसाल है. वर्ष भर बर्फ में ढकी ऊंची पहाड़ियों पर इतने लंबे समय तक लड़े गए विश्व के इस प्रथम युद्ध में वीरों ने बर्फ के गोले खाकर, भूखे प्यासे रहकर, घंटों रेंगते हुए आगे बढ़कर, गोलियों से सीना छलनी होने पर भी दुश्मन से निरंतर लोहा लिया तथा कहीं-कहीं घुसपैठियों को मौत के घाट उतारकर ही प्राण त्यागे. इसमें से अनेक सैनिक अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे, कुछ अपनी बहनों का अकेला भाई थे, कुछ की शादी में केवल 1 सप्ताह से इस था, कुछ की शादी कुछ दिन पूर्व हुई थी. उसकी दुल्हन के हाथों की मेहंदी भी अभी छुट्टी नहीं थी. ऐसा भी कोई था जिसका प्रथम नवजात अपने पिता को देखने के लिए ग्रह द्वार पर टकटकी लगाए था किंतु चारों ओर प्रतीक्षा होती रही, स्वप्न धूल प्रसारित हो गए, आशाएं निराशा में बदल गई, जिन की प्रतीक्षा थी लौटने कि वह या तो लौटे ही नहीं अथवा लौटे तो शहीद होकर. कमांडो सुरेंद्र सिंह शेखावत, मेजर मरियप्पन, मेजर कमलेश प्रसाद, मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी, नायक हरेंद्र सिंह, मेजर मनोज तलवार जैसे कितने ही अभूतपूर्व साहस का परिचय देने वाले तथा अपने वतन के लिए शहीद हो जाने वाले इन सैनिकों की शौर्य गाथा पूरे विश्व के सैनिकों के लिए सदैव प्रेरणा स्त्रोत बनी रहेगी.

कर्तव्य क राष्ट्रव्यापी जोश (Kargil War Conclusion)

कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने और घायल होने वाले जवानों के प्रति प्रेम, सम्मान, सहानुभूति और कर्तव्य बोध का जो देश व्यापक जोश दिखाई दिया वह अभिभूत करने वाला था. बच्चे से लेकर वृद्ध तक, भिखारी से लेकर उद्योगपति तक कारगिल के सैनिकों के लिए कुछ ना कुछ करने को तत्पर थे. सरकारी कर्मचारियों एक एक दिन का वेतन राष्ट्रीय कोष में दिया, सांसदों तथा मंत्रियों ने एक-एक माह का वेतन राष्ट्रीय कोष में जमा कराया था. राष्ट्रीय कोष में स्वर्ण तथा धन का ढेर लगने लगा था. संपूर्ण भारत अपने सैनिकों के प्रति नतमस्तक हो गया था. राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार ने शहीदों के परिवार की भरपूर मदद की थी. कारगिल शहीदों की विधवाओं को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए समाज और सरकार की ओर से अथक प्रयास किए गए थे.

कारगिल विजय भारतीय सेना की शौर्य गाथा है. हमारे सैनिकों की यह सफलता इसलिए भी प्रशंसनीय और अभिनंदनीय है क्योंकि भारतीय फौज के हथियार पाक सेना के मुकाबले उन्नीस थे. साथ ही वे युद्ध की तैयारी में थे, मानसिक रूप से तैयार है जबकि हम पर युद्ध सौंपा गया था. हम लड़ना ही नहीं चाहते थे, मैत्री भाव चाहते हैं. पूरे विश्व में भारत का समर्थन किया. कारगिल युद्ध से ही भारतीय फौज की शक्ति और सामर्थ्य को पूरे विश्व में स्वीकार किया.

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कारगिल युद्ध का कारण, इतिहास, परिणाम | Kargil War History in Hindi

Kargil War in Hindi/ कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में 8 मई से 26 जुलाई तक कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष को कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है। कारगिल युद्ध वही लड़ाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी भारतीय सेनाओं ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना तथा मुजाहिदीनों के रूप में उसके पिट्ठुओं को परास्त किया। “कारगिल विजय दिवस” हर साल 26 जुलाई को उन शहीदों की याद में मनाया जाता हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। आइये जाने kargil yudh ki puri kahani..

कारगिल युद्ध क्यों हुआ ? Reason of Kargil War in Hindi

आम तौर पर कारगिल युद्ध को भी 1947-48 तथा 1965 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कबीलाइयों की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों के एक अंग के रूप में देखने की प्रवृत्ति रही है। वास्तव में कारगिल युद्ध कश्मीर हथियाने और भारत को अस्थिर करने के जिहादियों के 20 वर्ष से जारी अभियान का एक महत्वपूर्ण बिंदु है और यह अनेक मामलों में पहले की दोनों लड़ाइयों से भिन्न है।

कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में सामरिक महत्त्व की ऊँची चोटियाँ भारत के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। उन दुर्गम चोटियों पर शीत ऋतु में रहना काफ़ी कष्टसाध्य होता है। इस कारण भारतीय सेना वहाँ शीत ऋतु में नहीं रहती थी। इसका लाभ उठाकर पाकिस्तान ने आतंकवादियों के साथ पाकिस्तानी सेना को भी कारगिल पर क़ब्ज़ा करने के लिए भेज दिया। वस्तुत: पाकिस्तान ने सीमा सम्बन्धी नियमों का उल्लघंन किया था। लेकिन उसके पास यह सुरक्षित बहाना था कि कारगिल की चोटियों पर तो आतंकवादियों ने क़ब्ज़ा किया है, न कि पाकिस्तान की सेना ने। ऐसी स्थिति में भारतीय सेना के सामने बड़ी चुनौती थी। दुश्मन काफ़ी ऊँचाई पर था और भारतीय सेना उनके आसान निशाने पर थी। लेकिन भारतीय सेना ने अपना मनोबल क़ायम रखते हुए पाकिस्तानी फ़ौज पर आक्रमण कर दिया।

कारगिल सेक्टर में 1999 में भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी और भारतीय भूभाग में करीब 11 किमी अंदर एक स्थान पर रात भी बिताई थी। मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे। दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी।

कारगिल युद्ध – Kargil War Information in Hindi

मई 1999 में एक लोकल ग्वाले से मिली सूचना के बाद बटालिक सेक्टर में ले. सौरभ कालिया के पेट्रोल पर हमले ने उस इलाके में घुसपैठियों की मौजूदगी का पता दिया। शुरू में भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को जिहादी समझा और उन्हें खदेड़ने के लिए कम संख्या में अपने सैनिक भेजे, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की ओर से हुए जवाबी हमले और एक के बाद एक कई इलाकों में घुसपैठियों के मौजूद होने की खबर के बाद भारतीय सेना को समझने में देर नहीं लगी कि असल में यह एक योजनाबद्ध ढंग से और बड़े स्तर पर की गई घुसपैठ थी, जिसमें केवल जिहादी नहीं, पाकिस्तानी सेना भी शामिल थी। यह समझ में आते ही भारतीय सेना ने ‘ ऑपरेशन विजय’  शुरू किया, जिसमें 30,000 भारतीय सैनिक शामिल थे।

8 मई को कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद 11 मई से भारतीय वायुसेना की टुकड़ी ने इंडियन आर्मी की मदद करना शुरू कर दिया था। कारगिल की लड़ाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में वायुसेना के करीब 300 विमान उड़ान भरते थे।

  • थल सेना के सपोर्ट में भारतीय वायु सेना ने 26 मई को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ शुरू किया, जबकि जल सेना ने कराची तक पहुंचने वाले समुद्री मार्ग से सप्लाई रोकने के लिए अपने पूर्वी इलाकों के जहाजी बेड़े को अरब सागर में ला खड़ा किया।

भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ कारगिल युद्ध में मिग-27 और मिग-29 का प्रयोग किया था। मिग-27 की मदद से इस युद्ध में उन स्थानों पर बम गिराए जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। इसके अलावा मिग-29 करगिल में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ इस विमान से पाक के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलें दागी गईं थीं।

कारगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16000 से 18000 फीट ऊपर है। ऐसे में उड़ान भरने के लिए विमानों को करीब 20,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता है। ऐसी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से कम होता है। इन हालात में पायलट का दम विमान के अंदर ही घुट सकता है और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है।

कारगिल युद्ध का कारण, इतिहास, परिणाम | Kargil War History in Hindi

भारतीय सैनिकों ने ठान लिया था कि वे कारगिल से पाकिस्तानियों को खदेड़कर ही दम लेंगे। भारतीय सैनिकों ने विलक्षण वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को चारों ओर से घेर लिया। बेशक़ कारगिल युद्ध में भारत को विजयश्री प्राप्त हुई लेकिन अमेरिका के हस्तक्षेप के कारण भारत सरकार ने पाकिस्तानी सैनिकों को हथियारों सहित निकल भागने का मौक़ा दे दिया। पाकिस्तान को सामरिक महत्त्व की चोटियाँ ख़ाली करनी पड़ीं और भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों की ज़िन्दा वापसी को स्वीकार कर लिया। वस्तुत: युद्ध के भी कुछ नियम होते हैं। भारतवर्ष ने उन्हीं नियमों का पालन किया था।

कारगिल युद्ध की 3 प्रमुख अवस्थाएँ रहीं – Kargil War Story in Hindi

  • सबसे पहले पाकिस्तान ने भारत अधिगृहित कश्मीरी क्षेत्र में अपनी सेना की घुसपैठ शुरू की और अपनी तोपों की रेंज में आने वाले नेशनल हाइवे 1 [NH1] की ओर के स्थानों पर रणनीति पूर्वक कब्ज़ा किया।
  • दुसरे चरण में भारत ने इस घुसपैठ का पता लगाया और भारतीय सेना को इसका जवाब देने के लिए उन स्थानों पर भेजा।
  • अंतिम चरण में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया और इसका नतीजा ये हुआ कि भारत ने उन सभी स्थानों पर विजय प्राप्त की, जहाँ पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तानी हुकुमत ने अपनी फ़ौज को लाइन ऑफ़ कंट्रोल से पीछे हटा लिया।

कारगिल युद्ध का अंजाम – Kargil Yudh in Hindi

दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था और आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत पा ली गई। यही दिन अब ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

पाकिस्तान में इस युद्ध के कारण राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई और नवाज़ शरीफ़ की सरकार को हटाकर परवेज़ मुशर्रफ़ राष्ट्रपति बन गए। दूसरी ओर भारत में इस युद्ध के दौरान देशप्रेम का उबाल देखने को मिला और भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी मजबूती मिली। भारतीय सरकार ने रक्षा बजट और बढ़ाया। इस युद्ध से प्रेरणा लेकर कई फ़िल्में बनीं जिनमें एल ओ सी कारगिल, लक्ष्य और धूप मुख्य हैं।

ऑपरेशन विजय – Kargil War Operation in Hindi

भारतीय सेना ने इस युद्ध की चुनौती को ‘ऑपरेशन विजय’ का नाम दिया। युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सैकड़ों अफ़सरों और सैनिकों को कुर्बानी देनी पड़ी। पाकिस्तानी सैनिक भी बड़ी संख्या में हताहत हुए। यहाँ यह भी बताना प्रासंगिक होगा कि कुछ ही समय पहले भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान का दौरा करके आए थे और भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने की दिशा में महत्त्वपूर्ण मंत्रणाएँ भी हुई थीं। ऑपरेशन विजय, वॉर मेमोरियल, कारगिल उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ थे और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़। फ़रवरी 2009 में नवाज शरीफ़ ने यह ख़ुलासा किया कि कारगिल पर क़ब्ज़ा करने की साज़िश तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ की थी और उन्होंने मुझे क़ैद कर लिया था। कारगिल में पाकिस्तानी सेना का प्रवेश परवेज मुशर्रफ़ के आदेश पर ही हुआ था, जबकि परवेज मुशर्रफ़ ने यह कहा था कि कारगिल में पाकिस्तानी आतंकवादी उपस्थित थे।

कारगिल का ‘ऑपरेशन विजय’ इस कारण भी महत्त्वपूर्ण था क्योंकि पाकिस्तानियों ने इस पर क़ब्ज़ा करके बढ़त प्राप्त करने की योजना बनाई थी। यदि पाकिस्तानियों को कारगिल से नहीं खदेड़ा जाता तो निकट भविष्य में वे कश्मीर की काफ़ी भूमि पर क़ब्ज़ा कर सकते थे।

शहीद सैनिकों का राजकीय सम्मान –

कारगिल युद्ध के बाद शहीद भारतीय सैनिकों के शवों को उनके पैतृक आवास पर भेजने की विशेष व्यवस्था की गई। इससे पूर्व ऐसी व्यवस्था नहीं थी। पैतृक आवास पर शहीद सैनिकों का राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया। उनके शवों को ले जाने के लिए काफ़ी मंहगे शव बक्सों (कॉफ़िन बॉक्स) का उपयोग किया गया।

भारतीय सेना द्वारा द्रास में टोलोलिंग हिल की तलहटी में कारगिल वार मेमोरियल बनाया गया हैं। यह मेमोरियल शहर के मध्य से 5 कि. मी. की दूरी पर टाइगर हिल के पार बनाया गया हैं। इसका निर्माण कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में किया गया हैं. मेमोरियल के मुख्य द्वार पर 20वीं सदी के प्रसिद्ध हिंदी कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता “ पुष्प की अभिलाषा ” लिखी हुई हैं. मेमोरियल की दीवारों पर उन जवानों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

‘कारगिल विजय दिवस’ Kargil Vijay Diwas

कारगिल युद्ध 60 दिनों से भी ज्यादा दिनों तक चला था और इस युद्ध का अंतिम दिन था 26 जुलाई का और इसी दिन को हमारा पूरा देश ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाता हैं और देश के जवानों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं। परन्तु इस युद्ध के कारण दोनों ही सेनाओं के कई सैनिकों की जान भी गयी। अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक दबाव के चलते पाकिस्तान को अपना रवैया बदलना पड़ा। कारगिल विजय दिवस हर साल कारगिल के द्रास क्षेत्र में मनाया जाता हैं। साथ ही यह हमारे देश की राजधानी नयी दिल्ली में भी मनाया जाता हैं, यहाँ इंडिया गेट के अमर जवान ज्योति स्थल पर देश के भावी प्रधानमंत्री हर साल देश के बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं।

कारगिल युद्ध से जुड़े तथ्य – Kargil War Facts in Hindi

  • कारगिल युद्ध के तीन चरण रहे। पहला, पाकिस्तानी घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ते राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमाक एक पर नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से अहम सामरिक स्थानों पर कब्जा कर लिया। दूसरे चरण में भारत ने घुसपैठ का पता लगाया और अपने बलों को तुरंत जवाबी हमले के लिए लामबंद करना शुरू किया तथा तीसरा, भारत और पाकिस्तान के बलों के बीच भीषण संघर्ष हुआ और पड़ोसी देश की शिकस्त हुई।
  • कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के जरिये घुसपैठ करने की साजिश के पीछे तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख परवेज मुशर्रफ को जिम्मेदार माना जाता है।
  • एलओसी से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए कारगिल में चलाए गए इस अभियान को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया। भारतीय सीमा में दुश्मनों की घुसपैठ के बारे में जानकारी चरवाहों ने दी थी।
  • करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए। भारतीय सेना के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए।
  • आपकी जानकारी के लिए बता दे, विश्व के इतिहास में करगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है।
  • इस युद्ध में जीत हासिल करने में भारतीय वायुसेना की बड़ी भूमिका रही। वायुसेना ने पाक सैनिकों पर 32000 फीट की ऊंचाई से बम बरसाए। मिग—29, मिग—29 और मिराज—2000 विमानों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान पाकिस्तान ने हमारे दो लड़ाकू विमान मार गिराए थे जबकि एक क्रैश हो गया था।
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 14 जुलाई को ही युद्ध की घोषणा कर दी थी। मगर, आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की घोषणा हुई।

Q : कारगिल युद्ध कितने दिन तक चला था?

Ans : कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला था।

Q : कारगिल युद्ध में कितने शहीद हुए थे?

Ans : 562 जवान शहीद हुए

Q : कारगिल युद्ध के समय भारत में किसकी सरकार थी?

Ans : अटल बिहारी वाजपेयी

Q : कारगिल युद्ध को क्या नाम दिया गया है?

Ans : कारगिल युद्ध, को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है।

और अधिक लेख –

  • प्रथम विश्वयुद्ध का इतिहास और रोचक तथ्य
  • द्वितीय विश्वयुद्ध की पूरी जानकारी
  • सोन भंडार गुफा राजगीर का रहस्य, इतिहास

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2 thoughts on “कारगिल युद्ध का कारण, इतिहास, परिणाम | kargil war history in hindi”.

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कारगिल विजय दिवस पर निबंध (Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi)

1947 में भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद भी पाकिस्तान समय समय पर भारत को कश्मीर के मुद्दे को लेकर उकसाने का भरसक प्रयास करता आया है। 1948, 1965, 1971 के युद्ध में हार के बाद भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया। फरवरी 1999 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए शांति समझौते के बावजूद पाकिस्तान मई 1999 में अपने सैनिकों की मदद से भारत में घुसपैठ कर कारगिल जैसे महासंहार का कारण बना।

कारगिल विजय दिवस पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Kargil Vijay Diwas in Hindi, Kargil Vijay Diwas par Nibandh Hindi mein)

1200 word essay.

इतिहासकारों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज ने 1998 की शरद ऋतु से ही भारत में घुसपैठ करने की योजना तैयार कर रहे थें। पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की साजिश करता आया है और 1999 में भी पाकिस्तान की घुसपैठ करने के पीछे यही धारणा थी। पाकिस्तान आजादी के बाद से भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर आए दिन गोली बरियाँ करता आया है लेकिन जब जब उसकी हरकतों ने हद पार करने की कोशिश की है भारत के वीर जवानों से उसे मुंह की खानी पड़ी है।

कारगिल युद्ध का कारण

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद भी पाकिस्तान कश्मीर बॉर्डर पर लगातार तनावपूर्ण माहौल बनाए रखता था। 1971 के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में परमाणु परीक्षण होने के कारण ये तनाव और अधिक प्रबल हो गया। पाकिस्तान की हमेशा यही सोच रहती आई है कि किसी तरह कश्मीर के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाए। पाकिस्तान ने हमेशा यही चाहा है कि भारत कश्मीर के तनाव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना आंतरिक मामला न कह सके और पाकिस्तान अपने अन्य सहयोगी देशों की मदद से कश्मीर का फ़ैसला अपने हक में करवा ले। इसी मंसूबे के साथ पाकिस्तान ने भारत के कारगिल और द्रास के इलाकों में घुसपैठ करने की रणनीति बनाई और फरवरी 1999 के बाद से अपने सैनिकों को भारत नियंत्रित क्षेत्र में भेजने लगा। जिसका परिणाम मई 1999 में कारगिल युद्ध के रूप में निकल कर सामने आया।

पाकिस्तान के घुसपैठियों की जानकारी

1999 में 8 से 15 मई के बीच भारतीय सेना द्वारा कारगिल की चोटी पर पेट्रोलिंग के दौरान पाकिस्तान के घुसपैठ करने का पता चला जिसके बाद से ही युद्ध का माहौल बनने लगा। कुछ दिनों बाद भारतीय सेना ने पता लगा लिया कि पाकिस्तान भारी संख्या में अपने सैनिकों को भारत नियंत्रित इलाकों में भेज चुका है। जिसके बाद भारत सरकार द्वारा 24 मई 1999 को तीनों सेनाओं के प्रमूकों की बैठक बुलाई गई जिसमें युद्ध के लिए सारी योजना बनाई गई और इस मिशन को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया गया।

कारगिल का युद्ध

भारत सरकार ने घुसपैठियों के खिलाफ़ अपनी सेना 8 मई से ही भेजनी शुरू कर दी थी। जब लड़ाई ने अपना विकराल रूप ले लिया तो 30 जून 1999 को कश्मीर विवादित क्षेत्र में लगभग 73,000 सैनिकों को भेजा गया। पाकिस्तानी सेना द्वारा 160 किलोमीटर के दायरे में घुसपैठ किया गया था जिससे भरतीस सेना को अपने कब्जे में लेने में लगभग ढाई महीने लग गए थे। 13 जून 1999 को द्रास के इलाकों में भारत और पाकिस्तानी सेना के बीच कई हफ्तों तक युद्ध चलता रहा और अंततः भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को वहां से खदेड़ने में कामयाब रही।

बटालिक सेक्टर का इलाका दुश्मनों द्वारा बहुत मजबूती से घेरा जा चुका था जिसपर कब्जा करने में भारतीय सेना को लगभग एक महिना लग गया था। टाइगर हिल पर लगभग प्रबल विस्फोटकों के 12,000 राउन्ड की बारिश की गई थी जिससे पाकिस्तानी सेना वहीं ध्वस्त हो गई थी। 4 से 5 जुलाई 1999 को भारतीय सेना टाइगर हिल पर वापस पाने में सफ़ल रही। द्रास और मशकोह के उप-क्षेत्रों में बंदूकधारियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के सम्मान में पॉइंट 4875 को “गन हिल” का नाम दे दिया गया। वायु सेना ने इस मिशन को “ऑपरेशन सफेद सागर” नाम दिया था। भारतीय सेना के वीरता और पराक्रम के बदौलत 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल की लड़ाई जीत ली थी।

कारगिल की लड़ाई में प्रयोग किए गए हथियार

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कारगिल का नाम इतिहास के पन्नों में सबसे भयावह युद्ध के नाम से दर्ज है जिसे लड़ने के लिए बहुत से कीमती हथियारों की जरूरत पड़ी थी। भारतीय सेना ने सीधी फायरिंग में 155 एमएम की बोफोर्स मीडियम गन और 105 एमएम भारतीय फील्ड गन इस्तेमाल किया था। भारतीय सेना ने सीधी लड़ाई में 122 एमएम ग्रैड मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर का प्रयोग किया था। पाकिस्तानी घुसपैठिये एके 47 और 56 मोर्टार, आर्टिलरी, एंटी-एयरक्राफ्ट गन और स्टिंगर मिसाइलों से लैस थे, जबकि भारतीय सेना ने 122 एमएम ग्रैड मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर का प्रयोग किया था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना द्वारा 60 फ्रन्ट लाइन हेलीकाप्टरों को भी तैनात किया गया था। कारगिल के युद्ध में प्रति दिन 300 तोपों से लगभग 5000 बम और रॉकेट दागे जाते थे।

अमर जवान ज्योति स्मारक पर एक नजर

कारगिल विजय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को उन्हीं वीर शहीदों की याद में मनाया जाता है जो कारगिल के युद्ध में अपने सौर्य और वीरता का प्रदर्शन करते हुए खुशी-खुशी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। अमर जवान ज्योति स्मारक का उद्घाटन भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी ने 1972 में अज्ञात शहीदों की याद में किया था। इस स्मारक पर 26 जनवरी और 15 अगस्त को परेड से पूर्व देश के प्रधानमंत्री और तीनों सेना के प्रमुखों सहित अन्य मुख्य अतिथि भी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को भी कारगिल विजय दिवस के दिन उन सभी शहीदों की याद में सेना के तीनों प्रमुख दिल्ली के राजपथ स्थित अमर जवान ज्योति स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। इस समरक का निर्माण संगमर से इंडिया गेट के नीच किया गया है। स्मारक के ऊपर L1A1 सेल्फ़ लोडिंग रायफ़ल भी स्थापित की गई है तथा के बैरल पर एक सैनिक हेलमेट लटकाई गई है। इस स्मारक के बीच वाली ज्योति वर्ष भर प्रज्वलित रहती है तथा स्मारक के चारों कोनों पर स्थित ज्योति विशेष अवसर पर ही प्रज्वलित की जाती है।

कारगिल विजय दिवस 2021 पर खास

इस बार कारगिल विजय दिवस को खास बनाने की तैयारी है। इस विजय दिवस पर सेना के विजय मशाल को भी जवानों का हौसला अफजाई करने के लिए लद्दाख ले जाया जा रहा है। यह विजय मशाल कश्मीर से लद्दाख के पथ पर है जिसके 23 जुलाई को पहुँचने की उम्मीद है। इस बार विजय दिवस पर हमारे राष्ट्रपति व सभी सेनाओं के सुप्रीम कमांडर माननीय श्री राम नाथ कोविन्द जी कारगिल पहुंच कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।

इस बार के कारगिल विजय दिवस पर भारतीय सेना ने दो मोटरसाइलिक रैलियों को पूरा करने के पथ पर अग्रसर है। सेना की एक टुकड़ी लेह से दौलत-बेग-ओल्डी की 17 हजार फुट की ऊंचाई को पार करते हुए द्रास पहुँच रही है तथा दूसरी टुकड़ी 22 जुलाई को उद्धमपुर स्थित उत्तरी कमान मुख्यालय के ध्रुव वॉर मेमोरियल से कारगिल की तरफ बढ़ रही है। इस बार के विजय दिवस को खास बनाने के संदर्भ में श्रीनगर के पीआरओ डिफेंस लेफ्टिनेंट कर्नल एमरान मुसावी ने बताया कि द्रास वॉर मेमोरियल में दो दिवसीय कार्यक्रम 25 जुलाई से आयोजित किया जाएगा।

1999 में हुए भारत पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध में भारत के लगभग 500 वीर जवान शाहिद हुए और करीब 1500 सैनिक घायल भी हुए थे। इतनी आहुतियों के बाद भारत ने कारगिल युद्ध में विजय पाई थी। इस ऑपरेशन के नाम के अनुसार ही 26 जुलाई को विजय दिवस के रूप में उद्घोषित कर दिया गया ताकि आने वाली पीढ़ी भी उन देशभक्तों की वीरगाथाओं के बारे में जाने और उन वीरों का धन्यवाद करें। इस बार 26 जुलाई 2021 को कारगिल के पूरे 22 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। आज जिस कारगिल और द्रास के क्षेत्रों को हम सब गर्व से भारत का हिस्सा बताते हैं वो उन्हीं शहीदों की देन है जिनको हर वर्ष विजय दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करके उनका आभार प्रकट करते हैं।

FAQs: Frequently Asked Questions

उत्तर – कारगिल विजय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है।

उत्तर – अमर जवान ज्योति स्मारक दिल्ली के राजपथ मार्ग पर इंडिया गेट के नीचे स्थित है।

उत्तर – कारगिल का युद्ध 3 मई के आस पास ही शुरू हो गया था।

उत्तर – कारगिल की लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था।

उत्तर – कारगिल का युद्ध 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक लगभग ढाई महीने चला था।

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कारगील विजय दिवस पर निबंध – Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi & English Pdf Download

Essay on Kargil vijay diwas in hindi

Kargil Vijay Diwas 2021: भारतीय सेना ऐसे योद्धाओं से भरी हुई है और वर्ष 1999 में, दुनिया ने हमारी भारतीय सेना की वीरता को देखा, जब हमने पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध पर विजय प्राप्त की थी। भारत बहादुर योद्धाओं की भूमि है, हम यह दावा करने के लिए लड़ते हैं कि हमारा क्या है। हमारी भारतीय सेना ऐसे योद्धाओं से भरी हुई है और वर्ष 1999 में, दुनिया ने हमारी भारतीय सेना की वीरता को देखा, जब हमने पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध पर विजय प्राप्त की थी। इस जीत का जश्न मनाने के लिए कारगिल विजय दिवस पूरे भारत में मनाया जाता है। भारत बहादुर योद्धाओं की भूमि है, हम यह दावा करने के लिए लड़ते हैं कि हमारा क्या है। इस जीत का जश्न मनाने के लिए कारगिल विजय दिवस पूरे भारत में मनाया जाता है।

Essay on Kargil vijay diwas in hindi

ऑपरेशन विजय की सफलता के नाम पर कारगिल विजय दिवस का नाम दिया गया। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक प्रमुख चौकी की कमान संभाली, जो पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा हमसे छीन ली गयी थी। कारगिल युद्ध 60 से भी अधिक दिनों के लिए लड़ा गया था, यह 26 जुलाई को खत्म हो गया और परिणामस्वरूप दोनों पक्षों, भारत और पाकिस्तान के जीवन में नुकसान के बाद, हमें कारगिल की संपत्ति फिर से हासिल हुई। कारगिल युद्ध के नायकों के सम्मान में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह दिन कारगिल सेक्टर और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में मनाया जाता है। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री हर साल इस दिन इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के साथ सैनिकों को श्रद्धांजलि देते है। सशस्त्र बलों के स्मरण के लिए पूरे देश में इस दिन को सम्मान के साथ उन्हें याद किया जाता है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, दो पड़ोसियों की सेनाओं में प्रत्यक्ष सशस्त्र से संघर्ष लम्बी अवधि तक हुआ – सियाचिन ग्लेशियर को नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद आसपास के पहाड़ों पर सैन्य चौकियों की स्थापना की गई। 1980 के दशक में होने वाली सैन्य झगड़े, 1990 के दौरान, कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों के कारण बढ़ते हुए तनाव और संघर्ष में जिनमें से कुछ को पाकिस्तान द्वारा समर्थित किया गया था और साथ ही 1998 में दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षणों का संचालन किया गया, एक तनावपूर्ण माहौल बन गया। स्थिति को कम करने के प्रयास में दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए और कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय समाधान प्रदान करने का वादा किया।

Kargil Vijay diwas nibandh

Essay on Kargil vijay diwas

कल्पना कीजिए कि सुबह उठने पर आप अपने आपको पहाड़ों में पाएंगे, ठंडे हवाएं अपने श्वास को बर्बाद कर रहे हैं, बर्फ से ढंका पहाड़ और तापमान -४८ डिग्री सेल्सियस नीचे है। आप किसी तरह गर्म कपड़े पहनकर सेह लेंगे लेकिन क्या होगा अगर आपको और ऊंचाई पर ले जाय, जहां सांस लेने में मुश्किल हो जाय। और कोई अनजाने में आप पर हमला कर रहा है इसी तरह की स्थिति तब थी जब हमारी साहसी भारतीय सेना ने लगभग ६० दिनों के लिए युद्ध लड़ा और पाकिस्तानी हमलावरों के वर्चस्व वाले शीर्ष चौकी पर कब्ज़ा कर लिया। यह सही कहा जाता है कि,  “योद्धा जन्म नहीं लेते वे इंडियन आर्मी में बनते है। ” आगे बढ़ने से पहले, मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि युद्ध कैसे शुरू हुआ। लड़ाई कश्मीर के कारगिल जिले के पहले पद पर हुई थी। यह सर्दी का समय था जब पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठियों के नाम पर अपने सैनिकों को भेजा और इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। उनका मुख्य उद्देश्य लद्दाख और कश्मीर के बीच संबंधों को काट देना था और भारतीय सीमाओं के बीच तनाव पैदा करें घुसपैठियों शीर्ष पर थे जबकि भारतीय नीचे पहाड़ी पर थे उनके लिए हमला करना आसान था पाकिस्तानियों ने पद पर कब्जा कर लिया और भारतीय सैनिकों को मौत की सजा दी। और दोनों पक्षों के बीच युद्ध टूट गया।  कारगिल विजय दिवस मराठी माहिती, निबंध, भाषण, लेख पाकिस्तानी सैनिकों ने शुरू में नियंत्रण रेखा को पार कर दिया जिसे कि एलओसी कहा जाता है और भारत-नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश करता है बाद में स्थानीय चरवाहों ने एलओसी को पार करने वाले संदिग्ध लोगों के बारे में सेना को चिंतित किया। गहराई से देखने के लिए भारतीय सेना ने अतिरिक्त सैनिकों को कारगिल क्षेत्र में लद्दाख से भेज दिया और उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सेना ने एलओसी को पार किया और भारत-नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश किया। दोनों सेनाओं ने जमीन पर दावा वापस लेने के लिए फायरिंग शुरू कर दी। बाद में भारतीय वायु सेना ने घाटी से सभी घुसपैठियों को साफ करने के लिए युद्ध में शामिल हो गए भारतीय सेना के बढ़ते हुए हमले के बाद, और तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दबाव ने, पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को एलओसी इलाके से वापस ले लिया। भारतीय सेना ने भारतीय वायु सेना के साथ बहुत बहादुरी से लड़ाई की थी, जिन्होंने इस दौरान प्रमुख भूमिका निभाई थी। युद्ध और भारतीय बटालियन ने अपना कब्ज़ा पुनः प्राप्त कर लिया। पाकिस्तान को एलओसी कोड का सम्मान करने और विवादित क्षेत्र पर नियंत्रण लेने की कोशिश करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक आलोचना की गई। एलओसी का सम्मान करने के लिए सभी देशों द्वारा भारत की प्रशंसा की गई और सफलतापूर्वक सभी युद्ध लड़ाई की।

Kargil Vijay diwas essay in english

India never invaded other country or forced war or them and we are known for this. This is not because our armed forces or leadership are not capable of doing it, it’s in culture, discipline, and morale of our military. But when someone attacks our country we don’t shy away, we fight back with vigor. Our brave soldier wears their life on sleeves to protect our beloved country. One such day was Kargil Vijay Diwas, I salute those soldiers for their bravery. Just Imagine if you wake up in the morning and found yourself in the mountains where cold winds freezing your breath, deep snow everywhere and temperature below -48 degree Celsius. Altitude is so high that one cannot breathe properly and in such situation enemy ambush you. That was the situation in which our courageous Indian Army fought the war for almost 60 days and took command over the top outposts which had been dominated by Pakistani aggressors. It is rightly said that Before moving forward, I would like to tell you how the war started. The battle took place on the first post of Kargil District of Kashmir. It was the winter time when the Pakistan army sent its soldiers in the name of the intruders and to take over the area. Their main aim was to cut off the connections between the Ladakh and Kashmir. And create tensions among the Indian borders. The intruders were on the top whereas the Indians were on the downhill, it was easy for them to attack. War broke up between the two sides. The Pakistani soldiers initially crossed the Line of Control which is called LOC and entered into the India-controlled region. Later the local shepherds alarmed the army about the suspicious people crossing the LOC. To take a deeper look Indian Army sent additional troops from to Ladakh to Kargil region and they came to know that the Pakistani army has crossed the LOC and entered in the India-controlled region Both the armies started firing to regain the claim on the land. Later the Indian Air Force joined the war cleansing all the intruders from the valley. After the increasing attack from the Indian army, and the pressure from the then United States of America President Bill Clinton, Pakistan withdrew its soldiers from the LOC area. The Indian army fought very bravely along with the Indian Air Forces who played the major role during the war and the Indian Battalion regained its position. Pakistan was highly criticized internationally for not respecting the code of LOC and trying to take control over the disputed region. India was praised by all the countries for respecting the LOC. This operation was code-named as Operation Vijay by the Army officials. The war ended On 26th July 1999, and Indian Prime Minister of that time Atal Bihari Vajpayee declared ‘Operation Vijay’s success. From then the day is called as the Kargil Vijay Diwas or a Kargil War Day.

कारगील विजय दिवस एस्से इन हिंदी

भारत बहादुर योद्धाओं की भूमि है। हम हम उसके लिए लड़ते है जो हमारा है| हमारी भारतीय सेना ऐसे नायकों से भरा है। और १९९९ में, जब हम पाकिस्तान के विरुद्ध कारगिल युद्ध पर विजय प्राप्त की तो विश्व ने हमारी भारतीय सेना की बहादुरी को गवाह किया। इस जीत का जश्न मनाने के लिए, पूरे भारत में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। भारत ने २६ जुलाई १९९९ को कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीता था, तब से १८ साल हो गए हैं। तब से यह कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया गया है। भारत ने इस तरह के एक असहनीय माहौल और उखाड़े में अपनी पूरी कोशिशों को पूरा किया था, जिसने पाकिस्तानी सैनिकों पर कब्ज़ा कर लिया था। कारगिल युद्ध के मैदान दुनिया के सर्वोच्च और खतरनाक युद्धक्षेत्रों में से एक है। युद्ध श्रीनगर से २०५ किमी दूर कारगिल शहर में स्थित टाइगर हिल क्षेत्र में लड़ा गया था। यहां रातों लंबी हैं, और तापमान -४८ डिग्री सेल्सियस तक गिरावट का इस्तेमाल होता है। पाकिस्तानी सेना लद्दाख और कश्मीर के बीच संबंधों को कम करना चाहती थी और बाद में कश्मीर पर धीरे-धीरे कब्जा करना चाहता था। १९९८ -९९ की सर्दियों के दौरान, पाकिस्तानी सेना ने गुप्त रूप से सिआचिन ग्लेशियर का दावा करने के लक्ष्य के साथ क्षेत्र में हावी होने के लिए कारगिल के पास प्रशिक्षण और सैनिक भेजने शुरू कर दिए थे पाकिस्तानी सेना ने कहा कि वे पाकिस्तानी सैनिक नहीं थे लेकिन मुजाहिदीन पाकिस्तान विवाद पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान देना चाहता था ताकि भारत को सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र से अपनी सेना वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाएगा और भारत को कश्मीर विवाद के लिए बातचीत करने के लिए मजबूर किया जाएगा। बाद में यह पाया गया कि कश्मीर आतंकियों को भी इसमें शामिल किया गया था। युद्धक्षेत्र उच्च ऊंचाई पर था; इसलिए, भारतीयों के लिए हथियारों और अन्य सामग्रियों को चलाने के लिए यह एक वास्तविक समस्या पैदा हुई| पाकिस्तानी सैनिकों ने शुरू में नियंत्रण रेखा को पार कर दिया जिसे कि एलओसी कहा जाता है और भारत-नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश करता है बाद में स्थानीय चरवाहों ने एलओसी को पार करने वाले संदिग्ध लोगों के बारे में सेना को चिंतित किया। गहराई से देखने के लिए, भारतीय सेना ने अतिरिक्त सैनिकों को कारगिल क्षेत्र में लद्दाख से भेज दिया और उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सेना ने एलओसी को पार कर लिया और भारत-नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश किया। दोनों सैनिकों ने जमीन पर दावा वापस लेने की गोलीबारी शुरू कर दी थी। बाद में भारतीय वायु सेना ने घाटी से सभी घुसपैठियों को साफ करने के लिए युद्ध में शामिल हो गए| भारतीय सेना के बढ़ते हुए हमले के बाद, और तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दबाव ने, पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को एलओसी क्षेत्र से वापस ले लिया। पाकिस्तानी सेना जीतने की कोशिश कर रहे सभी पदों पर भारतीय सेना ने पुनः प्राप्त किया। २६ जुलाई, १९९९ को जब पाकिस्तान सेना ने घोषणा की कि उन्होंने विवादित क्षेत्र से अपनी सेना वापस ले ली है, तो यह दो महीने की लंबी लड़ाई खत्म हो गई। ऑपरेशन विजय के नाम पर यह ऑपरेशन नामित किया गया था। कप्तान विक्रम बत्रा के साथ भारतीय सेना, मेजर जनरल इयान कार्डोजो ने २६ जुलाई १९९९ को निर्विवाद रूप से चौकी पर लड़ा था, जिस पर पाकिस्तान का वर्चस्व था। और इस तरह ऑपरेशन विजय एक सफलता थी। पाकिस्तान को एलओसी कोड का सम्मान करने और विवादित क्षेत्र पर नियंत्रण लेने की कोशिश करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक आलोचना की गई। सभी देशों ने एलओसी के सम्मान के लिए भारत की प्रशंसा की। इसलिए हर साल २६ जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारत के प्रधान मंत्री अमर जवान ज्योति के सभी शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है। हम हर जगह देशभक्ति महसूस करते हैं सेना के स्टंट और परेड को शहीदों को श्रद्धांजलि और भारतीय सेना की शक्ति दिखाने का कार्य किया जाता है।

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कारगिल विजय दिवस पर निबंध Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi

कारगिल विजय दिवस पर निबंध Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi

इस लेख मे हमने कारगिल विजय दिवस पर निबंध Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi लिखा है जिसमे हमने इसके दिन, इतिहास, महत्व और उत्सव के विषय मे पूरी जानकारी दी है।

Table of Content

परिचय (कारगिल विजय दिवस पर निबंध) Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi

26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय मे सफलता पाई और हमारे देश मे घुसे घुसपैठियों को मार गिराया। इसी दिन को सम्मान के साथ कारगिल विजय दिवस के रूप मे प्रतिवर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है।

ऑपरेशन विजय के दौरान कई भारतीय वीर जवानों ने निडरता के साथ अपने जीवन की आहुति दे दी। उनके इस बलिदान को याद करने के लिए इस दिन का पालन बहुत ही उत्साह के साथ किया जाता है

कारगिल विजय दिवस का महत्व Importance of Kargil Vijaya Diwas in Hindi

ऑपरेशन विजय की सफलता के नाम पर कारगिल विजय दिवस का नाम दिया गया। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक प्रमुख चौकी की कमान संभाली, जो पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा हमसे छीन ली गयी थी।

कारगिल युद्ध 60 से भी अधिक दिनों के लिए लड़ा गया था, यह  26 जुलाई को खत्म हो गया और परिणामस्वरूप दोनों पक्षों, भारत और पाकिस्तान के जीवन में नुकसान के बाद, हमें कारगिल की संपत्ति फिर से हासिल हुई।

कारगिल युद्ध के नायकों के सम्मान में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह दिन कारगिल सेक्टर और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में मनाया जाता है। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री हर साल इस दिन इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के साथ सैनिकों को श्रद्धांजलि देते है। सशस्त्र बलों के स्मरण के लिए पूरे देश में इस दिन को सम्मान के साथ उन्हें याद किया जाता है।

कारगिल युद्ध का इतिहास History of Kargil fight in Hindi

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, दो पड़ोसियों की सेनाओं में प्रत्यक्ष सशस्त्र से संघर्ष लम्बी अवधि तक हुआ – सियाचिन ग्लेशियर को नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद आसपास के पहाड़ों पर सैन्य चौकियों की स्थापना की गई।

1980 के दशक में होने वाली सैन्य झगड़े, 1990 के दौरान, कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों के कारण बढ़ते हुए तनाव और संघर्ष में जिनमें से कुछ को पाकिस्तान द्वारा समर्थित किया गया था और साथ ही 1998 में दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षणों का संचालन किया गया, एक तनावपूर्ण माहौल बन गया। स्थिति को कम करने के प्रयास में दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए और कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय समाधान प्रदान करने का वादा किया।

1998-1999 की सर्दियों के दौरान, पाकिस्तानी, सशस्त्र बलों के कुछ लोगों  को गुप्त रूप से प्रशिक्षण दिया गया और पाकिस्तानी सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को कुछ कथित तौर पर मुजाहिद्दीन के आड़ में भारतीय पक्ष के इलाके की नियंत्रण रेखा में घुसपैठ करा दिया गया।

घुसपैठ के कोड का नाम “ऑपरेशन बद्र”  था । पाकिस्तान का यह भी मानना ​​था कि इस क्षेत्र में कोई भी तनाव कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण करेगा जिससे शीघ्र ही इसका समाधान निकलेगा।

फिर भी एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए भारतीय प्रशासित कश्मीर में एक दशक से लंबे विद्रोह के मनोबल को बढ़ावा देने का एक लक्ष्य हो सकता था। घुसपैठ की सीमा क्षेत्र में भारतीय सैनिकों ने मान लिया था कि घुसपैठिये जिहादी थे, और दावा किया कि वे कुछ दिनों के भीतर ही उन्हें देश से बाहर कर देंगे।

एलओसी के साथ कहीं और भी रणनीतियाँ  घुसपैठियों द्वारा नियुक्त की गई थी, तब भारतीय सेना को महसूस हुआ कि बड़े हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर बनाई गई थी। प्रवेश द्वारा जब्त कुल क्षेत्र का आम तौर पर 130 वर्ग किमी – 200 वर्ग किमी के बीच स्वीकार किया गया।

200,000 भारतीय सैनिकों की एक गठजोड़ के साथ भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय का जवाब दिया। अंततः 26 जुलाई, 1999 को युद्ध आधिकारिक रूप से बंद हुआ। इसीलिए इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कारगिल विजय दीवस का उत्सव Celebration of Kargil Vijay Diwas in Hindi

कारगिल विजय दीवस को द्रास-कारगिल सेक्टर के भारतीय सैनिक और दिल्ली मे इंडिया गेट तथा अमर जवान ज्योति मे बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। साथ ही देश के अन्य सैन्य टुकड़ियाँ भी बहुत ही उत्साह के साथ इस दिन को मानते हैं।

नया सिर्फ सैनिक बल्कि अन्य लोग भी इस दिन सोशल मीडिया पर अपनी देश भक्ति जाहीर करते है और आस-पास मे भारतीय सनिकों के सम्मान मे रैली और भाषण कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में वे रिटायर्ड सेना के जवानों को निमंत्रण देते हैं। वे सेना के जवान लोगों को भारतीय सेना का महत्व और कुछ मुख्य युद्ध सफलताओं के बारे मे बताते हैं।

निष्कर्ष Conclusion

कारगिल विजय दीवस हमारे लिए एक बहुत ही महत्व पूर्ण दिन होता है। इस दिन को सभी लोगों को उत्साह के साथ मनाना चाहिए। आशा करते हैं आपको कारगिल विजय दिवस पर निबंध Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

4 thoughts on “कारगिल विजय दिवस पर निबंध Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi”

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Kargil War History and Story in Hindi – कारगिल युद्ध

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कारगिल युद्ध का इतिहास(kargil war history in hindi)

कारगिल युद्ध का इतिहास(kargil war history in hindi) और कारगिल युद्ध की कहानी(kargil war story in hindi) पूरी घटना को विस्तार से इस पोस्ट में जानेंगे. 1999 भारत पाकिस्तान के मध्य हुई कारगिल की लड़ाई(kargil yudh) से सम्बन्धित इस पोस्ट में कारगिल की लड़ाई(kargil ki ladai) में किये गए सभी ऑपरेशनस और किस प्रकार कारगिल युद्ध(kargil yudh) की शुरुआत हुई, सभी विषयों को आगे जानेंगे. इस पोस्ट के आखिर में आपको कुछ भारतीय सैनिक की खूबियाँ बताऊंगा जो केवल और केवल भारतीय सैनिकों के अन्दर पायी जाती हैं.

कारगिल युद्ध(kargil yudh) कब हुआ था?

कारगिल का युद्ध(kargil yudh date) ऑफिसियली तौर पर 3 मई 1999 को शुरू हुआ. लेकिन कारगिल युद्ध होने का मुख्य कारण क्या हैं? पहले आपको इसके बारें में विस्तार से बताते हैं.

भारत के प्रधान मंत्री का लाहौर का दौरा

1998 तक भारत और पाकिस्तान दोनों देश परमाणु शक्ति से संपन्न थे. 1998 सफल परमाणु परिक्षण के बाद 21 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर समझौते के लिए लाहौर गए थे.

भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार ने मिल कर आगे बढ़ने का फैसला किया, उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे. दोनों देशो ने तय किया कि दोनों सरकारें एक साथ बैठकर कश्मीर का मुद्दा भी सरल कर निपटारा करेगी.

लाहौर में अटल बिहारी वाजपेयी जी को 21 तोपों की सलामी दी गयी थी. पर उस वक्त यह किसी को नहीं पता था कि कुछ महीनों बाद यही तोपें हमारे जवानो के सीनों पर चलायी जाएगी.

एक अजीबो गारी बात हैं कि – जिस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी जी पाकिस्तान के दौरे पर थे, तब पाकिस्तान ने जनरल परवेज मुशर्रफ ने अटल बिहारी वाजपेयी जी को सेल्यूट नहीं किया था.

भारत और पाकिस्तान के प्राचीन समझौते(kargil war story and history)

02 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ, इस समझौते को शिमला समझौता के नाम से जाना जाता हैं. इस समझौते की शर्त यह थी कि LoC(LINE OF CONTROL) की सीमा के दोनों तरफ सर कोई भी सेना हस्तक्षेप नहीं करेंगे. दरअसल जहाँ पर LoC स्थित हैं, वहां पर सदिर्यों में तापमान गिरकर बहुत नीचे चला जाता हैं. लगभग -30 -40 डिग्री तक. इतने कम तापमान में इतनी अधिक ऊंचाई पर ज्यादा दिनों तक रुकना संभव नहीं होता हैं. इसलिए दोनों और की सेनाएं अक्टूबर के महीने वहां से चली जाती हैं. फिर जब सर्दियाँ कम हो जाती हैं, अप्रैल मई के महीने में वापस यहाँ आती हैं.

कारगिल युद्ध की पहल किसने की(kargil war story in hindi)

कारगिल युद्ध(kargil yudh ) की पहल इस प्रकार हुई. जून 1998 में पाकिस्तान में Pakistani Inter-Services Intelligence के द्वारा चार पांच सेना के मेजर ने मिलकर एक ऑपरेशन प्लान तैयार किया, इस ऑपरेशन का नाम “अल-बदर” रखा गया. इसकी पूरी रूप रेखा जावेद हसन ने बनाई थी.

अल बदर ऑपरेशन का उद्देश्य यह था कि जब अक्टूबर के महीने भारत और पाकिस्तान के LoC को छोड़ने का समय आता हैं, तो पाकिस्तान उस जगह को नहीं छोड़ेगा बल्कि LoC को पार कर भारत की तरफ बढेगा. इसलिए पाकिस्तानी सेना ने अपने प्लान के अनुसार अप्रैल मई में वहां हमले की तयारी में जूटे हुए थे. पाकिस्तान ने यहाँ एक कदम यह उठाया कि आर्मी सेना को पीछे रख कर आतंकवादी और घुसपेठियों को आगे कर दिया. इसलिए ऑपरेशन अल बदर एक पाकिस्तानी आर्मी और घुसपेठियों का सम्मिलित कदम था.

ऑपरेशन अल बदर का उद्देश्य(india pakistan war 1999 in hindi)

श्रीनगर से लेह तक एक हाईवे NH 1जाता हैं. इस हाईवे के माध्यम से ही कारगिल से होकर सियाचीन जाया जाता हैं. अगर विरोधी किसी तरह से इस हाईवे को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो सियाचिन से कनेक्शन टूट जायेगा और वहां किसी प्रकार की आर्मी सहायता नहीं पहुँच पायेगी.

भारत पाकिस्तान युद्ध 1999 की रुपरेखा

भारत और पाकिस्तान का कारगिल युद्ध चार भागों में हुआ. युद्ध का मुख्य पिन पॉइंट जिला कारगिल था, इसलिए इसे कारगिल की लड़ाई कहा जाता हैं. कारगिल के चार ताल्लुका मासकोक, दरास, काकसर और बटालिक में युद्ध लड़ा गया था.

दरास में सबसे भयानक और भीषण युद्द हुआ था. दरास में ही भारत के सबसे ज्यादा सैनिक मारे गए थे.

दरास में ही टाइगर हिल स्थित हैं जिसकी ऊंचाई लगभग 16600 फीट हैं. पाकिस्तानी सेना के पहले से ही ऊपर होने के कारण भारत को चढ़ाई के दौरान काफ़ी नुकसान झेलना पड़ा था.

भारत को युद्ध का पता कैसे चला(kargil war story)

कश्मीर का इलाका अत्यंत ठण्ड का इलाका हैं, वहां पर एक ठंडी प्रजाति का जीव याक पाया जाता है. दरअसल जब कोई कश्मीरी वहां पर याक को चराने के लिए गया हुआ थो तो उसका याक खो गया था. इसलिए उसने दूरबीन की सहायता से याक को खोजने का प्रयास किया. उस आदमी ने देखा कि कोई पत्थरों को तोड़ रहा हैं और छुपने के लिए जगह बना रहा हैं, लम्बी दाडी को देखकर उसने भांप लिया हो न हो यहं कुछ हलचल चल रही हैं.

उसने तुरंत इंडियन आर्मी को सुचना दी, इंडियन आर्मी को खबर होते ही सर्वे और पेट्रोलिंग की तैयारी की जाने लगी.

5 मई 1999 को भारतीय सेना के कुछ जवान पेट्रोलिंग के लिए गए. वहां से पता चला कि LoC सीमा के इस पार आतंकवादी घुस आये हैं.

9 मई 1999 को भारतीय बटालिन की एक टुकड़ी हथियारों को लेकर कारगिल का युद्ध करने के लिए निकल पड़ी. लेकिन वह दिन भारतीय सैनिक के लिए ब्लैक डे था.

टाइगर हिल से पाकिस्तानी सेना ने एक तोप चलायी, और वह तोप भारतीय सैनिको के उस क्षेत्र पर जाकर गिरी जहाँ सभी हथियार और बम रखे गए थे. कुछ ही क्षणों में भारतीय सेना को 127 करोड़ का नुकसान हो गया.

यहाँ पर भारतियों को दो सदमे लगे पहला, यह कि बहित बड़ी मात्रा में हथियार का नुकसान हो गया था. दूसरा यह कि – हमला करने वालो में पाकिस्तान की सेना भी शामिल हैं.

चूँकि भारतीय सेना को पता चल चूका था कि इस स्ट्राइक के पीछे पाकिस्तान के सेना प्रमुख का हाथ हैं तो भारत ने भी एक रूप रेखा और प्लान तैयार किया.

कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना ने तीन ऑपरेशन चलाये. थल सेना ने ऑपरेशन विजय, वायु सेना ने सफ़ेद सागर और नौसेना ने तलवार नाम का ऑपरेशन चलाया.

कारगिल युद्ध का ऑपरेशन विजय(india pakistan war 1999 in hindi)

ऑपरेशन विजय 3 मई 1999 को ही शुरू हो चूका था. पाकिस्तानी सेना और घुसपेठी पहले से ही 16000 फीट की ऊंचाई पर बैठे थे. इसलिए भारतीय सेना थोड़ी दबाव में थी. ऑपरेशन विजय का उद्देश्य यह था कि किसी तरह टाइगर हिल को घेर लिया जाये.

थल सेना ने कारगिल की लड़ाई सबसे पहले एक तरफ से चढ़ाई की. टाइगर हिल और तोलोलिंग की पहाड़ी समांतर में स्थित हैं. लेकिन दोनों की ऊंचाई में फर्क हैं. भारत सेना को तोलोलिंग पहाड़ी से होकर टाइगर हिल की चढाई करनी थी.

मसक्कत यह थी की … एक तो भारतीय सैनिक कम, दूसरा वे नीचे खड़े थे. पाकिस्तानी सैनिक कहाँ छुपकर बैठे हैं, इसका कोई अंदाजा नहीं. इसलिए तोलोलिंग पहाड़ी और टाइगर हिल के बीच में पाकिस्तान ने तोपों और मिशाइलों से खूब भारतीय सैनिकों को खदेड़ा.

भारत सेना ने अपने प्लान में कुछ बदलाव लाकर टाइगर हिल के चारों और से सैनिक भेजे. दूसरी तरफ पाकिस्तानियों ने भारत के 140 पोस्ट्स पर कब्ज़ा कर लिया था सभी जगह पर सैनिकों की टुकडियां भेजकर हेवी मशीन गन, मिशाइलों से उनको मुक्त करवाया. और किसी तरह बटालिक ताल्लुका को पाकिस्तानी घुसपेठी और सेना से आजाद कर दिया.

बटालिक के मुक्त होने पर भारत सेना का मनोबल बढ़ गया था.

टाइगर हिल को हासिल करने के लिए भारत की बफ़ोर्स तोप ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बफ़ोर्स ने पाकिस्तानियों को संभलने का मौका भी नहीं दिया.

अंततः भारतियों ने टाइगर हिल हो वापस मुक्त करा लिया.

ऑपरेशन सफ़ेद सागर(kargil war story in hindi language)

26 मई 1999 को भारत सेना की तरफ से ऑपरेशन सफ़ेद सागर शुरू हुआ. 27 मई को भारतीय हेलोकोप्टर ने वायु में उड़ान भरी. 27 मई का दिन इंडियन आर्मी के लिए एक और ब्लैक डे था. के नचिकेता मिग-27 को लेकर उड़ान भरी थी. टेक्निकल खराबी और राडार के कनेक्शन के टूट जाने के कारण के. नचिकेता को LoC की सीमा के दूसरी तरफ लैंड करना पड़ा था. जिसके कारण नचिकेता जी पाकिस्तानियों की बंदी में आ गए थे. लेकिन उनको बाद में अभिनन्दन वर्धमान की तरह वापस भारत को सौप दिया गया था. अजय आहूजा भी मिग-27 हेलीकाप्टर लेकर सफ़ेद सागर का हिस्सा बने थे. 27 मई 1999 को जब इन्होने उडान भरी और टारगेट को लॉक कर रहे थे. इसी दौरान वह खुद एक स्ट्रिंगर मिशाइल के पॉइंट पर आ गए थे. इसलिए अजय आहूजा ने अपने प्लेन को इंजेक्ट कर लिया.

मिशाइल से वे बच गए थे. लेकिन पेराशूट से उतरते समय पाकिस्तानी सेना ने उनकी बुरी तरह से इतिहास की सबसे मर्मज्ञ हत्या की. इनकी पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट कुछ इस प्रकार थी.

1 एक मर्मज्ञ बंदूक की गोली का घाव है; दाहिने कान के पास प्रवेश करती है और बाएं कान के पास से बाहर निकली. गनशॉट घाव: छाती पर दाहिनी निप्पल के 2 सेमी के पास से प्रवेश, जो की पीठ के नीचे की तरफ निकलती हैं. ये आधी रिपोर्ट हैं. पूरी रिपोर्ट बहुत भयानक हैं. भारत पाकिस्तान कारगिल युद्ध में भारत की सेना ने कुल 527 जवान खोये थे.

वायु सेना के ऑपरेशन सफ़ेद सागर को बहुत नुकसान झेलना पड़ा. क्योंकि भारत के मिलेट्री जेट इतनी ऊंचाई पर उड़ने के लिए काबिल नहीं थे. लगभग 16 से 18 हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित घाटियों की पेट्रोलिंग करना थोडा मुश्किल था. लेकिन जब परिस्थितियां बेकाबू हो रही तो सैनिक नार्मल यात्री हेलीकाप्टर को लेकर भी निकल पड़े. भारत ने कारगिल की लड़ाई में चार MI-17 हेलिकोप्टरों को खो दिया.

लेकिन जब मिराज-2000 आया तब पाकिस्तानियों को खदेड़ कर रख दिया. मिराज-2000 विमान लेजर पिन पॉइंट टारगेट को बुक करता हैं. इसने पाकिस्तानियों की हाला खस्ता कर दी.

“जब फ़्रांस से मिराज-2000 को खरीदने के लिए पाकिस्तान के साथ समझौता होने वाला था तो पाकिस्तान ने इसकी साइज़ देखकर मना कर दिया था.”

24 june 1999 को पाकिस्तान के लिए एक काला दिन होने वाला था. लेकिन भारत के एक राजनितिक निर्णय के कारण वह घटना होते होते रह गयी.

24 june को दो जेगुआर हेलीकाप्टर पेट्रोलिंग के लिए निकले थे. एक जेगुआर हेलीकाप्टर में सिनियर ऐ के सिंह और दुसरे जेगुआर में एक जवान सैनिक बैठे थे. ऐ के सिंह का जेगुआर पीछे चल रहा था. उस वक्त नीचे एक टुकड़ी में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और आर्मी चीफ़ जनरल परवेश मुशर्रफ दोनों मौजूद थे. आगे वाले जेगुआर ने उस टुकड़ी को पिन पॉइंट कर टारगेट बना लिया और अपने सीनियर ऐ के सिंह को कॉल किया कि – उन्होंने एक बहुत बड़ी टुकड़ी को निशाना पर रखा हैं. क्या उनको इजाजत हैं. वहां पर उनको रोकने की इजाजत दी गयी, क्योंकि वह टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा के भीतर थे.

अगर उस वक्त निशाना लगा देते तो भारत के वैश्विक समझौते ख़राब हो जाते, एक बहुत बड़ा राजनितिक मुद्दा खड़ा हो जाता. दुसरे देश की सीमा के अन्दर जाकर मारने पर भारत का पक्ष कमजोर हो सकता था. भारत के लिए यह एक सही निर्णय था.

नौसेना का तलवार ऑपरेशन(1999 kargil war story in hindi)

ऑपरेशन तलवार की आगाज़ होते ही, चारों तरफ से भारत की नौसेना बटालियन अरब सागर के समीप आ पहुंची. भारत की नौसेना ने पाकिस्तान को अरब सागर की तरफ से घेर लिया. इस कारण पाकिस्तान का आयात निर्यात का व्यापर बंद हो गया था. पाकिस्तान के सभी नेवल ब्लाक कर दिए. पाकिस्तान ने सभी पेट्रोल की लाइनें बंद कर दी. अगर उस वक्त पाकिस्तान कराची से पीछे नहीं हटता तो सात दिन में पाकिस्तान के पास जरूरती संसाधनों की कमी आ जाती.

इस प्रकार पाकिस्तान के पास अब सरेंडर करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था.

पाकिस्तान ने अमेरिका से सहायता मांगी(about kargil war in hindi)

4 जुलाई को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अमेरिका राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से सहायता मांगी लेकिन पाकिस्तान की गलती होने कारण वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा. इस वार्ता को किसी ने रिकॉर्ड कर लिया, जब पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनरल परवेश मुशर्रफ चीन से सहायता मांगने गए तो इस वार्ता की आकशवाणी के कारण वहां से भी खाली लौटना पड़ा.

14 जुलाई को भारत सरकार ने युद्ध विराम करने का आदेश दिया. लेकिन भारतीय सेना ने 26 जुलाई तक सभी चेक पॉइंट्स को खंगाला और जब पूरी तरह से संतुष्ट हो गए की अब कोई पाकिस्तानी आतंकवादी मौजूद नहीं हैं. तब 26 जुलाई को कारगिल की लड़ाई का विजय फतह पहनाया.

कारगिल की लड़ाई के कुछ तथ्य

दो महीने और तीन सप्ताह तक चलने वाले इस युद्ध में भारत विजयी रहा, भारत ने पाकिस्तान की तुलना में ज्यादा सैनिक खोये.

कारगिल की लड़ाई(kargil ki ladai) में भारतीय सेना ने अपने 527 सैनिकों को खोया था.

कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी पक्ष में मौत का आंकड़ा 357 और 453 के बीच था.

पाकिस्तानी सेना ने अपने शहीद हुए सैनिकों को वापस लेने से इंकार कर दिया, और कह दिया ये हमारे सैनिक नहीं हैं.

कारगिल की लड़ाई(kargil war story in hindi) पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की बिना अनुमति शुरू की गयी थी.

कारगिल के युद्ध(kargil yuddh) समाप्त होने बाद भी पाकिस्तानियों ने ये मानने से इनकार कर दिया कि इस युद्द में हमारी सेना भी शामिल थी. जबकि यह युद्ध पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी संघठन दोनों की मिली जुली पहल थी.

भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद पूरे विश्व में पाकिस्तान के प्रति विश्वास टूट गया था.

भारतीय सेना इस युद्ध (about kargil war in hindi) के लिए पहले से तैयार नहीं थी. बल्कि उनके लिए यह एक बूरा सरप्राइज था. अप्रैल का महिना अत्यंत ठण्ड भरा और बर्फ बारी का होता हैं. इस वक्त वहां का तापमान लगभग – 8 डीग्री से 1 डिग्री तक होता हैं.

भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को मिशन को सफल घोषित किया, तब से इस दिन को हर साल “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है.

दो शब्द भारतीय सैनिकों को सलाम करने के लिए…1999 kargil war story in hindi

जब पाकिस्तान सेना ने अपने शहीद होने वाले सैनिको और युद्ध में घायल सैनिकों को वापस लेने से मना कर दिया था. तब भारतीय सैनिकों ने उनको पानी पिलाया और जो शहीद हो गए थे, उनका दाह संस्कार भी किया था. यह एक कोमल दिल की भावना हैं. दुश्मन के सामने दुश्मनी और निर्बल के सामने अपनी दया भावना दिखने वाले सिर्फ भारतीय सैनिक ही हो सकते हैं और कोई नहीं.

कारगिल युद्ध की कहानी(india pakistan war 1999 in hindi) से आपने क्या सीखा. कारगिल की लड़ाई( kargil war story in hindi) को लेकर आपके क्या विचार हैं. नीचे “ जय हिंद ” के साथ कमेंट बॉक्स में लिखे.

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कारगिल विजय दिवस पर निबंध इतिहास कहानी- Kargil War Vijay Diwas History

कारगिल विजय दिवस – भारत देश में कारगिल विजय दिवस को महत्वपूर्ण दिवस की सूची में स्थान दिया गया है। कारगिल विजय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है। सन 1999 में कारगिल में भारत और पाकिस्तान देश की सेनाओं के बीच युद्ध लड़ा गया था। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और इस युद्ध की समाप्ति 26 जुलाई को हुई। इस युद्ध में भारतीय सेना ने जीत हासिल की। तब से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है और युद्ध में शहीद होने वाले भारतीय सेना के जवानों को और देश के प्रति दी गई उनकी कुर्बानी को याद किया जाता है। इस वर्ष कारगिल दिवस की 23वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है।

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चलो भारतीय होने का फर्ज निभायें, वीर शहीदों को याद करते हुए कारगिल दिवस मनायें।I

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कारगिल विजय दिवस इतिहास

वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध होने के पश्चात भी कई दिनों तक सैन्य संघर्ष जारी रहा। भारत-पाकिस्तान दोनों के बीच परमाणु परीक्षण होने के कारण तनाव और भी अधिक बढ़ गया था। फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान ने माहौल शांत करने के लिए लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणा पत्र में कश्मीर मुद्दे को शांतिपूर्वक हल करने की घोषणा की गई।

तुम दूध माँगोगे तो हम खीर देंगे , तुम कश्मीर माँगोगे तो हम चीर देंगे।।

1998-99 में सर्दियों के दौरान पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से सियाचीन ग्लेशियर की फतेह के इरादे से अपनी फ़ौज भेजना शुरू कर दी। जब भारत द्वारा पाकिस्तान से पूछताछ की गयी तब पाकिस्तान का कहना था कि यह हमारी फ़ौज नहीं बल्कि मुजाहिद्दीन है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर कश्मीर के मुद्दे को सुलझाना चाहता था। हालांकि सियाचिन ग्लेशियर एक बहुत ही ऊँची जगह है इसी कारण से भारतीय सेना को इतनी ऊँचे स्थान पर बन्दूक आदि ले जाने में कठिनाई होती थी। लेकिन जैसा कि आप सभी जानते है भारतीय सेना अपनी वीरता के लिए जानी जाती है, भारतीय सेना ने इतने ऊँचे स्थान पर भी हथियार ले जाने में हार नहीं मानी।

सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है II

कारगिल युद्ध के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

भारतीय सेना को नुकसान (ऑपरेशन विजय).

कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने लगभग दो महीनों तक भारतीय सेना ने पूरे साहस जो जांबाजी के साथ युद्ध न केवल लड़ा बल्कि इस युद्ध में विजय भी प्राप्त की। इस युद्ध को 26 जुलाई तक लड़ा गया। कारगिल युद्ध भारतीय सेना की वीरता का एक ऐसा उदाहरण है जिस पर प्रत्येक भारतीय को गर्व होना चाहिए। कारगिल युद्ध लगभग 18 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना को काफी भारी नुकसान सहना पड़ा था। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने लगभग 527 से अधिक वीर सैनिकों को खोया था। इस युद्ध में न केवल 527 वीर सैनिक शहीद हुए बल्कि 1300 से अधिक सैनिक घायल हुए थे। कारगिल युद्ध में 2700 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए जबकि 250 पाकिस्तानी सैनिक युद्ध छोड़कर भाग निकले थे।

भरी जवानी में अपनी माँ के चरणों में, कर दिया अपने प्राणों का समर्पण, रहेंगे अगर हमारे दिलों में वो, अपने शब्दों से करता हूँ श्रद्धा सुमन अर्पण।

दुर्घटनाएं और हानि (दोनों देशों के आंकड़ों के अनुसार)

कारण.

वर्ष 1998 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जिनका नाम नवाज शरीफ था और सेना प्रमुख जहाँगीर करामात के बीच मतभेद बढ़ गए थे। सेना प्रमुख जहाँगीर करामात के सेवानिवृत्त होने के बाद अगला सेना प्रमुख कौन होगा इस विषय पर बहस जारी थी। जहांगीर करामात ने अपने ऊपर हुई टिप्पणी से गुस्सा होकर सेना प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद जहाँगीर करामात के स्थान पर सेना प्रमुख के पद पर जनरल परवेज मुशर्रफ को नियुक्त किया गया।

परिणाम

कारगिल युद्ध से पाकिस्तान में राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई थी। नवाज शरीफ के स्थान पर परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया। इसके विपरीत भारत देश में देशप्रेम की लहर चली और साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई। इसके फलस्वरूप भारत सरकार ने अपने रक्षा बजट में वृद्धि की। कारगिल युद्ध से प्रेरित होकर फिल्मकारों ने कई फिल्में बनाई जैसे – एल ओ सी कारगिल, लक्ष्य और धूप ।

कारगिल युद्ध का वर्णन तिथिवार

यहाँ हम आपको कारगिल युद्ध से जुडी कुछ महत्वपूर्ण तिथियों के विषय में बताने जा रहें है। इन तिथियों के विषय में और घटनाक्रम के बारे में आप नीचे दी गई सारणी के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर सकते है। ये सारणी निम्न प्रकार है –

कारगिल युद्ध स्मारक इंडिया

इंडियन एयर फाॅर्स द्वारा कारगिल युद्ध की एक मेमोरियल बनाई गई है जो द्रास में टोलोलिंग की तलहटी में स्थित है। मेमोरियल का निर्माण शहर के मध्य केंद्र से 5 Km की दूरी पर किया गया है। यह मेमोरियल कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जवानों की याद में निर्मित किया गया है। कारगिल युद्ध स्मारक के मुख्य द्वार पर माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता पुष्प की अभिलाषा अंकित है। हालांकि मेमोरियल की दीवारों पर उन शहीद जवानों के नाम भी लिखे गए है जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राण गवाएं है। मेमोरियल देखने जाने वाले लोग इन नामों और कविता को पढ़ते है।

कारगिल विजय दिवस मेमोरियल से एक म्यूजियम भी जुड़ा हुआ है। इस म्यूजियम को ऑपरेशन विजय के सक्सेसफुल होने और भारत देश की जीत की ख़ुशी में बनाया गया था। इस म्यूजियम में पाकिस्तानी हथियार, भारतीय वीर जवानों के चित्र, युद्ध से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज और रिकॉर्डिंग्स आदि रखे गए है। आजकल के बच्चों को अपने देश के इतिहास के विषय में और अपने देश में स्थित स्मारकों के बारे में जानकारी देने के लिए स्कूलों द्वारा बच्चों को ऐसी ऐतिहासिक जगहों पर ले जाना चाहिए और उन्हें प्राचीन सभ्यता के विषय में बताना चाहिए। बहुत से लोग कारगिल युद्ध स्मारक को देखने के लिए भी जाते है।

कारगिल विजय दिवस सम्बंधित स्लोगन हिंदी में

यहाँ हम आपको कारगिल विजय दिवस से जुड़े कुछ स्लोगन के विषय में बताने जा रहें है। अगर आप कारगिल विजय दिवस से सम्बंधित स्लोगन देखना और पढ़ना चाहते है तो नीचे दी गई जानकारी को पढ़ें –

  • दुश्मनो के होंसले तोड़कर आया है, लहूँ वतन के शहीदों का देश के काम आया है।
  • सदियों तक अमर रहेगा तेरा बलिदान, मेरा शत-शत नमन तुम तक पहुंचे यही है अरमान।
  • भारत के माटी की शान, है तुम्हे नमन। कारगिल के वीर जवान है तुम्हें नमन।
  • शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशां होगा।
  • हम वतन के नौजवान है हमसे जो टकराएगा, वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जायेगा।
  • अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, सिर कटा सकते है मगर सिर झुका सकते नहीं।

Kargil War Vijay Diwas Quote in English

  • “Soldier is not just a person, One is our Pride, Army is our glory, Honour we earned.”
  • When you go home, tell them about us, and say “For your tomorrow we gave our today.”
  • If death strikes before I prove my blood, I swear till kill death. ( Lieutenant Manoj Kumar Pandey)
  • “Either I wil come back after hoisting the tricolour, Or I will come back wrapped in it.” (Late Captain Vikaram Batra Of Kargil War)

कारगिल विजय दिवस पर 10 लाइनें

  • कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की जीत होने के कारण कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
  • कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ।
  • कारगिल युद्ध लगभग 15,000 फ़ीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था।
  • Kargil war (कारगिल युद्ध) 60 दिनों तक चला।
  • यह युद्ध 26 जुलाई तक चला जिसमे भारतीय सेना की जीत हुई।
  • इसी कारण कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को हर साल मनाया जाता है।
  • इस युद्ध को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया है।
  • इस युद्ध में भारत के 1363 वीर सैनिक और पाकिस्तान के 665 से अधिक सैनिक घायल हुए। कारगिल युद्ध में भारत के 527 वीर सैनिक शहीद हुए और पाकिस्तान के 357 – 453 सैनिक मारे गए।
  • कारगिल विजय दिवस पर अमर जवान ज्योति स्मारक पर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

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Where is Kargil? - Kargil War 1999

Kargil was a tehsil of Ladakh before the time of partition. It is a region of people who speak different languages and religious groups. It is a region that is separated by mountains. Kargil district is located from Srinagar, about 205 Km. There is a continental climate in the district. Summers are cool, and winters are long and chilly, with temperatures dropping to -48°C.

Kargil War Information

Kargil war history.

The Kargil war refers to an armed conflict fought between India and Pakistan. It is fought on the land of Kargil, the district of Jammu and Kashmir, and on the line of control. It is an Indian Military Operation named 'Operation Vijay'. 

The main cause of the war was that Pakistani soldiers sneaked the LoC on the Indian side. In the two states of Kashmir, they serve as the de facto border between them. In starting, Pakistan did not accept this thing that they were the ones who did this injustice and blamed the Kashmiri people. Still, later the involvement of Pakistan forces will be cleared by the statements of Pakistan's Prime Minister and Chief of Army Staff. Later the Indian Air Force helped the Indian Army, and they again captured the main positions of the LoC. Pakistani Forces stepped backwards after facing international opposition.

The war ended with the victory of India, but both countries had to pay a high price for this. The total death toll in this war on the Indian side stood at 527, whereas, on the Pakistan side, it was said to be somewhere between 357 & 453. Both sides got experience fighting at hard altitudes. After this, Gallantry Awards were given to the great war heroes, and the country also increased its defence budget.

Kargil War Memorial

The Indian Army built 'The Kargil War Memorial' in Dras in Tololing Hill's foothills. About 5 km from the city centre across Tiger Hill, which commemorates the martyrs of the Kargil War. A poem named "Pushp ki Abhilasha", written by Makhanlal Chaturvedi, is engraved on the gateway of the memorial. It is a renowned neo-romantic Hindi poem of the 20th century. The names of those who lost their lives in the war are inscribed on the memorial walls, and visitors can read them. There is a museum located near the memorial. It was established to celebrate Operation Vijay. In the museum, pictures of Indian Soldiers, important documents regarding war, and recordings are kept. The equipment of Pakistani war gear and the official emblems of the army from the Kargil War. To celebrate India's victory in the war, the giant national flag was hoisted at the Kargil War Memorial on Kargil Vijay Diwas.

Kargil War Heroes

Many laid down their lives for their country in this war, including captain Vikram Batra, Captain Anuj Nayyar, and Grenadier Yogender Yadav. Many others also risked their lives and gave India a victory in the war. They are:

Captain Amol Kalia had to capture point 5203. For this, they started their mission at night with their teammates and reached the mountain before daybreak. Enemies hit him, but still, he continued his task.

Captain Neikezhakuo Kenguruse was awarded Mahavir Chakra for their bravery in the war. The words written on the medal are "He displayed conspicuous gallantry, indomitable resolve, grit, and determination beyond the call of duty and made the supreme sacrifice in the face of the enemy, in true traditions of the Indian Army."

Lt Keishing Clifford Nongrum reached the vertical top cliff, and their task was to capture point 4812 in the Batalik Sector. The enemy was targeting them continuously with automatic fire. He did not even think about his own life and charged towards them through the fire zone.

During Operation Vijay, Captain Jintu Gogoi was tasked to evade enemy soldiers in the Batalik sub-sector near LOC. Even with injuries, he showed great leadership and bravery and excellence.

Naik Brij Mohan Singh, the 30-member team's Commander, was tasked to capture Sando Top. He not only killed the enemy's soldiers but also saved his team.

Captain Jerry Prem Raj was tasked with launching an assault in the Drass Sector on Twin Bumps. He didn't even stop when he was fired on by the enemy and continued firing on the enemy. He was awarded the prestigious Vir Chakra.

Captain Shashi Bhushan Ghidiyal showed the effective presence of his mind when the company commander got injured, and he took command & started directing the team to assault the company.

This list does not end here. There were some soldiers whose contribution to the country got saved in the Kargil War.

Conclusion  

To wrap up, Kargil War ended with a victory for India but at a huge price. It was said to be the fourth war between India and Pakistan. It was the last war that happened between India and any other country. We learned about the Kargil war date, war heroes, history, its reasons & results, etc. After this war, the Government of India formed the Kargil Review Committee on July 29, 1999, "to examine the sequence of events and make recommendations for the future", whose report was submitted on January 7, 2000, during the Atal Bihari Vajpayee Government. Time has passed, but the brave service of the Kargil Heroes can never be forgotten.

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FAQs on The Last War of the 20th Century

1. What was the reason for the Kargil War?

In 1999, Pakistani started "Operation Badr" and entered Indian territory with their troops. They wanted to negotiate with India on the Kashmir dispute. They wanted to cut the connections between Kashmir and Ladakh.

2. Who started the Kargil War?

The Kargil war was also known as the Kargil Conflict. It was a 60-day long war that was fought between India and Pakistan. It was from May 3, 1999, to July 26, 1999. The war took place because Pakistani armed forces entered Indian territory. They show them as the locals of Kashmir. But later, when Indians detected them. They did not accept the fact and blamed the locals. But after that, the statement of the Prime Minister and Chief of Army Staff showed the involvement in this. The Pakistani made the plan of attacking for so long. It made plans in 1998.

3. Who won the Kargil War?

After the fight continued for 60 days. On the last day, July 26, 1999, the Indian Army completed "Operation Vijay" successfully. India won over Pakistan. On July 26, 1999, the day was marked as the "Kargil Vijay Diwas". After that, Pakistani withdrew from the areas of the Line of Control.

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कारगिल युद्ध पर निबंध

कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय) पर निबंध विद्यार्थियों के लिए

admin July 21, 2019 Essays in Hindi 3,765 Views

कारगिल की भौगोलिक स्थिति

जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा पर लगभग 814 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया है। यह नियंत्रण रेखा जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों राजौरी, पुंछ, उड़ी, उप वाला, कारगिल और लेह होते हुए सियाचिन तक जाती है। इस नियंत्रण रेखा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग जो श्रीनगर, कारगिल, द्रास और लेह को जोड़ता था। इस राजमार्ग के बंद होते ही लेह का संबंध देश से टूट जाता है। इन सीमावर्ती क्षेत्रों में 6000 फिट से 17000 फिट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ है। जिन पर पूरे वर्ष 20 से 30 फुट तक मोटी बर्फ जमा रहती है। इस क्षेत्र की 15000 फिट तक गहरी खाईया, दूर दूर तक फैली कटीली झाड़ियां तथा सकरे और दुर्गम मार्गों को देखकर दिल दहलने लगता है। सितंबर अक्टूबर में तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है। दिसंबर जनवरी की सर्दी की कल्पना से ही मन घबराने लगता है।

कारगिल का सामरिक दृष्टी से महत्त्व

कारगिल क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्षेत्र पर पाकिस्तान के साथ साथ चीन भी निगाहें लगाए बैठा रहता है। रक्षा सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान कारगिल के माध्यम से सियाचिन पर अपना कब्जा करना चाहता है और इसी उद्देश्य से पाक सेना लद्दाख स्थित कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की योजना पर कार्य करती रहती है।

कारगिल युद्ध का उद्देश्य

कारगिल में घुसपैठ करके शेष भारत का सियाचिन से संपर्क मार्ग अलग करना तथा सियाचिन पर आधिपत्य स्थापित करना, कारगिल में पाकिस्तानी हरकतों का प्रमुख लक्ष्य रहा है। इसके साथ पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष उद्देश्य यह भी है कि वह ऐसा करके कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखना चाहता है।

घुसपैठ द्वारा पहले से ही भारतीय क्षेत्रों पर कब्ज़ा

पाकिस्तान ने अपनी सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत सितंबर 1998 में सीधे सियाचिन पर आक्रमण कर दिया था। जिसमें वह पूरी तरह से असफल रहा था। भारत विरोध और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निंदा के बाद भी पाक सेना ने घुसपैठियों के रूप में नियंत्रण रेखा के समीपवर्ती स्थानों पर कब्जा जमाने का अभियान जारी रखा। दिनाँक 1 मार्च 1999 को अचानक पकिस्तान ने अपनी गतिविधियों को तेज करते हुए, इन क्षेत्रों में स्थित भारतीय चौकियों और बंकरो पर अपना अधिकार कर लिया। कारगिल स्थित द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बनाकर पूरी सामरिक तैयारी के साथ आक्रमण के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। भारतीय नागरिक ठिकानो पर लगातार इन घुसपैठियों द्वारा निरंतर गोलीबारी की जाती रही हैं। भारत के अनेक बार पाक सरकार को चेतावनी दी किन्तु पाक सेना के इशारों पर घुसपैठियों ने आक्रमण में और अधिक तीव्रता ला दी हैं।

कारगिल युद्ध

जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर स्थित कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने 10 मई 1999 को अचानक ही भीषण बमबारी शुरू कर दी। इसके फलस्वरूप भारतीय आयुध भंडार में आग लग गई और आठ भारतीय सैनिक शहीद हो गए। भारत द्वारा विरोध करने के बाद भी पाक का आक्रमण और अधिक तेज हो गया। विवश होकर 26 मई 1999 को भारत को भी कारगिल में खुला युद्ध शुरू करने की घोषणा करनी पड़ी। पूरे भारत में रेड अलर्ट कर दिया गया। भारतीय कारगिल की ओर से करने लगी। भारतीय तोपों तथा टैंकों का मुहँ कारगिल की ओर मोड़ दिया गया और कारगिल में कैसा युद्ध शुरू हो गया, जो इतनी ऊंचाइयों पर इतनी भीषण और दुर्गम परिस्थितियों में लड़ा जाने वाला विश्व का प्रथम तथा भीषण युद्ध था।

कारगिल में घुसपैठियों और पाक सैनिकों के विरुद्ध भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय अभियान शुरू करते हुए दुश्मन को हर मोर्चे पर मुंह तोड़ करारा जवाब दिया और भारतीय सीमा में मौजूद लगभग 700 सैनिकों और घुसपैठियों को घेर लिया था। भारतीय सेना की इस प्रथम कार्यवाही में पाक के 160 सैनिक और आतंकवादी घुसपैठिए मारे गए। उसके बाद भारतीय सेना ने कारगिल की दुर्गम घाटियों, ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले मार्गो और शत्रु की गोलीबारी की चिंता ना करते हुए आंधी की तरह आगे बढ़ना शुरू कर दिया था। भारतीय सुर वीरों ने शीघ्र ही अनेक महत्वपूर्ण ठिकानों पर पुनः अपना कब्जा कर लिया तथा सैकड़ों घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। शत्रु को तेजी से पीछा करते हुए प्वाइंट 4812, टाइगर हील तथा जुगार हिल पर फिर से तिरंगा फहरा दिया और 12 जुलाई तक संपूर्ण द्रास और बटालिक सेक्टर भारतीय सेना के कब्जे में आ गए। भारतीय थल तथा वायु सेना के सैकड़ों जवानों ने इन क्षेत्रों पर कब्जा करने हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए। थल सेना के साथ सहयोग करते हुए वायु सेना ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस पुण्य कार्य में अपने अदम में शौर्य का परिचय दिया।

कारगिल युद्ध का अंत और भारत की विजय

युद्ध के दौरान संपूर्ण विश्व में पाक की घोर निंदा हुई तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अकेला पड़ गया। भारत ने पाक को 17 जुलाई तक अपने घुसपैठिए वापस बुलाने की चुनौती देकर अपनी सामरिक कार्यवाही जारी रखी। इसी बीच युद्ध में अपनी पराजय देखकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अमेरिका पहुंचकर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया और घुसपैठियों की वापसी व नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की घोषणा की। इसके बाद भी मश्कोह, द्रास और कारगिल में घुसपैठियों की स्थिति बनी रही, जिन्हें भारतीय सेना ने जुलाई के अंतिम सप्ताह तक मौत की नींद सुला दिया और नियंत्रण रेखा के पार भागने पर विवश कर दिया। मातृभूमि की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता, अदम्य साहस, रण कौशल और जान हथेली पर रख करने वाले बहादुरों के दम पर लगभग 2 माह के छद्म युद्ध में ही भारत ने पाक को अपमानजनक पराजय का मुंह देखने के लिए विवश करते हुए अपनी एक 1-1 इंच भूमि पुनः प्राप्त कर ली।

भारतीय सेना का अदम्य साहस एवं शौर्य

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की बहादुरी, रोमांचकारी, विसमय्कारी, हरियद्रावक तथा बेमिसाल है। वर्ष भर बर्फ में ढकी ऊंची पहाड़ियों पर इतने लंबे समय तक लड़े गए विश्व के इस प्रथम युद्ध में वीरों ने बर्फ के गोले खाकर, भूखे प्यासे रहकर, घंटों रेंगते हुए आगे बढ़कर, गोलियों से सीना छलनी होने पर भी दुश्मन से निरंतर लोहा लिया तथा कहीं-कहीं घुसपैठियों को मौत के घाट उतारकर ही प्राण त्यागे। इसमें से अनेक सैनिक अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे, कुछ अपनी बहनों का अकेला भाई थे, कुछ की शादी में केवल 1 सप्ताह से इस था, कुछ की शादी कुछ दिन पूर्व हुई थी। उसकी दुल्हन के हाथों की मेहंदी भी अभी छुट्टी नहीं थी। ऐसा भी कोई था जिसका प्रथम नवजात अपने पिता को देखने के लिए ग्रह द्वार पर टकटकी लगाए था किंतु चारों ओर प्रतीक्षा होती रही, स्वप्न धूल प्रसारित हो गए, आशाएं निराशा में बदल गई, जिन की प्रतीक्षा थी लौटने कि वह या तो लौटे ही नहीं अथवा लौटे तो शहीद होकर। कमांडो सुरेंद्र सिंह शेखावत, मेजर मरियप्पन, मेजर कमलेश प्रसाद, मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी, नायक हरेंद्र सिंह, मेजर मनोज तलवार जैसे कितने ही अभूतपूर्व साहस का परिचय देने वाले तथा अपने वतन के लिए शहीद हो जाने वाले इन सैनिकों की शौर्य गाथा पूरे विश्व के सैनिकों के लिए सदैव प्रेरणा स्त्रोत बनी रहेगी।

कर्तव्य व राष्ट्रव्यापी जोश

कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने और घायल होने वाले जवानों के प्रति प्रेम, सम्मान, सहानुभूति और कर्तव्य बोध का जो देश व्यापक जोश दिखाई दिया वह अभिभूत करने वाला था। बच्चे से लेकर वृद्ध तक, भिखारी से लेकर उद्योगपति तक कारगिल के सैनिकों के लिए कुछ ना कुछ करने को तत्पर थे। सरकारी कर्मचारियों एक एक दिन का वेतन राष्ट्रीय कोष में दिया, सांसदों तथा मंत्रियों ने एक-एक माह का वेतन राष्ट्रीय कोष में जमा कराया था। राष्ट्रीय कोष में स्वर्ण तथा धन का ढेर लगने लगा था। संपूर्ण भारत अपने सैनिकों के प्रति नतमस्तक हो गया था। राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार ने शहीदों के परिवार की भरपूर मदद की थी। कारगिल शहीदों की विधवाओं को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए समाज और सरकार की ओर से अथक प्रयास किए गए थे।

कारगिल विजय भारतीय सेना की शौर्य गाथा है। हमारे सैनिकों की यह सफलता इसलिए भी प्रशंसनीय और अभिनंदनीय है क्योंकि भारतीय फौज के हथियार पाक सेना के मुकाबले उन्नीस थे। साथ ही वे युद्ध की तैयारी में थे, मानसिक रूप से तैयार है जबकि हम पर युद्ध सौंपा गया था। हम लड़ना ही नहीं चाहते थे, मैत्री भाव चाहते हैं। पूरे विश्व में भारत का समर्थन किया। कारगिल युद्ध से ही भारतीय फौज की शक्ति और सामर्थ्य को पूरे विश्व में स्वीकार किया।

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Essay on Kargil War

500 words essay on kargil war.

Kargil war was a very difficult time that our country went through. Furthermore, it was a crisis situation that ensued a feeling of nationalism , patriotism, and unity among every Indian. This essay on Kargil War will throw light on the various developments of the war and its after-effects.

essay on kargil war

Background of the War

Kashmir is a beautiful region that resides in an extremely mountainous area, containing some of the highest peaks in the world. Unfortunately, this amazing land has remained a constant battleground between the two countries of India and Pakistan.

The dispute began from the First Kargil War in 1947-1948 which led to the establishment of the LOC, line of control. The LOC still divides the land of Kashmir between India and Pakistan.

As part of the Simla Agreement in 1972, there was an agreement that neither India nor Pakistan would contest the border by making use of military means. Since the agreement, both countries began guarding the border heavily for the majority of the year. During the exceedingly cold winter months, both the Indian and Pakistani guards abandon their posts, only to return back in the spring.

However, during the winter of 1998-1999, a surprise attack took place from the Pakistan army and it became successful in crossing the LOC and into India’s portion of Kashmir. Moreover, slowly and gradually, they went on capturing one Indian outpost after another and held their position in Kargil.

In February 1999, at the same time as the winter invasion, the Lahore Declaration was being signed between India and Pakistan which was based on peace. After a few months, the Kargil war began between the two countries. Furthermore, a series of bloody battles were fought between the two nations of India and Pakistan.

The battles posed a huge challenge for the Indian forces as they had to fight on difficult mountainous terrain.  In spite of this challenge, the Indian soldiers showed amazing bravery. After a long struggle, the Indian army became successful in pushing back the Pakistani forces across the line of control.

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Rise of Nationalism

By July 14, 1999, there were heavy causalities on both sides. However, the sacrifice of Indian soldiers was not in vain. This great struggle of the Indian army has carved a place in the heart of every Indian.

The entire Kargil war was a time of tension and nervousness for the Indian people. It infused the spirit of national pride in every Indian. Most noteworthy, it served as an opportunity of unifying all the Indians together irrespective of caste, colour, religion, language etc.

Conclusion of the Essay on Kargil War 

The Kargil war has become an unforgettable event in the history of India. Nevertheless, this was an event that brought about feelings of patriotism in the hearts of every Indian like never before. The brave struggle of the Indian soldiers will continue to be an inspiration for all the citizens of this country.

FAQs For Essay on Kargil War 

Question 1: When did the dispute over the region of Kashmir originally began between India and Pakistan?

Answer 1: The dispute between India and Pakistan over Kashmir began from the First Kargil War in 1947-1948, which led to the establishment of the LOC, line of control. Furthermore, the land of Kashmir is still divided by the LOC between India and Pakistan.

Question 2: What is the concept of nationalism?

Answer 2: Nationalism refers to a political principle, which upholds the congruency of the political and national unit. Furthermore, nationalism involves a strong sense of shared national identity among the people of a nation.

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essay on kargil war in hindi

Kargil Vijay Diwas: करगिल के वो 10 हीरो, जिनके शौर्य के आगे पाकिस्तान हुआ पस्त, जाने कैसे भारतीय वीरों ने दुश्मनों के छुड़ाए छक्के

Kargil war heroes: करगिल जंग (kargil wa) के दौरान देश के सैकड़ों जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देने में तनिक भी संकोच नहीं किया था. उनकी वीरता और साहस के किस्से आज भी हर जगह सुनाई दे रहे हैं..

Kargil Vijay Diwas 2022: 10 Indian Army Heroes of Kargil War India will Always be Proud Kargil Vijay Diwas: करगिल के वो 10 हीरो, जिनके शौर्य के आगे पाकिस्तान हुआ पस्त, जाने कैसे भारतीय वीरों ने दुश्मनों के छुड़ाए छक्के

Indian Army Heroes of Kargil War: देश में आज करगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जा रहा है. इस मौके पर देश के लिए कुर्बानी देने वाले वीर सपूतों के शौर्य को याद किया जा रहा है. हर साल 26 जुलाई को कारगिल जंग (Kargil War) में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने और जंग में जीत के उपलक्ष्य में 'विजय दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. ये दिन 'ऑपरेशन विजय' (Operation Vijay) की सफलता का प्रतीक माना जाता है. 

भारत और पाकिस्तान के बीच ये युद्ध मई से जुलाई 1999 तक चला था. 'ऑपरेशन विजय' के जरिए भारत के जांबाज सैनिकों ने कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों को फिर से वापस प्राप्त कर लिया था.

करगिल के शहीदों को नमन

देश सुरक्षित रहे, इसलिए करगिल जंग के दौरान देश के जवान अपने प्राणों की आहुति देने में लगे थे. उनकी वीरता और साहस के किस्से हर जगह सुनाई दे रहे थे. वैसे तो साल 1999 में हुए युद्ध में देश के लिए जान की कुर्बानी देने वाले जवानों की फेहरिस्त लंबी है. इस युद्ध में अपने जान की बाजी लगाने वाला हर जवान देश का हीरो है. कुछ ऐसे ही नाम जिनका हम जिक्र करने जा रहे हैं, जिन पर पूरा देश गौरवान्वित है.

कैप्टन विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम करगिल युद्ध के उन जवानों में शामिल थे, जिन्होंने दुश्मन को छक्के छुड़ा दिए थे. इनका जन्म 1974 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. वो जून में 1996 में मानेकशां बटालियन में आईएमए (IMA) में शामिल हुए थे. कुछ प्रशिक्षण और पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद उनकी बटालियन, 13 जेएके आरआईएफ को उत्तर प्रदेश जाने का आदेश मिला था. 5 जून को बटालियन के आदेश बदल दिए गए और उन्हें द्रास, जम्मू और कश्मीर स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे 

करगिल युद्ध के हीरो में शुमार रहे लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का नाम गर्व से लिया जाता है. इनका जन्म 25 जून 1975 को यूपी के सीतापुर में हुआ था. मनोज कुमार पांडे 1/11 गोरखा राइफल्स के जवान थे. इन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उनकी टीम को दुश्मन सैनिकों को खदेड़ने का काम सौंपा गया था. उन्होंने घुसपैठियों को वापस पीछे धकेलने के लिए कई हमले किए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 

सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव

नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे और उन्हें टाइगर हिल पर करीब 16500 फीट ऊंची चोटी पर स्थित तीन बंकरों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था. उनकी बटालियन ने 12 जून को टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया था. कई गोलियां लगने के बावजूद उन्होंने अपना मिशन जारी रखा था. इनका जन्म यूपी के बुलंदशहर में हुआ था. योगेंद्र सिंह यादव को देश के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 

सुल्तान सिंह नरवरिया

करगिल युद्ध के दौरान राजपुताना राइफल्स रेजीमेंट के जवान हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत को कौन भूल सकता है. इनका जन्म 1960 में मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ था. करगिल युद्ध जब शुरू हुआ था तो छुट्टी पर घर आए हुए थे और इस बारे में जानकारी मिलते ही वो रवाना हो गए थे. वो ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे. उनकी टुकड़ी को पाक सेना द्वारा कब्जे में ली गई टोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर में बनी चौकी को आजाद कराने की जिम्मेदारी दी गई थी. दुश्मन की गोलीबारी में वो जख्मी हो गए थे, लेकिन उन्होंने चोटी पर तिरंगा लहराया. बाद में वो कई जवानों के साथ शहीद हो गए थे. उन्हें मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया था.

लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया

लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया भी करगिल युद्ध का हिस्सा थे और दुश्मनों को खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई थी. युद्ध के दौरान इन्होंने भी अपने जान की कुर्बानी दे दी थी. इनका जन्म भी मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ था. भदौरिया को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

मेजर एम. सरावनन

कारगिल युद्ध में अग्रिम पक्ति में रहने वाले बिहार रेजीमेंट प्रथम बटालियन के मेजर एम. सरावनन और उनकी टुकड़ी में शामिल नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार समेत कई और जवानों ने दिया था. बिहार रेजीमेंट के इन जवानों को जुब्बार पहाड़ी को अपने कब्जे में करने की जिम्मेदारी दी गई थी. 21 मई को मेजर एम सरावनन अपनी टुकड़ी के साथ मिशन पर निकल पड़े थे. 14 हजार से अधिक फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी. जवानों ने जुब्बार पहाड़ी पर विजय हासि कर बिहार रेजीमेंट की वीरता का ध्वज लहराया था.

मेजर राजेश सिंह 

मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने भी करगिल युद्ध में अहम भूमिका अदा की थी. 18 ग्रेनेडियर्स के जवान राजेश सिंह का जन्म उत्तराखंड के नैनीताल में 1970 में हुआ था. उन्हें टोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था. वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए अपनी कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे. मिशन के दौरान कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारा था. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

शहीद लांस नायक करन सिंह

करगिल में दो महीने से अधिक दिन तक चले युद्ध में लांस नायक करन सिंह ने भी अहम भूमिका अदा की थी. वो इंडियन आर्मी की राजपूत रेजीमेंट में शामिल थे और करगिल जंग में हिस्सा लिया था. युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए वो शहीद हो गए थे. इनका जन्म मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ था. शहीद लांस नायक करन सिंह को भी मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अहम रोल अदा की थी. मुशकोह घाटी में फ्लैट टॉप ऑफ प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने के लिए उन्हें स्वेच्छा से नियुक्त किया गया था. जब वो अपने मिशन पर थे तो दुश्मन ने ऑटोमेटिक गन से फायरिंग शुरू कर दी थी. अदम्य साहस का परिचय देते हुए इन्होंने तीन घुसपैठियों को ढेर कर दिया था. उन्होंने अपने साथियों को भी प्रेरित किया और फ्लैट टॉप क्षेत्र पर आक्रमम किया. इनका जन्म मार्च 1976 में हिमाचल प्रदेश में हुआ था. उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया

मेजर विवेक गुप्ता

मेजर विवेक गुप्ता (Major Vivek Gupta) भी करगिल युद्ध (Kargil War) के उन जवानों में शामिल थे, जिन्होंने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे. इन्होंने टोलोलिंग टॉप पर दुश्मन को खदेड़ने में अहम रोल अदा की थी. कई गोलियां लगने के बावजूद वो अपने मिशन पर आगे बढ़ते रहे. जख्मों के बावजूद उन्होंने दुश्मन देश के तीन सैनिकों को ढेर कर दिया था. उनके प्रेरक नेतृत्व और बहादुरी ने टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया था. उन्हें मरणोपरांत देश के सैन्य सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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COMMENTS

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